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स्मृति शेष: सुरेखा सीकरी उर्फ़ दादी मां यानी समानांतर सिनेमा के मज़बूत स्तंभ का ढहना

बहुत कम अभिनेता या अभिनेत्री होते हैं जिनकी काया भी बोलती है, अभिनय के मामले में सुरेखा सीकरी एक ऐसी ही अभिनेत्री थीं जिन्हे आज की पीढ़ी दादी मां के रूप में जानती और खूब प्यार करती थी।
सुरेखा सीकरी

बहुत कम अभिनेता या अभिनेत्री होते हैं जिनकी काया भी बोलती है, अभिनय के मामले में सुरेखा सीकरी एक ऐसी ही अभिनेत्री थीं जिन्हे आज की पीढ़ी दादी मां के रूप में जानती और खूब प्यार करती थी। रंगमंच की यह सशक्त हस्ताक्षर, समानांतर सिनेमा की मजबूत स्तंभ और जनमानस के दिलों में दादी मां के रूप में बसी 75 वर्षीय सुरेखा सीकरी जी आज हमारे बीच नहीं रहीं। आज शुक्रवार सुबह हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। वे काफी समय से बीमार थीं।

पिछले दिनों उन्हें तब देखा गया था जब वे 2018 की सुपरहिट फिल्म ‘बधाई हो’ के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड लेने व्हील चेयर पर आईं थी, इस दौरान सभी लोगों उन्हें स्टैंडिंग अवेशन दिया फिर वे चाहे अक्षय कुमार हो या विकी कौशल या फिर उनकी फिल्म के हीरो आयुष्मान खुराना।

सुरेखा जी को इसके पहले दो अन्य फिल्मों के लिए भी नेशनल अवार्ड मिल चुका था। इस अवार्ड के बाद उन्होंने कहा था कि ये अवार्ड तो लिखने वाली की कला पर है।

उनकी इस अवार्ड विनिंग फिल्म बधाई हो, को अमित रविंद्रनाथ शर्मा ने डायरेक्ट किया है। इस फिल्म में मां यानी नीना गुप्ता एक ऐसी उम्र में मां बनती हैं, जब अक्सर इस उम्र में महिलाएं दादी-नानी बनने की तैयारी कर रही होती हैं। इस बात को यह फैमिली कैसे डील करती है, इसी पर बेस्ड है ये फिल्म।

बड़ी उम्र के रोमांस पर आधारित इस फिल्म को शांतनु श्रीवास्तव और अमित धिल्दन ने बेहद खूबसूरती से लिखा है, इसी के साथ फिल्म में दादी के रूप में सुरेखा सीकरी के साथ नीना गुप्ता, गजराज सिंह, सान्या मल्होत्रा और आयुष्मान खुराना ने बेहद कमाल का काम किया है।

सुरेखा जी का जन्म 19 अप्रैल 1945 को दिल्ली के एक एयर फ़ोर्स अधिकारी के घर पर हुआ था, इनकी माँ एक टीचर थी लेकिन उनका बचपन अपनी सौतेली बहन परवीन सिकरी के साथ देहरादून, अल्मोड़ा और नैनीताल में बीता। उनकी इसी बहन की शादी 1970 में नामचीन एक्टर नसीरुद्दीन शाह से होने के कारण, सुरेखा जी, नसीर साब की रिश्तेदार के रूप में भी जानी जाती हैं।

शुरूआत में सुरेखा जी वैसे तो राइटर और जर्नलिस्ट बनने की तमन्ना रखती थीं लेकिन अपनी सौतेली माँ के कहने पर उन्होंने NSD का फॉर्म भर दिया। इस तरह 1968 में वे नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से एक्टिंग में ग्रेजुएट हो गई। इसके बाद उन्होंने पन्द्रह साल तक NSD की रेपेट्री में काम किया इस दौरान उन्होंने अनेको नाटकों में जबरदस्त रोल किए। इस समय उनके साथियों में ओम शिवपुरी, सुधा, रघुवीर यादव और मनोहर श्याम जोशी आदि शामिल थे।

समय के साथ वे थिएटर में एक बेहद दमदार एक्ट्रेस के रूप में मशहूर हो गई और इसी के साथ 1977 में उनकी पहली फिल्म के रूप में ‘किस्सा कुर्सी का’ उनके खाते में आई। इस फिल्म में ज़्यादातर NSD रेपेट्री के एक्टर्स ही कास्ट किये गए थे।

ये फिल्म 1978 में रिलीज हुई। इसे अमृतलाल नाहटा ने डायरेक्ट किया था। फिल्म में म्यूजिक जयदेव वर्मा ने दिया था।

यह फिल्म एक पोलिटकल सटायर थी , जिसके कारण तत्कालीन सरकार ने इमरजेंसी के दौरान इसे बैन कर सभी प्रिंट जब्त कर लिए थे।

फिल्म में सुरेखा सीकरी ने मीरा नाम की सोसलिस्ट का काम किया था इस फिल्म को करते हुए थिएटर की इस प्रसिद्ध एक्ट्रेस ने कहा था कि उस समय वे कंटीन्यूटी के बारे में कुछ नही जानती थी, कंटीन्यूटी मिस कर जाती थी जिससे काफी परेशानी होती थी।

बाद उन्होंने कई मशहूर फ़िल्में की लेकिन उनकी यादगार फिल्म रही 1986 में राजस्थानी फोक पर बेस्ड प्रकाश झा की अवार्ड विनिंग फिल्म ‘परिणति’। इस फिल्म में उन्होंने एक लीड रोल किया, तब भी वे अपने को सिनेमा से अनजान ही बोलती रहीं और कहती थी कि सिनेमा के बारे उन्हें कुछ नहीं पता था कि क्या कैसे करना है।

इसी साल 1986 में फिल्म डायरेक्टर गोविन्द निहलानी, भीष्म साहनी के सबसे प्रसिद्ध उपन्यास तमस पर एक फ़िल्म बना रहे थे। इस फिल्म के लिए उन्होंने सुरेखा जी को फ़ोन किया क्योकि सुरेखा अभी भी दिल्ली में रहकर ही काम किया करती और काफी समय बाद उन्होंने मुम्बई शिफ्ट किया था।

'तमस' में पार्टिशन के दौरान के माहौल को दर्शाया गया था। इस फ़िल्म में सुरेखा जी को 1988 के नेशनल अवार्ड में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का सिल्वर लोटस अवार्ड हासिल हुआ। यह फिल्म बाद में दूरदर्शन के धारावाहिक के रूप में टेलीकास्ट हुई।

इसी साल 1988 में उन्होंने दूरदर्शन के प्रसिद्ध सीरियल ‘भारत एक खोज’ में श्याम बाबू यानी लीजेंड फिल्म मेकर श्याम बेनेगल के डायरेक्शन में काम किया।

इसके अगले साल 1989 में सईद मिर्जा की मशहूर फिल्म ‘सलीम लंगड़े पे रो मत’ में सलीम के लीड रोल निभा रहे पवन मल्होत्रा की माँ का महत्वपूर्ण रोल किया जिसमें उन्हें बेहद सराहा गया और फिल्म को बेस्ट फिल्म और बेस्ट सिनेमेटोग्राफी का नेशनल अवार्ड भी हासिल हुआ। फिल्म में आशुतोष गवारीकर, नीलिमा अज़ीम और मकरंद देशपांडे आदि ने काम किया था ।

इसी समय उन्होंने एक ऑस्कर विनर डायरेक्टर बेर्नार्दो बेर्तोलुसी की हॉलीवुड फिल्म लिटिल बुद्धा में भी काम किया।

इसके बाद 1994 में उनकी फ़िल्मी जिंदगी में श्याम बेनेगल की महत्वपूर्ण फिल्म ‘मम्मो’ आई, जो श्याम बाबू की ट्रियोलाजी फिल्म की पहली कड़ी थी। इस फिल्म में फरीदा जलाल जहाँ टाइटल रोल में थी तो फैयाजी के बेहद अहम रोल में सुरेखा जी ने काम किया। इस रोल में उन्हें खूब सराहा गया और 1995 में उनके इस रोल के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड हासिल हुआ। फिल्म में वनराज भाटिया के म्यूजिक और जगजीत सिंह के गीत भी खूब सराहे गए।

इसके बाद 1996 में ‘मम्मो’ की अगली कड़ी श्याम बेनेगल जी ने ‘सरदारी बेगम’ में सुरेखा सीकरी जी को इदबल बाई का एक महत्वपूर्ण रोल दिया। उनके साथ फिल्म में अमरीश पूरी, किरण खेर ,रजत कपूर,हिमानी शिवपुरी,श्री वल्लभ व्यास, और कुमुद मिश्रा ने अहम् रोल निभाये। इस फिल्म को महेश भट्ट ने प्रोड्यूज किया था और खालिद मोहम्मद ने लिखा था।

इन फिल्मों के बाद सुरेखा जी समानान्तर सिनेमा का एक जाना पहचाना चेहरा बन गई थी लेकिन ऐसा भी नहीं कि उन्होंने कमर्शियल सिनेमा में काम नहीं किया। 1999 में उन्होंने आमिर खान की सुपरहिट फिल्म सरफ़रोश, में काम किया।

इसके बाद सुरेखा जी ने कई फिल्मों में काम किया। इसी बीच साल 2001 में श्याम बेनेगल ने अपने जीवन की सबसे बड़े बजट की फिल्म जुबेदा बनाई, जो मम्मो, और सरदारी बेगम के बाद उनकी ट्रियोलाजी फिल्म का तीसरा और अंतिम पार्ट था। इस फिल्म में वे सुरेखा सीकरी को एक महत्वपूर्ण रोल में कास्ट करना नहीं भूले, यह फिल्म खालिद मोहम्मद ने लिखी थी और इस फिल्म में मेन स्ट्रीम के एक्टर्स जैसे करिश्मा कपूर, रेखा, मनोज वाजपेयी, अमरीश पुरी, और शक्ति कपूर ने काम किया। म्यूजिक प्रसिद्ध संगीतकार ए आर रहमान ने दिया ।

यह फिल्म नाकामयाब अभिनेत्री जुबेदा बेगम के जीवन पर आधारित थी, जिन्होंने जोधपुर रियासत के हनवंत सिंह से विवाह किया था। इस फिल्म ने हिंदी में बेस्ट फीचर फिल्म का लिए नेशनल अवार्ड जीता।

इसके बाद उनकी एक महत्वपूर्ण फिल्म 2004 में रितुपर्णा घोष के डायरेक्शन में रेनकोट फिल्म में सुरेखा सिकरी के साथ मेन स्ट्रीम के स्टार्स अजय देवगन और ऐश्वर्या राय ने काम किया। इस फिल्म में प्रसिद्ध फिल्म मेकर गीतकार गुलज़ार साब ने भी कैमो रोल किया था ।

इसी साल उन्होंने अनुराग बसु के डायरेक्शन में कमर्शियल लव स्टोरी फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’, में काम किया। इस फिल्म में वे हीरो इमरान हाशमी की दादी के रोल में खूब जंची, फिल्म में दुसरे किरदारों में थे अनुपम खेर और दिया मिर्ज़ा। फिल्म को मुकेश भट्ट ने प्रोड्यूज किया था।

इसके अगले साल 2005 में सनी देवोल स्टारर एक और कमर्शियल फिल्म ‘बोले सो निहाल’ में उन्होंने काम किया। इस फिल्म को राहुल रवैल ने डायरेक्ट किया था और संजय छैल ने लिखा था ।

इसके बाद उनकी सुपरहिट कमर्शियल फिल्म की बात की जाये तो साल 2009 में अनुराग कश्यप की सुपरहिट फिल्म ‘देव D’ थी। इस फिल्म ने अनुराग समेत फिल्म से जुड़े लगभग सभी लोगो को फायदा पहुँचाया। फिल्म में मॉडर्न देवदास के रूप में अभय देवोल और उनकी लव इंटरेस्ट के रूप में माही गिल और कल्कि कोचलिन को लोगो ने खूब पसंद किया ।

फिल्म में अमित त्रिवेदी के सुपरहिट म्यूजिक के एक सांग ‘इमोशनल अत्याचार’ को गाते हुए नवाजदुदीन सिद्दीकी को भी देख सकते हैं। इस फिल्म ने उस साल के लगभग सभी अवार्ड्स अपनी झोली में डाल लिए थे।

उनके टेलीविजन में काम करने की बात की जाय तो उन्होंने कई सीरियल्स में काम किया। जिनमे प्रमुख रूप से 1986 में ‘तमस’, 1988 में ‘भारत एक खोज’ और फिर 1997 में ‘कभी–कभी’ का ज़िक्र किया जा सकता है लेकिन 1998 उनके जीवन के सबसे हिट सीरियल ‘बालिका वधु’ में दादी के रोल के रूप आया जिसने उन्हें घर-घर पहुंचा दिया।

यह सीरियल उन्होंने रिकार्ड 9 साल तक किया, इस दौरान उन्होंने दादी के रोल के लिए दो बार बेस्ट एक्ट्रेस टेलीविजन अवार्ड हासिल करने के साथ इसी सीरियल के लिए बेस्ट निगेटिव रोल का अवार्ड भी हासिल किया। इसी तरह 2015 में उन्होंने ‘एक था राजा एक थी रानी’ सीरियल के लिए भी बेस्ट निगेटिव रोल का अवार्ड हासिल किया।

सुरेखा जी को 1989 में संगीत नाटक अवार्ड से नवाजा गया था और उनकी शादी हेमंत रेगे से हुई थी। उनके बेटे राहुल सीकरी भी एक एक्टर हैं।

सुरेखा जी को अंतिम विदा...

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(लेखक वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक, निर्देशक एवं पत्रकार हैं)

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