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लीबिया में रूस को चुनौती देने के लिए NATO की वापसी

ट्रंप प्रशासन ने अगले हफ़्ते G-7 देशों की बैठक अमेरिका में बुलाने का फ़ैसला लिया है, ताकि सभी मुद्दों पर अपने हिसाब से लाभ कमाया जा सके। लीबिया भी इनमें से एक होगा।
लीबिया

लीबिया में शह और मात का बड़ा खेल चालू हो चुका है। अपनी रणनीतिक निष्क्रियता के बाद अब अमेरिका सक्रिय भूमिका में आ गया है। इस हफ़्ते की शुरुआत में अमेरिका ने रूस पर खुद से जुड़े लड़कों के ज़रिए लीबिया में ख़लीफा हफ्तार की मदद करने का आरोप लगाया। हफ्तार लीबिया के पूर्वी इलाके का जंगी सरदार है।

26 है कि दिए एक अभूतपूर्व वक्तव्य में अमेरिका अफ्रीका कमांड (AFRICOM) ने कहा कि लीबिया संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार को तुर्की द्वारा सैन्य मदद देने के बाद हफ्तार की त्रिपोली पर अधिकार करने की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। इस पृष्ठभूमि में रूसी जंगी विमान पूर्वी लीबिया स्थित एक हवाई अड्डे पर पहुंचे हैं, जिस पर हफ्तार का नियंत्रण है।

AFRICOM ने दावा किया है कि यह रूसी जहाज हफ्तार के लिए लड़ रहे रूसी लड़कों की मदद के लिए आक्रामक हमला करेंगे। इस रूसी जंगी लड़ाकों के समूह को वैगनर समूह खा जाता है। यह एक निजी सैन्य दस्ता है। पश्चिमी विशेषज्ञ इसे रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के करीबी येवगेनिय प्रिगोझिन से जोड़ते हैं।

अपने वक्तव्य में AFRICOM के कमांडर ने कहा कि "रूस लीबिया में आने पक्ष में स्थिति करने कि कोशिश कर रहा है। जैसा उन्हें मैंने सीरिया में करते देखा, अफ्रीका में भी वे रूसी सरकार समर्थक वैगनर लड़ाकों जैसे दस्तों की तैनाती कर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहें हैं। लंबे वक्त तक लीबिया में जारी विवाद में रूस अपनी पूरी भूमिका की बात से बचता रहा है, लेकिन अब इससे इंकार नहीं किया जा सकता।" 

AFRICOM ने इसके बाद सोशल नेटवर्क के ज़रिए सेटेलाइट तस्वीरें और  दूसरी जानकारी प्रकाशित की है। इसमें बताया गया,"मई में कई दिनों तक रूस से मिग 29 और SU-24 उड़ान भरते रहे। उस वक़्त सभी जंगी विमानों पर रूसी संघ की वायुसेना की मुहर थी। जैसे ही वो पूर्वी लीबिया स्थित खेमैमीन हवाई अड्डे पर उतरे, उन्हें दोबारा पेंट कर दिया गया, ताकि उन पर रूसी पहचान ना रहे। उन्हें रूसी सैन्यकर्मी सीरिया से लीबिया तक उड़ा कर ले गए।  यहां वे ईंधन भरने के लिए पूर्वी लीबिया में तोब्रुक के पास उतरे। यहां से कम से कम 14 नए बिना पहचान वाले विमान अल जुहरा हवाई अड्डे पर पहुंचे।

 2011 में नाटो के हस्तक्षेप के बाद मुअम्मर गद्दाफी के सत्ता से हटा दिया गया था। तब से ही तेल से भरपूर लीबिया में खून खराबा चालू है। वहां जारी जंग की यूरोपीय और क्षेत्रीय ताकतें भड़का रही हैं। यह ताकतें अपने हितों के लिए भिन्न समूहों का समर्थन करती हैं। लेकिन यहां अमेरिका ने जानबूझकर केवल रूस को अपने निशाने पर लिया है।

बल्कि यहां तक स्थितियां धीरे धीरे बनाई गई हैं। सात मई को  अमेरिकी गृह विभाग के अधिकारियों ने "मध्य पूर्व में रूसी कार्रवाई" विषय पर खास ब्रीफिंग दी, जिसका केंद्र लीबिया में बिगड़ते हालातों के लिए रूस की जिम्मेदार बताया गया। कहा गया कि सीरिया से लाए गए लड़ाकों की मदद से रूस ऐसा कर रहा है।

यह ब्रीफिंग लीबिया पर लगे प्रतिबंधों के ऊपर एक गुप्त UN  
 रिपोर्ट आने के बाद आई है। इस गुप्त रिपोर्ट में वैगनर समूह को हफ्तार कमांड की "आक्रामकता कई गुना बढ़ाने वाली ताकत" के तौर पर बताया गया। कहा गया कि इससे "स्थिति में काफी तनाव" आ गया है और "लीबिया में मानवीय संकट गहरा गया है।"

UN रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए गृह विभाग के अधिकारी क्रिस रॉबिंसन ने कहा कि "वैगनर समूह को अक्सर लोग रूसी सरकार की निजी सुरक्षा कंपनी मान लेते हैं। लेकिन यह रूसी सरकार का एक सस्ता और काम खतरे वाला हथियार है, जिसे वह अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस्तेमाल करती है।" रॉबिंसन ने दावा किया कि "यह समूह बहुत भारी और अग्रणी हथियार है।" लीबिया में कि गई इसकी कार्रवाई दिखती है कि यह कोई निजी सुरक्षा कंपनी नहीं है।

 ब्रीफिंग में हिस्सा लेने वाले, सीरिया के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जिम जैफरी ने पत्रकारों से कहा,"अमेरिका को लगता है कि रूस, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के साथ मिलकर नागरिक सेना (मिलिशिया) और हथियारों को लीबिया पहुंचाने का काम कर रहा है।".

कुल मिलकर अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने नई अमेरिकी नीति को दिशा दे दी है। यह 14 मई को तब भी साफ हो गया, जब 'इटालियन ला रिपब्लिका' के साथ एक इंटरव्यू में NATO  सेक्रेटरी जनरल जेंस स्टोलनबर्ग ने कहा कि उनका संगठन लीबिया में सरकार को समर्थन करने के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा था,"लीबिया में हथियार रखने पर प्रतिबंध है, सभी पक्षों को इसका पालन करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि UN समर्थित लीबिया की सरकार और हफ्तार को एक ही पैमाने पर मापा जाए। इसलिए नाटो त्रिपोली में फायेज़ अल सराज के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार है।" 

जैसे ही स्टोलनबर्ग का इंटरव्यू आया, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने उनसे फोन पर बातचीत कर लीबिया के मामले पर विमर्श किया। नाटो के मुताबिक़ स्टोलेनबर्ग ने एर्डोगन से कहा,
" नेशनल एकॉर्ड के तहत बनी सरकार के प्रधानमंत्री की मांग पर नाटो सुरक्षा और रक्षा संस्थानों के निर्माण में लीबिया की मदद करने के लिए तैयार है। लीबिया में नाटो का सहयोग राजनीतिक और सुरक्षा स्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया जाएगा।इसे संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रयासों के साथ आपसी समन्वय और सहयोग में दिया जाएगा।

 दो दिन बाद 16 मई को स्टोलेनबर्ग लीबिया के प्रधानमंत्री से बातचीत कर चुके थे। स्टोलेनबर्ग कोई मुक्त ताकत नहीं हैं। नाटो वॉशिंगटन से अपने आदेश लेते हैं। साफ है कि अमेरिका लीबिया में नाटो को हस्तक्षेप की रणनीति के तौर पर अपनाने वाला है। नाटो के ऐसे हस्तक्षेप का मतलब होगा कि पश्चिमी गठबंधन अफ्रीका में पहुंचने वाला है 

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लीबिया का राजनीतिक नक्शा

पश्चिमी विश्लेषण के मुताबिक़ लीबिया में रूस के मजबूत होने से भूमध्यसागर क्षेत्र में  नाटो का प्रभुत्व कम होगा। 26 मई को यूरोप और अफ्रीका में अमेरिकी वायुसेना के कमांडर ने कहा कि अगर रूस लीबिया में स्थाई तौर पर तटरेखा हासिल कर लेता है तो लंबी दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम के लिए यह बड़ा कदम होगा। इससे दक्षिण में अपनी टुकड़ी तक पहुंच के लिए नाटो को खतरा खड़ा हो सकता है।

 इस बात के भूटब्ज इशारे मिले हैं कि हफ्तार को हथियारों और पैसे उपलब्ध सुनिश्चित करवाने वाला UAE अब दोबारा अपनी कार्यप्रणाली पर विचार कर रहा है। ऐसा अमेरिका के दबाव के चलते किया जा रहा है, जो रूस को अलग थलग करने की कोशिश में है। पर UAE और तुर्की के आपसी विरोध की बारीकियों को देखते हुए लगता है कि यह तात्कालिक रणनीतिक बदलाव तक सीमित भी हो सकता है।

हफ्तार का दूसरा बड़ा समर्थक इजिप्ट है। इजिप्ट ने आतंकी समूहों के खिलाफ़ हफ्तार को राजनीतिक, कूटनीतिक, सुरक्षात्मक समर्थन के साथ रसद अपोटी भी जारी रखी है। भले ही इजिप्ट सैन्य तौर पर लीबिया में सीधा ना उतरे, पर हफ्तार और इजिप्ट की सरकार के बीच मजबूत सहयोग जारी है। दूसरी तरफ़ रूस और इजिप्ट के बीच समन्वय भी मजबूती से अनवरत चालू है। 

इजिप्ट का अनुमान है कि हाल में हफ्तार द्वारा अपने पैर मोर्चे से पीछे हटाना एक कूटनीतिक कदम है, ताकि तुर्की की एयर स्ट्राइक के बाद अपने बचे हुए हथियारों और उपकरणों को समेटा जा सके।

इतना तय है कि लीबिया में नाटो का हस्तक्षेप रूस को कतई पसंद नहीं आएगा। लीबिया में रूस के गहरे राजनीतिक और आर्थिक हित हैं। अमेरिका द्वारा रूसी विमानों पर लगाए गए आरोपों से पता चलता है कि रूस भी अपनी तैयारी मजबूत कर रहा है। 

 अमेरिका की रणनीति रूस को पूर्वी भूमध्यसागर के इलाकों से निकालने की है। इसमें सीरिया भी शामिल है। इसलिए तुर्की और अमेरिका की गलबहियां आजकल ज्यादा हो रही हैं। तुर्की ने इसलिए लीबिया में नाटो के हस्तक्षेप का स्वागत किया है।

इतना कहना पर्याप्त होगा कि लीबिया के मुद्दे पर तुर्की और अमेरिका आज एक ही खेमे में हैं। तुर्की के साथ अपने भविष्य के संबंधों और सीरिया में स्थिति को लेकर रूस को चिंतित होने की पर्याप्त वजह हैं। दिलचस्प है कि रूस और सीरिया ने पूर्वी भूमध्यसागर में ता नौसैनिक अड्डे पर पिछले हफ़्ते एक नौसैनिक अभ्यास किया। ताकि अपनी सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।

सीरिया पर अमेरिका के नए कदम बताते है कि चीन से बढ़ते तनाव के बावजूद रूस को रोकने की अमेरिकी रणनीति पूरे चरम पर है। लीबिया में चौथी पीढ़ी के जंगी विमानों की तैनाती ने साफ कर दिया है कि मॉस्को नाटो को हस्तक्षेप की स्थिति में जवाब देने के लिए तैयार है।

लीबिया में बढ़ते तनाव के बीच फ्रांस के विदेश मंत्री जीन यवेश ले ड्रियन ने 27 मई को फ्रेंच सीनेट पैनल के सामने भाषण देते हुए "लीबिया के सीरिया बनने" की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि संकट गहराता जा रहा है।

NATO का लीबिया में एक अहम लक्ष्य यूरोप में प्रवासियों की बढ़ती तादाद को रोकना भी होगा। दूसरी तरह से कहें तो लीबिया में अमेरिका द्वारा नाटो के हस्तक्षेप की रणनीति में यूरोपीय संघ का भी बहुत कुछ दांव पर लग गया है। इससे मॉस्को और पश्चिम में आने वाले भविष्य में किसी तरह का समन्वय और मुश्किल हो जाएगा।

दूसरी तरफ अटलांटिक के दोनों तरफ़ (अमेरिका और यूरोपीय देशों में) की साझेदारी मजबूत होगी, जो लंबे वक़्त से बनती और बिगड़ती जा रही थी। यह निश्चित ही अमेरिका के हिसाब से रहेगी। ट्रंप प्रशासन ने अगले हफ़्ते G-7 देशों की बैठक अमेरिका में बुलाने का फैसला लिया है, ताकि सभी मुद्दों पर अपने हिसाब से लाभ कमाया जा सके। लीबिया भी इनमें से एक होगा।

साभार- इंडियन पंचलाइन

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

NATO Returns to Libya to Challenge Russia

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