Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मोदी जी! ट्विटर एकाउंट नहीं चाहिए, महिला आरक्षण बिल पास करवाइए!

प्रधानमंत्री महिला सशक्तीकरण के नाम पर महिलाओं को अपना सोशल मीडिया अकाउंट थमाने की बात कर, आधी आबादी का हक़ महिला आरक्षण बिल पर चुप्पी साधे हुए हैं।
Women's Day

'महिला आरक्षण बिल का पास होना मेरे लिए गर्व और सम्मान का ऐतिहासिक पल था'

ये शब्द बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली के हैं। 2010 में अरुण जेटली राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष थे और सदन से महिला आरक्षण बिल के पास होने पर उन्होंने ये वक्तव्य दिया था। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उस समय लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, वे इस बिल की सबसे प्रमुख पैरोकारों में एक थीं। लेकिन आज 2020 में ये विडंबना ही है कि उनकी पार्टी बीजेपी दूसरी बार सत्ता में भारी बहुमत से काबिज़ है लेकिन प्रधानमंत्री महिला सशक्तीकरण के नाम पर महिलाओं को अपना सोशल मीडिया अकाउंट थमाने की बात कर, आधी आबादी का हक़ महिला आरक्षण बिल पर चुप्पी साधे हुए हैं।

भारत में महिलाओं की आबादी 48.28 प्रतिशत है। जबकि संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 14.8 फीसदी है। मोदी कैबिनेट की बात करें तो 24 मंत्रियों में केवल तीन महिला मंत्री ही शामिल हैं। ऐसे में सवाल है कि जब हम विश्वगुरु बनने की बात करते हैं, महिला सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे करते हैं तो इस पितृसत्तात्मक संरचना वाले समाज में हमारी आधी आबादी राजनीति के क्षेत्र में कहाँ है और अभी उसे कितनी दूरी तय करनी है, इस पर बात क्यों नहीं होती? जब बांग्लादेश जैसा देश संसद में महिला आरक्षण दे सकता है तो भारत में दशकों बाद भी महिला आरक्षण बिल लटका क्यों है?

unnamed.jpg

क्या है महिला आरक्षण बिल?

महिला आरक्षण बिल संविधान के 108 वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी हैं। जिस तरह से इस आरक्षण विधेयक को पिछले कई सालों से बार-बार पारित होने से रोका जा रहा है या फिर राजनीतिक पार्टियों में इसे लेकर विरोध है इसे देखकर यह लगता है कि शायद ही यह कभी संसद में पारित हो सके। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पारित होने के बाद लोकसभा में सालों से लंबित पड़ा है। राष्ट्रीय राजनीतिक दल भी बहुत कम संख्या में महिला उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिये टिकट देते हैं।

क्यों हुआ विरोध?

2010 में यूपीए सरकार ने इसे राज्यसभा में पास तो करा दिया था लेकिन लोकसभा में इसकी राह कठिन हो गई। यूपीए के पास पर्याप्त संख्याबल था लेकिन समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और बहुजन समाज पार्टी ने इस विधेयक का विरोध किया।

इस विधेयक का विरोध करने वालों का कहना है कि इसके पारित हो जाने से देश की दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में कमी आएगी। उनकी मांग है कि महिला आरक्षण के भीतर ही दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएं। इसी के साथ-साथ एक तर्क यह भी है कि इस विधेयक से केवल शहरी महिलाओं का प्रतिनिधित्व ही संसद में बढ़ पाएगा। इसके बावजूद यह एक दिलचस्प तथ्य है कि किसी भी दल से महिला उम्मीदवारों को चुनाव में उस अनुपात में नहीं उतारा जाता, जिससे उनका प्रतिनिधित्व बेहतर हो सके।

unnamed 1.jpg

बिल का इतिहास

साल 1975 में 'टूवर्ड्स इक्वैलिटी' नाम की एक रिपोर्ट आई। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। इस रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी। राजनीतिक इकाइयों में महिलाओं की कम संख्या का ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट में पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया।

-इसके बाद 1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं।

-साल 1996 में महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार एच.डी. देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया। लेकिन इस गठबंधन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद महिला आरक्षण के विरोधी थे। इस बिल के बाद देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया।

-जून 1997 में एक बार फिर इस विधेयक को पास कराने का प्रयास हुआ। उस वक़्त शरद यादव ने इस विधेयक की निंदा करते हुए एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, 'परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी।'

-साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में एन थंबीदुरई (तत्कालीन क़ानून मंत्री) ने इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की। लेकिन गठबंधन की मजबूरियों और भारी विरोध के बीच यह लैप्स हो गया।

- इसके बाद एनडीए की सरकार ने दोबारा 13वीं लोकसभा में 1999 में इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की। लेकिन सफलता नहीं मिली। साल 2002 तथा 2003 में इसे फिर लाया गया, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।

