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एनजीटी ने लगाई बनारस में गंगा की रेत पर टेंट सिटी के निर्माण पर रोक

''लोग सोचते हैं कि गंगा मेरे पाप धोएगी और सब चीज़ों का ख़याल रखेगी। वे भूल जाते हैं कि गंगा आपके पापों का ख़याल रखेगी। लेकिन आपके कचरे का नहीं। आपके प्रदूषण का नहीं।'’
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के बनारस में गंगा की रेत पर बनाई जाने वाली टेंट सिटी पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह अंतरिम स्टे अगली सुनवाई तक के लिए दिया गया है। अक्टूबर के बाद दूसरी बार बनारस में टेंट सिटी बसाने का काम शुरू होने वाला है। एनजीटी कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और वाराणसी विकास प्राधिकरण को आड़े हाथ लेते हुए तल्ख टिप्पणी की और कहा, ''गंगा निर्मलीकरण के नाम पर एक तरफ आप मनमाना धन खर्च कर रहे हैं और दूसरी तरफ सब बर्बाद कर रहे हैं।''

नई दिल्ली स्थित नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में 21 सितंबर 2023 को चार जजों की खंडपीठ ने बनारस में अक्टूबर के बाद बसाई जाने वाली टेंट सिटी के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए 30 अक्टूबर तक के लिए स्टे दे दिया। अगली सुनवाई में उत्तर प्रदेश पर्यावरण विभाग के मुख्य सचिव और यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को तलब किया गया है। बनारस के अधिवक्ता तुषार गोस्वामी ने गंगा की रेत पर टेंट सिटी बनाने के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की है। एनजीटी में याची की ओर से बनारस के जाने-माने अधिवक्ता सौरभ तिवारी पैरवी कर रहे हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चेयर परसन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, विशेषज्ञ सदस्य डा.ए.सेंथिलवेल और डा.अफरोज अहमद की पीठ ने टेंट सिटी मामले की सुनवाई की। इस पीठ ने टेंट सिटी पर कई सवाल खड़े किए और उस बाबत संबंधित विभागों से जवाब तलब किया। इस मामले की अगली सुनवाई अब 30 अक्टूबर 2023 को मुकर्रर की गई है। इससे पहले अक्टूबर के बाद दूसरी बार बसाई जाने वाली टेंट सिटी के निर्माण पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश पारित किया। एनजीटी कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अधिवक्ता से पूछा कि आपने अभी तक टेंट सिटी के लिए एनओसी क्यों जारी नहीं की और जारी करेंगे तो उसका आधार क्या होगा? ट्रिब्युनल ने यह भी कहा कि एक तरफ गंगा नदी पर हजारों रुपये खर्च कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सब कुछ बर्बाद करने पर आमादा हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ की नई दिल्ली में सुनवाई चल रही है। अधिवक्ता सौरभ तिवारी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये कोर्ट में उपस्थित हुए और बहस की। एनजीटी कोर्ट में सुनवाई का ब्योरा देते हुए अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने न्यूजक्लिक से कहा कि टेंट सिटी के मामले को ट्रिब्युनल गंभीरता से ले रहा है। सुनवाई के दौरान वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिवक्ता से कहा कि हम गलत मंशा को नहीं बता रहे हैं लेकिन साफ-साफ कहना चाहते हैं कि इस तरह के प्रोजेक्ट से पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। कोर्ट ने वीडीए से पूछा कि गंगा के तल में कोई भी निर्माण आखिर कैसे हो सकता है और उसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है?'’

अधिवक्ता सौरभ तिवारी कहते हैं, ''टेंट सिटी के बाबत वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की ओर से कोर्ट में यह जवाब दिया गया है कि टेंट सिटी आम जनता को कनेक्ट करने की एक पहल है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि इस परियोजना में आम आदमी कहां है? टेंट सिटी की इंट्री फीस ही चालीस से पचास हजार रुपये है। इसके कॉटेज के महंगे चार्ज का भुगतान तो आम आदमी कर ही नहीं पाएगा। इतनी भारी-भरकम धनराशि आखिर आम आदमी कहां से अफोर्ड कर पाएगा? यह यह तो सिर्फ धनवानों को कनेक्ट करने की परियोजना है। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि आपकी इस योजना में आम गरीब आदमी कहां से पैसे दे पाएगा?''

''नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कछुआ सेंच्युरी को लेकर भी टिप्पणी की और कहा कि कछुआ सेंच्युरी को कागज पर हटा देने से अथवा डी-नोटिफाई कर देने से क्या कछुआ बनारस से चले गए? जब एक बार किसी भी इलाके को सेंचुरी घोषित कर दिया तो आप उनसे कतई नहीं हटा सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि टेंट सिटी के चलते रिवर मार्सोलाजी और गंगा की धारा और जल जीवों को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। एनजीटी कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पर्यावरण सचिव और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव के अधिवक्ता से पूछा कि टेंट सिटी आबाद करने के लिए क्या कोई एनओसी जारी की गई थी? संबंधित महकमों का जवाब नहीं मिलने पर एनजीटी ने दोनों महकमों से जवाब तलब किया। साथ ही यह भी कहा कि एनएमसीजी और दूसरे महकमों की ओर से गंगा नदी से जुड़े जो भी नोटिफिकेशन हैं, उन पर तीन हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करें। इस मामले में हम एक पखवारे में फैसला करेंगे।''

अधिवक्ता सौरभ तिवारी कहते हैं,''टेंट सिटी को लेकर लोगों के जेहन में है कि इससे बहुत से लोगों का रोजगार चला जाएगा लेकिन सवाल यह है कि आज गंगा नदी है तभी रोजगार है। जब नदी का अस्तित्व ही नहीं बचेगा तो आने वाली पीढ़ियां कैसे जिंदा रह पाएंगी? आज का रोजगार कल का भविष्य चौपट करेगा। गंगा में धार्मिक आयोजन के लिए कहीं भी रोक टोक नहीं है। ऐसे में गंगा के जरिये व्यावासायिक काम लिए स्थायी अथवा अस्थायी निर्माण की अनुमति कहीं नहीं दी जा सकती है। गंगा पर पैसा कमाने वाले बहुत लोग हैं लेकिन वो आवाज नहीं उठा रहे हैं। मीडिया में बयान देने भर से कुछ भी नहीं होने वाला है। इसके लिए हर मोर्चे पर डटकर काम करना पड़ेगा। लोग सोचते हैं कि गंगा मेरे पाप धोएगी और सब चीज़ों का ख़याल रखेगी। वे भूल जाते हैं कि गंगा आपके पापों का ख़याल रखेगी। लेकिन आपके कचरे का नहीं। आपके प्रदूषण का नहीं। साल 1986 से अब तक गंगा निर्मलीकरण के नाम पर 2,500 करोड़ रुपये से ज्यादा ख़र्च किए जा चुके हैं। गंगा की सफ़ाई में केवल पैसा बहाने से स्थिति नहीं बदलेगी।''

सौरभ कहते हैं, "पिछले वित्तीय वर्ष में वाराणसी में गंगा किनारे दो निजी कंपनियों निरान और प्रवेग ने टेंट सिटी स्थापित किया था। बनारस में गंगा किनारे बसाया गया तंबुओं का शहर रसूखदारों का लग्जरियस होटल सरीखा था। एक कॉटेज से 25-30 हज़ार रुपये तक वसूले गए थे। कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी के आयोजकों ने शादियां कराईं। पवित्र नदी गंगा की अस्मिता तार-तार होती रही। टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं भूजल पुनर्भरण, नदी की जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यों को ख़राब करती हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों की प्राचीनता और पवित्रता को सबसे पहले उनकी रक्षा और सुरक्षा करके ही संरक्षित किया जा सकता है, न कि उनके अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ करके। बनारस की टेंट सिटी में गंदगी के निस्तारण का प्रापर इंतजाम नहीं किया गया था। गंगा की बदहाली के लिए बनारस के पर्यावरणविदों और प्रबुद्ध नागरिकों ने भी गंगा पार बने टेंट सिटी को ज़िम्मेदार माना है।"

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. ओम शंकर कहते हैं, ''टेंट सिटी नौटंकी है। इसकी जगह हेल्थ सिटी और एजुकेशन सिटी बनाई जानी चाहिए। गंगा पहले से ही प्रदूषित है। टेंट सिटी बसा रहे हैं तो सबका रजिस्ट्रेशन कीजिए। रेवेन्यू सरकार के खाते में जाना चाहिए। बनारस धर्म से ज्यादा स्वास्थ्य की नगरी है। शिक्षा और स्वास्थ की नगरी को पर्यटन की नगरी में क्यों बदला जा रहा है? नए प्रयोग से कबीर, रैदास और बुद्ध की परंपरा टूट रही है। भारत कुछ पूंजीपतियों का देश बन गया है। दो-चार लोग अमीर और बाकी सभी गरीब हो रहे हैं।''

(लेखक बनारस के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।)

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