Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

'मोदी का सत्ता में वापस आना भारत के लिए बुरा संकेत होगा'

प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ सुमित गांगुली का कहना है कि सत्तारूढ़ दल जनता के सामने जो परोस रहा है, उसका मुकाबला करने के लिए विपक्ष को एक कार्यक्रम विकसित करना चाहिए।
Sumit Ganguly
प्रोफेसर सुमित गांगुली

प्रोफेसर सुमित गांगुली इंडियाना विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं, और वे  भारतीय संस्कृति और सभ्यताओं पर रवींद्रनाथ टैगोर चेयर हैं। वे दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ हैं, और उन्होंने इस क्षेत्र पर एक दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें फियरफुल सिमिट्री: इंडिया एंड पाकिस्तान अंडर द शैडो ऑफ न्यूक्लियर वेपन्स, यह किताब उन्होंने डेविन टी हैगर्टी के साथ लिखी और मुख्य संपादक के रूप में द स्टेट ऑफ इंडियाज डेमोक्रेसी भी इसमें शामिल हैं। वे "इंडिया रिव्यू" और "एशियन सिक्योरिटी" पत्रिकाओं के संस्थापक संपादक भी हैं। रश्मी सहगल को दिए गए इस साक्षात्कार में, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत भारतीय लोकतंत्र के कमजोर होने के बारे में आशंका व्यक्त की है और इस सरकार के फिर सत्ता में आने का भारतीय समाज के लिए क्या मतलब होगा के बारे में बात की है। पेश हैं संपादित अंश:

रश्मि सहगल: भारत में 2024 के मध्य में आम चुनाव होने वाला है। क्या आप मानते हैं कि भारतीय विपक्षी दल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एकजुट मोर्चा पेश कर पाएंगे?

सुमित गांगुली: विपक्ष ने पहले ही आपस में समझौता कर लिया है। सवाल यह है कि क्या वे व्यक्तित्व, विचारधारा और संकीर्ण हितों को इससे ऊपर रख पाएंगे हैं या नहीं। इसका अंत आपातकाल के बाद कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जनता [पार्टी] गठबंधन जैसा हो सकता है। जो सत्ता में आने के तुरंत बाद टूट गया था। मुझे नहीं लगता कि गठबंधन मतदाताओं के सामने पेश करने के लिए कोई व्यवहार्य नीति मंच लेकर आएगा। यदि, किसी चमत्कार से, यह जीत जाता है, तो मुझे डर है कि उनके मतभेद प्रभावी शासन को कमजोर कर सकते हैं। 

आरएस: यदि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को तीसरा कार्यकाल मिलता है, तो कई लोग मानते हैं कि इससे भारत के एक सत्तावादी हिंदू राष्ट्र बनने की प्रबल संभावना बन जाएगी।  भारतीयों को भविष्य अंधकारमय दिखाई देगा, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों और आदिवासी आबादी के लिए जो पहले से ही हाशिए पर हैं। क्या आपको इस प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण अशांति की आशंका नज़र आती है?

एसजी: मोदी का सत्ता में वापस आना देश के लिए बहुत बुरा संकेत होगा, हालांकि लाखों भारतीय जिन्होंने उन्हें वोट दिया था और जिनके दोबारा उन्हें वोट देने की संभावना है, वे शायद मुझसे असहमत होंगे। मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि सामाजिक विभाजन बदतर हो जाएंगे, आर्थिक असमानता बढ़ेगी और भारत के लोकतंत्र की गुणवत्ता प्रभावित होगी।

मुझे पूरा विश्वास है कि भाजपा का मानना है कि वह अल्पसंख्यकों को अधीन बना सकती  है और उम्मीद करती है कि वे फिर भी शांत रहेंगे। मेरे हिसाब से, यह बहुत ही संदिग्ध भरा प्रस्ताव है और दीर्घकालिक सामाजिक अशांति का जरिया ब न सकता है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नैतिक रूप से संदिग्ध रणनीति है जो किसी लोकतांत्रिक देश के लिए बुरा साबित होगी। 

आरएस: क्या भारत अंततः एक ऐसे गुट द्वारा शासित हो जाएगा जो सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने में संकोच नहीं करता है और इसकी मीडिया, न्यायपालिका और नौकरशाही और भी कमजोर और अप्रभावी हो जाएगी?

एसजी: बिल्कुल मेरे डर यही हैं। भाजपा सरकार जिन नीतियों पर काम कर रही है, वे भारत के लोकतंत्र के मूल ढांचे को नष्ट करने का खतरा पैदा करती हैं और एक लोकतांत्रिक राज्य के कामकाज के लिए बेहद हानिकारक हैं। जब तक इन नीतियों की जाँच-परख नहीं की जाती या इन्हें उलटा नहीं जाता है, तब तक भारत के लोकतंत्र का भविष्य ख़तरे में है।

आएस: पश्चिमी लोकतंत्रों में बढ़ते अधिनायकवाद को कैसे देखा जाएगा? मोदी हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस की सफल आधिकारिक यात्रा से लौटे हैं, जहां उन्होंने भारत और इन देशों के बीच सैन्य-प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ाने के लिए उच्च-प्रोफ़ाइल रक्षा सौदे किए हैं।

एसजी: दुख की बात यह है कि जब तक पश्चिमी लोकतंत्रों के हित सधते रहेंगे, वे लंबे समय तक किसी भी संख्या में अवैध शासनों के साथ मिलकर काम करते रहेंगे। शीत युद्ध के दौरान यह नियमित रूप से होता रहा और उसके बाद भी जारी है। खुद को भारत के साथ जोड़ना शायद ही उनका सबसे गंभीर विकल्प है; उन्होंने पहले भी बहुत खराब सरकारों के साथ काम किया है और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे। पश्चिमी लोकतंत्र हथियार बेचने, भारतीय बाज़ार तक पहुंच हासिल करने और भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए उत्सुक रहते हैं। इसमें शामिल जोखिमों को देखते हुए, वे मोदी सरकार की सभी प्रकार की कमियों को नजरअंदाज करने को तैयार हैं।

आरएस: भारत के भीतर इस बात की आशंका है कि सरकारी धन का एक बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीद पर खर्च किया जा रहा है। भारत अब सबसे बड़ा हथियार आयातक है, और कई लोगों को डर है कि इसे समाज के प्रति शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की कीमत पर किया जा रहा है। क्या आप सहमत हैं?

एसजी: भारत का रक्षा खर्च, हालांकि पर्याप्त है, लेकिन वह सामाजिक कल्याण की कीमत पर नहीं किया जा रहा है। विश्व बैंक के अध्ययनों से पता चला है कि भारत में गरीबी में काफी कमी आई है। उन्होंने कहा की, भारत में असमानता नाटकीय रूप से बढ़ी है लेकिन गरीबी नहीं। मनरेगा [महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम] को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित नहीं करने का निर्णय ज्यादातर एक राजनीतिक मसला है और न की वित्तीय कमी का मामला है।

स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करने में मोदी सरकार की विफलता भयानक है। हालाँकि, निवेश की यह कमी दशकों से चली आ रही है। ये पिछली सरकारों द्वारा चुने गए विकल्प थे। यदि सरकार चाहे तो वह स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन के लिए सकल घरेलू उत्पाद का बड़ा हिस्सा आवंटित कर सकती है।

आरएस: सरकार के इस दावे के बावजूद कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर में स्थिति स्थिर और बेहतर हो गई है, कश्मीर पर नजर रखने वालों का मानना है कि ऐसा नहीं हुआ है। आपके क्या विचार हैं?

एसजी: धारा 370 को हटाने की बात बीजेपी लंबे समय से कर रही थी। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में आखिरकार रूबिकॉन को पार करने का फैसला किया। धारा 370 को निरस्त करना कश्मीर की आम जनता के साथ-साथ कश्मीर के राजनीतिक नेतृत्व के लिए एक झटके के रूप में आया। अनुच्छेद 370 में शामिल सभी प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है। यह तकनीकी रूप से गैर-कश्मीरियों को कश्मीर में जमीन खरीदने की इजाजत देता है, हालांकि वहां संपत्ति खरीदने के इच्छुक लोगों की भीड़ नज़र नहीं आती है। फिर भी इसका डर बना हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिसीमन प्रक्रिया के बाद कश्मीरियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व पूरी तरह से बदल दिया गया है।

मैं कश्मीर की राजनीति के कई पर्यवेक्षकों के उन विचारों से सहमत हूं कि कश्मीर में स्थिति स्थिर नहीं हुई है। कश्मीर में भारत का सामना एक उदास, शत्रुतापूर्ण और अलग-थलग पड़ी आबादी से है।

आरएस: सुप्रीम कोर्ट अगस्त में अनुच्छेद 370 को रद्द करने से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा। क्या आपके विचार से इसे रद्द किये जाने की कोई संभावना है?

एसजी: इसकी कोई संभावना नहीं दिखती है। मुझे यकीन है कि कोर्ट को इसे बरकरार रखने का कोई उपयुक्त बहाना ढूंढ लेगा। 

आरएस: मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार आजादी के बाद किसी भी अन्य नेता की तरह भारत का ध्रुवीकरण करने में सफल रही है। बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और नौकरी छूटने सहित आर्थिक समस्याओं को देखते हुए, भारतीय जनता इस दिखावे को क्यों नहीं देख पा रही है?

एसजी: कई बाध्यकारी कारणों से मतदाता उनके धोखे या दिखावे को देखने में सक्षम नहीं हैं। निस्संदेह, पहला, कांग्रेस पार्टी की वैचारिक, कार्यक्रम संबंधी और संगठनात्मक अव्यवस्था है। राहुल गांधी की निरर्थक "भारत जोड़ो यात्रा" से क्या हासिल हुआ? क्या भाजपा के प्रति शत्रुता के अलावा उन्होंने कोई एक भी नीतिगत विचार पेश किया है? कांग्रेस पार्टी को खुद में आमूल-चूल बदलाव लाने के लिए नए नेतृत्व को उभरने और नए नीतिगत नुस्खे पेश करने की जरूरत है।

दूसरा, भाजपा ने अपनी नीतिगत विफलताओं के लिए चतुराई से दूसरों को बलि का बकरा बना दिया है। तीसरा, अधिकांश भारतीय प्रेस, जो जीवंत और उत्साही दोनों हुआ करती थी, ने मोदी और भाजपा का सामना न करने का फैसला किया है। चौथा, अधिकांश समय तक,  स्थायी नौकरशाही ने भी इस डर से अपनी गर्दन बाहर नहीं निकालने का फैसला किया है, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके साथ क्या हो सकता है। इन कारकों का संयोजन, काफी हद तक, वर्तमान सरकार की सफलता को स्पष्ट करता है।

(रश्मि सहगल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

‘Modi Coming Back to Power Bodes Very Badly for India’

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest