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बनारस में फिर मोदी का दौरा, क्या अब विकास का नया मॉडल होगा "गाय" और "गोबर"? 

मोदी ने बनारस दौरे पर दिए अपने भाषण में यह नहीं बताया कि डबल इंजन की सरकार के विकास से किस वर्ग के लोगों की आमदनी बढ़ी? चाहे वो किसान हो, मजदूर हो या फिर व्यापारी, कोई इस स्थिति में नहीं है कि वो यह कह सके कि मोदी-योगी ने यूपी में विकास की जो गंगा बहाई है उसमें डुबकी लगाने से उनके सारे कष्ट दूर हो गए।
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बनारस में दस दिन के भीतर गुरुवार को दूसरी मर्तबा आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 35 मिनट के भाषण में सिर्फ डबल इंजन की सरकार का गुणगान किया और गाय व गोबर को विकास के नए मॉडल के रूप में परोसा। मौका था पिंडरा विधानसभा क्षेत्र के करखियांव में अमूल डेयरी प्लांट और 2100 करोड़ की परियोजनाओं शिलान्यास-लोकार्पण का। मोदी ने अपनी जनसभा में विपक्ष पर सधे हुए तीर चलाए और कहा, "हमारे यहां गाय, गोबर-धन की बात करना कुछ लोगों ने गुनाह बना दिया है। गाय उनके लिए गुनाह हो सकती है, हमारे लिए माता है, पूजनीय है। मैं जब काशी और उत्तर प्रदेश के विकास की बात करता हूं तो कुछ लोगों को ज्यादा ही कष्ट होता है। ये वे लोग हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति को जाति, वर्ग और मजहब के नजरिए से ही देखा है। बनास डेयरी प्लांट जब तैयार हो जाएगा तो पूरा बनारस और आसपास के लाखों किसानों को फायदा होगा। यहां आइसक्रीम और मिठाइयां भी बनेंगी। यानी, बनारस की लस्सी और छेने की एक से बढ़कर एक मिठाइयां और लौंगलता का स्वाद बढ़ जाएगा।"

पीएम मोदी यहीं नहीं रुके। दावा किया, "हमारा देश साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये का दूध-उत्पादन करता है। यह धनराशि गेहूं और चावल के उत्पादन से भी ज्यादा है। पूर्वांचल के किसान न केवल दूध से, बल्कि गोबर से भी मोटा मुनाफा कमा सकेंगे। दूध से भी ज्यादा कमाई गोबर से होगी। रामनगर का बायो गैस प्लांट किसानों से महंगा गोबर खरीदेगा। उससे जो खाद बनेगी, वह कम कीमत में किसानों को मिलेगी।" 

पराग डेयरी का क्या हाल कर रखा है?

मोदी की जनसभा के बाद त्वरित टिप्पणी करते हुए जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप कुमार "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "पीएम के भाषण में विकास की गाथा सिर्फ सुनने में लच्छेदार लगती है। आम जनता जब अपने हालात पर गौर करती हैं तो उसे जमीन-आसमान का फर्क समझ में आने लगता है। मोदी ने अपने भाषण में यह नहीं बताया कि डबल इंजन की सरकार के विकास से किस वर्ग के लोगों की आमदनी बढ़ी? चाहे वो किसान हो, मजदूर हो या फिर व्यापारी, कोई इस स्थिति में नहीं है कि वो यह कह सके कि मोदी-योगी ने यूपी में विकास की जो गंगा बहाई है उसमें डुबकी लगाने से उनके सारे कष्ट दूर हो गए। खुद डबल इंजन की सरकार के आंकड़े भी यही बताते हैं कि यूपी लगातार पिछड़ता जा रहा है। नीति आयोग के आंकड़े मोदी सरकार के विकास के नंगे सच को कई बार बयां कर चुके हैं। हमें तो मोदी के विकास के दावे और मौजूदा हालात में तनिक भी सामंजस्य नहीं दिखता। मोदी सरकार की नीति और कार्यक्रमों सूक्ष्मता से देखें तो साफ पता चलता है कि देश की गरीब जनता के बजाय सिर्फ देश के चंद पूंजीपतियों की हैसियत में इजाफा हुआ है।"

प्रदीप आगे कहते हैं, "पूर्वांचल के लोग गाय की पूछ पकड़कर कष्ट की वैतरणी पार करने के लिए तैयार हैं। गोबर से स्नान करने के लिए भी तैयार हैं, लेकिन मूल सवाल यह है कि दोनों काम करने से क्या उनके हालत बदल जाएंगे? आखिर इसकी गारंटी-वारंटी कौन देगा? मोदी-योगी ने गुजरात की कंपनी बनास डेयरी की शान में कसीदे तो बहुत पढ़े, मगर उत्तर प्रदेश की पराग डेयरी के हालात का जिक्र करने की जरूरत आखिर क्यों नहीं समझी? जनता को यह बताना चाहिए था कि यूपी सरकार से संबद्ध सहकारी पराग डेयरी यहां पहले से चल रही है और पिछले पांच सालों में पराग डेयरी ने विकास की कौन सी यात्रा पूरी की? मोदी के भाषणों को सुनने से साफ पता चलता है कि उनकी बातों का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता है ही नहीं। जनता अच्छी तरह से जानती है कि विकास का पैमाना खाली पेट नहीं होता। आज बड़ी संख्या में लोगों को मुफ्त राशन देने की जरूरत पड़ रही है। यह इस बात की तस्दीक कर रहा है कि यूपी सरकार के विकास का मॉडल पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। मोदी सरकार की नीति और कार्यक्रमों सूक्ष्मता से देखें तो साफ पता चलता है कि देश की गरीब जनता के बजाय सिर्फ देश के चंद पूंजीपतियों की हैसियत में इजाफा हुआ है।"  

अखिलेश ने किया पलटवार

पीएम की रैली के तत्काल बाद सपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पलटवार किया। अखिलेश ने सोशल मीडिया पर बयान जारी करते हुए कहा, "सपा सरकार में लखनऊ, कानपुर और बनारस में जो अमूल प्लांट लगाने का फैसला किया था। उस पर अमल करने में भाजपा ने पूरा कार्यकाल बिता दिया। यह नंगा सच कैंचीजीवी भाजपा के लोग नहीं बता सकते, लेकिन अमूल डेयरी वाले सफेद सच बता देंगे।"

मोदी को सम्मानित करते अमूल के प्रतिनिधि

पीएम मोदी की जनसभा के लिए बनारस के तीस किमी दूर करखियांव तक सूचना विभाग ने हजारों होर्डिंग्स लगा रखा था। बाबतपुर और करखियांव के बीच रास्ते में जितनी भी दुकानें थीं, सभी पर आज सुबह से ही ताला लटक रहे थे। दुकानों के बाहर भाजपाई झंडे लगाए गए थे। बाबतपुर मार्ग पर पूछताछ करने के बाद ही लोगों को आने-जाने दिया जा रहा था। पूर्वाह्न 11 बजे के बाद इस राजमार्ग पर जहां-तहां बैरियर्स लगाकर आम जनता को आने-जाने से रोक दिया गया था। शाम चार बजे के बाद रास्ता खोला गया। भाजपा ने मोदी की सभा में दो लाख लोगों को जुटाने का दावा किया था, लेकिन कुर्सियां खाली ही रह गईं। जैसे ही मोदी की सभा शुरू हुई, तभी भीड़ घर लौटने के लिए आतुर दिखने लगी। देखते ही देखते बड़ी संख्या में लोगों ने सभा स्थल छोड़ दिया। इनमें ज्यादातर सरकारी कर्मचारी थे, जिन्हें सुबह सात बजे ही बुलाकर सभा स्थल पर बैठा दिया गया था। आरोपित है कि पिंडरा, बड़ागांव, हरहुआ और चिरईगांव प्रखंड के सेक्रेटरी से लगायत सभी सफाई कर्मियों को जबरिया सभा में बैठाया गया था। यह कहकर इनकी ड्यूटी लगाई गई थी कि गंदगी होने पर वो सफाई और लोगों को पानी पिलाने का काम करेंगे। दीगर बात है कि जिस काम के लिए सभा स्थल पर इन्हें तैनात किया गया था वह काम उनसे लिया ही नहीं गया। 

पीएम मोदी की सभा के लिए सुबह से ही नहीं खुलने दी गईं बाबतपुर बाजार की दुकानें

दस दिनों में पीएम का दूसरा काशी दौरा

दिसंबर के 17 दिनों में पीएम नरेंद्र मोदी का यूपी में 6वां दौरा था। चुनावी नजरिये से बनारस की जनसभा महत्वपूर्ण थी। यूपी के पूर्वांचल में कुल 26 जिलों में विधानसभा की 156 सीटें हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने 106 सीटों पर कब्जा किया था। सहयोगी दलों को मिलाया जाए तो यह आंकड़ा 128 सीटें भाजपा ने जीतीं थी। इसलिए बनारस में मोदी की रैली काफी अहम मानी जा रही थी। 

पीएम की जनसभा पर टिप्पणी करते हुए पिंडरा इलाके से कई बार विधायक रहे अजय राय ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "मोदी की सबसे बड़ी चिंता की वजह मैं हूं। वो हमसे इतने डरे हुए हैं कि पिंडरा इलाके में रोड शो करने चले आए। मैं तो कांग्रेस का मामूली कार्यकर्ता हूं। आखिर मोदी मुझसे इतना क्यों डरे हुए हैं। हम तो उन किसानों के लिए लड़ रहे हैं जिन्हें अभी तक मुआवजा नहीं मिल सका और अमूल की फैक्ट्री के लिए उनकी जमीनें घेर ली गई हैं। यह स्थिति तब है जब सुप्रीम कोर्ट किसानों के पक्ष में अपना फैसला सुना चुका है। प्रशासन किसानों का मुआवजा दिलवाने में तनिक भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। सच तो यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार सिर्फ अंबनी-अडानी के पैरोकार हैं। किसान आंदोलन से यह बात देश के सभी किसानों के घरों में पहुंच गई है कि वो कारपोरेट घरानों के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। किसानों, मजदूरों और गरीबों के साथ कभी खड़ा नहीं हुए। सभा स्थल पर असली गाय-भैस तो लाए नहीं जा सके, अलबत्ता प्लास्टिक की गायों का नमूना लाकर जरूर सजा दिया गया। जनता को भरमाने के लिए इवेंट मैनेजरों ने यह सब किया।"

भुला दिए गए आजादी के रणबांकुरे

किसान नेता धनंजय सिंह ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "जिस गांव में बनास डेयरी का शिलान्यास करने मोदी आए, वहां आजादी के लिए शहीद हुए 26 रणबाकुरों की शहादत का जिक्र करने की जरूरत तक नहीं समझी। हम उम्मीद कर रहे थे कि मोदी आएंगे तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम को चिरस्थायी बनाने के लिए कोई बड़ा प्रोजेक्ट जरूर देंगे, लेकिन उनके भाषणों से निराशा ही हाथ लगी। डेय़री के लिए जमीन देने वाले किसानों को अभी तक न तो मुआवजा और न ही नौकरी दिलाने के लिए कोई पहल शुरू की जा सकी है। अगर नौकरी और मुआवजा जल्द नहीं मिला तो भाकियू के बैनरतले इलाके के किसान अमूल डेयरी पर काम ठप कर देंगे।" 

किसान हितों के लिए आवाज बुलंद करने वाले समाजसेवी अफलातून कहते हैं. "लगता है कि सरकारी खजाने से होने वाली चुनावी रैलियों के खिलाफ हमें हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा। यह ऐसी सरकार है जिसका भरोसा, ठोस काम में नहीं, सिर्फ मेगा इवेंट में है। आज मोदी की जनसभा के लिए हजारों होर्डिंग्स पर पानी की तरह धन बहाया गया। विश्वनाथ कारिडोर के लोकार्पण जैसे धार्मिक कार्यक्रम में भी ये लोग भजन संध्या में सेक्सी गीत-गवनई से परहेज नहीं करते। सोचिए मोदी की रैली के चलते बच्चों को पढ़ाई का कितना नुकसान हुआ। रैली के लिए बसें चाहिए थीं, सो नौकरशाही ने बनारस, गाजीपुर, जैनपुर और चंदौली के स्कूलों में शीतलहर के नाम पर दो दिनों के लिए अवकाश घोषित कर दिया। आनन-फानन में रैली के लिए डेढ़ हजार बसें पकड़ ली गईं। आखिर विकास के नाम पर जनता को पलीता क्यों लगाया जा रहा है। इससे पहले आजमगढ़ में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को यूनिवर्सिटी के शिलान्यास कार्यक्रम में हिस्सा लेना था। वहां भीड़ जुटाने के लिए डीएम ने परिवहन के नाम पर लोक निर्माण विभाग से चालीस लाख रूपये ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को देने के लिए पत्र लिख डाला, जिसे विपक्ष ने एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया। समाजवादी पार्टी ने इस खबर को ट्वीट करते हुए लिखा कि गृहमंत्री की रैली, डीएम की भीड़, जनता का पैसा, बीजेपी की लूट। जनता का विश्वास खो चुकी भाजपा की रैलियों में स्वेच्छा से लोग नहीं आ रहे, इसलिए सरकारी संसाधनों और सत्ता का दुरुपयोग कर भीड़ जुटाने का हो रहा काम। 

होर्डिंग्स पर पानी की तरह बहाया गया पैसा

"अखिलेश बनाम मोदी" 

वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "शुरूआती दौर में यूपी में भाजपा नेताओं की कोई भी सभा होती थी तो लगता था कि पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश का मुकाबला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हो रहा है। अब धीरे-धीरे योगी सियासी नेपथ्य से गायब होते जा रहे हैं। अब यूपी अखिलेश बनाम मोदी हो गया है। हमें तो लगता है कि परीक्षार्थी भले ही योगी हैं, लेकिन चुनावी इम्तिहान पीएम नरेंद्र मोदी दे रहे हैं। बीजेपी और आरएसएस के लोग पहले योगी पर दांव खेल रहे थे और अब वो मोदी पर खेल रहे हैं। पिंडरा रैली में होर्डिंग्स की बाढ़ सी आ गई थी। उसे देखने से ही साफ हो गया था कि चुनाव जीतने के लिए ये लोग सब कुछ और कुछ भी करने पर उतारू हैं। पश्चिम में भाजपा की हालत पतली है, इसलिए मोदी मोदी पूर्वांचल को साधने के लिए बनारस में खूंटा गाड़कर बैठ गए हैं। सरकारी योजनाओं के जरिये मोदी-योगी विपक्ष पर निशाने साध रहे हैं। सभा में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है।"

"ग्रामीण इलाकों में महंगाई, बेरोजगारी, उज्ज्वला योजना के फोकट में बांटे गए गैस सिलेंडरों के शो-पीस बन जाने से लोग कुपित हैं। पूर्वांचल के किसान इस बात से ज्यादा नाराज है कि वो चाहकर भी खेती नहीं कर पा रहे हैं। छुट्टा पशु उनकी फसलों को चट कर जा रहे हैं। पिंडरा और बाबतपुर इलाके में इलाके में सांड़ों और नीलगायों का जबर्दस्त आतंक है। धान, गेहूं, अरहर और सब्जियों की खेती से किसान तौबा करते जा रहे हैं। अन्नदाता की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और भाजपा नेता सिर्फ लच्छेदार भाषणों से विकास का झूठा खम ठोंक रहे हैं।"  

"आठ साल से बटोर रहे झूठ की सौगात"

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "बनारस के लोग पिछले आठ सालों से सिर्फ झूठ की सौगातें ही बटोर रहे हैं। बनारसियों के जीवन में कोई भी बदलाव नहीं हो सका है। विकास का असली बैरोमीटर तो यह होता है कि आम आदमी की जिंदगी में सुधार आए, लेकिन इससे उलट तमाम जिंदगियों के आगे मुश्किलों का पहाड़ दिख रहा है। किसी फैक्ट्री का शिलान्यास करके चुनावी फिजा नहीं बदली जा सकती है। हर किसी को मालूम है कि यह सब चुनावी ड्रामा है। मौजूदा समय में लोकलुभावन घोषणाओं का कोई मतलब नहीं है। अबकी भाजपा के पिछले पांच साल के कामकाज की परीक्षा है और मोदी-योगी पांच साल आगे का रिकार्ड बजा रहे हैं। बनारस के पिंडरा में मोदी ने ऐसी कई परियोजनाओं की घोषणा की है जो अगले पांच सालों में शायद ही पूरी हो पाएंगी। इनके पास बताने के लिए कुछ भी नहीं है। इनसे लोग ऊबते जा रहे हैं। पहले की तरह मोदी में न वो आकर्षण है और न ही चुनावी फिजां बदलने का जादू। बनारसियों को पता है कि अमूल को लाने की योजना मुलायम और मायावती सरकार के समय बनी थी और शोहरत भाजपा ने लूटने की कोशिश की है।" 

विनय यह भी कहते हैं, "बीजेपी को समझ में नहीं आ रहा है कि उसे करना क्या है। मोदी के हर काम में दरबारी मीडिया को मास्टर स्ट्रोक दिख जाता है। लेकिन जनता को वो स्ट्रोक दिखता ही नहीं है। बीजेपी तय ही नहीं कर पा रही है कि उसे विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ना है अथवा हिन्दुत्व के रास्ते पर चलकर। जो लोग विकास और हिन्दुत्व के काकटेल को मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं, सही मायने में उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा है। नौजवानों की नौकरियां जा रही हैं। यूपी में भाजपा सरकार की छह साल की संविदा नीति श्रम कानूनों का माखौल उड़ाती दिख रही है। मोदी को तय कर लेना चाहिए कि वो किसका विकास करना चाहती है-इंसान का या फिर ईंट-पत्थरों का? मोदी-योगी सरकार की कोई स्पष्ट योजना समझ में नही आ रही है। पिछले पांच-सात सालों में यह सरकार नौजवानों के भविष्य के प्रति भरोसा पैदा नहीं कर पाई। वह अनिश्चय की कगार पर खड़ी है। ऐसे में मोदी-योगी का विकास कहां से झलकेगा? मोदी चाहे जितना सब्जबाग दिखाएं, विकास के झूठे मायाजाल में कोई फंसता नजर नहीं आ रहा है।

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