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मंजु प्रसाद :  कोमल रंगांकन के साथ एंद्रिय संयोजन

डॉ. मंजु के चिंतन में "प्रकृति और मानव व्यवहार" में स्त्री प्रकृति का सादृश्य है। मंजु के चित्रों में प्रकृति एक वस्तु (ऑब्जेक्ट) है जबकि उनके भूदृश्य (लैंडस्कैप) चित्रों में सबजेक्ट (विषय) हैं।   
मंजु प्रसाद :  कोमल रंगांकन के साथ एंद्रिय संयोजन
स्वप्न, कैनवस पर ऐक्रेलिक रंग। चित्रकार : मंजु प्रसाद

बिहार के छुटकी कोठिया गांव में मां पान किशोरी देवी और पिता डॉ. राज बहादुर प्रसाद के यहाँ जन्मी मंजु ने गंगा के सलिल धारा से सींचित शस्य श्यामला धरती एवं गंवई भोलेपन में अपना शैशव जिया। बाद के दिनों में पिता के तबादले के साथ-साथ मिथिला के कोशी तट पर बसे सुपौल और झारखंड की पहाड़ियों और जंग जंगलों से घिरे गुमला में बालपन पला बढ़ा। गुमला के बाद गोपालगंज और बाद में पटना के कला एवं शिल्प महाविद्यालय से स्नातक (ललित कला) में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1952 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (ललित कला-प्रवीण) में दाखिला लिया।

 चित्रकार मंजु प्रसाद

आगे चल कर हिन्दी कला समीक्षा के विकास पर शोध किया और 2004 में डॉक्ट्रेट की उपाधि हासिल की। बनारस में अध्ययन के दौरान ही उन्हें मानव संसाधन विकास संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शोध छात्रवृत्ति मिली जिसकी वजह से दिल्ली में रहना (1995-97) में हुआ। दिल्ली की भागम-भाग, महानगरीय विशालता, उसमें तरह-तरह के प्रदूषण (वायु, ध्वनि, जल आदि) के बीच रहते हुए उन्हें अपने गांव के सोझ मन का गंवईपन, झारखंड के पहाड़, जंगल, झरने व सीधे सरल आदिवासी अक्सरहां तैर जाते। प्रकृति और वातावरण से उनका इस साक्षात्कार ने प्रकृति के प्रति उनके सोच में नये आयाम जोड़े। प्रकृति के संरचना में तकनीकी विकास से हुए चकाचौंध, गढ़ी गई सुकृति, पनपी-फैली विकृति ने मंजु के मन मस्तिष्क में खिंचाव और सवाल पैदा किया। प्रकृति के स्वरूप को नये सिरे से उसके नये रूप में मंजु ने बतौर एक विषय ग्रहण करने की जरूरत महसूस की। उनके चित्रों का विषय बन गया, "विनष्ट होती प्रकृति और उससे मानव का अंतर संबंध।"

मंजु प्रसाद की प्रकृति विषयक रूचि और उनके साथ मानव संबंध, क्रियाकलाप व व्यवहार के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टि की विवेचना करते हुए अंग्रेजी के प्रसिद्ध कला समीक्षक केशव मल्लिक ने उनकी ('नेचर' प्रकृति 5"-6" रवीन्द्र भवन नई दिल्ली में प्रदर्शित) पेंटिंग के बारे में लिखा, ' मंजु कोमल रंगांकन के साथ एंद्रिय संयोजन करती हैं, जो सघन पर्ण समूह के समान विस्तृत एवं सघन अंकुरण के समान प्रतीत होता है, जो मनुष्य के ईर्द-गिर्द सदाबहार बेलों की गुच्छियों के समान लिपटे हुए आकर्षक प्रतीत होते हैं।"

रेलवे कॉलोनी, कैनवस पर  तैल रंग। चित्रकार : मंजु प्रसाद 

प्रथम दृष्टया यदि उनकी चित्रकला को देखें तो पायेंगे की उसमें उदास निस्तेज रंग जैसे भूरा, स्लेटी, धूसर काही हरा रंग प्रभावी है। ऐसा इसलिए कि मंजु के अनुसार कई बार उदास भाव से वह पेंटिंग की शुरूआत करती हैं। किन्तु पेंटिंग में उदासी की प्रभावी उपस्थिति एक मन: स्थिति भर है। बकौल मंजु ' प्रकृति उनका स्थायी विषय है एक सुखद एहसास की तरह।'  इसलिए प्रकृति के विभिन्न रूपों और छटाओं को रंगों में खोजने की चेष्टा में चित्र सृजन उनके लिए एक प्रोत्साहक क्रिया बन जाती है। प्रकृति के साथ मंजु का सुखद एहसास उदासी को चुपके से हटाकर निस्तेज रंगों पर गहरा गुलाबी रंग ( मुक्तिबोध का ' रक्त कमल') जैसे उल्लसित रंग मुखर हो जाते हैं --" नेचर एंड शी -2" ए.बी.सी आर्ट गैलरी बनारस 1994 ,शाहजहां आर्ट गैलरी -दिल्ली- 1997 में प्रदर्शित)।

मंजु प्रसाद के चित्रों में कभी निर्भीक रेखाओं में आकृतियाँ उभरती हैं (दृढ़ता ) तो कभी घुमावदार रेखाओं में रागात्मक गीत का उठान (उमंग) दिखता है।  (नेचर एंड शी -1, उप्र ललित कला अकादमी  अकादमी के स्थायी संग्रह में)।

मंजु प्रसाद स्नातक (ललित कला) में अध्ययन के दौरान पुश्किन, तालस्ताय और मक्सिम गोर्की से प्रभावित हुईं। इन महान प्रगतिशील  साहित्यकारों की कृतियों को पढ़ने के प्रभाव से गलत बातों का तुरंत विरोध करने की आदत विकसित हुई। विरोध परिस्थितिवश व्यक्त नहीं हो पाया या दर्ज नहीं किया गया! जब विरोध को सुनकर अनसुना कर दिया जाए, विरोध को महत्वहीन बना दिया जाए तो मन: स्थिति विचलन भरी हो जाती है। इस विचलित मन:स्थिति को डॉ. मंजु प्रसाद ने रेखाओं की गझिन और जटिल बुनावट से उकेरा है, प्रकृति को थोड़ा विरूपित ढंग से उष्ण रंगों में जैसे—सुर्ख़ (लाल), बैंगनी, गहरे भूरे रंगों में, बोल्ड तूलिका घात के जरिये अंकित किया। रंगों के छींटे कैनवस पर टेक्सचर पैदा करते हैं -- टहनियां सूखी नजर आती हैं, तितलियों का रंग शोख नहीं रह जाता और भंते कि भंगिमा से पुते चेहरे का ढोंग उभर कर आ जाता है। इन सबके बावजूद चित्र में मंजु द्वारा प्रयुक्त किया गया ऊर्जावान पीला रंग उनके आशावादी विचार की दृढ़ता को प्रकट करता है। (इंटीमेट सराउंडिग ललित कला अकादमी नई दिल्ली 1998 दिल्ली में प्रदर्शित )।

डॉ. मंजु के चिंतन में "प्रकृति और मानव व्यवहार" में स्त्री प्रकृति का सादृश्य है। मंजु के चित्रों में प्रकृति एक वस्तु (ऑब्जेक्ट) है जबकि उनके भूदृश्य (लैंडस्कैप) चित्रों में सबजेक्ट (विषय) हैं।

सन् 1998 से 2000 तक डॉ. मंजु प्रसाद ने अपना पूरा ध्यान अपने शोध कार्य पर केंद्रित किया। शोध कार्य में मंजु प्रसाद पूरी तल्लीनता से लगीं। शोध कार्य के दौरान मंजु की कला दृष्टि और समृद्ध हुई। चित्रण के नये आयाम विकसित किए। बकौल मंजु प्रसाद  "माध्यम परिवर्तन से (शोध प्रबंध) मेरी कला संबंधी यह धारणा पुख्ता हुई कि,' प्राचीन कला हो अथवा आधुनिक कला उसका अनुकरण नहीं किया जा सकता है। समय कला को प्रभावित करता है, इसलिए परिवर्तन होगा ही।" शोध से मैंने यह समझ हासिल की कि हमें कला सृजन में पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।

