NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
मुज़फ़्फ़रनगर, दादरी से लेकर हाथरस तक: पश्चिमी यूपी में दबंग जातियों का एक विश्लेषण
‘इस इलाक़े के इतिहास का एक अहम मोड़ 2013 का मुज़फ़्फ़रनगर दंगा था। इसके पहले सभी बड़े दंगे शहरी इलाक़ों तक सीमित थे, जिनका ग्रामीण इलाक़ों में ज़रा सा भी असर नहीं था।’
प्रबुद्ध सिंह
05 Oct 2020
 जातियों का एक विश्लेषण
प्रतीकात्मक तस्वीर

हाथरस गैंगरेप की पीड़िता को चार आरोपियों द्वारा इतना गहरा ज़ख़्म दिया गया कि वह बच नहीं पायी। 29 सितंबर को उसने दम तोड़ दिया। ये चारों आरोपी पीड़िता के गांव की एक दबंग जाति, राजपूत जाति से हैं। जिस दिन पीड़िता की मौत हुई, ठीक उससे एक दिन पहले, यानी पांच साल पहले 28 सितंबर को राजपूतों के नेतृत्व में एक भीड़ द्वारा दादरी के बिसाहड़ा गांव के मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या कर दी गयी थी।

हालांकि सामूहिक बलात्कार की शिकार पीड़िता कृषि कामगारों के परिवार और वाल्मीकि जाति से थीं, वहीं मारे गये अख़लाक़ एक लोहार और मुसलमान थे। कुछ लोगों ने इस बात को लेकर बार-बार चिंता जतायी है कि इस तरह के अपराधों पर रिपोर्ट करते समय जाति और धर्म को उजागर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में टकराहट और ‘दूरियां’ पैदा होती हैं। दूसरी तरफ़ यह भी सच है कि बलात्कार, हत्या और इसी तरह के भीषण अपराधों के कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसका जाति या सांप्रदायिक टकराहट से कोई लेना-देना भी नहीं रहा है। हालांकि, ग़ौर किए जाने वाली एक अहम बात यह है कि हाथरस या दादरी में जो कुछ भी हुआ, वे वास्तव में नफ़रत से पैदा होने वाले अपराध थे, और इसके ख़िलाफ़ खुलकर बोलने, समझने और लड़ने की ज़रूरत है।

मेरियम-वेबस्टर शब्दकोश नफ़रत पर आधारित अपराध को उन विभिन्न अपराधों (जैसे संपत्ति पर हमला या नुकसान) के रूप में पारिभाषित करता है,जो अपराध ‘पीड़ित के साथ किसी समूह (जैसे रंग, पंथ, लिंग या यौन उन्मुख आधारित समूह) के सदस्य के तौर पर दुश्मनी से प्रेरित हों। भारत के लिहाज़ से जाति और सांप्रदायिक शत्रुता पर आधारित यह नफ़रत से पैदा होने वाला अपराध एक कठोर वास्तविकता हैं। हाल के दिनों में हिंदुत्व की राजनीति के वर्चस्व में उफ़ान, और पुराने और नये दुश्मनों की लगातार होती तलाश ने इस स्थिति को और बिगाड़ दिया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अक्सर 'हिंदुत्व की प्रयोगशाला' क़रार दिया जाता रहा है- इस इलाक़े का सांप्रदायिक दंगों और जातिगत हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है, जिस कारण समाज और भी अस्थिर और खंडित हो गया है। एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राज्य, राजनीतिक नेतृत्व और राज्य तंत्र से अपेक्षित कार्रवाई यानी इन तनावों पर अंकुश लगाने की अपेक्षा की जाती है,लेकिन इसके बजाय इन्होंने इस तरह के शत्रुतापूर्ण रवैये को न सिर्फ़ पनाह दी है, बल्कि इसे बनाये रखा है और यहां तक कि इसमें इन तत्वों की भागीदारी भी रही है। 1987 के मेरठ दंगों के दौरान हाशिमपुरा नरसंहार के घाव का वे निशान, जब प्रांतीय सशस्त्र पुलिस दल (PAC) के जवानों ने हाशिमपुरा के 42 मुस्लिम युवकों को उठाया और उनकी सामूहिक हत्या कर दी थी, हमारी सामूहिक स्मृति में आज भी हरे हैं। इस इलाक़े में हिंसा और दंगे इतने सामान्य हो गये हैं कि वे हमारे जीवन में एक क्रूर मज़ाक बनकर रह गये हैं- बच्चों की तरह हम अक्सर आपस में मज़ाक करते  रहते हैं कि मेरठ में दंगे हमारा राष्ट्रीय खेल हैं !

इस इलाक़े के इतिहास का एक अहम मोड़ 2013 का मुज़फ्फरनगर दंगा था। इसके पहले सभी बड़े दंगे शहरी इलाक़ों तक सीमित थे, जिनका ग्रामीण क्षेत्रों में ज़रा सा भी असर नहीं था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलनों की अपनी अजीब-ओ-ग़रीब राजनीतिक ख़ासियत रही है, जिसका नेतृत्व विभिन्न दबंग जाति आधारित किसान संगठनों का एक ऐसा गठबंधन करता रहा है, जिसके नेता पहले चौधरी चरण सिंह थे और बाद में इसका नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत ने किया।

जिनके पास ज़मीन थी, उनकी सबसे बड़ी पहचान किसान की ही थी, और इस पहचान की वजह से इन आंदोलनों से सांप्रदायिक तनाव में कमी आती थी। हालांकि, 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र को मिलने वाला राज्य का संरक्षण तेज़ी से बंद होना शुरू हो गया और कृषि से होने वाली आय में भी तेज़ी से गिरावट आनी शुरू हो गयी। इसने उस आर्थिक आधार को ही हिलाकर रख दिया,जिस पर दबंग जाति के किसानों ने ख़ुद को लामबंद और संगठित किया था, और इस चलते इस इलाक़े में किसान आंदोलनों लगातार कमज़ोर होता गया।

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक घटते कृषि जोत के साथ-साथ कृषि आय में होने वाली कमी के कारण भी इन दबंग जातियों के आर्थिक आधार के सामने ख़तरा पैदा हो गया है और उसे चुनौती मिल रही है। हालांकि, इन दबंग जातियों का विशिष्ट उपभोग और ग़ैर-मामूली ख़र्च में कोई कमी नहीं आयी है, क्योंकि यह उनकी सामाजिक हैसियत को बनाये रखने के लिए अहम है। इससे उनके उपभोग की आदतों और जीवन शैली को पूरा करने को लेकर उनपर ज़बरदस्त आर्थिक दबाव की स्थिति पैदा हो गयी है, और जिससे इन दबंग जातियों के सदस्यों की चिंतायें बढ़ गयी हैं, यह स्थिति जाति की गहनता और सांप्रदायिक गोलबंदी में बदल गयी है। इस इलाक़े में लेखक के ख़ुद के कार्य के दौरान दबंग जाति के परिवारों को यह कहते हुए अक्सर सुना गया है कि दलित युवा राजपूत युवाओं से कहीं बेहतर हालात में हैं, क्योंकि वे शारीरिक श्रम करने के लिए आसानी से शहरों का रुख़ कर सकते हैं, जबकि राजपूत युवा इसके बनिस्पत घर पर बेकार बैठना पसंद करेंगे, क्योंकि इन नौजवानों के लिए शारीरिक श्रम उनकी हैसियत के माफ़िक नहीं है। आरक्षण विरोधी पूर्वाग्रह और दलितों के प्रति जातिगत वैमनस्य के औचित्य के रूप में राजपूतों की तरफ़ से इस तरह की धारणायें सामने इसलिए रखी जाती हैं, क्योंकि वे ख़ुद को अपनी सामाजिक हैसियत का ही ‘शिकार’ हो जाने का दावा करते हैं!

यह इस सिलसिले में है कि 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदुत्ववादी उन्माद के बीज बोने में बड़ी संख्या में दबंग जाति के इन युवाओं की भागीदारी देखी गयी थी। सहारनपुर के एक गांव में इस लेखक की मुलाक़ात एक ऐसे राजपूत लड़के से हुई थी, जिसने आरएसएस के एक पंडित कार्यकर्ता को इसलिए डांट पिलायी थी, क्योंकि उन्हें ख़ुद ही वह सब काम करना पड़ा था, जिन्हें आरएसएस को करना था। पूछताछ करने पर पता चला था कि उस राजपूत लड़के और उसके दोस्तों ने गायों को वध के लिए ले जाने के संदेह में एक मुस्लिम शख़्स को पकड़ लिया था और उसकी पिटाई कर दी थी। जातिगत प्रभुत्व में निहित सांप्रदायिक भीड़ का एक फ्रेंकस्टीन का राक्षस बनाया गया है। (‘फ्रेंकस्टीन’ मेरी शेली द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है, जिसमें एक दैत्याकार इंसान की ईजाद की जाती है और फिर जटिलतायें बढ़ती चली जाती हैं। दरअस्ल,यह उपन्यास औद्योगिक क्रांति में आधुनिक मानव के विस्तार के खिलाफ एक चेतावनी देता है।)

अब यह कोई ढकी-छुपी बात तो रह नहीं गयी है कि जब से अजय सिंह बिष्ट (योगी आदित्यनाथ) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, तबसे राजपूतों की पैठ सरकार और राज्य मशीनरी, दोनों के भीतर हुई है और इसे लेकर वे मुखर भी रहे हैं। इस जातिगत भाईचारे का विस्तार अपराधियों को बचाने तक है, यहां तक कि उन्हें नायक के तौर पर भी पेश किया जाता है। दादरी के मॉब लींचिंग मामले के एक आरोपी, विशाल सिंह को मार्च 2019 में भाजपा की उस चुनावी रैली की अगली पंक्ति में बैठे देखा गया था, जहां योगी आदित्यनाथ ने पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी सरकार पर ‘बेशर्मी से उन ग्रामीणों की भावनाओं को दबाने’का आरोप लगाया था, जो लिंच करने वाली भीड़ का हिस्सा थे। उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार की तरफ़ से राज्य के सभी अनधिकृत बूचड़खानों को बंद करने का आदेश दिया गया है (इस तरह, भीड़ द्वारा मॉब लींचिंग की घटना के कथित मक़सद को सही ठहराते हुए)), और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोग भाजपा के शासन में शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं!

यह बात राज्य सरकार द्वारा उस सामाजिक मंज़ूरी और राजनीतिक संरक्षण के सिलसिले में है, जिसके तहत न सिर्फ़ घृणित अपराध किये जा रहे हैं, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। ये दबंग जातियां अब अपने सामाजिक नियंत्रण को बनाये रखने के लिए बढ़ती जातिगत हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद के साथ दबाव बनाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अपनी कमज़ोर होती पकड़ की भरपाई कर रही हैं। जब तक हमारे ग्रामीण समाजों को संक्रमित करने वाली इस समस्या के मूल को गंभीरता से नहीं लिया जाता है और इसे दुरुस्त नहीं किया जाता है, तब तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हालत बद से बदतर होते रहेंगे।

लेखक दिल्ली स्थित अंबेडकर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पीएचडी अध्येता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

From Muzaffarnagar, Dadri to Hathras: An Anatomy of Dominant Castes in Western UP

muzaffarnagar riots
dadri lynching
Hathras Gangrape
Uttar pradesh
caste politics
UP Caste
Western UP

Trending

डिजिटल मीडिया पर अंकुश, नवदीप-शिव दमन और राज्यों के चुनाव
खोज ख़बरः प बंगाल पर इतनी मेहरबानी के मायने!, नौदीप को रिहाई पर सुकून
एमसीडी उपचुनाव: वेतन में हो रही देरी के मद्देनज़र नगरपालिका कर्मचारियों की सारी उम्मीद मतदाताओं पर टिकी
आधे युवा बेरोज़गार
मज़बूत होती किसान-मज़दूरों की एकता
सोशल/डिजिटल मीडिया दिशा-निर्देशों के बारे में 6 ज़रूरी सवाल

Related Stories

यूपी: कृषि क़ानूनों के विरोध में गांव-गांव एकजुटता, बीजेपी नेताओं को लौटना पड़ा उल्टे पांव
अब्दुल अलीम जाफ़री
यूपी: कृषि क़ानूनों के विरोध में गांव-गांव एकजुटता, बीजेपी नेताओं को लौटना पड़ा उल्टे पांव
23 February 2021
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आलाकमान जहाँ एक ओर अपने नेताओं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खाप प्रमुखों तक अपनी पहुँच बनाने को
abhisar sharma
न्यूज़क्लिक टीम
किसान को इज़्ज़त, युवा को रोज़गार दो !
22 February 2021
udit raj
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
अब उदित राज पर एफ़आईआर
20 February 2021
उन्नाव/ लखनऊ:  उन्‍नाव जिले की पुलिस ने असोहा थाने के बबुरहा में दलित लड़कियों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में ट्विटर

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • Urmilesh
    न्यूज़क्लिक टीम
    डिजिटल मीडिया पर अंकुश, नवदीप-शिव दमन और राज्यों के चुनाव
    27 Feb 2021
    मीडिया के डिजिटल प्लेटफार्म और ओटीटी कहे जाने वाले मंचों को विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार ने गुरुवार को नयी गाइडलाइन्स के नाम पर मीडिया नियंत्रण के नये तंत्र का ऐलान किया है. इसका क्या मतलब और…
  • Bhasha Singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    खोज ख़बरः प बंगाल पर इतनी मेहरबानी के मायने!, नौदीप को रिहाई पर सुकून
    27 Feb 2021
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने क्रांतिकारी संत रैदास की निर्भीक वाणी को याद करते हुए कहा कि अन्नदाता की उपेक्षा मोदी सरकार के जनविरोधी पक्ष को ही उजागर कर रही है। साथ ही पश्चिम बंगाल में आठ…
  • आधे युवा बेरोज़गार
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधे युवा बेरोज़गार
    27 Feb 2021
    भारत में शहरों में रहने वाले 20-24 साल के आयु वर्ग में से 48% बेरोज़गार हैंI देशभर में 25% से ज़्यादा ग्रेजुएट युवा बेरोज़गार हैंI
  • मज़बूत होती किसान-मज़दूरों की एकता
    न्यूज़क्लिक टीम
    मज़बूत होती किसान-मज़दूरों की एकता
    27 Feb 2021
    संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसानों ने सभी धरना स्थलों पर किसान-मज़दूर एकता दिवस मनाया। यह एकता धर्म और जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर तीनों कृषि क़ानूनों सहित तमाम जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ खड़ी…
  • पर्यावरण की स्थिति पर सीएससी की रिपोर्ट : पर्यावरण विनाश के और क़रीब
    सुमेधा पाल
    पर्यावरण की स्थिति पर सीएससी की रिपोर्ट : पर्यावरण विनाश के और क़रीब
    27 Feb 2021
    इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘वैश्विक महामारी कोरोना ने एक दूसरी क्रूर हक़ीक़त को सामने ला दिया है। इस संकट ने ग़रीब-गुरबों पर सबसे बुरा असर डाला है। अनुमान है कि इस महामारी के फ़ैलने से रोज़ाना 12,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें