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पारिवारिक ख़र्च पर नया डेटा आमदनी की एक धूमिल तस्वीर पेश करता है

ग्रामीण इलाक़ों में चार व्यक्तियों के परिवार का औसत मासिक ख़र्च लगभग 8000 रुपये और शहरी इलाक़ों में यह 14,000 रुपये है। 
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11 साल के लंबे इंतजार के बाद, सरकार ने आखिरकार वह  सारांश डेटा जारी कर दिया है जो हर महीने प्रत्येक व्यक्ति उपभोग पर कितना खर्च करता है, जिसे औपचारिक रूप से मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) के रूप में जाना जाता है का पता लगाता है। चूंकि भारत में कोई आय सर्वेक्षण नहीं हुआ है, इसलिए यह उपभोग व्यय का डेटा ही है जो आमदनी/आय के प्रॉक्सी के रूप में काम करता है – इससे कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि कोई भी परिवार कितना कमा रहा है और उस आधार पर कितना खर्च कर रहा है।

डेटा खर्च का स्तर बेहद कम है जो कम आमदनी/आय की तरफ इशारा करता है, और ऐसा लगता है कि यदि इसमें कीमत को समायोजित कर लिया जाए तो दिखाता है कि पिछले 11 वर्षों में आय में बहुत कम वृद्धि हुई है क्योंकि उपभोग व्यय का आखिरी सर्वेक्षण 2011-12 में रिपोर्ट किया गया था। 

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति औसत मासिक उपभोग खर्च ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 3,773 रुपये और शहरी इलाकों में 6,549 रुपये था। ऐसा लग सकता है कि 2011-12 के बाद से इसमें काफी वृद्धि हुई है, जब ग्रामीण एमपीसीई 1430 रुपये और शहरी एमपीसीई 2630 रुपये थी। लेकिन यह वृद्धि भ्रामक है क्योंकि इसका अधिकांश कारण मूल्य वृद्धि को माना जा सकता है। यदि मौजूदा आंकड़ों को मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया जाए - उन्हें 2011-12 के मूल्य संदर्भ में व्यक्त करके देखें - तो वास्तविक तस्वीर सामने आती है।
 

Chartमुद्रास्फीति के इस तरह के समायोजन के बाद, जो उभर कर सामने आता है वह यह है। ग्रामीण इलाकों में, प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 2011-12 में 1430 रुपये से बढ़कर 2022-23 में 2008 रुपये हो गया है। यह केवल लगभग 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर है। शहरी इलाकों में, यह प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 2011-12 में 2630 रुपये से बढ़कर वर्तमान में 3510 रुपये हो गया है – जो सालाना केवल 3 प्रतिशत की वृद्धि दर है।

चार लोगों का एक परिवार कितना खर्च करता है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए बस इन संख्याओं को चार से गुणा करना होगा। इस प्रकार, ग्रामीण इलाकों में, ऐसे परिवार का औसत मासिक खर्च 2011-12 की कीमतों पर 8032 रुपये या मौजूदा कीमतों पर 15,092 रुपये होगा। इसी प्रकार, शहरी इलाकों में, चार सदस्यीय परिवार का, प्रति माह औसत खर्च 2011-12 की कीमतों में 10,520 रुपये या मौजूदा कीमतों पर 14,040 रुपये होगा। किसी भी स्थिति में, यह मोटे तौर पर उनकी संबंधित आय का भी माप होगा।

अमीर और गरीब के बीच चौड़ी होती खाई

सारांश डेटा में अमीर और गरीब के बीच असमानता की एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आती है। ग्रामीण इलाकों में, सबसे गरीब 5 फीसदी आबादी हर महीने उपभोग पर प्रति व्यक्ति केवल 1373 रुपये खर्च करती है, जबकि सबसे अमीर 5 फीसदी आबादी प्रति व्यक्ति 10,501 रुपये खर्च करती है। इसका मतलब है कि अमीर अभिजात वर्ग सबसे गरीब लोगों की तुलना में लगभग 8 गुना अधिक खर्च करता है।

