Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सज्जाद ज़हीर और तरक़्क़ीपसंद तहरीक

संदर्भ: 13 सितम्बर, प्रगतिशील लेखक संघ के पहले महासचिव सज्जाद ज़हीर का स्मृति दिवस।
Sajjad Zaheer
माइक पर सज्जाद ज़हीर

मौजूदा दौर में हमारे देश के अंदर कई लेखक संगठन काम कर रहे हैं। इन लेखक संगठनों में उन संगठनों की अलग से शनाख़्त की जा सकती है, जो अवाम के बुनियादी मुद्दों को अहमियत के साथ उठाते हैं। इन संगठनों से जुड़े लेखक न सिर्फ़ अपने लेखन में जनता के सवालों को केन्द्र में रखते हैं, बल्कि सरकारों से उनकी तमाम मामलों में जवाबदेही मांगने से भी किनारा नहीं करते। ऐसा कई मर्तबा हुआ है, जब इन लेखक संगठनों ने अनेक मामलों में अवाम की रहनुमाई की। उन्हें एक नया रास्ता दिखलाया। प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच इन संगठनों में अव्वल नंबर पर हैं। यह सभी लेखक संगठन प्रगतिशील आंदोलन की उपज हैं।

आज़ादी के पहले चले प्रगतिशील आंदोलन का कभी खू़ब दौर-दौरा था। प्रगतिशील आंदोलन के उस वक़्त केंद्र बिंदू थे राइटर, जर्नलिस्ट, एडिटर और फ्रीडम फ़ाइटर सज्जाद ज़हीर। तरक़्क़ीपसंद तहरीक के वे रूहे रवां थे। उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी प्रगतिशील मूल्यों को स्थापित करने और अवाम को वाजिब हक़ दिलाने, समाजी इंसाफ़ की लड़ाई लड़ने में गुज़ार दी। वे मुल्क के लाखों पसमांदा इंसानों में ऐसा शऊर पैदा करना चाहते थे, जो उन्हें सामाजिक, आर्थिक शोषण और सियासी ग़ुलामी से निज़ात दिलाने में मददगार हो सके। दोस्तों में ‘बन्ने भाई’ के नाम से मक़बूल सज्जाद ज़हीर सांस्कृतिक आंदोलन के ज़रिए अवाम में चेतना जगाना चाहते थे। वह मानते थे कि अवाम में सांस्कृतिक सजगता और सियासी, समाजी चेतना पैदा होगी, तो वह खु़द अपनी आज़ादी, हक़ और हुक़ूक के लिए उठ खड़े होंगे। यही नहीं उनकी यह सोच भी थी कि हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई में लेखक, संस्कृतिकर्मी ही अहम भूमिका निभा सकते हैं।

सज्जाद ज़हीर की यह क्रांतिकारी सोच यकायक नहीं बनी थी, बल्कि इसमें उस हंगामाख़ेज दौर का बड़ा रोल था, जिसमें उनकी तर्बीयत हुई थी। क़ानूनी तालीम के वास्ते साल 1927 से 1935 तक ज़हीर का लंदन में क़ियाम रहा। 1930 से 1935 तक का दौर, दुनियावी ऐतबार से बदलाव का ज़माना था। जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी के लीडर जॉर्जी दिमित्रोव के मुक़दमे, फ्रांस के मज़दूरों की बेदारी और ऑस्ट्रिया की नाक़ामयाब मज़दूर क्रांति से सारी दुनिया में क्रांति के एक नये युग का आग़ाज हुआ। 1933 में फ्रांसीसी साहित्यकार हेनरी बारबूस की कोशिशों से फ्रांस में लेखक, कलाकारों का फ़ासिज्म के ख़िलाफ़ एक संयुक्त मोर्चा ‘वर्ल्ड कान्फ्रेंस ऑफ़ राइटर्स फ़ॉर दि डिफेन्स ऑफ़ कल्चर’ बना। जो आगे चलकर पॉपुलर फ्रंट (जन मोर्चा) के तौर पर तब्दील हो गया। इस संयुक्त मोर्चे में मैक्सिम गोर्की, रोम्या रोलां, आंद्रे मालरो, टॉमस मान, वाल्डो फ्रेंक, मारसल, आंद्रे जीद, आरांगो जैसे विश्वविख्यात साहित्यकार शामिल थे। लेखक, कलाकारों के इस मोर्चे को जनता के बीच बड़ी हिमायत हासिल थी। विश्व परिदृश्य में तेजी से घट रही इन सब घटनाओं ने सज्जाद ज़हीर को काफ़ी मुतअस्सिर किया। जिसका सबब, साल 1935 में लंदन में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना थी। उन्होंने अपने चंद तरक़्क़ीपसंद दोस्तों के साथ यहां प्रगतिशील लेखक संघ की दागबेल डाली। आगे चलकर सज्जाद ज़हीर ने तरक़्क़ीपसंद तहरीक को आलमी तहरीक का हिस्सा बनाया। स्पेन के फ़ासिस्ट विरोधी संघर्ष में सहभागिता के साथ-साथ उन्होंने साल 1935 में आंद्रे गीडे व मेलरौक्स द्वारा आयोजित विश्व बुद्धिजीवी सम्मेलन में भी हिस्सा लिया।

अपनी ज़िंदगी को एक नयी राह देने और एक ख़ास मक़सद और इरादे के साथ सज्जाद ज़हीर ने साल 1936 में लंदन छोड़ा। भारत वापस लौटते ही उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन की तैयारियां शुरू कर दीं। ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ के घोषणा-पत्र पर उन्होंने भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों से विमर्श किया। प्रगतिशील लेखक संघ की पहली कॉन्फ्रेंस लखनऊ में हुई। कॉफ्रेंस की सदारत मुंशी प्रेमचंद ने की।

सज्जाद ज़हीर प्रगतिशील लेखक संघ के पहले महासचिव चुने गए और 1949 तक उन्होंने यह दायित्व संभाला। बन्ने भाई के व्यक्तित्व और दृष्टिसम्पन्न परिकल्पना की ही वजह से तरक़्क़ीपसंद तहरीक आगे चलकर हिन्दुस्तान की आज़ादी की तहरीक बन गई। मुल्क के तमाम अदीब, कलाकार और संस्कृतिकर्मी इस आंदोलन के साथ आ गए। साल 1942 से 1947 तक का दौर प्रगतिशील लेखक संघ के आंदोलन का सुनहरा दौर था। यह आंदोलन आहिस्ता-आहिस्ता देश की सारी भाषाओं में फैला। इन सांस्कृतिक आंदोलनों का आखि़री मक़सद मुल्क की आज़ादी था। शुरुआती दिनों में सज्जाद ज़हीर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य भी रहे। इलाहाबाद शहर कांग्रेस कमेटी के महासचिव होकर उन्होंने पं.जवाहरलाल नेहरू के साथ काम किया। आगे चलकर अखिल भारतीय कांग्रेस के मेम्बर चुने गए। कांग्रेस के मुख़्तलिफ़ महकमों ख़ास तौर पर विदेशी मामलों और मुस्लिम जनसंपर्क से भी वे जुड़े रहे। रचनात्मक और संगठनात्मक गुणों का उनमें अद्भुत मेल था। अपने संगठनात्मक कौशल से ही उन्होंने ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ और ‘ऑल इंडिया किसान सभा’ जैसी किसानों और मज़दूरों की संस्थाएं बनाईं, उनकी बेहतरी के लिए काम किया।

कांग्रेस में काम करने के दौरान उनका वास्ता उस वक्त अंडरग्राउण्ड चल रहे कम्युनिस्ट लीडर पीसी जोशी से हुआ। कॉमरेड जोशी के साम्यवादी विचारों से वह बेहद प्रभावित हुए। बाद में कांग्रेस छोड़कर, वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया में शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव भी रहे। उस वक्त कम्युनिस्ट पार्टी अंग्रेज़ सरकार के कोप से बचने की ख़ातिर अंडरग्राउण्ड रहकर काम करती थी। साल 1942 में अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने कम्युनिस्ट पार्टी से पाबंदी हटा ली, तो सज्जाद ज़हीर अपने काम में पहले से भी ज्यादा जी-जान और जोश के साथ जुट गए।

अंग्रेज़ी हुक़ूमत के खि़लाफ़ लिखने और तक़रीर करने के जुर्म में सज्जाद ज़हीर को तीन मर्तबा जेल हुई। बावजूद इसके वह अलग-अलग नामों से अख़बारों के लिए लगातार लिखते रहे। कम्युनिस्ट पार्टी के अख़बार ‘क़ौमी जंग’ और ‘नया ज़माना’ अख़बार में सज्जाद ज़हीर ने प्रधान सम्पादक की हैसियत से काम किया। लंदन में जर्नलिज्म की पढ़ाई, संपादकीय सूझ-बूझ और अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि की बदौलत इन पत्रों ने ज़ल्द ही लोगों के बीच अपनी पहचान बना ली। ये पत्र हिन्दुस्तान के प्रगतिशील लेखकों की आवाज़ बन गए। इस आंदोलन में लेखकों का शामिल होना प्रगतिशीलता की पहचान हो गई।

प्रगतिशील आन्दोलन ने जहां धार्मिक अंधविश्वास, जातिवाद और हर तरह की धर्मांधता की मुख़ालिफ़त की, वहीं साम्राज्यवादी, सामंतशाही व आंतरिक सामाजिक रूढ़ियों रूपी दुश्मनों से भी टक़्क़र ली। एक समय ऐसा भी आया, जब उर्दू के सभी नामवर साहित्यकार प्रगतिशील लेखक संघ के बैनर तले आ गए थे। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अली सरदार जाफ़री, मजाज़, कृश्न चंदर, ख़्वाजा अहमद अब्बास, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, इस्मत चुग़ताई, महेन्द्रनाथ, साहिर लुधियानवी, हसरत मोहानी, उपेन्द्रनाथ अश्क, सिब्ते हसन, डॉ. रशीद जहां, जोश मलीहाबादी, फ़िराक़ गोरखपुरी, राजिंदर सिंह बेदी, सागर निजामी, वामिक जौनपुरी और मख़दूम जैसे आला नाम तरक़्क़ीपसंद तहरीक के हमनवां, हमसफ़र थे। इनकी क़लम ने मुल्क में आज़ादी के हक़ में समां बना दिया। यह वह दौर था, जब तरक़्क़ीपसंद लेखकों को नये दौर का रहनुमा समझा जाता था। यहां तक कि तरक़्क़ीपसंद तहरीक को जवाहरलाल नेहरू, सरोजनी नायडू, रबीन्द्रनाथ टैगोर, अल्लामा इक़बाल, ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान, प्रेमचंद, वल्लथोल जैसी हस्तियों की सरपरस्ती हासिल थी। वे भी इन लेखकों के लेखन एवं काम से बेहद मुतअस्सिर और मुतमईन थे।

मुल्क की तक़्सीम के बाद सज्जाद ज़हीर को कम्युनिस्ट पार्टी के फ़ैसले की वजह से कुछ समय के लिए पार्टी को संगठित करने के लिहाज़ से पाकिस्तान जाना पड़ा। पाकिस्तान में उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ पाकिस्तान का महासचिव चुन लिया गया। वहां उन्होंने विद्यार्थियों, मज़दूरों और ट्रेड यूनियन के संगठन का ज़िम्मा संभाला। मगर पाकिस्तान में भी हालात उनके मनमाफ़िक़ नहीं थे। उस दौर की कट्टरपंथी सरकार के चलते सज्जाद ज़हीर ने वहां भी अंडरग्राउण्ड रहकर काम किया। कुछ अरसे बाद ही हुक़ूमत-ए-पाकिस्तान ने ‘रावलपिंडी साजिश’ केस में उन्हें फैज़ अहमद फैज़ के साथ गिरफ़्तार कर लिया।

मुक़दमे और सज़ा के दरमियान सज्जाद ज़हीर ने हैदराबाद, सिंध, लाहौर, मच्छ और कोयटा की जे़लों में जुल्मो-सितम सहते हुए पांच साल गुज़ारे। अदालत में सरकारी वकील ने उन्हें सज़ा-ए-मौत देने की मांग की। भारत सरकार के अभियान और सारी दुनिया के बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों के दबाव में पाकिस्तान सरकार को आखि़रकार उन्हें रिहा करना पड़ा। रिहाई के बाद सज्जाद ज़हीर हिंदुस्तान लौटे, तो उन्होंने एक बार फिर प्रगतिशील लेखक संघ की गतिविधियां तेज़ कर दीं। दुनिया में जाति, रंग, नस्लवाद, साम्राज्यवाद के ख़तरे अब भी बरक़रार थे। साल भर के अंदर ही सज्जाद ज़हीर ने डॉ. मुल्कराज आनंद के साथ रूस में अफ्रो-एशियाई साहित्यकारों की पहली कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जो अफ्रो-एशियाई लेखकों का ज़बर्दस्त आंदोलन साबित हुआ। समाजवाद में गहरा अक़ीदा रखने वाले सज्जाद ज़हीर फ़ासिस्टों को छिपा हुआ साम्राज्यवादी मानते थे। यूं तो सज्जाद ज़हीर की जिंदगी का ज़्यादातर वक़्त संगठनात्मक कार्यों में ही बीता। फिर भी साहित्यिक लेखन के साथ-साथ वह देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक और राजनैतिक मसलों पर लगातार लिखते रहे। साल 1935 में छपे चर्चित कहानी संग्रह ‘अंगारे’ में सज्जाद ज़हीर की भी कहानी शामिल थी। समाजी और सियासी ऐतबार से यह संग्रह उस समय काफ़ी मशहूर हुआ। हुक़ूमत की पाबंदी के साथ-साथ इस किताब को अपने ही मुल्क के प्रतिक्रियावादियों और संकीर्णतावादियों की तंगनज़री का सामना करना पड़ा। आलम यह था कि उस वक़्त इस संग्रह के लेखकों को ‘अंगारे’ के लेखक के नाम से पुकारा जाता था।

साल 1935 में ही पेरिस में लिखा गया सज्जाद ज़हीर का छोटा उपन्यास ‘लंदन की एक रात’ जैसा कि नाम से ज़ाहिर है सिर्फ़ एक रात का तब्सिरा है। अनोखे शिल्प का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने इसमें मुल्क की आज़ादी की चाह लिए परदेस में रह रहे नौजवानों के जज़्बात का शानदार चित्रण किया है। ‘पिघला नीलम’ सज्जाद ज़हीर की ऩज्मों का संग्रह है, जो उन्होंने ज़िंदगी के आखि़री दौर में लिखा। सज्जाद ज़हीर का अहम अदबी शाहकार ‘रौशनाई’ है। यह किताब उन्होंने पाकिस्तान की जे़लों में क़ैद की हालत में लिखी थी। अदबी हल्कों में इसे प्रगतिशील लेखक संघ का प्रमाणिक इतिहास माना जाता है। यह किताब, अकेले ‘अंजुमन तरक़्क़ीपसंद मुसन्निफ़’ का ही दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि आज़ादी की जद्दोजहद के पूरे हंगामाख़ेज़ दौर और उस वक़्त के सियासी, समाजी हालात का भी ख़ाक़ा पेश करती है। साथ ही इसमें सज्जाद ज़हीर की आलोचना की प्रतिभा भी देखी जा सकती है। इस किताब में अदब और ललित कलाओं के नुक़तों पर तो रोशनी डाली ही गई है, प्रगतिशील साहित्य की बुनियादी समस्याओं, बहसों, संवाद, कॉन्फ्रेंस, उद्देश्यों को भी कलमबद्ध किया गया है।

बकौल रौशनाई के हिन्दी अनुवादक जानकी प्रसाद शर्मा, ‘‘रौशनाई में इतिहास, संस्मरण और शेरो अदब की समीक्षा के साथ-साथ मार्क्सवादी सिद्धांत निरूपण की धाराएं एक दूसरे में पैबस्त नज़र आती है.’’ सज्जाद ज़हीर ने ईरान के अज़ीम ग़ज़लगो हाफ़िज़ शिराजी की शायरी पर भी एक शोध प्रबंध ‘ज़िक्र-ए-हाफ़िज़’ लिखा है। ‘तरक़्क़ीपसंद तहरीक, अदब और सज्जाद ज़हीर’, ‘मज़ामीन-ए-सज्जाद ज़हीर’, ‘उर्दू-हिन्दी हिन्दुस्तानी’, ‘उर्दू का हाल और मुस्तक़बिल’ उनकी दीगर किताबें हैं। 13 सितंबर, 1973 को अल्माअता (सोवियत संघ) में (जो कि अब कज़ाकिस्तान में पड़ता है।) अचानक दिल का दौरा पड़ने से सज्जाद ज़हीर का निधन हो गया। तरक़्क़ीपसंद तहरीक की जब भी बात होगी, सज्जाद ज़हीर और उनके इंक़लाबी कामों को ज़रूर याद किया जाएगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest