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मणिपुर से लौटी NFIW की टीम का आरोप ये ''राज्य प्रायोजित हिंसा'' है 

'भारतीय महिला फेडरेशन' की एक टीम 28 जून से 1 जुलाई तक मणिपुर का दौरा कर लौटी और आज उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मणिपुर के रिलीफ़ कैंप की आंखों देखी सुनाई और पूछा आख़िर चुप क्यों है सरकार? 
Conference

पिछले दो महीने से मणिपुर जल रहा है, रह-रह कर हो रही हिंसा में लोगों के मारे जाने की ख़बरें आ रही हैं, लेकिन असली तस्वीर अब भी साफ नहीं हो पा रही है। मरने वालों का सही आंकड़ा क्या है? बेघर हुए लोगों की संख्या कितनी है? कितने गांव तबाह हुए हैं? रिलीफ कैंपों में पनाह लेने वालों की संख्या कितनी है?

जैसा की देखा जाता है कि किसी भी तरह की हिंसा में सबसे ज़्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है, ऐसे में मणिपुर में क्या हालात है ये एक बड़ा सवाल है। कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब आज दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित 'भारतीय महिला फेडरेशन' (National Federation of Indian Wowen) की तरफ से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मिले।

NFIW की तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम मणिपुर से लौटी

दरअसल NFIW की एक तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम मणिपुर से लौटी है। इस टीम में NFIW की जनरल सेक्रेटरी एनी राजा, नेशनल सेक्रेटरी निशा सिद्धू और एक स्वतंत्र वकील दीक्षा द्विवेदी शामिल थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक मणिपुर दौरे के दौरान ये टीम चुराचांदपुर, बिष्णुपुर के अधिकारियों से मिलीं, 6 रिलीफ कैंपों का दौरा कर हिंसा प्रभावित लोगों से बातचीत की साथ ही महिलाओं के संगठन मीरा पैबीस ( Meira paibis) से भी मिलीं। 

इस टीम ने पाया कि मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा नहीं हो रही है, न ही वहां दो समुदायों के बीच फसाद है। बल्कि ये ज़मीन, संसाधनों की बात है, साथ ही वहां चरमपंथियों की मौजूदगी है। इन सबके पीछे सरकार का प्रो-कॉरपोरेट एजेंडा लगता है। 

''राज्य प्रायोजित हिंसा''

NFIW की जनरल सेक्रेटरी एनी राजा खुलकर बोलती हैं कि ये ''राज्य प्रायोजित हिंसा'' (State-sponsored violence) है। 

पहले की कुछ घटनाएं 

  • वह बताती हैं कि 3 मई की घटना अचानक ही नहीं हुई बल्कि इससे पहले भी कुछ घटनाएं हो रही थीं जो साफ संदेश दे रही थीं कि राज्य में अंदर ही अंदर कुछ चल रहा था। लेकिन उन घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। कई और पहलू भी थे। लेकिन जो मुख्य घटनाएं थी उनमें सबसे अहम थी। 
  • सरकार के द्वारा New Chekon में तीन चर्च को ये कहते हुए तोड़ दिया गया कि वे अतिक्रमण कर बनाए गए थे।
  • Kangpopki और Tengoupal इलाकों  वन संरक्षण (Forest Preservation) और वन्य जीव संरक्षण ( wildlife Protection) के नाम पर कुकी लोगों के घर हटाए गए। 
  • फिर मैतेई लोगों को ST का दर्जा देने का मुद्दा उठ गया। 

और फिर 3 मई को चुराचांदपुर में निकाली गई शांति रैली के बाद हिंसा भड़क गई। जिसका फायदा चरमपंथियों ने उठाया। ज्यादातर घर तीन और चार मई को जलाए गए। इन सबके बीच सूबे के मुख्यमंत्री कहीं नहीं दिखे जिसे लेकर दोनों (मैतेई और कुकी) ही समुदायों में गुस्सा है। 

 NFIW की टीम ने सुनाई रिलीफ़ कैंप की आंखो देखी 

  • इस टीम ने अपने दौरे में पाया कि ज्यादातर रिलीफ कैंप मामूली सरकारी मदद के साथ सिविल सोसाइटी के लोग चला रहे हैं। 
  • इन कैंपों में रहने वाले ज़्यादातर आम लोग हैं ये लोग खेतों में काम करने वाले और दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले हैं। 
  • रिलीफ कैंपों में एक महीने के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक रह रहे हैं। 
  • यहां गर्भवती महिलाएं भी हैं, यहां रहने वाले लोगों को न तो सही से मेडिकल सुविधा मिल पा रही है और न ही ठीक से खाना, पीने के लिए साफ पानी नहीं है, लड़कियों और महिलाओं को सेनेटरी पैड मिलने में भी दिक्कत हो रही है।
  • यहां रह रहे लोगों को अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता सता रही है। 
  • साथ ही लोगों को ये भी नहीं पता की उनके नुक़सान को लेकर किसी तरह की कोई FIR भी दर्ज हुई है कि नहीं,  न ही किसी तरह के मुआवज़े के बारे में इन्हें पता चल पा रहा है। 

मणिपुर का एक रिलीफ कैंप, साभार: NFIW

रिलीफ़ कैंप में दर्दनाक कहानियां 

मणिपुर से लौटी इस टीम के पास बहुत सी दर्दनाक कहानियां थीं। निशा सिद्धू ने कुछ डरा देने वाली पीड़ितों की आपबीती सुनाई ''हम एक रिलीफ कैंप गए वहां एक लड़की मिली उसने बताया कि जब गांव पर हमला हुआ तो वे लोग भागने लगे लेकिन इस दौरान उन्होंने देखा की पिता के ख़ून बह रहा है, उन्हें लगा कि कोई चोट लग गई होगी, वे डॉक्टर के पास गए तो पट्टी बांध दी गई, लेकिन ख़ून फिर भी नहीं रुका वे दूसरे दिन फिर गए तो पता चला कि उनके पिता को गोली लगी हुई है, हालांकि अब उनकी गोली निकाल दी गई है।'' निशा बताती हैं कि ज्यादातर कैंपों में स्वास्थ्य सुविधा दिखाई नहीं देती। वे कहती हैं कि ''दो महीने होने को जा रहे हैं सरकार को कम से कम अब नर्सिंग स्टाफ तो वहां भेज देना चाहिए था।''

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निशा सिद्धू ने बिष्णुपुर के मोईरंग ( Moirang) रिलीफ कैंप में रह रहे एक एक और परिवार की आपबीती सुनाई'' एक परिवार कैंप में था उन्होंने बताया कि उनके घर का एक लड़का कुछ सामान लेने कैंप से कुछ ही दूरी पर गया जहां उसपर हमला कर दिया गया और उसे मार दिया गया।'' 

हिंसा में मारा गया युवक, साभार: NFIW

वे आगे बताती हैं कि '' हम चुराचांदपुर गए वहां एक महिला 47 साल की थी, उसने बताया कि जब उनके गांव पर हमला हुआ था तो वे जंगल में भागी और पूरा एक दिन और एक रात वे एक पेड़ पर चढ़कर बैठी रही, जब उसे एहसास हुआ गोलीबारी नहीं हो रही है तो वे नीचे उतरी वे असम राइफल्स को मिली और उसे कैंप पहुंचाया गया।'' 

निशा और एनी राजा एक ही बात कहती हैं कि ''हम चाहे मैतेई लोगों से मिले या फिर कुकी से सभी का कहना था कि शांति होनी चाहिए लेकिन सरकार चुप है ऐसा क्यों?''

''लोगों की राय बदलती देखी''

एनी राजा बताती हैं कि ''हमने लोगों की राय बदलती देखी, 29 तारीख़ तक सभी मुख्यमंत्री का समर्थन कर रहे थे, जब हमने उनसे कहा कि मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं, वे क्यों नहीं लोगों को बचाते तो उनका बचाव करते हुए कई महिलाओं ने कहा कि ये उनके हाथ में ही नहीं है ये सब कुछ केंद्र से कंट्रोल हो रहा है। लेकिन 29 जून की शाम को जब एक शख़्स की लाश मार्केट में लाई गई तो उनका गुस्सा मुख्यमंत्री के खिलाफ भी फूट पड़ा। उन्होंने लाश को मुख्यमंत्री के आवास तक लेने जाने की कोशिश की और उस वक़्त से उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि कहां है मुख्यमंत्री? जिस दिन राहुल गांधी को रिलीफ़ कैंप जाने से रोका जा रहा था तो हमें एक शख़्स मिला जो बहुत ही गुस्से में था। वह कह रहा था मैं बीजेपी का कार्यकर्ता हूं आख़िर क्यों मुख्यमंत्री राहुल गांधी को रिलीफ कैंप जाने से रोक रहे हैं, मैं ये सवाल करूंगा? तो ये हमने अचानक लोगों के बर्ताव में बदलाव आता देखा।''

वे आगे कहती हैं ''दोनों तरफ से फायरिंग हो रही है, लेकिन डबल इंजन की सरकार चुप है? हमने वहां महिलाओं को बहुत ही मुखर देखा। उन्होंने मुख्यमंत्री को इसलिए इस्तीफा देने से रोका क्योंकि उनका कहना था कि ये सब आपका फैलाया हुआ है और आप इसे समेटे बग़ैर इस्तीफा नहीं दे सकते। आपको हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी उसके बाद आप जो चाहे कर सकते हैं'' 

इस टीम ने मणिपुर के हालात को देखते हुए कुछ मांगे भी रखी हैं जिसमें सबसे अहम है शांति की। टीम ने कहा कि -

  • जल्द से जल्द शांति लाने के लिए कदम उठाने ज़रूरत है। 
  • मुख्यमंत्री को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। 
  • जिनके जान माल का नुकसान हुआ है उनकी FIR दर्ज होनी चाहिए। 
  • रिलीफ कैंपों में सुविधाएं दी जाएं
  • लोगों का जल्द से जल्द पुनर्वास किया जाए
  • ऐसे इंतजाम किए जाए जिससे बच्चे अपनी शिक्षा जारी रख सकें। 

'भारतीय महिला फेडरेशन' की  टीम शायद पहली ऐसी टीम थी जो दिल्ली से मणिपुर का हाल लेने पहुंची थी, और उनका मानना था कि चाहे मैतेई समुदाय से बात की जाए, चाहे कुकी की दोनों समुदाय जिस एक बात पर सहमत दिखते हैं वह है सूबे में जल्द से जल्द शांति बहाली।

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अब यहां सवाल ये उठता है कि जिन दो समुदायों के बीच संघर्ष की बात कही जा रही है अगर वे ही शांति चाहते हैं तो फिर आख़िर शांति बहाली का पेंच कहां फंसा है? 

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