मिलिए नर्मदा बचाओ आंदोलन के अज्ञात योद्धाओं से

जनता के आंदोलनों और संघर्षों ने भारत को अनगिनत नेता दिए हैं जिन्होंने उनके हितों के लिए अथक संघर्ष किया है। लेकिन, हमें कई नेताओं के उनके व्यक्तिगत योगदान के बारे में कभी पता नहीं चलता है और वे पर्दे के पीछे से अपना समर्थन जारी रखते हैं।
इसी तरह हम मेधा पाटकर के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन या एनबीए के कुछ ही चेहरों को पहचानते हैं। लेकिन इस 34 साल की लंबी लड़ाई में पाटकर अकेले नहीं रहीं।
एनबीए के एक समर्पित कार्यकर्ता 47 वर्षीय हिम्मत मालाकार ने अपने जीवन के 20 साल इस आंदोलन को दिए हैं और वे साथी प्रदर्शनकारियों के लिए खाना बनाते रहे हैं। जब भी विरोध शुरू होता है चाहे वह दिल्ली, भोपाल, इंदौर, बड़वानी, धार या किसी अन्य स्थान पर हों, वह अपने साथियों के साथ खाना पकाने के बर्तन और अनाज पैक करते हैं और प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल हो जाते हैं।
मालाकार धार ज़िले के निवासी हैं और खरगोन ज़िले में सेंचुरी यार्न (बिड़ला के स्वामित्व वाली कंपनी) में करते रहे हैं। उनका इस गांव में एक छोटा फ़ार्म है और इसमें वो फसल उगाते हैं। दो बच्चों सहित उनका परिवार अपनी ज़रूरतों को इसी पूरा करता है। लेकिन उद्देश्य ने हमेशा विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए उन्हें प्रेरित किया है।
मालाकर कहते हैं, “हज़ारों लोगों की तरह मैं भी पुनर्वास के लिए लड़ रहा हूं। लेकिन मैं अपनी इच्छा से नहीं बल्कि क़िस्मत ने मुझे रसोइया बना दिया है। किसी ने भी मुझे यहां खाना पकाने के लिए मजबूर नहीं किया। जब भी ताई (एनबीए की संयोजक मेधा पाटकर) ने मुझे बुलाया, मैं यहां आ गया।”
मालाकार के साथियों में सुदाम सावंत, महेश वर्मा, संजीव खोडे, राजकुमार सिंह आदि हैं। वे भी दशकों से एनबीए से जुड़े रहे हैं।
एनबीए के सैकड़ों सदस्य राज्य की राजधानी में नर्मदा घाटी विकास निगम (एनवीडीए) के कार्यालय के बाहर पांच दिनों से धरने पर थे। वे अपनी 40 सूत्री मांगों को पूरा करने की मांग कर रहे थे। राज्य सरकार द्वारा उनकी अधिकांश मांगें मान लेने के बाद 21 नवंबर यानी गुरुवार को विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया गया।
मध्य प्रदेश और गुजरात की राज्य सरकारों द्वारा गुजरात में सरदार सरोवर बांध का निर्माण करने का फ़ैसला करने के बाद मध्य प्रदेश के धार, बड़वानी और अलीराजपुर ज़िलों में नर्मदा नदी के तट पर रहने वाले हज़ारों परिवारों से भूखंड, मुआवजा और कृषि भूमि देने का वादा किया गया। इस बांध का निर्माण शहरी आबादी और उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। कई सर्वेक्षणों के बाद भी हज़ारों परिवारों को बेपनाही की हालत में छोड़ दिया गया है।
इस साल की शुरुआत में स्थिति और ख़राब हो गई थी जब 15 अक्टूबर 2019 (पीएम मोदी के जन्मदिन से एक दिन पहले) से एक महीने पहले यानी 16 सितंबर 2019 को सरदार सरोवर बांध का पानी 138.8 मीटर तक भर गया था।
इसके बाद 178 से अधिक गांव, सैकड़ों एकड़ खेत पानी में डूब गई और हज़ारों परिवार विस्थापित हो गए। पुनर्वास और मुआवज़े की मांग करते हुए एनबीए ने भोपाल में विरोध प्रदर्शन शुरू किया है।
एनबीए के सहयोगी रसोइया सुदम सावंत कहते हैं, "मैं पहले से ही मध्यप्रदेश के खरगोन ज़िले में सेंचुरी यार्न के प्रदर्शनकारियों के लिए खाना बना रहा था (पिछले दो साल से यह इकाई बंद है) जो कारखाने को फिर से खोलने की मांग कर रहे थे। जब मैंने एनबीए के विरोध के बारे में सुना तो मैं सेंचुरी यार्न के कुछ प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल हो गया।”
सेंचुरी यार्न के कर्मचारी और एनबीए के एक सदस्य महेश वर्मा अपने सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में कहते हैं, "हम प्रदर्शनकारियों के लिए खाना बनाते हैं लेकिन कभी-कभी हमें भी पुलिस की कार्रवाई और पानी के बौछारों का सामना करना पड़ता है पर हम अपने हितों के लिए लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
विरोध के दौरान एक सामान्य दिन में वे एक बार में कम से कम 1,000 - 1,500 लोगों के लिए खाना बनाते हैं। मेनू अनाज और फ़ंड की उपलब्धता पर निर्भर करता है।
वे आगे कहते हैं, "ज़्यादातर, हम खिचड़ी, दलिया (मक्का, घी और पानी से बनी) और दाल बाटी, पोहा और पूरी सब्ज़ी को एक समय में 1,000 से अधिक लोगों को परोसते हैं क्योंकि बाहरी लोग, भिखारी भी यहां खाते हैं और वे हमसे अलग नहीं हैं।"
वे सुबह 10 बजे से पहले सुबह के नाश्ते के साथ दिन में तीन बार खाना बनाते हैं।
एनबीए के एक अन्य सदस्य और रसोईया संजीव खोड़े कहते हैं, "कभी-कभी, जब लंबे विरोध के दौरान अनाज और भोजन कम पड़ जाते हैं तो रसोईया के सदस्य आसपास के गांवों में जाते हैं या इसके लिए धन इकट्ठा करते हैं।"
वे कहते हैं, “हमने अनगिनत विरोध प्रदर्शन किए जो हमारी मांगों को पूरा किए बिना ही समाप्त हो जाते हैं। लेकिन फिर भी यह देखना अच्छा लगता है कि राज्य सरकार हमसे बातचीत कर रही है जो बीजेपी के 15 वर्षों के शासनकाल में अकल्पनीय था।"
वे एक स्वर में कहते हैं, "मुझे नहीं पता कि ये विरोध कितने दिनों तक चलेगा और इसका परिणाम क्या होगा लेकिन हम अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे।"
मालाकर कहते हैं, “मैं सरकार से निवेदन करता हूं कि उन्हें हमारे मसले को हल करना चाहिए ताकि हम अपना बाक़ी जीवन शांति से परिवार के साथ बिता सकें।"
एनबीए की संयोजक मेधा पाटकर कहती हैं, “हिम्मत मालाकर और उनकी टीम जैसे एनबीए के कई अज्ञात योद्धा हैं। उनमें से अधिकांश ने अपना जीवन इसके लिए समर्पित कर दिया है। मैं उन्हें सलाम करती हूं। ऐसे समर्पित योद्धाओं की वजह से ही आंदोलन अभी भी चल रहा है। हम तब तक लड़ेंगे जब तक सरकार हमारी मांगों पर सहमत नहीं होती।”
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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