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चेग्वेरा ने समाजवाद के लिए नया इंसान बनाने पर ज़ोर दिया

महान मार्क्सवादी क्रांतिकारी चेग्वेरा आज पूरी दुनिया में विद्रोह, क्रांति व रोमानीपन के प्रतीक बन चुके हैं। बड़ी संख्या में दुनिया भर के युवा उनके विचारों से प्रेरित हैं।
Che Guevara

पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के घोर विरोधी और महान मार्क्सवादी क्रांतिकारी अरनेस्तो चेग्वेरा ने क्यूबा के लोगों में समाजवाद की नई चेतना भर दी थी। उन्होंने अपने देश के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को जीवंतता के साथ जीना सिखाया। वे आज पूरी दुनिया में विद्रोह, क्रांति व रोमानीपन के प्रतीक बन चुके हैं। बड़ी संख्या में दुनिया भर के युवा उनके विचारों से प्रेरित हैं।

महान लातिन अमेरिकी क्रांतिकारी चेग्वेरा की 95 वीं जयंती के मौके पर अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) द्वारा बिहार की राजधानी पटना में मैत्री-शांति भवन में बुधवार को कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ऐप्सो के इस कार्यक्रम में शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक आदि मौजूद थे।

सभा का संचालन करते हुए ऐप्सो के कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने चेग्वेरा के अनूठे जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा, "चेग्वेरा का जन्म 1928 में अर्जेन्टीना में हुआ था। क्यूबा में उन्होंने क्रांति की तथा बोलीविया में साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए। उसके पहले उन्होंने मोटरसाइकिल से लातिन अमेरिका की यात्रा की। क्यूबा में क्रांति के बाद वे भारत भी आए। नेहरू जी को वे सम्मान की नजर से देखते थे। भारत आकर वे कई जगहों पर गए भी। यहां के लोगों को समझने की कोशिश की।"

इस सभा में ऐप्सो के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने कई उदाहरण देते हुए बताया, "अरनेस्तो चेग्वेरा आज पूरी दुनिया में विद्रोह, क्रांति व रोमानीपन के प्रतीक बन चुके हैं। उनके जीवन में एक मुश्किल वक्त आया जब वे या तो डॉक्टर बनते या फिर क्रांतिकारी! चेग्वेरा ने दवा का बैग छोड़ दिया और हथियार को पकड़ा यह सोचकर की तमाम समस्याओं की जड़ में पूंजीवाद -साम्राज्यवाद है। इसे उखाड़ फेंकने के लिए क्रांति की आवश्यकता है। तब क्यूबा अमेरिका साम्राज्यवाद का चारागाह हुआ करता था। वहां अमेरिका की राजदूत की हैसियत राष्ट्रपति से भी अधिक थी। परिस्थितियों में क्यूबा में क्रांति संपन्न करने के बाद चेग्वेरा बोलीविया में क्रांति करने गए और वहीँ शहीद हो गए। चेग्वेरा ने कहा कि साम्राज्यवादी देश में उत्पादक शक्तियों को विकसित करने के बजाये नया मनुष्य, नया इंसान बनाने को प्राथमिकता दी। प्रगति व विकास के पूंजीवादी मानकों को प्राप्त करने के बदले चेतना संपन्न बनाने की जरूरत पर बल दिया। इस बात के लिए उन्होंने सोवियत संघ के तत्कालीन नेतृत्व की आलोचना भी की कि विकास की दौड़ में पूंजीवादी देशों से आगे जाने के बजाये लोगों के मन-मिजाज को बदलने पर बल देना चाहिए। आर्थिक समाजवाद के बदले उन्होंने कम्युनिस्ट नैतिकता की बात की। क्यूबा के महान मुक्केबाज तथा तीन बार के ओलंपिक विजेता तियोफीलो स्टीवेंशन और विश्वप्रसिद्ध मुहम्मद अली के बीच व्यावसायिक मुकाबला नहीं हो सका क्योंकि क्यूबा में पैसा के लिए खेल पर प्रतिबंध था।"

ऐप्सो के राज्य महासचिव सर्वोदय शर्मा ने अपने संबोधन में कहा, "चेग्वेरा ने सबसे पहले मोटरसाइकिल से पूरे लातिन अमेरिका की यात्रा की। जब 1954 में ग्वाटेमाला में चुनी हुई जैकब अरबेंज की सरकार को अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर गिराया गया तो इसका बहुत गहरा प्रभाव चेग्वेरा पर पड़ा। चेग्वरा गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से क्रांति को अंजाम देते हैं। क्यूबा की क्रांति के बाद वे उद्योग मंत्री तथा नेशनल बैंक के चेयरमैन बनाये गए। चेग्वेरा को लगा की सिर्फ क्यूबा में क्रांति कर देने से कुछ नहीं होगा इसलिए बोलीविया में क्रांति करने गए। वहीँ सी.आई.ए के इशारे पर उनकी हत्या की गई। उनकी लाश को अनजान जगह पर दफना दिया गया। उस पूरे लातिन अमेरिका में बहुत गरीबी थी, जो परिस्थिति थी उसमें गुरिल्ला युद्ध को विकसित करने की कोशिश की। चेग्वेरा ने एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई वियतनाम खड़ा करने की कोशिश की ताकि साम्राज़्यवाद का प्रभावी मुकाबला किया जा सके। चेग्वेरा की मौत मात्र 39 साल की उम्र में हो गई। उनकी मौत के 10 दिन के बाद फिडेल कास्त्रो ने जो भाषण दिया उससे बहुत भ्रम दूर हुआ कि उनके और चे के बीच कोई मतभेद था। मार्क्सवाद हर देश के अनुसार अपना रूप ग्रहण करता है। मार्क्सवाद में क्यूबा ने बहुत कुछ जोड़ा। चेग्वेरा की अंतर्राष्ट्रीयतावाद की उनकी भावना से सीखने की जरूरत है।"

माकपा नेता अरुण मिश्रा ने क्यूबा और सोवियत संघ की अपनी यात्रा का अनुभव सुनाते हुए कहा, " क्यूबा समाजवाद के रास्ते में मनुष्य का निर्माण किया जा रहा था। इसका प्रत्यक्ष अनुभव मुझे क्यूबा में हुआ। मुझे 1978 में सोवियत संघ और क्यूबा दोनों जगहों पर जाने का मौका मिला। सोवियत संघ में बातचीत को लेकर एक पाबंदी सी रहा करती थी, खुलकर बात नहीं हो पाती थी। जबकि क्यूबा में एकदम उलट स्थिति थी वहां आप खुलकर बात कर सकते थे, अपने विचार प्रकट कर सकते थे। क्यूबा की यात्रा मेरे साथ बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साथ थे। क्यूबा में मैंने बच्चों को देखा और उनसे बात की तो पता चला कि वे सब के सब चेग्वेरा बनना चाहते थे। क्यूबा आज अमेरिकी साम्राज्यवाद के सबसे अमानवीय प्रतिबंधों का शिकार है। दूसरे देशों से वह जरूरी सामान नहीं मंगा सकता है। आज क्यूबा अमेरिका मुनरो सिद्धांत का शिकार है जिसके अनुसार क्यूबा को अमेरिका अपनी जागीर समझता आया है। क्यूबा के लोग जब अन्य देश जाते थे तो दूसरे के यहां खाना खाते थे ताकि उससे बचा पैसा क्यूबा भेज सके। यह थी नए इंसान बनाने की क्यूबा में कोशिश।"

इस्कफ के महासचिव रवींद्र नाथ राय ने क्यूबा यात्रा का प्रेरक अनुभव सुनाते हुए कहा, "क्यूबा ने नए इंसान बनाने की कोशिश की जो हमारे लिए सीखने की जरूरत है। क्यूबा से सीखा जाए कि कैसे अभाव और मुश्किलों के बाद भी बेहद जीवंतता के साथ ज़िंदगी जीते हैं। वहां चकाचौंध नहीं था लेकिन लोग बहुत जीवंत थे तथा गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करते थे।"

अधिवक्ता लक्ष्मीकांत तिवारी ने कहा, "चेग्वेरा के जीवन को हम सब लोगों को आत्मसात करने की जरूरत है। मार्क्सवाद के गहराई में जाने पर पता चलता है कि उसमें कितना रोमानीपन है। हम भी प्रयास करें तो चेग्वेरा बन सकते हैं।"

सभा की अध्यक्षता करते हुए ऐप्सो राष्ट्रीय अध्यक्षमंडली के सदस्य रामबाबू कुमार ने कहा, "चेग्वेरा के बारे में विलक्षण बात है कि उनकी टोपी, टैटू आदि युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है। नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि चेग्वेरा बनने के लिए किन किन रास्तों से गुजरना होता है। चेग्वेरा ने बचपन में अपने ही घर के लेबोरेट्री में एक दवा बनाने की कोशिश की थी। वे बचपन में अस्थमा के शिकार हो गए। उन्होंने 45 हजार किमी की यात्रा साइकिल से की। उसके बाद मोटरसाइकिल से यात्रा की। 1953 में स्टालिन की मौत के बाद शपथ लेते हैं कि दस्यू लोगों से मुक्ति के लिए स्टालिन की आवश्यकता है। उनकी पर्सनल लाइब्रेरी में तीन हजार किताबें थी जिसमें नेहरू की किताबें भी थी। चेग्वेरा के कठिन रास्तों से गुजरे बगैर टीशर्ट पहनकर, टोपी लगाकर टैटू लगाने से कुछ नहीं होगा।"

कार्यक्रम में मौजूद प्रमुख लोगों में प्राच्यप्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह, बी.एन विश्वकर्मा, प्रलेस के गजेंद्रकांत शर्मा, प्राथमिक शिक्षकों के नेता भोला पासवान, आनंद शर्मा और जितेंद्र कुमार सहित कई वामपंथी नेता व कार्यकर्ता शामिल थें।

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