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महाराष्ट्र सियासत:  शिवसेना के ‘संकटमोचक शिंदे’ ही हो गए बाग़ी, कैसे बचेगी सरकार?

उद्धव सरकार के लिए सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, एकनाथ शिंदे समेत महागठबंधन के 30 विधायक बागी हो जाने की संभावना है।
Eknath Shinde

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि भाजपा ने पिछले कई सालों में कई राज्यों की जनता के वोटों का मज़ाक बनाकर, विधायकों को जोड़-तोड़कर सत्ता हथिया ली है। आपको याद होगा जब महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा कर दी थी, तो कैसे भाजपा के नेता देवेंद्र फडणवीस ने सुबह होते ही चुपचाप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। हालांकि बाद में वो बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए और पूरी पार्टी की किरकिरी हुई। लेकिन लंबे वक्त बाद एक बार फिर से महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर ख़तरे के बादल मंडराने लगे हैं, क्योंकि इस बार शिवसेना के संकटनोचक एकनाथ शिंदे ही पार्टी के साथ बग़ावत कर बैठे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं संभावना ये भी जताई जा रही हैं  कि वो अपने साथ-साथ शिवसेना के करीब 15, एक एनसीपी का और करीब 14 निर्दलीय विधायकों को भी ले गए। जिसके बाद कयास लगाए जाने लगे कि एक नाथ शिंदे सभी बागी विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाएंगे।

शिंदे के इस कदम के बाद भाजपा खेमें में खुशी की लहर दौड़ उठी, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दिल्ली पहुंच गए, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर ली। बयानवीरों के बयान भी सामने आने लगे कि महाराष्ट्र में कमल खिलने वाला है।

शिंदे के इस बगावती क़दम के बाद शिवसेना ने उन्हें विधायक दल के नेता पद से हटा दिया और अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बना दिया गया। पार्टी के इस एक्शन के बाद शिंदे ने बयान जारी किया जो उनके बागी तेवरों के एकदम उलट था। उन्होंने ट्वीट किया। ‘’हम बालासाहेब के सच्चे शिवसैनिक हैं। बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है। हम सत्ता के लिए कभी भी धोखा नहीं देंगे।

जिसके बाद इतना तो समझा जा सकता है कि एकनाथ शिंदे भाजपा में शामिल होने नहीं जा रहे हैं, हां ऐसा ज़रूर हो सकता है कि वो भाजपा के साथ गठबंधन करें और किसी बड़े पद की मांग करें या फिर कानून के हिसाब विधायकों की संख्या को पूरी करने की कोशिश करें और अपना मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करें।

सूत्रों का मानना है कि एकनाथ शिंदे पार्टी की विचारधारा से खिलवाड़ के ख़िलाफ खड़े हैं। यानी उनके मुताबिक कांग्रेस और शिवसेना के साथ गठबंधन विचारधारा के विपरीत है।

शिंदे की बग़ावत अगर आख़िर तक जारी रही और बाग़ी विधायक वापस नहीं आए तो उद्धव की सरकार गिरने से फिलहाल कोई नहीं रोक सकता है। इसे ऐसे समझिए

288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में शिवसेना के 56, एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। जो महाविकास अघाड़ी सरकार का हिस्सा है। इसके अलावा सपा के 2, पीजीपी के 2, बीवीए के 3 और 9 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी सरकार को हासिल था। ऐसे में बगावत के पहले फिलहाल उद्धव सरकार के पास 169 विधायकों का समर्थन था। जो घटकर फिलहाल 139 हो जाएगा अगर शिंदे के साथ जाने वाले 30 विधायकों की संख्या पुख्ता हो गई।  जबकि बहुमत के लिए इस समय 144 विधायकों की जरूरत है।

या यहूं कहें कि एकनाथ शिंदे के साथ गए सिर्फ 20 विधायक ही अगर बगावत पर अड़े रहे तो उद्धव सरकार गिर जाएगी। अब सवाल ये है कि क्या ऐसे में भाजपा सरकार बना सकती है?

दरबदल कानून के हिसाब से भाजपा के साथ मिलकर शिंदे अगर सरकार बनाना चाहें तो उन्हें कुल सीटों की 2/3 संख्या चाहिए होगी। यानी शिंदे को 37 विधायक जुटाने होंगे। अगर शिंदे ऐसा कर लेते हैं तो किसी भी विधायक की सदस्यता भी रद्द नहीं होगी और शिंदे अपना मुख्यमंत्री बनने का ख़्वाब भी पूरा कर सकते हैं। हालांकि ये इतना आसान लग नहीं रहा है क्योंकि शिवसेना ने अपने दूतों को एक्टिव कर दिया है, और पार्टी प्रवक्ताओं और बड़े नेताओं की ओर से सकारात्मक बयान ही सामने आ रहे हैं।

दूसरी ओर ये जानना भी ज़रूरी है कि हमेशा शिवसेना के लिए संकटमोचक का किरदार निभाने वाले एकनाथ शिंदे इतना क्या नाराज़ गए कि अचानक बगावत कर बैठे।

दरअसल एकनाथ शिंदे की गिनती शिवसेना के दिग्गज नेताओं में होती है। जब 2019 में चुनाव का रिजल्ट आया था, तो शिवसेना ने शिंदे को विधायक दल का नेता बनाया था। शिंदे ठाणे इलाके के बड़े नेता माने जाते हैं और बाला साहब ठाकरे के समय से पार्टी से जुड़े हुए हैं। पिछले महीने महाराष्ट्र में राज्यसभा और 20 जून को विधान परिषद के चुनाव में शिवसेना में शिंदे की बात नहीं सुनी गई, जिसके बाद से ही वे नाराज चल रहे थे।

महाराष्‍ट्र की 10 सीटों पर विधान पर‍िषद चुनाव के नतीजे में भाजपा के 5 उम्‍मीदवार जीत गए। जबकि एनसीपी और श‍ि‍वसेना के 2-2 उम्‍मीदवारों को जीत मिली है। वहीं कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली है। श‍िवसेना से सचिन अहीर और अमाश्‍या पाडवी ने जीत हासिल की है। वहीं एनसीपी के एकनाथ खडसे और रामराजे निंबालकर चुनाव जीत गए हैं। उधर भाजपा के प्रवीण दरेकर, राम श‍िंदे, श्रीकांत भारतीय और उमा खपरे ने विधान पर‍िषद का चुनाव जीता है। भाजपा की जीत से साफ था कि दूसरे दलों के नेताओं ने क्रॉस वोटिंग की है। और वह अब बागी विधायकों की लिस्ट से दिखने भी लगी है।

मुंबई से नागपुर के बीच बन रहा सुपर कम्युनिकेशन हाईवे फडणवीस का ड्रीम प्रोजेक्ट था। समृद्धि महामार्ग नाम के इस प्रोजेक्ट को फडणवीस ने शिंदे को सौंप रखा था। उद्धव सरकार में भी यह प्रोजेक्ट है तो शिंदे के पास, लेकिन उसका श्रेय उन्हें नहीं दिया जा रहा है।

शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की महाअघाड़ी सरकार बनने के बाद से शिवसेना में संजय राउत, अनिल देसाई और आदित्य ठाकरे की ताकत काफी बढ़ गई। वहीं एकनाथ शिंदे खुद को दरकिनार महसूस कर रहे थे।

शिंदे की नाराज़गी की कई बड़ी वजह हैं, जिसमें से एक भाजपा की अंदरूनी रणनीतिक भी शामिल है, लेकिन भाजपा के अब तक का ऑफिशियल स्टैंड है कि इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह शिवसेना और महाविकास अघाड़ी का भीतरी झगड़ा है। हालांकि, 2019 चुनाव के बाद से महाराष्ट्र में बीजेपी पहले भी सरकार बनाने की कोशिश कर चुकी है। जब सुबह-सुबह अजित पवार को बीजेपी ने डिप्टी सीएम की शपथ दिला दी थी।

इन सभी उतार-चढ़ावों के बीच देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या उद्धव सरकार बच जाएगी। अगर नहीं बचेगी तो क्या शिंदे ख़ुद मुख्यमंत्री बनने के लायक शिवसेना के और विधायकों को तोड़ पाएंगे, या फिर भाजपा में शामिल होकर फिर से देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाएंगे।

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