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उत्तर प्रदेश में मेडिकल शिक्षाः दावे और सच्चाई

तो क्या उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज़ों और एम्स में पर्याप्त शिक्षक और स्टाफ हैं? उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज़ों में शिक्षकों की और अन्य ग़ैर-शिक्षक स्टाफ की स्थिति क्या है? आइये, पड़ताल करते हैं।
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उत्तर प्रदेश भाजपा सरकार राज्य में मेडिकल शिक्षा को लेकर खूब दावे कर रही है। भाजपा का दावा है कि उसने उत्तर प्रदेश को मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल बना दिया है। एक ज़िला एक मेडिकल कॉलेज़ की नीति के तहत कार्य गतिमान बताया जा रहा है। मेडिकल शिक्षा के बारे में खूब प्रोपगेंडा किया जा रहा है। तो सवाल उठता है कि क्या सचमुच उत्तर प्रदेश में मेडिकल शिक्षा अव्वल हो गई है? जाहिरतौर पर अव्वल शिक्षा के लिए शिक्षकों का होना अत्यंत ज़रूरी है। तो क्या उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज़ों और एम्स में पर्याप्त शिक्षक और स्टाफ हैं? उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज़ों में शिक्षकों की और अन्य ग़ैर-शिक्षक स्टाफ की स्थिति क्या है? आइये, पड़ताल करते हैं।

भाजपा ने अपने ट्वीट में दावा किया है कि उत्तर प्रदेश में 59 मेडिकल कॉलेज़ संचालित हैं और 22 मेडिकल कॉलेज़ों की स्वीकृति/निर्माण प्रक्रियाधीन हैं। यानी माना जाए कि इन 22 कॉलेज़ों में ऐसे कॉलेज़ भी हैं जिनकी स्वीकृति भी प्रक्रियाधीन है। भाजपा ने स्पष्ट नहीं किया है कि क्या इन 59 मेडिकल कॉलेज़ों में पैरामेडिकल और नर्सिंग कॉलेज़ भी शामिल हैं? क्या इनमें प्राइवेट कॉलेज़ भी शामिल हैं? भाजपा के प्रचार का ये ट्रेंड और रणनीति है कि वो बड़ा आंकड़ा दिखाने के चक्कर में वेग आंकड़े प्रस्तुत करती है। स्पष्ट जानकारी देने की बजाय अस्पष्टता रखती है। उदाहरण के तौर पर पोस्टर में लिखा है कि 22 मेडिकल कॉलेज़ स्वीकृति/निर्माण प्रक्रियाधीन है। यानी उनको भी गिन लिया गया है जिनको अब तक स्विकृति नहीं मिली है। ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि प्रचार सामग्री आकर्षक लगे। 

अब क्योंकि भाजपा बात मेडिकल शिक्षा की कर रही है तो मानना चाहिये कि एमबीबीएस कॉलेज़ों की और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज़ों की ही बात हो रही है। तो, हम एक बार उत्तर प्रदेश के एमबीबीएस कॉलेज़ों की स्थिति पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि क्या उनमें अव्वल मेडिकल शिक्षा के हालात हैं।

उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज़ों की स्थिति

राज्यसभा में देश में एमबीबीएस कॉलेज़ों और सीटों की स्थिति बारे में स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री से सवाल पूछा गया। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने 22 मार्च 2022 को जिसका लिखित जवाब दिया। जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में 59 नहीं बल्कि 35 सरकारी एमबीबीएस कॉलेज़ हैं। इन कॉलेज़ों में भी स्टाफ पूरा नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार दीपक लावनिया ने उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज़ों और संस्थानों में स्टाफ की स्थिति की जानकारी लेने के लिए एक आरटीआई दाखिल की। जिसका जवाब डॉयरेक्टर जनरल ऑफ मेडिकल एजुकेशन, उत्तर प्रदेश ने दिया है। दीपक लावनिया की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज़ों में शिक्षकों और डॉक्टरों के 28.52% पद खाली पड़े हैं। 26% डॉक्टरों की नियुक्ति पक्की नहीं है बल्किअनुबंध के आधार पर है। राज्य में मेडिकल शिक्षकों और डॉक्टरों के 2,791 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 796 पद खाली पड़े हैं और 727 ठेके पर यानी अनुबंध पर हैं। इन दोनों को मिला लें तो आंकड़ा 50% से भी ज्यादा हो जाता है। मेडिकल कॉलेज़ों में क्लर्कों के 477 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 277 पर नियुक्ति की गई है। नोन-टेक्निकल और क्लर्क के कार्य हेतु 30 पदों पर आउट सोर्सिंग के जरिये भर्ती की गई है। टेक्निकल, नोन-टेक्निकल, क्लर्क, स्टेनोग्राफर आदि ग्रुप सी के 56.7% यानी आधे से भी ज्यादा पद खाली पड़े हैं। 

उत्तर प्रदेश में एम्स की स्थिति

उत्तर प्रदेश में दो एम्स हैं। एक गोरखपुर में और एक रायबरेली में। पहले गोरखपुर के एम्स की बात करते हैं। गोरखपुर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव क्षेत्र भी है। 15 मार्च 2022 को राज्यसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, राज्यमंत्री भारती पवार ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि गोरखपुर एम्स में शिक्षकों के 183 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से मात्र 74 पद भरे गये हैं। यानी आधे से भी ज्यादा 109 पद खाली पड़े हैं। सीनीयर रेज़िडेंट के 50 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 21 पदों पर नियुक्ति की गई हैं। आधे से भी ज्यादा यानी 29  पद खाली पड़े हैं। जूनियर रेज़िडेंट के 50 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 13 पद खाली पड़े हैं। ग़ैर-शिक्षक पदों की स्थित और भी दयनीय है। गोरखपुर एम्स में 87% ग़ैर-शिक्षक पद खाली पड़े हैं। कुल 1,038 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 135 पदों पर भर्ती की गई है।

रायबरेली एम्स की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है। रायबरेली एम्स में शिक्षकों के 183 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से मात्र 63 पदों पर भर्ती की गई है और 120 पद खाली पड़े हैं। ग़ैर-शिक्षकों के 935 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 427 पर भर्ती की गई है। यानी आधे से भी ज्यादा खाली पड़े हैं।

इन हालात में समझना मुश्किल है कि  भाजपा सरकार किस प्रकार अव्वल मेडिकल शिक्षा का दावा कर रही है? क्या बिना पर्याप्त शिक्षकों और स्टाफ के अव्वल शिक्षा मुहैया कराई जा सकती है?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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