-2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण से जुड़ा 108वाँ संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश किया।

-इसके दो साल बाद 2010 में तमाम राजनीतिक अवरोधों को दरकिनार कर राज्यसभा में यह विधेयक पारित करा दिया गया। उस दिन पहली दफ़ा मार्शल्स का इस्तेमाल हुआ, जिसका इस्तेमाल पहले की सरकारें भी कर सकती थीं लेकिन उन्होंने नहीं किया था। उस दिन अच्छी खासी चर्चा हुई और यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया।

-इस बिल के लिए कांग्रेस को बीजेपी और वाम दलों के अलावा कुछ और अन्य दलों का साथ मिला। लेकिन लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पाई।

-इस विधेयक को राज्यसभा में इस मक़सद से लाया गया था कि अगर यह इस सदन में पारित हो जाता है तो इससे उसकी मियाद बनी रहे। लोकसभा में अब भी महिला आरक्षण विधेयक पर लुका-छिपी का खेल चल रहा है और सभी राजनीतिक दल तथा सरकार इस पर सहमति बनाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं।

-महिला आरक्षण सभी राज्यों की विधायिकाओं पर भी लागू होना है इसलिए इसे आधे राज्यों की विधानसभाओं की भी सहमति लेनी पड़ेगी। भाजपा और कांग्रेस दोनों इस बिल से सहमत होने की बात करते हैं। ऐसे में भला सरकार को क्या ही दिक्कत होगी।

Women_MPs_2014 PTI 3x2.jpg

पक्ष-विपक्ष

2010 में ऊपरी सदन राज्यसभा में दो दिनों तक चले विरोध, शोर शराबे और हंगामे के बाद भारी बहुमत से महिला आरक्षण विधेयक पारित हुआ था। इस विधयेक के पक्ष में 186 सदस्यों ने वोट दिया जबकि विरोध में केवल एक ही मत पड़ा था। बहुजन समाज पार्टी के सांसद इस विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करते हुए मतदान के समय सदन से बाहर चले गए थे।

उस समय जनता दल (युनाइटेड) के नेता शिवानंद तिवारी का कहना था कि वो चाहते हैं कि आरक्षण के बीच आरक्षण हो। उनका कहना था, 'मुसलमानों के मन में ये आशंका है कि उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है, उन्हें लगता है कि महिलाओं का आरक्षण होने से मुसलमान सांसदों की संख्या और कम हो जाएगी।'

इससे पहले महिला आरक्षण विधेयक का विरोध कर रहे नेता लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव ने भी मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की माँग की थी।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात के अनुसार इस विधेयक के पारित होने देश का लोकतंत्र और मज़बूत होगा। करात का कहना था कि उन्हें ये सुनकर बेहद दुख होता कि आरक्षण से महिलाओं के एक विशेष वर्ग को ही फ़ायदा होगा। इस क़ानून के बनने के साथ ही भारत में स्थिति बदलेगी क्योंकि यहां की महिलाएं अब भी सांस्कृतिक पिंजरे में क़ैद हैं। संस्कृति और परंपरा के नाम पर हमें हर रोज़ संघर्ष करना पड़ता है।

इस मुद्दे पर कांग्रेस की नेता जयंति नटराजन का कहना था कि जो लोग दलितों के आरक्षण के नाम पर इस बिल का विरोध कर रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि दलितों को पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है। नटराजन ने कहा कि किसी और पार्टी के अंदर लोगों को किया हुआ यह वादा पूरा करने की हिम्मत नहीं थी।

हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि मोदी सरकार बहुमत की सरकार है और वो महिला आरक्षण बिल लेकर आए, कांग्रेस उसका समर्थन करेगी।

8c8deaf7-bd66-4a55-9113-7d005690b2e8.jpg

महिला संगठनों का क्या कहना है?

राज्यसभा से बिल पास होने के बाद विभिन्न दलों की कद्दावर महिला नेताओं का यादगार फोटो सेशन पूरे देश ने देखा था। लेकिन इन सब के बावजूद आज भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। आखिर क्या वजह है कि इस बिल की स्थिति आज भी जस की तस है। सत्तारूढ़ दल का कहना है कि वो इस बिल के साथ आगे तो बढ़ना चाहती है लेकिन सभी पार्टियों के समर्थन के साथ।

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेंस एसोसिएशन की कविता कृष्णन सरकार की इस दलील को बेकार बताती हैं कि महिलाओं के लिए आरक्षण के सवाल पर राजनीतिक दल एक साथ नहीं हैं। वे कहती हैं, 'राजनीतिक दलों की मानसिकता के बदलने का इंतज़ार अगर सरकार करेगी तो यह बिल कभी पारित नहीं हो सकता। मुझे लगता है कि पिछली सरकार और मौजूदा सरकार में कोई ख़ास अंतर नहीं है। चूंकि समाज में महिला विरोधी सोच है इसलिए राजनीतिक दलों को फायदा होगा अगर वे इस तरह के बिल का विरोध करें।'

