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श्रमिक शोषण में बढ़ोतरी- दासता से प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था तक

गिग अर्थव्यवस्था का मॉडल मज़दूरों के खाली समय (जब तक गिग श्रमिक अगले काम का इंतज़ार करते हैं) के महत्व को प्रतीक्षा का समय घटाने, ग्राहक को संतुष्ट करने और प्लेटफ़ार्म के मूल्य निर्धारण को बढ़ाने के लिए मुख्य तौर पर पहचानता है.
gig workers
प्रतीकात्मक तस्वीर।

इस समय बाज़ार के सप्लायर्स को पहचानना और उसके अनुरूप व्यवहार करना एक रणनीतिक प्रक्रिया है जिससे शामिल सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए एक संतुलित और समृद्ध अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, इस ढांचे को अपनाकर एक बेहतर दीर्घकालिक प्लेटफ़ार्म अर्थव्यवस्था की तामीर की जा सकती है. 

अर्थव्यवस्था के इतिहास में श्रमिकों का शोषण और भागीदारी हमेशा से एक अहम विषय रहा है. गुलामी के समय से लेकर अब प्लेटफ़ार्म इकोनॉमी तक इन दोनों ही बिंदुओं पर सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी बदलावों का प्रभाव पड़ा है. प्लेटफ़ार्म अर्थव्यवस्था में श्रम की पेचीदगी को हम स्टोरीटेलिंग के ज़रिए बेहतर समझ सकते हैं जिसमें आर्थिक मॉडल और आधुनिक श्रम के विभिन्न पहलू उजागर होते हैं. ये नज़रिया हमें श्रमिक संघर्ष के इतिहास और विकास की सराहना करने का भी भरपूर अवसर देता है. 

स्टोरीटेलिंग का तरीक़ा अपनाकर हम ऐतिहासिक घटनाओं और वर्तमान समय में डिजिटल युग की चुनौतियों के बीच श्रमिक रवैय्यों के विकास को बेहतर समझ सकते हैं. इससे हमें दासता और प्रवासी श्रमिकों की सच्चाई जानने में भी मदद मिल सकती है. जिससे हम श्रमिक आंदोलन के विकास, सामूहिक आंदोलनों से लेकर श्रमिक अधिकारों तक हर पहलू की गहरी पड़ताल कर सकते हैं. इससे समान और न्यायपूर्ण रोज़गार के बारे में हमारी मौजूदा समझ में बड़ा फ़र्क़ आ सकता है.

इस कहानी का दायरा सिर्फ़ इतिहास तक सिमटा हुआ नहीं है बल्कि इसमें प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था के भी अध्याय जुड़ते हैं जहां हमें श्रम का एक नया ढांचा देखने को मिलता है. 

इस अर्थव्यवस्था में हम स्टोरीटेलिंग के माध्यम से लाभ को इंसानों से ऊपर रखने की नीति से पैदा पेचीदगी के बरअक्स मानवीय अनुभवों, नैतिक उलझाव और आर्थिक परिणामों को आंक सकते हैं. ये व्याख्या श्रमिकों के लिए एक बेहतर और न्यायपूर्ण भविष्य के साथ श्रमिक सुरक्षा और उससे जुड़े नियमों के पहलूओं को भी समेटती चलती है. 

स्टोरीटेलिंग और गणितीय मॉडल्स को मिलाकर तैयार यह लेख इतिहास से लेकर आज तक श्रमिक शोषण की गहरी पड़ताल करता है और मानवीय अनुभवों को आंकड़ों पर आधारित नज़रिए से आंकता है. इस व्याख्या में श्रमिक बल और बहुआयामी प्लेटफ़ॉर्म इकोनामी के लिए एक बेहतर भविष्य की जुगत में श्रमिकों, पॉलिसी निर्मताओं, व्यापारियों की चुनौतियों संज्ञान लिया गया है.   

कहानी-1 दासता  

एक गन्ना प्लांटेशन के मालिक के तौर पर मैं अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहता हूं. मैं उपजाऊ भूमि का मालिक हूं और मेरे पास फसल उगाने के लिए सारे संसाधन मौजूद हैं लेकिन मैं बढ़ते श्रम की क़ीमत को लेकर नया रास्ता तलाश रहा हूं. मैं आख़िर में एक ऐसी नीति खोज निकालता हूं जो प्रभावी मगर अमानवीय है. 

मैं दूर दराज क्षेत्रों में यात्रा करता हूं ताकि कोई मेरे प्लांटेशन पर काम करने के लिए राज़ी हो जाए. मैं ऐसे लोगों को खोजकर अपनी भूमि पर लाता हूं और उन्हें सिर्फ़ उतनी सुविधाएं देता हूं जिससे वो ज़िंदा रह सकें. पगार देना एक अतिरिक्त सुविधा है इसलिए मैं उन्हें इसकी कोई क़ीमत नहीं चुकाता हूं. वो सारा दिन सूरज की रौशनी में कड़ी मेहनत करके अपना वजूद खपाते हैं. इस प्लांटेशन पर मैं इन बदक़िस्मत लोगों का मालिक हूं और ये मज़दूर नहीं बल्कि दास हैं जिन्हें कड़े माहौल में इसलिए रखा जाता है ताकि मुझे कम क़ीमत में ऊंचा मुनाफ़ा मिल सके. 

कहानी-2  गिरमिटीया श्रमिकों का दौर 

वैश्विक तौर पर कड़ी आलोचना का शिकार होने के बाद और कानूनी बंधनों के चलते मजबूर होकर अब मैं जबरन श्रम नहीं करवा सकता हूं. इसलिए अब मेरी निगाह एक दूर की ज़मीन पर है जहां ग़रीब लोग जीवन में बदलाव की राह देख रहे हैं. हमारे पास एक सेना है, हमने उस ज़मीन पर उपनिवेश बना लिया हैं और अब हम वहां अपने क़ानून लागू कर सकते हैं. हम इसे दासता से अलग गिनते हैं क्योंकि दास प्रथा का अंत हो चुका है. 

अब मैं जनता को अनुबंधों के ज़रिए अनेक उपाय पेश करता हूं. ये अनुबंध क़ानूनी दस्तावेज़ हैं जिसमें मानदेय तय होने के साथ किसी भी समय पलायन का विकल्प मौजूद होता है. ये श्रमिकों के लिए सुविधाजनक होता है क्योंकि इसमें उनके सामने अपने प्रिय लोगों के साथ रहने का विकल्प मौजूद होता हैं और उन्हें शारीरिक तौर पर या किसी भी दूसरे तरीके से सीमित  नहीं किया जा सकता है. लेकिन फिर भी इस व्यवस्था की तह में भी उनका शोषण किया जाता है. उनके काम के घंटे रात तक जारी रहते हैं और ये सबकुछ थका देनेवाला होता है.  मैं उन्हें बस उतनी ही क़ीमत चुकाता हूं जिससे वो किसी तरह गुज़ारा कर सकें. 

अनुबंध के मुताबिक़ वो आज़ाद हैं लेकिन हक़ीक़त कोई और ही तस्वीर पेश करती है. अब वह एक पराए मुल्क में हैं और उनके पास अपने देश वापस जाने का कोई रास्ता नहीं है. क़र्ज़, कानूनी दांवपेंच और रोज़गार की कमी के कारण वह अपनी भूमिका में बंधे हुए हैं. ग़रीबी और श्रम के शोषण का ये क्रम चलता रहता है. 

पहले उदाहरण को हम “संपत्ति दासता” कहते हैं इसमें इंसानों को संपत्ति की तरह ख़रीदा, बेचा या किराये पर सौंपा जा सकता है. दासों के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं और उन्हें मालिकों द्वारा तय कठिन हालात में काम करना पड़ता है. उन्हें अपने श्रम के एवज सिर्फ़ और सिर्फ़ उतना ही धन मिलता है जिससे किसी तरह वो जीवन गुज़ार सकें. 16वीं से 19वीं  शताब्दी के बीच अलग अलग समाजों में दासता का ये स्वरूप ख़ूब प्रचलित था. 

जबकि ये दूसरा उदाहरण गिरमिटिया मज़दूरों की मिसाल सामने रखता है. इसमें व्यक्ति एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करता है जिसमें प्राय: किसी नए देश में किसी तयशुदा वक़्त के लिए काम के लिए समझौता किया जाता है. 17वीं और 19वीं शताब्दी के बीच इसका दुनिया के कई मुल्कों में चलन था. 

कहानी-3 औद्योगीकरण और संगठित श्रम

समय के पन्ने पलटते हुए अब हम तीसरे दौर में आ पहुंचे हैं जहां सामाजिक और आर्थिक ढांचों में एक महत्वपूर्ण बदलाव आ चुका है. अब हम देखते हैं कि औद्योगीकरण के प्रभाव में उत्पादन की व्यवस्था और श्रम दोनों का स्वरूप बदल चुका है. अब श्रमिकों ने एकता और सामूहिक कार्रवाई की ताक़त को पहचानना शुरू कर दिया है. अब उन्होंने अपने साझे अनुभवों और अभिलाषाओं की बुनियाद पर विभिन्न संगठन बना लिए हैं. 

इस आंदोलन ने श्रमिकों को उनके हक़ हासिल करने में मदद की है. अब वो क़ानूनी तौर पर हड़ताल भी कर सकते हैं और एम्पलॉयर्स के सामने अपनी बात भी रख सकते हैं. इन बदलावों का क़ानूनी ढांचों पर भी असर हुआ है नतीजे में अब बच्चों से श्रम करवाना जायज़ नहीं है और न्यूनतम पगार की शर्त के साथ काम की जगह पर मज़दूरों की सुरक्षा के भी इंतज़ाम हैं. अब उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस और जॉब सेक्युरिटी के साथ ही भेदभाव के ख़िलाफ़ सुरक्षा हासिल है. ये सब अब अनुबंध की शर्तें हैं. इन सबका प्रभाव सकारात्मक रहा है और इसने मज़दूरों के लिए जीवन के बेहतर हालातों और सामाजिक एकता को प्रभावशाली ढंग से ढ़ाला है. 

हालांकि इन श्रमिक आंदोलनों को उन लोगों के विरोध का भी सामाना करना पड़ा है जो आर्थिक उन्नति और औद्योगीकरण की राह में इसे बाधा के तौर पर देखते हैं. यह विरोध सिर्फ़ श्रमिक अधिकारों की मज़बूत पैरवी के नतीजे में बढ़ते आर्थिक बोझ के नतीजे के तौर पर देखा जा सकता है.

उचित वेतन की मांग और शोषण के विरोध का फ़ौरी मुनाफ़े पर बुरा असर पड़ सकता है लेकिन ये आंदोलन बाद में सामाजिक न्याय का रास्ता साफ़ करते हैं.  

श्रमिक आंदोलन श्रमिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है जिसने श्रमिक अधिकारों को हासिल करने की दिशा में बड़ा योगदान दिया है. ये आंदोलन आज भी इसकी बानगी है कि श्रमिक कल्याण और औद्योगिक विकास एक-दूसरे के पूरक नहीं हैं. फिर भी तमाम विरोधों के बावजूद ये आंदोलन सामाजिक न्याय की दिशा में पूरी दुनिया में श्रमिक अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण पायदान रहा है. 

कहानी- 4 प्लेटफ़ार्म श्रम

श्रम का ये नया मॉडल हमारी यात्रा में नया अध्याय है. एक नए संगठन के मालिक के तौर पर मैं अब ख़ुद सक्षम कामगारों की तलाश में रहता हूं. यह मज़दूर एक ऐसा चरित्र है जिसे हमने पुरानी व्याख्याओं में बार बार गढ़ा और साथ पाया है.  
 
एक स्वागत भरी मुस्कान के साथ मैं शुरूआत करता हूं- 
-    “मेरे उद्यम में आपका स्वागत है. इस समय मेरे पास आपके लिए एक ग़ैरपारंपरिक प्रस्ताव है. आप हमारे पिछले संबंधों के ब्यौरे को याद कर सकते हैं जब मैं दासों का स्वामी था, या गिरमिटिया मज़दूरों को नियुक्त करने वाला ज़मीदार या फ़ैक्ट्री का मालिक था.  श्रम बढ़ाकर आपकी क़ीमत घटाना, इन सब जगहों पर एक सामान्य बात थी. ये क्रूर और अनैतिक होने के बावजूद श्रम की क़ीमत घटाने और मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए एक ज़रूरी रणनीतिक फ़ैसला था. इस नए उद्यम में क़ायदा बदल चुका है. जब आप मेरी कंपनी से जुड़ते हैं तो आपके पास अपनी सहूलियत के मुताबिक़ काम करने की पूरी छूट होती है और आपको अपनी मेहनत के मुताबिक़ मूल्य भी चुकाया जाता है. लेकिन यहां पर एक ध्यान देने की बात ये है कि हमें आपकी सेवाओं की कुछ ख़ास मौक़ों पर ही ज़रूरत पड़ती है. ये असामान्य लग सकता है लेकिन फ़ुल-टाईम काम देने से मेरी आय और नए बिज़नेस मॉडल को नुक़सान पहुंचता है. अगर आप लगातार काम करते हैं तो इससे धन का नुक़सान होता है और मुनाफ़ा भी कम हो जाता है.” 

“आपके कम काम करने से मुझपर कम आर्थिक बोझ बढ़ता है और उंची आय का रास्ता भी साफ़ होता है. हालंकि ये सुनने में विरोधाभासी लग सकता है.”
इसपर संदेह से जूझता कर्मचारी जवाब देता है-  
“ये विचित्र है कि कैसे मेरा आधा रोज़गार और अतिरिक्त समय आपका मुनाफ़ा बढ़ा रहा है? मैं घटती क़ीमत का समीकरण समझ सकता हूं, लेकिन काम के कम घंटो के बावजूद उंचे मुनाफ़े की वसूली में वही पुरानी पारंपरिक होशियारी है.’’ 
-
इस नए तरह की अर्थव्यवस्था में मुनाफ़े की आड़ में आर्थिक शोषण आसान है लेकिन इसमें कर्मचारी के पास मुस्कुराने के सिवाय कोई चारा नहीं होता.

मिसाल के तौर पर डिजिटल इकोनॉमी मोबाईल ऐप के ज़रिए चलने वाली Uber या Lyft सेवाओं को देखा जा सकता है. इस बिज़नेस के संस्थापक और मालिक के तौर पर मैं ड्राइवर हायर करता हूं. अब मेरी कंपनी के कर्मचारी के तौर पर ड्राइवर अपने काम के घंटे चुन सकता है. जब वो अधिक कार्यभार संभलता है तो कंपनी की आय बढ़ती है जिसकी हम सराहना करते हैं. ढेर सारे ड्राइवर्स के ज़रिए ग्राहकों को फ़ौरन सेवाएं देना हमारे लिए अहम है क्योंकि इससे हमारी बिक्री में इज़ाफ़ा होता है. 

आप सोच सकते हैं-

“कम काम, कम तनख्वाह, अधिक फुरसत इसमें मेरा नुक़सान है लेकिन सेवाओं की मांग के उफान के समय हमारे ड्राइवर्स के पास फ़ुरसत का कोई समय नहीं होता है.”

इस तरह हम अधिक काम और आधिक आय का पुराना मॉडल नकार देते हैं. अब हम नए मॉडल में रणनीति और मांग के अनुरूप काम करते हुए अधिकतम मुनाफ़े को चुन सकते हैं. इसमें मैं तय करता हूं कि हर समय हमारे पास उचित संख्या में ऐसे ड्राइवर मौजूद हों जिनके पास फ़ुरसत हो जिससे कि ग्राहकों को कम प्रतीक्षा करनी पड़े और वो हमारी सेवाओं से प्रसन्न रहें. अगर अर्थवयव्स्था में रोज़गार की कमी हो तो ऐसा कर पाना काफ़ी आसान हो जाता है. इस तरह ड्राइवर्स के पास कैब में ग्राहक का इंतज़ार करने के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं होता है. 

नतीजे में कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था के गिग मॉडल में फ़ुसरत का समय भी उत्पादक समय में शुमार होता है. इसके तहत प्रतीक्षा के घटते समय के साथ, ग्राहक, मालिक और कर्मचारी सब मिलकर पहले से कहीं अधिक रणनीतिक और सस्टेनेबल मॉडल तैयार करते हैं. 

इसमें ये बात भी क़ाबिलेग़ौर है कि कर्मचारी अधिकतर ट्रेनिंग प्राप्त प्रोफ़ेशनल और फ़ुरसतिए क़िस्म के कर्मचारी होते हैं जो कंपनी की आय में इज़ाफ़ा करते हैं. 
 
गणितीय मॉडल-   

मुनाफ़े के सबसे सरल मॉडल में आय में से क़ीमत घटाई जाती है. हम सिर्फ़ ऑपरेशनल क़ीमतों की गणना करेंगें-

1.     ग्राहकों की संख्या [N: Number of customers]
2.    प्रति ग्राहक आय  [R: Revenue generated per customer]
3.    ऑपरेशनल लागत ( स्टाफ़, तकनीक़)  [OC: Operational cost (tech, staff, etc.)]
4.    प्रति ग्राहक लागत [C: Cost of acquiring each customer]
5.    सप्लॉयर्स की संख्या  [M: Number of suppliers]
6.    हर सप्लायर की ट्रेनिंग का क़ीमत  [S: Cost of acquiring and training each supplier]
7.    सप्लायर्स का उपयोगिता मूल्य [U: Utilization rate of suppliers]
8.    सप्लायर्स की संघर्षण दर [a(U): Supplier attrition rate decreasing with U]
9.    ग्राहक की संघर्णण दर  [b(U): Customer attrition rate increasing with U]
10.    सेवा छोड़ने वाले ग्राहकों को रिप्लेस करने की लागत [Rc: Cost of replacing a customer who leaves]
11.    सेवा छोड़ने वाले सप्लायर्स को रिप्लेस करने की लागत [Rs: Cost of replacing a supplier who leaves]
12.     सामान्य रोज़गार दर  [E: General employment rate]
13.    सप्लायर्स संघर्षण दर   [a(U, E): Supplier attrition rate, decreasing with both U and E]

STEP-1 मूल मॉडल

इसमें ग्राहकों से हासिल आय में से ऑपरेशनल लागत घटा कर मुनाफ़ा तय किया जाता है. अधिक ग्राहक और प्रति ग्राहक अधिक आय का अर्थ है मुनाफ़े में बढ़ोतरी 
P = N * R — OC

Step-2  संघर्षण दर शामिल करना
P = (N * R) — {(N * C) — (M * S) — (OC)}

यहां ग्राहक अधिग्रहण लागत और सप्लायर की अधिग्रहण लागत को भी ऑपरेशनल क़ीमतों में जोड़ दिया जाता है. मुनाफ़े के लिए प्रति ग्रहक आय को ऑपरेशनल, ग्राहक औऱ सप्लायर की संघर्षण दर से अधिक होना चाहिए. 

Step- 3 
अब हम ग्राहक और सप्लायर दोनों की संघर्षण दर की लागत पर विचार करते हैं. संघर्षण दर अंतत: सप्लायर की उपयोगिता (U) पर निर्भर करता है जो ग्राहक और सप्लायर दोनों की ही संतुष्टि को प्रभावित कर सकता है. 

P = N * R — {(N * C) — (M * S) — (N * b(U) * Rc) — (M * a(U, E) * Rs) — OC}
इसमें ग्राहक संघर्षण लागत (N * b(U) * Rc) और सप्लायर्स संघर्षण लागत (M * a(U) * Rs) दोनों ही शामिल हैं. अगर सप्लायर्स का सही इस्तेमाल नहीं किया गया तो इससे प्लेटफ़ार्म के मुनाफ़े पर भी बुरा असर पड़ सकता है. 

STEP-4 
अब हम सप्लायर संघर्षण पर सामान्य रोज़गार दर के प्रभावों पर भी विचार करते हैं- 
P = N * R — {(N * C) — (M * S) — (N * b(U) * Rc) — (M * a(U, E) * Rs) — OC}

यहां सामान्य रोज़गार दर से सप्लायर्स की संघर्षण दर पर असर पड़ रहा है, जो एक तरफ़ सप्लायर्स के लिए नए विकल्पों और अवसरों की तरफ़ भी इशारा है. जबकि कम रोज़गार दर का अर्थ है कम सप्लायर संघर्षण दर. 

आर्थिक लाभ की व्याख्या 
•    N यहां  ग्राहकों की संख्या ज़ाहिर करता है और  R औसत रिवेन्यू की तरफ़ इशारा करता है. N * R का अर्थ है ग्रहकों से हासिल संपूर्ण आय. N * C  का अर्थ है प्रति ग्रहक सेवा प्रदान करने की क़ीमत और M * S का अर्थ है हर सप्लायर को हासिल करने और ट्रेनिंग देन  की क़ीमत. 

•    N * b (U) * Rc औऱ M * a(U, E) * Rs ड्राइवर्स और सप्लायर्स दोनों के लिए संघर्षण दर की क़ीमत की तरफ़ इशारा करते हैं. U सप्लायर्स के लिए उपयोगिता दर है. Rc ग्राहक संघर्षण की लागत और Rs सप्लायर संघर्षण की लागत है. 

•    M * a(U, E) * Rs सप्लायर संघर्षण से संबंधित है. E  सप्लायर्स को प्रभावित करने वाले अतिरिक्त बाहरी तत्वों का आकलन है जैसे कि रोज़गार दर या रोज़गार के वैकल्पिक अवसर. जबकि OC में उन ऑपरेशनल लागतों का आकलन किया जाता है जिसे पिछले टर्म्स में नहीं जोड़ा गया है. 
 
इस खांचे से ये साफ़ होता है कि सप्लायर उपयोगिता प्लेटफ़ार्म अर्थवय्वस्था के लिए सबसे ज़रूरी है. अधिक उपयोगिता ग्रहक और सप्लायर दोनों ही तरफ़ से संघर्षण दर बढ़ा सकती है. हालांकि रोज़गार या वैकल्पिक रोज़गार में कमी होने से ग्राहक संघर्षण दर और सप्लायर की आय पर बुरा असर पड़ता है. 

जबकि कौशल से संपन्न् सप्लायर्स के पास अवसरों की कमी नहीं होती इससे संघर्षण दर में सुधार आता है. 

कुल मिलाकर बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी से जूझते आंकड़ों के बीच, कम कौशल वाले कामों के बारे में कहा जा सकता है कि ग्राहक संघर्षण दर घटाकर यहां मुनाफ़ा बढ़ाया जा सकता है. जिसका अर्थ है सप्लायर्स के पास अधिक अतिरिक्त समय और आर्थिक नुक़सान. ये ख़ास तौर से कम कौशल वाले कर्मचारियों के लिए प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था में एक उभरता हुआ ख़तरा है जो श्रमिक सुरक्षा के प्रवाधानों की अहमियत को रेखांकित करता है. 
-
(लेखक अर्थशास्त्र में परास्नातक और फ़ाइनांशियल प्रोफ़ेशनल हैं. उन्हें कला, अकादमिक, सामाजिक,विकास और मानावाधिकार संबंधी मुद्दों में गहरी रूचि है.) 

साभार : सबरंग 

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