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महाराष्ट्र: निजीकरण के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र पावर सेक्टर की एकजुटता काम आई, सरकार फ़िलहाल बैकफ़ुट पर

एक निजी कंपनी द्वारा रेगुलेटरी ऑथोरिटी से समानांतर लाइसेंसिंग के अनुरोध के बाद राज्य के स्वामित्व वाले बिजली कर्मचारियों ने हड़ताल का सहारा लिया।
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फ़ोटो साभार: ET

तीन सरकारी बिजली कंपनियों के निजीकरण के प्रयास का विरोध करने के लिए अलग-अलग यूनियनों से जुड़े 80,000 से अधिक बिजली कर्मचारियों ने पूरे महाराष्ट्र में 72 घंटों के लिए काम बंद कर दिया। और जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से ये वादा किया वे एक समूह से जुड़ी किसी निजी कंपनी को समानांतर लाइसेंस देने का समर्थन नही करेंगे इसके बाद हड़ताल वापस ले ली गई।

फडणवीस, जिनके पास ऊर्जा विभाग भी है, ने बुधवार को ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ एक लंबी बैठक की। इसके बाद में, उन्होंने मीडिया से कहा कि सरकार का सरकारी बिजली कंपनियों के निजीकरण का कोई इरादा नहीं है।

राज्य के स्वामित्व वाली कम्पनियों में महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन को. लिमिटेड, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन को लिमिटेड और महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन को लिमिटेड शामिल हैं।

एक निजी कंपनी द्वारा महाराष्ट्र राज्य विद्युत नियामक प्राधिकरण को समानांतर लाइसेंसिंग के लिए अनुरोध के बाद से कर्मचारी भड़क गए। कर्मचारियों का आरोप है कि निजी कंपनी को लाइसेंस देने से सार्वजनिक बिजली व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि ग्रामीण और शहरी दोनों उपभोक्ता क्रॉस-सब्सिडी जैसी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं और  निजी कम्पनियों का प्रवेश गरीब उपभोक्ताओं को सस्ती और सब्सिडी वाली बिजली से वंचित कर देगा।

क्रॉस सब्सिडी एक ऐसी प्रणाली है जहां शहरी और औद्योगिक उपभोक्ता बिजली कम्पनियों को बिजली पर उच्च टैरिफ का भुगतान करते हैं, और बदले में सरकार कंपनी से कम विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों जैसे किसान और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को बिजली प्रदान करने के लिए कहती है।

महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी स्वाभिमानी वर्कर्स यूनियन के उप महासचिव विवेक महाले ने न्यूज़क्लिक को बताया कि निजी कंपनी ने ठाणे और नवी मुंबई जैसे क्षेत्रों में समानांतर लाइसेंसिंग के लिए मांग की है। ये स्थान राज्य के स्वामित्व वाली सरकारी कंपनियों को प्रति माह 1350 करोड़ रुपये का योगदान दे रहे हैं जिसके बदले में कंपनियां राज्य में किसानों को सस्ती बिजली प्रदान कर सकती हैं। वे दशकों से नुकसान झेलने के बावजूद राज्य की अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं। "वे पैसा खर्च करके एक नया इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाना चाहते हैं, लेकिन निश्चित रूप से उन क्षेत्रों को चुनकर मुनाफा चाहते हैं जहां शहरी उपभोक्ता बिलों का भुगतान करने में अधिक मेहनती रहे हैं। महाले ने कहा, "हमें इस बात का भी डर है कि विचाराधीन कंपनी भारी कर्ज़ में है और यह आखिरकार वह इस बोझ को उपभोक्ताओं पर ही डालेगी। कर्मचारियों के सभी वर्गों ने हड़ताल में भाग लिया और सरकार को, रेगुलेटरी बॉडी के सामने अपना मामला रखने के लिए मजबूर किया।"

महाले ने आगे कहा कि काम बन्द करना कर्मचारियों का अंतिम उपाय था। “हमने नागपुर विधान सभा के सामने 35,000 कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन किया, फिर 12000 कार्यकर्ताओं के साथ एक मार्च आयोजित किया, जिसे समाज के सभी वर्गों से व्यापक समर्थन मिला। हड़ताल के बाद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हमसे मिले और कहा कि इस मुद्दे को लेकर कुछ गलतफहमी हुई है। हमने इस बात पर ज़ोर दिया कि एक मंत्री के रूप में सार्वजनिक कंपनियों को बचाना उनका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि कंपनी ने अपना अनुरोध रेगुलेटर के पास भेज दिया है और वह इससे सीधे तौर पर संबंधित नहीं हैं। हमने कहा कि कम से कम सरकार को अपना मामला उनके (रेगुलेटर) के समक्ष रखना चाहिए।

निजीकरण से जुड़े जोखिमों के बारे में बात करते हुए, महाले ने आगे कहा कि सरकारी कंपनियों के रूप में, तीन बिजली कंपनियां सामाजिक सुरक्षा मानदंडों जैसे श्रम कानूनों और हाशिए पर खड़े समुदायों के लिए आरक्षण को लागू करने के लिए बाध्य हैं। "निजीकरण राज्य के सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर देगा।"

हड़ताल को किसान संगठनों, पेट्रोलियम कर्मचारियों और समाज के अन्य वर्गों का समर्थन मिला। पेट्रोलियम एंड गैस वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रदीप मयेकर ने एक बयान में कहा कि यह मजबूत हड़ताल की कार्रवाई महाराष्ट्र के बिजली कर्मचारियों के दो महीने लंबे एकजुट संघर्ष की परिणति है। “महाराष्ट्र सरकार ने आंदोलनकारी कर्मचारियों और लोगों की आपत्ति पर कोई ध्यान नहीं दिया। निश्चित तौर पर महाराष्ट्र की बिजली को अडानी से बचाने के लिए हड़ताल पर जाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा था! इस हड़ताल की कार्रवाई से सार्वजनिक सेवा में किसी भी तरह की गड़बड़ी के लिए महाराष्ट्र राज्य प्रशासन अकेला ज़िम्मेदार है - लोगों की पीड़ा का ज़िम्मेदारी निस्संदेह उन्ही पर है।"

अखिल भारतीय किसान सभा के महाराष्ट्र राज्य सचिव अजीत नवले ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी से कृषि संकट भी बढ़ेगा। "वर्तमान में, बीज, यूरिया और कीटनाशक जैसे खाद्यान्नों की उत्पादन लागत पहले से ही महंगी है, लेकिन खाद्य कीमतों को कम रखा गया है क्योंकि किसान नुकसान उठा रहे हैं। जब आप बिजली के दाम बढ़ाएंगे तो उत्पादन लागत भी बढ़ेगी और बोझ असहनीय हो जाएगा। यही कारण है कि जब किसान बिलों का भुगतान करने में असमर्थता ज़ाहिर करते हैं, तो कभी-कभी सरकारें बोझ को कम करने के लिए आगे आती हैं।"

नवले ने कहा कि एआईकेएस(AIKS) ने हड़ताल को अपना समर्थन दिया क्योंकि स्वास्थ्य, शिक्षा और बिजली जैसे कुछ क्षेत्रों को निजी कंपनियों को नहीं सौंपा जाना चाहिए। “हमनें कोरोना काल के दौरान इसका महत्व देखा जब सरकारी अस्पतालों ने महामारी से निपटने की ज़िम्मेदारी ली। अगर इसे मेडिक्लेम आधारित बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों में बदल दिया गया होता, तो हर जगह व्यवस्था चरमरा जाती। इसी तरह, निजी कंपनियों के नियंत्रण में शहरी गरीबों को ज़रूरी बिजली कैसे मिलेगी!", उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा।

इस हड़ताल को सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) से भी समर्थन मिला, जिसके अनुसार यह हड़ताल सरकार की मनमानी और घोर निजीकरण के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य बिजली कर्मचारियों के प्रतिरोध और अवज्ञा की एक मजबूत अभिव्यक्ति थी।

सीटू के महासचिव तपन सेन ने एक बयान में कहा, "आश्चर्यजनक रूप से, अडाणी ग्रुप-अडाणी इलेक्ट्रिसिटी नवी मुंबई लिमिटेड और अडाणी ट्रांसमिशन लिमिटेड द्वारा दायर याचिका कई अर्थों में गलत सूचना देने वाली, गुमराह करने वाली, अधूरी, गलत और खराब मंशा वाली है। ये ग्रुप गंभीर वित्तीय-ऋण संकट में है और याचिकाकर्ता कंपनी के पास विद्युत वितरण सेवा का कोई अनुभव नहीं है। ये मजबूत, वैध और न्यायोचित आपत्तियां हैं, क्योंकि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 (लाइसेंस की मंजूरी) के तहत किसी भी याचिकाकर्ता को लाइसेंस देने के लिए पूंजी पर्याप्तता, साख-पात्रता या आचार संहिता से संबंधित अनुपालन की आवश्यकता होती है।

भारतीय विद्युत कर्मचारी महासंघ (EEFI) ने इस अविश्वसनीय जीत के लिए महाराष्ट्र के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के एकजुट संघर्ष की सराहना की। एमईएसएम(MESM) अधिनियम 2017 के प्रतिशोधी आह्वान सहित सरकार के हमले का विरोध और अवहेलना करते हुए, दृढ़ संकल्पी हड़ताली विजयी हुए हैं। "अहंकारी महाराष्ट्र सरकार ने हड़ताल कर रहे कर्मचारियों के सामने व्यवहारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया", एक बयान में उन्होंने ऐसा कहा।

संगठन ने कहा, "कल की प्रेस वार्ता में आश्चर्यजनक रूप से, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम ने कृषि उपभोक्ताओं के लिए एक अलग बिजली वितरण कंपनी का प्रस्ताव दिया है। ईईएफआई(EEFI) को आशंका है कि यह क्रॉस-सब्सिडी तंत्र को भारी रूप से प्रभावित करेगा और सरकार के लिए कृषि बिजली सब्सिडी को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह किसानों को निचोड़ने के लिए पिछले दरवाज़े की एक गुप्त परियोजना है। ईईएफआई इसका पुरजोर विरोध करता है।"

EEFI ने यह भी नोट किया कि 4 जनवरी, 2023 को देश भर के लगभग 2 मिलियन बिजली कर्मचारी भी महाराष्ट्र के हड़ताली कर्मचारियों के समर्थन में सड़कों पर उतरें। कर्मचारियों की जीत से प्रेरित होकर, ईईएफआई ने भारतीय नागरिकों, और विशेष रूप से बिजली कर्मचारियों को महाराष्ट्र आंदोलन के अनुभव को बनाए रखने और "बेरहम" बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने का आह्वान किया।

NCCOEEE (बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति) ने "नवी मुंबई के उच्च राजस्व संभावित क्षेत्र में समानांतर लाइसेंस के माध्यम से निजीकरण के कदम" का विरोध करने के लिए बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों को बधाई दी और उनकी सराहना की। कर्मचारियों के आंदोलन के प्रति अपनी एकजुटता को फिर से बढ़ाते हुए, इन्होंने कहा, “NCCOEEE और इसके सभी घटकों ने विवाद में हस्तक्षेप करने के लिए महाराष्ट्र सरकार पर दबाव डाला। चूंकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया इसलिए हड़ताल अनिवार्य हो गई। महाराष्ट्र बिजली कर्मचारियों के सभी वर्गों ने 4 जनवरी को ज़ीरो ऑवर्स से 100 फीसदी भागीदारी के साथ हड़ताल की कार्रवाई का सहारा लिया।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल खबर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Maharashtra Power Sector Strike Against Privatisation Succeeds, Lauded by Unions

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