काम करते हुए मंजु अमूर्तन एवं आकृति मूलक विषय का चयन अपने मनोभावों के अनुकूल करती हैं। अपने  अन्त : प्रेरणा के बहाव में रंगों के प्रवाह को कैनवास पर गतिमान करती हैं। मौजूदा कला परिदृश्य में विद्यमान परिपाटी से बेपरवाह होकर वह वह दोहराव से परहेज के कारण अपनी शैली की स्वीकृति (एक्सेप्टेन्स ) न मिलने का रिस्क भी उठाती हैं। 2001 से 2004 में प्रकृति श्रृंखला के अपने चित्रों में यह जोखिम उन्होंने उठाया है। मंजु प्रसाद की शैली में रूप (फार्म ) में धारणा (कांसेप्ट) का चित्रण है। लेकिन रूप में धारणा वाचाल ( वोकल ) नहीं है। चित्र की भाषा रंग एक गंभीर कविता की तरह अंतर्मुखी किन्तु अभिव्यक्ति के सामर्थ्य से परिपूर्ण होकर उभरे हैं।' तितली (2003-- तैल एवं जलरंग माध्यम) व पुनर्नवा (2004--जलरंग माध्यम)  ( SCZCC) नागपुर  में हुए अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी में चयनित और संग्रह में। त्रिवेणी कला दीर्घा नई दिल्ली --2004 में प्रदर्शित चित्रों में चमकीले और चटख रंगों से से अनेक अमूर्त चित्रण हुए हैं। हालांकि भावों के उद्वेग में, अमूर्तन में ही आकृतियां कभी-कभी ढीढता से किसी- किसी चित्र में अपनी उपस्थिति का बोध कराती हैं। इसे धारणा का रूपायन कहा जा सकता है।

सन 2006 में ललित कला अकादमी के लखनऊ केंद्र में आयोजित मंजु प्रसाद के एकल चित्र प्रदर्शनी 'प्रतिध्वनि ' व 2008 में आइफैक्स आर्ट गैलरी दिल्ली में एकल प्रदर्शनी 'प्रतिध्वनि-2', में रंगों का मिजाज थोड़ा अलग हो गया। रंग उजास और पुरसुकून हो गए। आकृतियों की भंगिमा स्पष्ट गोचर होने लगी। खासकर नारी आकृतियों की आंखें शांत - भाव पूर्ण हो गईं। कलाकार के इर्द-गिर्द के विषय जैसे संयुक्त परिवार का विघटन भरा ढांचा, प्रेम-द्वेष, विश्वास-संशय, हर्ष-विषाद और रूढ़ियों की जकड़न तोड़ने की जद्दोजहद चित्र पटल पर प्रमुखता से उभरे। ' रोशनी आ रही है', 'वह तुम ही थे' , ( ललित कला अकादमी क्षेत्रीय कला केन्द्र लखनऊ में प्रदर्शित) तथा 'अभयदान' ,'सुरसाधना' ( प्रदर्शित आइफैक्स आर्ट गैलरी नई दिल्ली)।

डॉ. मंजु के चिंतन में "प्रकृति और मानव व्यवहार" में स्त्री प्रकृति का सादृश्य है। मंजु के चित्रों में प्रकृति एक वस्तु (ऑब्जेक्ट) है जबकि उनके भूदृश्य (लैंडस्कैप) चित्रों में सबजेक्ट (विषय) हैं। विषय जब प्रत्यक्ष दृश्यमान हो तो उसे सृजन रूप में तराशना एक कलाकार के लिए एक कठिन साध्य श्रम होता है। मंजु के कलाकर्म में यह श्रम है धैर्य के साथ।

नन्द लाल बोस की जलरंग तकनीकी से प्रभावित मंजु का एक चित्र "हरित पठार" (2010) में झारखण्ड के धूमिल पठार से क्षितिज से शुरू होता है,  जहां कई पहाड़ियां हैं, झाड़ियों से घिरे छोटे छोटे घरौंदानुमा घर है जो जंगल में मानव उपस्थिति को दर्शाते हैं, ( राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ मे फरवरी 2015 को प्रदर्शित)।

मंजु प्रसाद ने "तैरते सपने" में आस–पास घरेलू महिलाओं से जुड़ी हुई स्थितियों को श्याम-श्वेत रंगों में, कलम और स्याही के माध्यम से गहन रेखाओं को उकेरा है। जिसमें माँ के साथ घरों में काम कर रही स्कूल जाने की उम्र की लड़की के लिए  साइकिल एक सपना है, जिन्हें रेखाचित्र में हवा में झूलती साइकिल, उठते बुलबुले, तैरती मछलियां स्वप्न का आभास देती हैं।

बंद पड़े नल के नीचे कपड़े के ढेर पर बैठी चिंतित मासूम महिला और दाहिनी ओर टूटे चश्मे की शिकायत करती बूढ़ी महिला। भारतीय नारी की अकथ दारूण दशा का एक रेखा कथ्य पढ़ने जैसी अनुभूति होती है मंजु के उस ड्राइंग को देखते हुए।

बीस साल से ज्यादा हो गये डॉ. मंजु प्रसाद को कला के क्षेत्र में निरंतर सृजन शील रहते हुए और बिना रूके चित्रकला के विभिन्न माध्यमों में चित्रण करते हुए। गॉड फादर वाला दृष्टिकोण रखने वालों द्वारा संचालित भारतीय कला जगत से मंजु को उपेक्षा बेरूखी के सिवा कुछ भी नहीं मिला। ज्यादातर मंजु ने कई सफल एकल प्रदर्शनी की हैं। सफल इस मायने में कि इन कला प्रदर्शनी में कला प्रेमी दर्शक, विद्वत जन की अच्छी भागीदारी रही है। सराहा भी जाता रहा है। लेकिन सही मायने में एक कलाकार ही हैं जो कला बाजारवाद से कोसों दूर हैं। इसलिए इनकी प्रदर्शनी में चित्र न के बराबर बिकते हैं। नई दिल्ली में 2008 में इंडियन फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट सोसायटी (आइफैक्स) में हुए मंजु के एकल चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए हिंदी के प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल ने कहा था, ' मंजु के सभी चित्र बहुत सुन्दर हैं खासकर महिलाओं की आकृतियों में आंखें बहुत प्रभावपूर्ण और शांत हैं । ...लेकिन कला बाजार में ऐसी पेंटिंग हाशिए पर रहती हैं।'

इन स्थितियों के बावजूद मंजु हिम्मत नहीं हारती हैं। उन्होंने कला सृजन और कला लेखन को अपना कर्म और जीवन शैली बना लिया है। मंजु महात्मा गांधी से काफी प्रभावित हैं। मंजु की दो प्यारी बेटियां हैं। मंजु का मानना है कि ' कला सृजन में परिवार एक आधार और प्रेरणा है सुन्दर सृजन करने के लिए, मानव जीवन है तो हमें कई चुनौतियों का सामना करना ही है। इनपर विजय प्राप्त करने में कला सृजन ही सबसे सुन्दर माध्यम है।'

मंजु को कई बार कुछ अच्छे सहृदय लोगों का साथ मिल जाता है। मसलन मंजु के लिए अप्रत्याशित था जब उन्हें बिहार के कुमुद शर्मा पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। इसमें बिहार ललित कला अकादमी के चेयरमैन आनंदी प्रसाद बादल की ही मुख्य भूमिका थी। मंजु जब उनसे मिलने गईं तो उन्होंने बताया कि '2001 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय की कला विथिका में उन्होंने मंजु के नितांत नवीन शैली के चित्रों का अवलोकन किया था जिसने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। इसलिए तमाम विरोधों के बावजूद बादल जी ने मंजु का नाम सीनियर महिला चित्रकार के बतौर चयनित किया था। इसके बाद बिहार ललित कला अकादमी ने डॉ. मंजु प्रसाद के चित्रों की एक प्रदर्शनी भी प्रायोजित की। इसमें भी श्री आनंदी प्रसाद बादल की प्रमुख भूमिका थी। ऐसे ही अपने ईमेल की जांच करते हुए अचानक मंजु को विश्वरंग रविन्द्रनाथ  टैगोर विश्व विद्यालय, भोपाल से एक संदेश मिला कि उनका नाम अखिल भारतीय कला संगोष्ठी में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया है। इससे डॉ. मंजु के उत्साह में इजाफा हुआ। इस सेमिनार के लिए समन्वयक अशोक भौमिक जी द्वारा निर्धारित विषय एवं  काल अवधि के अनुसार  (1942-1946) संगोष्ठी से पूर्व ही मंजु प्रसाद द्वारा बीस पृष्ठ का प्रस्तुति आलेख प्रषित किया गया।

प्रकृति-2019 इन्सटालेशन वर्क। कलाकार : मंजु प्रसाद 

कोरोना आदि महामारी को मंजु मनुष्य द्वारा मानव जाति को दिया गया एक संकट मानती हैं। जिसमें बड़े पैमाने पर प्रकृति विरुद्ध उसका दोहन ही विनाश का मुख्य कारण है। अतः वे दृष्टि से ओझल होती जा रही सुन्दर प्रकृति को हठधर्मिता से अपने चित्रों में दिखा रहीं हैं। मंजु का 2019 के दौरान के विनष्ट होती हुई प्रकृति पर आधारित 'इंस्टालेशन प्रकृति --2019' इसी को दर्शाते हैं। इसे उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय आन लाइन आर्ट गैलरी जैसे न्यूयॉर्क कंटेम्परेरी एब्सट्रेक्ट आर्ट , कंटेम्परेरी आर्ट 21 सेन्चुरी आदि पर प्रदर्शित किया है।

(लेखक एक कवि और संस्कृतिकर्मी हैं।)

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