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मणिपुर हिंसा: कब थमेगा संघर्ष? क्या कुकी-मैतेई दिलों की दूरी दूर हो पाएगी?

मणिपुर इस वक़्त जातीय हिंसा के बेहद बुरे दौर से गुज़र रहा है। हमने दिल्ली आए 'ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन' के जनरल सेक्रेटरी केल्विन लालबोई से ख़ास बातचीत की। जानें, मणिपुर के हालात और शांति बहाली को लेकर उन्होंने क्या कहा :
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जंतर-मंतर पर कुकी समुदाय के प्रदर्शन के दौरान की तस्वीर

जलती हुई गाड़ियों से उठती लपटें, हरे-भरे जंगलों के बीच से उठता स्याह धुआं, बेबस लोग, बंदूकें ताने सुरक्षा बल के जवान, कभी हवाई फायरिंग तो कभी आंसू गैस उगलती बंदूकें...पहली नज़र में इन तस्वीरों को देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ये तस्वीरें हमारे ही देश के ख़ूबसूरत राज्य मणिपुर की हैं। जलते हुए मणिपुर की तस्वीरें बेशक चिंता पैदा करती हैं। 

पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 3 मई से शुरू हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। हिंसा में अब तक 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 50 हज़ार से ज़्यादा लोग बेघर हो गए। इंटरनेट बंद है, स्कूल-कॉलेज भी बंद हैं। जान बचा कर निकले लोगों ने रिलीफ कैंप में पनाह ली है। 

मणिपुर में रह-रह कर भड़क रही हिंसा में लोगों के जानमाल का नुक़सान हो रहा है। क़रीब दो महीने से चल रही हिंसा आख़िर क्यों थमने का नाम नहीं ले रही? 

इंफाल की सड़कों से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक लगातार कभी मैतेई तो कभी कुकी समुदाय के लोग मदद की मांग कर रहे हैं लेकिन हालात जस के तस नज़र आते हैं।

बताया जाता है कि मणिपुर की 53 फ़ीसदी आबादी मैतेई है जो इंफाल के घाटी इलाक़े में रहती है जबकि नगा और कुकी ट्राइबल समुदाय 40 फ़ीसदी हैं और ये पर्वतीय इलाक़ों में रहते हैं।

मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग और इस मांग के विरोध ने इतने बड़े संघर्ष का रूप ले लिया की हालात बेकाबू हो गए। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे मणिपुर की तस्वीरें और वीडियोज़ डरा देने वाले हैं।

मणिपुर से क़रीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर में सबसे ज़्यादा हिंसा होने की बात कही जा रही है। मणिपुर से चार लोगों का एक ग्रुप दिल्ली पहुंचा जिसमें लोकसभा की पूर्व सांसद और मानवाधिकार कार्यकर्ता किम गांगटे भी शामिल हैं। इन लोगों के यहां आने का मकसद मणिपुर में शांति स्थापित कराने के लिए कोई रास्ता निकालना है। इसी के तहत ये लोग यहां मौजूद अपनी टीम के साथ बात करने, और साथ ही देश की राष्ट्रपति, गृहमंत्री, जनजातीय मामलों के मंत्री और मानवाधिकार समेत तमाम आयोगों को मणिपुर के हालात से अवगत कराने आए हैं।

इस ग्रुप में केल्विन लालबोई (K. Lalboi Neihsial) भी हैं। केल्विन लालबोई 'ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन (AMTU)’ के जनरल सेक्रेटरी हैं। हमने केल्विन से, मणिपुर के चुराचांदपुर से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक उनकी टीम की तरफ़ से की जा रही कोशिशों के बारे में बातचीत की। 

सवाल : अभी मणिपुर में कैसे हालात हैं?

जवाब : अभी आप चुराचांदपुर जाएंगे तो देखेंगे वहां घर जला दिए गए हैं, लोगों की संपत्ति को बर्बाद कर दिया गया है, वहां हालात काबू में नहीं हैं। अभी बता रहे हैं कि कल भी वहां के एक गांव में फायरिंग हुई है जिसमें लोगों के मरने की ख़बर है। खुलेआम कुकी लोगों की महिलाएं के लिए 'रेप' और 'हत्या' जैसी बातें कही जा रहीं हैं। वहां की सच्चाई बाहर ना आए इसलिए लोगों को वहां जाने से रोका जा रहा है। आपने देखा होगा कि राहुल गांधी को भी जाने से रोका गया, हालांकि वो तो नेता हैं, तो उनके जाने के इंतज़ाम किए गए। वे वहां के रिलीफ सेंटर गए, वो इंफाल के भी रिलीफ सेंटर गए, उन्होंने दोनों तरफ़ ( मैतेई और कुकी) के लोगों की बात सुनी। हम भी यहां ग्राउंड रियलिटी बताने ही आए हैं।

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सवाल : किस-किस से मुलाकात करने की कोशिश की गई और क्या मुलाकात हो पाई?

जवाब : हमने राष्ट्रपति, गृहमंत्री, ट्राइबल मिनिस्टर, लॉ मिनिस्टर से मिलने की कोशिश की लेकिन अब तक किसी से भी मुलाकात नहीं हो पाई है, ये सब बीजेपी के हैं। हमें नहीं पता कि हमसे क्यों नहीं मिला जा रहा है, ऐसा क्यों? इस बात की हमें बहुत पीड़ा है, ये तो निष्पक्षता नहीं हुई ना? जबकि उन्हें निष्पक्ष रहना चाहिए।

केल्विन बताते हैं कि मणिपुर में भी लोग बंटे हुए हैं। वे कहते हैं कि "लोग यहां दो तरफ़ बंट गए हैं एक वे हैं, जो चाहते हैं कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह इस्तीफा दे दें और दूसरे उनके समर्थक हैं, जो चाहते हैं कि वे मुख्यमंत्री के तौर पर बने रहें।" इसके अलावा केल्विन, कल पूरे दिन (30 जून) सीएम के इस्तीफे को लेकर चले घटनाक्रम को भी एक ड्रामा बताते हैं। वे सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि "इस्तीफा राष्ट्रपति या राज्यपाल को दिया जाता है लेकिन यहां तो महिला समर्थकों को बुलाकर उनके हाथ सौंपा जाता है ये मज़ाक लगता है।"

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हालांकि जब हमने उनसे पूछा कि सीएम के इस्तीफे पर उनकी क्या राय है तो उनका कहना था कि "हमें इससे मतलब नहीं है कि वे इस्तीफा दें या न दें, हमारी मांग है कि हमें अलग एडमिनिस्ट्रेशन चाहिए, बाकी उन्हें (सीएम बीरेन सिंह) जो करना है वे कर सकते हैं।

हमने सवाल किया, "क्या आपको इसका कोई समाधान दिखता है?”

इस सवाल के जवाब में उन्होंने लंबी बातचीत की लेकिन उसका निचोड़ यही था कि वे मैतेई लोगों के साथ नहीं रहना चाहते, वे भारत के सुपरविज़न में अलग एडमिनिस्ट्रेशन चाहते हैं।

इसके अलावा हमने उनसे तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ पर सवाल किया और पूछा कि अगर मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिल भी जाता है तो क्या दिक्कत है? उसपर उन्होंने कहा कि मैतेई लोगों को पहले से ही एससी और ओबीसी आरक्षण मिला हुआ है, लेकिन अगर उन्हें जनजाति का भी दर्जा मिल गया तो मणिपुर की जनजाति से सब कुछ छिन जाएगा। फिर उन्होंने ज़रा ठहर कर कहा कि "हमारे पास सिर्फ़ एसटी का दर्जा ही बचा है और अगर वो भी उन्हें ही मिल जाएगा तो ट्राइबल लोगों के लिए क्या बचेगा, कुछ नहीं"

सवाल : दो महीने होने जा रहे हैं लेकिन हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही, आपको क्या लगता है इसकी क्या वजह हो सकती है?

जवाब : ऐसा लगता है कि ये इसे जानबूझकर जारी रखना चाहते हैं, खुलेआम लोगों के हाथ में हथियार दिख रहे हैं, हथियार लूटे जा रहे हैं कैसे? जो दिख रहा है उसमें क़ानून व्यवस्था नज़र नहीं आती।

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लालबोई की बातों से साफ़ लग रहा था कि सूबे में भले ही शांति हो जाएगी लेकिन मैतेई और कुकी लोगों के दिलों में पड़ी दरार जल्द भरने वाली नहीं है। वहीं इन सबके बीच ये बात हैरानी पैदा करती है कि देश के एक राज्य में क़रीब दो महीने से हिंसा जारी है लेकिन सरकार उसे रोकने में नाकाम दिखाई देती है, क्या वाकई हिंसा रुक नहीं रही या कहानी कुछ और है?

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