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कोरोना की आड़ में मोदी सरकार श्रमिकों पर कर रही है बर्बर हमले

भारत के दुनिया भर में इकलौता ऐसा देश बनने की संभावना है जहां मज़दूरों के लिए काम का दिन 12 घंटे का होगा।
कोरोना वायरस
प्रतीकात्मक तस्वीर

कोविड-19 महामारी की आड़ में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने नए प्रस्ताव के तहत कॉर्पोरेट घरानों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए पहले से ही शोषित मज़दूरों पर बर्बर हमला करने और उन्हें धोखा देने की बड़ी योजना बनाई है।

एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के हवाले से दो नौकरशाहों ने कहा कि कार्य दिवस को 8 घंटे (सप्ताह में छह दिन) से बढ़ाकर 12 घंटे करने के प्रस्ताव पर "सक्रिय रूप से विचार" किया जा रहा है। बिना नाम के ये दो नौकरशाह चल रही महामारी से निपटने के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गए आठ सशक्त समूहों में से एक के सदस्य बताए गए है। इस काम से उन्हें संबंधित मंत्रालयों में वरिष्ठ नौकरशाह बना दिया जाएगा।

इस बदलाव के लिए फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट (1948) की धारा 51 में बदलाव की ज़रूरत होगी जो धारा फिलहाल 8 घंटे के कार्य दिवस के विश्वव्यापी मानक को निर्धारित करती है। सरकार को यह बदलाव या तो किसी अध्यादेश के माध्यम से या फिर कार्यकारी आदेश के जरिए करना होगा। चूंकि आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी अधिनियम जैसे विभिन्न अधिनियम पहले ही लागू किए जा चुके हैं, और उन्हौने सरकार के हाथों में असीम शक्ति पहले से ही दे दी हैं, इसलिए इस तरह का दूरगामी परिवर्तन करना सरकार के लिए आसान होगा।

नया प्रस्ताव कहता है कि: अब आठ घंटे के काम के दिन के बजाय 12 घंटे का दिन होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वेतन को उसके "आनुपात" में बढ़ाया जाएगा। संभवतः, इसका मतलब तो यही है कि अतिरिक्त चार घंटे का भुगतान उसी दर पर किया जाएगा जिस दर पर पिछले आठ घंटों का भुगतान किया जाएगा।

यह कानून उस एक अन्य शर्त के खिलाफ होगा जिसके तहत ओवर-टाइम काम (8 घंटे के कार्य दिवस के ऊपर किए गए कार्य) का वेतन/मज़दूरी सामान्य दर के दोगुना होती है। लेकिन संभवतः कानून के इस हिस्से का ध्यान रखा जाएगा।

इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि अधिकांश मज़दूर प्रतिबंधों के कारण कार्यस्थलों पर आने में असमर्थ हैं और इसलिए, एक छोटे कार्यबल के साथ, सामान्य उत्पादन के स्तर को इस बदलाव सेके माध्यम से ही पूरा किया जा सकता है।

बर्बर इरादा

सबसे पहले, इस संभावित बदलाव के वास्तविक और निर्मम इरादे पर एक नज़र डालते हैं। मान लीजिए कि एक श्रमिक को प्रति घंटे के हिसाब से 100 रुपये मिलते हैं तो इस हिसाब से वह आठ घंटे में 800 रुपए कमाएगा। मौजूदा कानून के तहत, यदि उसे 8 घंटे के मानक कार्य दिवस में चार घंटे अधिक काम करना पड़ता है, तो उसका भुगतान दोगुनी दर पर करना होगा। इसका मतलब है कि ओवर-टाइम वेज पेमेंट 100 x 2 = .200 रुपए प्रति घंटा होना चाहिए। इसलिए, ओवरटाइम के चार घंटे का मेहनताना.800 रुपए मिलेगा। इस प्रकार जब वह एक दिन में 12 घंटे काम करेगा, तो उसे उस पूरे दिन का वेतन .800 रुपए (पहले 8 घंटे के लिए) + 800 रुपए (ओवरटाइम के 4 घंटे के लिए = 1,600 रुपये) मिलेगा।

यदि एक बार यह नया प्रस्ताव लागू हो गया तो यह समीकरण नाटकीय रूप से बदल जाएगा। चार घंटे के ओवरटाइम को खत्म कर दिया जाएगा, और मज़दूर की कुल कमाई होगी: 100x12 – 1200 रुपए प्रति दिन।

इस प्रकार मज़दूर का नुकसान प्रति दिन के हिसाब से 400 रूपए का होगा। तो इसमें जीत किसकी है? जाहिर है, मालिक/नियोक्ता की, क्योंकि वह प्रति दिन हरेक मज़दूर से 400 रुपये की बचत करेगा या अतिरिक्त कमाएगा। यदि एक औद्योगिक इकाई में 2,000 मज़दूर/कर्मचारी काम कराते हैं और उनमें से लगभग 1,000 को ओवरटाइम के चार घंटे के काम में लगाया जाता है, तो मालिक को 1,000 x 4,000 = यानि 4 लाख रुपए की बचत होगी। यदि यह ओवरटाइम एक महीने के लिए भी चलता है, तो मालिक को 4 लाख x 26 (कार्य दिवसों) = यानि 1.04 करोड़ रुपए की भारी-भरकम बचत होगी! और यह तो सिर्फ एक ही मालिक है जिसकी हम बात कर रहे हैं।

मज़दूर केवल मज़दूरी का नुकसान ही नहीं सहता है’। बल्कि वह एक दिन में इतना काम करने के लिए काफी तनाव में रहता है और अधिक मेहनत से उसका शरीर जलने लगता है। इस सबके तजुर्बे से 19 वीं शताब्दी के अंत में मज़दूरों की भलाई को मद्देनजर रखते हुए 8 घंटे के कार्य दिवस का विचार और उसकी मांग की प्रेरणा मिली थी।

एक देश के बाद दूसरे देश में विशाल बलिदानों और वीरतापूर्ण संघर्षों के बाद, मज़दूरों ने इस अनमोल अधिकार को जीता था कि उन्हे दिन में केवल आठ घंटे का काम करने का हक़ दिया गया, ताकि उनके थके हुए शरीर को फिर से ताकत मिल सके और वे अपने परिवार के साथ कुछ समय बिता सकें, उचित ढंग से आराम कर सकें, और इसलिए उस वक़्त - आठ घंटे काम, आठ घंटे मनोरंजन, आठ घंटे आराम – का नारा था)। कुछ बिना चेहरों वाले नौकरशाहों की कलम से और हमारे प्रधान मंत्री और उनके सहयोगियों और सलाहकारों के निर्देश पर, यह अनमोल अधिकार छीन लिया जाएगा और इसे एक झटके में समाप्त कर दिया जाएगा।

शनिवार को एक बयान में, सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) ने आरोप लगाया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट/नियोक्ताओं के वर्ग को ओवरटाइम मज़दूरी के भुगतान से मुक्त करना है है और श्रमिकों के ऊपर काम का अतिरिक्त बोझ डालना है। वह भी बिना किसी कीमत को अदा किए। मोदी सरकार “कोरोना से उपजे हालात का इस्तेमाल कर कॉर्पोरेट/नियोक्ता वर्ग को बोनस देना चाहता है और श्रमिकों की मज़दूरी/आय में कटौती कर उन्हे खुश करना चाहती है"।

एक बड़ी योजना का हिस्सा

शायद, कोई भी थोड़ा सा संदेह करने वाला पाठक सोच सकता है, कि वर्तमान में चल रहे असाधारण संकट के कारण ऐसा करना जरूरी है, क्योंकि देश में पहले से ही 24 मार्च से लॉकडाउन लागू है,  हजारों औद्योगिक इकाइयां बंद हो गईं है, मज़दूर घरों में कैद है और उत्पादन नीचे के स्तर पर है। अगर हालात सामान्य होते तो शायद इस तरह के असाधारण उपाय की जरूरी नहीं होती।

लेकिन कार्यदिवस को बढ़ाने का विचार कोरोनोवायरस के आने से बहुत पहले ही आ चुका था। पिछले साल ही, मोदी सरकार ने संसद में श्रम कानून से संबंधित संहिताओं का एक पुलिंदा तैयार किया था, जिसमें यह विचार व्यक्त किया था। वास्तव में इसने काम के घंटों में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त था।

व्यावसायिक, स्वास्थ्य और काम की स्थिति की सुरक्षा पर तैयार इस संहिता ने विशेष रूप से 8 घंटे के कार्य दिवस के लिए बने कारखाने अधिनियम के प्रावधान को यह कहकर निर्धारित किया कि "उपयुक्त सरकार" ऐसे काम के घंटों को अधिसूचित कर सकती है, जैसे कि वह अन्य चीजों के बारे में करती है। इसने फैक्ट्रीज एक्ट की मौजूदा धारा 51 को बदल दिया है।

यहां तक कि वेतन पर बना नया कोड केवल न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम में मौजूद कार्य दिवस की परिभाषा को बरकरार रखता है, जो कहता है कि उपयुक्त सरकार को एक कार्य दिवस में घंटे की संख्या तय करनी चाहिए।

नई संहिताओं के अन्य तत्व - जैसे न्यूनतम मज़दूरी की गणना में में सुधार करना, 'निश्चित अवधि' के रोज़गार की शुरुआत करना, श्रमिकों के संगठनों को नष्ट करना, आदि – ये सब भारत के कॉर्पोरेट वर्गों के बर्बर सपनों की तस्वीर को पूरा करते हैं, जिन्हें मोदी सरकार द्वारा बड़ी विनम्रता से लागू किया जा रहा है।

संक्षेप में, भारत में श्रम कानून के ढांचे का जानबूझकर विनाश श्रमिकों के शोषण को बढ़ाएगा और  उद्योगपतियों/मालिकों को लाभान्वित करेगा - और इस प्रकार उनके लाभ में वृद्धि होगी।

मज़दूर वर्ग इस पूरी योजना का लगातार विरोध करता रहा है, जिसने हाल ही में इसके विरोध में 8 जनवरी को एक ऐतिहासिक एक दिवसीय हड़ताल की थी। लेकिन मोदी सरकार को ऐसे समय में इसकी मार करने का मौका मिल गया है जब लोग कोरोना, कमाई और नौकरियों के नुकसान से डरे हुए हैं। बेरोज़गारी 23 प्रतिशत तक बढ़ गई है। हजारों भुखमरी का सामना कर रहे हैं, जबकि अन्य मज़दूर ट्रेड यूनियनों और गैर-सरकारी संगठनों की सहायता पर ज़िंदा हैं।

इस सारी अनिश्चितता और भय के माहौल के बीच, मोदी सरकार ने इस मज़दूर विरोधी प्रस्ताव को  लागू करने का अवसर हासिल कर लिया है, जो भारत को उस अवांछनीय स्थिति में डाल देगा जहां भारत 12 घंटे के काम के दिन को लागू करने वाला एकमात्र देश बन जाएगा। यह भारत को सौ साल पीछे धकेल देगा।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Modi Govt Uses COVID-19 For Savage Attack on Workers

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