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राजनीति नहीं समाधान की ज़रूरत : उत्तर प्रदेश में गोवंश संकट का विश्लेषण

20वीं पशुगणना के अनुसार यूपी में 11.84 लाख छुट्टा गोवंश है, यदि इस संख्या में बूढ़े गाय-बैल, अनुपयोगी गाय की संख्या को सम्मिलित कर ले तो प्रदेश में 19.03 लाख वो गोवंश है जिसका किसान भरण-पोषण नहीं कर सकता है, जिसके कारण वह अनुपयोगी गोवंश को खुला छोड़ दे रहा है |
stray cattle and cost on stray cattle in UP

उत्तर प्रदेश में आवारा या छुट्टा पशु एक बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं, इस समस्या से निबटने के लिए जो कदम प्रदेश की योगी सरकार ने उठाये वो पूरी तरह नाकाफ़ी नजर आये हैं, क्योंकि छुट्टा पशुओं की संख्या में कमी आने की बजाय यह समस्या और विकराल रूप धारण कर चुकी है और प्रदेश में अनुपयोगी गोवंश की संख्या में बेहताशा वृद्धि देखने को मिली है। 20वीं पशुगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 11.84 लाख छुट्टा गोवंश है, यदि इस संख्या में बूढ़े गाय-बैल, अनुपयोगी गाय की संख्या को सम्मिलित कर ले तो प्रदेश में 19.03 लाख वो गोवंश है जिसका किसान भरण-पोषण नहीं कर सकता है, जिसके कारण वह अनुपयोगी गोवंश को खुला छोड़ दे रहा है |

20वीं पशुगणना में उत्तर प्रदेश में पशुधन

उत्तर प्रदेश पशुधन संख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है। 20वीं पशुगणना 2019 के अनुसार 6.80 करोड़ पशुधन है, जिसमे गोवंशीय (गाय व बैल) और महिषवंशीय (भैस व भैंसा) की संख्या क्रमश: 1.9 करोड़ और 3.3 करोड़ हैं| इस लेख में हम उत्तर प्रदेश में गोवंश संकट का विश्लेषण करेंगे |

गोवंश हमेशा से कृषि व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। गौ हत्या पर पहले से बैन रहा है परन्तु केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद देश में ऐसा माहौल बन गया है कि कृषि-गोवंश का माहौल गड़बड़ा गया है। उत्तर प्रदेश में तो गोवंश कृषि तो और ज्यादा गहराया ही इसके साथ-साथ सामाजिक तानाबाना भी बिगड़ गया है। 20वीं पशुगणना के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पूरे प्रदेश में 11.84 लाख छुट्टा गोवंश है जो सड़कों पर खुला घूम रहा है और यह संख्या पिछली 19वीं पशुगणना से 17.3 प्रतिशत बढ़ी है |

इसे पढ़ें : विश्लेषण : यूपी-एमपी समेत 13 राज्यों में छुट्टा गोवंश में भारी बढ़ोतरी

गौवंश-कृषि संकट

20वीं पशुगणना में गाय-बैल के लिए अन्य केटेगरी और एक बार भी नहीं ब्याही गायों के अंतर्गत आंकड़े दिए हैं | इन दोनों केटेगरी के गोवंश की संख्या उत्तर प्रदेश में 7.18 लाख है जोकि किसान के लिए पूरी तरह अनुपयोगी है | इस प्रकार प्रदेश में छुट्टा गोवंश और अनुपयोगी गोवंश की संख्या 19.03 लाख है | उत्तर प्रदेश में अनुपयोगी गोवंश कुल गोवंश 10 प्रतिशत है| अगर हम जिलेवार देखे तो पूरे प्रदेश में 31 ऐसे जिले हैं जिनमे अनुपयोगी गोवंश जनपद के कुल गोवंश का 10 प्रतिशत से ज्यादा है |

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महोबा जिले में अनुपयोगी गोवंश कुल गोवंश का 48 प्रतिशत है, वही हमीरपुर में 29.5 प्रतिशत, चित्रकूट में 28.3 प्रतिशत, बस्ती में 23 प्रतिशत, बाँदा में 22 प्रतिशत, झांसी में 21.2 प्रतिशत, सिद्धार्थ नगर में 19.5 प्रतिशत, श्रावस्ती में 18.3 प्रतिशत, गोंडा में 17.8 प्रतिशत, कानपुर नगर जिले में 17.6 प्रतिशत, उन्नाव में 16.8 प्रतिशत, हरदोई में 15.5 प्रतिशत, लखनऊ तथा फतेहपुर में 15.2 प्रतिशत, ललितपुर और इटावा में क्रमश 14.3 प्रतिशत, खीरी में 13.9 प्रतिशत अनुपयोगी गोवंश है जनपद के कुल गोवंश का, यहां पर हमने कुछ ज़िलों का जिक्र किया है| पर यह छुट्टा गोवंश की समस्या उत्तर प्रदेश के समस्त जिलों में विकराल रूप धारण कर चुकी है जिसका ख़ामियाज़ा आमजन और किसानों को भुगतना पड़ रहा है |

number of Stray Cattle in UP.JPG

यह अन्य केटेगरी वो गाय और बैल आते हैं जो बूढ़े हो चुके हैं और उनसे गौपालक अथवा किसान को कोई आर्थिक लाभ नहीं है| इसके साथ ही पशुगणना में ही एक बार भी नहीं ब्याही गायों के आंकड़े दिए हैं, यह वो गायें है जो अपने प्रजनन करने की उम्र में तो हैं पर वो एकबार भी नहीं ब्याही हैं और इन गायों को दुधारू गायों की श्रेणी में भी नहीं रखा गया है।

ऐसे में किसान को बूढ़े गाय-बैल और जो गाय एकबार भी नहीं ब्यायी हैं, उनके पालने और भरण-पोषण पर भारी खर्च करना पड़ता जोकि किसान के लिए बहुत मुश्किल होता है और वह इन गाय-बैल को बेच पाने में भी असमर्थ होता है तो उसके लिए एकमात्र रास्ता बचता है कि वह अपने मवेशियों को खुला छुट्टा छोड़ देता है | और इसी वजह के चलते उत्तर प्रदेश में गोवंश की संख्या में पिछली पशुगणना से कमी आयी है, 19वीं पशुगणना 2012 में उत्तर प्रदेश में 1.96 करोड़ गोवंश थे जो अब 2019 की पशुगणना में घटकर 1.90 करोड़ हो गए है, गोवंश की संख्या में यह कमी 2.75 निगेटिव में रही हैं | पशुगणना के यह आंकड़े दर्शाते है कि किसान ने गोवंश को पालना ही कम कर दिया है |

छुट्टा गोवंश के कारण समस्याएं

छुट्टा गोवंश की संख्या में वृद्धि का एकमात्र कारण है कि किसान, गोवंश के उपयोगी न रह जाने की स्थिति में उनको पालने में असमर्थ है, और पहले अनुपयोगी हो जाने की स्थिति में वह इनको बेच देता था और उनके बदले दुधारू और उपयोगी गोवंश की खरीद कर लेता था परन्तु उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली सरकार के आने के बाद से गो-हत्या और बूचड़खानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस सरकार ने इस प्रतिबन्ध का सख्ती से पालन किया।

सभी ग़ैरक़ानूनी स्लाटर हाउस बंद करवा दिए लेकिन गौ संरक्षण के नाम पर अपने घटकों को राजनीति चमकाने के लिये खुली छूट दे दी जिसका परिणाम यह हुआ कि लिंचिंग की घटनाएँ आये दिन होने लग गईं, गाय के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को घृणा की नज़र से देखा जाने लगा। इस सबसे हुआ ये कि किसान गाय खरीदने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से भी कतराने लग गये।

गोवंश संरक्षण के लिए खर्च

छुट्टा पशुओं की समस्या के स्थायी समाधान करने के बजाय योगी सरकार ने राज्य के समस्त स्थानीय व शहरी निकायों में अस्थायी गौशालाओं बनवाने के आदेश दिया है जोकि इतनी बड़ी संख्या में छुट्टा गोवंश के लिए नाकाफ़ी है | और छुट्टा गोवंश के संरक्षण करने के लिए प्रतिदिन के हिसाब से प्रति गोवंश 30 रूपये देने की बात की है, गाय के भरण-पोषण पर निर्धारित यह धनराशि काफी कम है, जबकि कामधेनु योजना में प्रति गाय के लिए चारे व दाने पर होने वाला व्यय ज्यादा बताया है, एक गाय अपने शुष्ककाल (जब वह दूध नहीं देती है) तो प्रत्येक दिन करीब 17 किलो चारा व दाना खाती है और 17 किलो चारे व दाने की कीमत करीब 3-4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 50 से 70 रुपये होती है।

ऐसे में गाय सही से चारा न मिलने के कारण कुपोषण का शिकार होगी और बीमार रहेगी। राज्य सरकार ने पहले से ही संरक्षित गायों के केवल 70 प्रतिशत के भरण-पोषण के लिए अनुदान की बात कही है, ऐसे में स्थानीय निकाय जो पहले से ही सीमित संसाधनों में अपनी योजनाओं को चला रहे है वो इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ को कैसे वहन कर पाएंगे।

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स्रोत: 20वीं पशुगणना, पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार

यदि हम प्रदेश सरकार द्वारा घोषित 30 रुपये प्रतिदिन प्रति गोवंश के हिसाब से ही देखें तो यह राशि सालभर के लिए 10950 रुपये होती है, पर इसके आलावा एक गोवंश पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में संचालित कामधेनु योजना के अनुसार 4700 रुपये गोवंश के ऊपर दवाई, देखरेख के लिए मजदूरी, बिजली इत्यादि का खर्च भी आता है| इस प्रकार साल भर में एक गोवंश पर 15650 रुपये खर्च होंगे |

इस प्रकार पूरे प्रदेश के छुट्टा गोवंश पर होने वाले खर्चे को देखे तो यह 2979 करोड़ रुपये सालभर का होगा पर अगर हम योगी सरकार के बजट आवंटन को देखे तो योगी सरकार का यह गौ प्रेम दिखावा मात्र दिखाई पड़ता है क्योंकि जहाँ एक ओर सालभर के करीब 3 हजार करोड़ रुपयों की ज़रूरत है, वहीं बजट में बस 200 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं|

योगी सरकार से यह समझ पाने में चूक हो गयी कि उनके कदमों से किसानों को कितना नुकसान होगा। योगी की गो संरक्षण नीति के कारण प्रदेश के हर इलाके में छुट्टा घूम रहे गोवंश ने किसानों और अन्य सभी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। उनसे खेती को बड़ा नुकसान हो रहा है। इन पशुओं के चलते सड़कों पर दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। साथ ही, इनकी वजह से समाज में तेज हो रहे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से कानून-व्यवस्था भी बिगड़ रह रही है।

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