शहरी इलाकों में भी ऐसी ही खाई है - सबसे गरीब 5 फीसदी प्रति व्यक्ति प्रति माह 2001 रुपये खर्च करते हैं जबकि सबसे अमीर 5 फीसदी लोग प्रति व्यक्ति 20,824 रुपये खर्च करते हैं। यानी सबसे अमीर का खर्च सबसे गरीब से करीब 10 गुना ज्यादा है। 

दरअसल आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी आबादी प्रति व्यक्ति प्रति माह 4000 रुपये से कम खर्च करती है जबकि शहरी इलाकों में 50 फीसदी आबादी प्रति व्यक्ति प्रति माह 5000 रुपये से कम खर्च करती है।

एससी/एसटी की सबसे कम आय

सारांश डेटा में विभिन्न सामाजिक समूहों में एमपीसीई का विवरण भी शामिल है। इससे पता चलता है कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्यों का प्रति व्यक्ति खर्च सबसे कम है जो उनकी कम आय के स्तर को दर्शाता है।

ग्रामीण इलाकों में, आदिवासियों (एसटी समुदाय के सदस्यों) का प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च 3016 रुपये, दलितों (एससी समुदाय के सदस्यों) का 3474 रुपये, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का 3848 रुपये और अन्य सभी का 4392 रुपये था, जिनमें तथाकथित 'उच्च जातियों' के साथ-साथ अन्य आस्थाओं के मानने वाले भी होंगे।

शहरी इलाकों में, आदिवासियों का प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च 5414 रुपये, दलितों का 5307 रुपये, ओबीसी का 6177 रुपये और अन्य सभी का खर्च 7333 रुपये था।

सरकारी कल्याणकारी योजनाएं कितनी मदद करती हैं?

इस सारांश रिपोर्ट का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसमें इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग डेटा दिया गया है कि कई सरकारी योजनाएं हैं जो लोगों को उपभोग की मुफ्त या सब्सिडी वाली वस्तुएं प्रदान करती हैं। इनमें पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत दिया जाने वाला मुफ्त अनाज शामिल भी है, जिसमें महामारी के दौरान सभी राशन कार्ड धारकों (और अन्य कमजोर वर्गों) को 5 किलो अनाज मुफ्त दिया गया था। इसमें लैपटॉप, मोबाइल हैंडसेट, साइकिल, स्कूल यूनिफॉर्म आदि जैसी अन्य मुफ्त वस्तुओं के लिए भी अनुमान लगाया गया है।

नतीजे आंखें खोलने वाले हैं। ग्रामीण इलाकों में, इन लागतों को मिलाकर प्रति व्यक्ति मासिक खर्च का अंतर केवल 87 रुपये है! इन लागतों के बिना, मासिक खर्च 3773 रुपये दर्ज किया गया था जबकि इन लागतों को शामिल करने पर यह 3860 रुपये था। यदि मौजूदा कीमतों को मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया जाए तो अंतर और भी कम हो जाता है – जो मात्र 46 रुपये रह जाता है। इसी तरह शहरी इलाकों में, कल्याणकारी योजनाओं की लाभों की लागत के साथ या उसके बिना मासिक खर्च के बीच का अंतर मात्र 62 रुपये प्रति व्यक्ति है। यदि मुद्रास्फीति समायोजन किया जाए तो यह और कम होकर प्रति व्यक्ति 34 रुपये हो जाता है।

इससे पता चलता है कि रेवड़ियों और मुफ़्त चीज़ों के बारे में प्रचार पूरी तरह ग़लत है। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि लोगों के बीच इतना संकट है कि छोटी-मोटी मदद भी लोकप्रिय सहारा बन जाती है और उन्हें बड़ी कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया जाता है।

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