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शबनम हाशमी कहती हैं, 'राज्यसभा से लोकसभा तक के लिए महिला आरक्षण बिल को सिर्फ पांच मिनट का ही सफर तय करना था। मगर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। मुझे लगता है कि इसमें राजनीतिक इच्छा शक्ति की ही ज़रूरत थी। इतने बिल पास हुए। इसे भी पास कराया जा सकता था। लेकिन पुरुष प्रधान राजनीतिक दल नहीं चाहते कि महिलाओं को तरजीह मिले।'

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक डॉ. रंजना कुमारी कहती हैं 'देश में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पहले बुनियादी स्तर पर काम करना होगा और यह महिलाओं को बराबरी का स्थान मिलने के बाद ही संभव है। हमारे प्रधानमंत्री ने 50 से अधिक देशों में घूम-घूम कर देश की छवि चमकाने की कोशिश की लेकिन महिलाओं की स्थिति के मामले में देश की छवि बदतर ही हुई है।'

विश्व स्तर पर महिलाओं की स्थिति

'जब तक महिलाओं की आवाज़ नहीं सुनी जाएगी तब तक सच्चा लोकतंत्र नहीं आ सकता। जब तक महिलाओं को अवसर नहीं दिया जाता, तब तक सच्चा लोकतंत्र नहीं हो सकता।'

ये कहना है अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुकीं हिलेरी क्लिंटन का। जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गेनाइज़ेशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जिन सरकारों में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है वहाँ भ्रष्टाचार कम होता है।

table new.png

(Data Courtesy: Inter-Parliamentary Union)

जिनेवा स्थित इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में भारत का स्थान 143वां है। दुनिया में लोकसभा जैसे निचले सदन में महिला प्रतिनिधित्व की बात करें, तो भारत इस मामले में पाकिस्तान से भी पीछे है। पाकिस्तान को इस लिस्ट में 106 वाँ स्थान मिला है। हमारे पड़ोसी देश भी हम से बेहतर स्थिति में हैं। नेपाल में 32.73 फीसदी महिलाएं संसद में हैं। अफगानिस्तान में 27.7 फीसदी और चीन की संसद में 24.94 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान में भी संसद में 20.18 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 14.63 फीसदी है।

इस रिपोर्ट में रवांडा पहले, क्यूबा दूसरे और बोलिविया तीसरे स्थान पर है। इन देशों की संसद में महिला सदस्यों की संख्या 50% से ज़्यादा है। इस रिपोर्ट में 50 देशों की संसद में महिलाओं की संख्या कुल सदस्यों के 30% से अधिक है।

womens_reservation_bill_protests.jpeg

महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुधारने के लिये क्या किया जाए ?

पंजाब विश्वविद्यालय में राजनिति शास्त्र के प्रोफेसर शशि कांत बताते हैं, ‘हमारे संविधान की प्रस्तावना में व्यक्त की गई आकांक्षाओं के अलावा अनुच्छेद 14,15 (3), 39 (A) और 46 में सामाजिक न्याय एवं अवसर की समानता की बात कही गई है ताकि राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिये उचित उपाय किये जा सकें। भारतीय महिलाओं का सशक्तीकरण शिक्षा की खाई को पाटकर, लैंगिक भेदभाव को कम करके और पक्षपाती नज़रिये को दूर करने के माध्यम से किया जा सकता है।'

महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिये, स्वीडन जैसे कुछ यूरोपीय देशों में Zipper System द्वारा हर तीन उम्मीदवारों में एक महिला शामिल होती है।

सॉफ्ट कोटा सिस्टम इस तर्क पर आधारित है कि लैंगिक समानता धीरे-धीरे समय के साथ नियमों की आवश्यकता के बिना होगी। और इसका उपयोग अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड जैसे लोकतंत्रों में किया जाता है। सीटों के आरक्षण के लिये अफ्रीका, दक्षिण एशिया और अरब क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली सबसे व्यापक लैंगिक कोटा प्रणाली हैं।

गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस यानी 8 मार्च को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार 3 मार्च को देश की महिलाओं के नाम एक ट्विट किया। इस ट्विट में पीएम ने महिला दिवस पर अपना सोशल मीडिया अकाउंट देश की कुछ चुनी हुई महिलाओं के हाथों में सौंपने की बात लिखी। साथ ही SheInspiresUs का हैशटैग भी दिया। लेकिन महिला सशक्तीकरण के मुद्दे पर जोर-शोर से बात करने वाली बीजेपी सरकार बहुमत में होने के बावजूद महिला आरक्षण बिल पास नहीं करा पाई है।

( सभी इस्तेमाल की गई तस्वीरें फाइल फोटो हैं)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest