नया ज्ञान : 2014 में मिली असली आज़ादी!
हाल में ही अभिनेत्री कंगना रनौत ने हमारा ज्ञानवर्धन किया है, और हमें बताया है कि हमें 'आज़ादी' तो असलियत में 2014 में ही मिली है। इससे पहले 1947 में मिली आज़ादी तो भीख में मिली आज़ादी थी। इसके पहले भी सरकारी पार्टी की एक उभरती हुई नेत्री ने भी हमारा ज्ञान बढ़ाया था कि 1947 में मिली आज़ादी तो 99 साल की लीज पर मिली आज़ादी थी। पर शायद वह हमें यह बताना भूल गईं कि सरकार जी ने इस 99 साल की लीज को 67 साल में ही, 2014 में ही पूरी आज़ादी में बदल दिया है।
वैसे कंगना ठीक ही कह रहीं हैं। किसी भी सरकार को इतनी आज़ादी आज से पहले, 2014 से पहले कभी भी नहीं मिली थी जितनी 2014 में बनी इस सरकार को मिली हुई है। बीच में इंदिरा गांधी ने अवश्य 1975 में आपातकाल लगा कर सिर्फ 19 महीने के लिए ही इतनी अधिक आज़ादी हासिल की थी। और देखो! इस सरकार ने, 2014 से बनी इस सरकार ने उतनी ही अधिक आज़ादी आज बिना आपातकाल लागू किए ही हासिल कर ली है। है न, कमाल की बात! इसलिए सच ही है, 2014 में ही असली आज़ादी मिली है।
2014 में जो आज़ादी मिली है, जो पूरी की पूरी आज़ादी मिली है, वह आज़ादी जनता को नहीं, सरकार जी को ही मिली है। 2014 के बाद तो जनता की बहुत सारी आज़ादी छिन ही गई है। वैसे भी जनता आज़ादी का करेगी भी क्या? जनता को तो अब सिर्फ सरकार जी के लिए, सरकार जी के ही कहने पर, लाइनों में लगने की, ढोल बजाने की, ताली बजाने की और दीए जलाने की ही आज़ादी मिली है। जनता को तो इतनी थोड़ी सी भी आज़ादी नहीं है कि वह अपनी स्थिति पर अपनी छाती ही पीट सके। जनता को तो बस इतनी सी ही आज़ादी है कि सरकार जी के लिए थाली पीट सके।
सरकार अब, 2014 से इतनी अधिक आजाद है जितनी अधिक आजाद पहले कभी नहीं थी। अब हमारी सरकार इतनी आजाद हो गई है कि वह हमारे द्वारा कमाए, हमारे द्वारा ही बैंक में जमा किए हमारे ही पैसे के लिए, हमें ही लाइनों में लगा देती है। हमारे द्वारा मेहनत से कमाए और जरूरत के लिए घर में रखे गए पैसे को एक ही झटके में बेकार कर, हमें पैसे पैसे के लिए मोहताज कर देती है। और दूसरी ओर हम जनता इतनी भी आजाद नहीं है कि इस बात पर उफ़ तक कर सके।
2014 की आज़ादी के बाद सरकारें, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें भी, इतनी आज़ादी पा चुकी हैं कि वे किसी को भी, कभी भी, कहीं भी गिरफ्तार कर सकती हैं। इस मामले में सभी सरकारें ठीक उतनी ही आज़ादी पा चुकी हैं जितनी आज़ादी इंदिरा गांधी को आपातकाल का कलंक लग कर मिली थी। और यह आज़ादी आज सरकारों को बिना ससम्मान मिल रही है। सरकार अब इतनी आज़ाद है कि लोगों पर बिना बात देशद्रोह की धाराएं लगा सकती हैं। और लोगों को जेल में डाल सकती हैं। लोगों को जेल में मार भी सकती है। और सरकार यह काम बूढ़े और युवा, सबके साथ कर सकती है। सरकार के पास आज लोगों की आज़ादी हरने के लिए पूरी आज़ादी है। सरकार को इस जेल में ठूंसने के काम के लिए इतनी अधिक आज़ादी 2014 से पहले कभी भी हासिल नहीं हुई थी।
अब सरकार को आज़ादी है कि वह जनता से जो मर्जी छिपाये। रफ़ाल विमान की कीमत तो छिपाये ही, प्रधानमंत्री केयर्स फंड में मिले पैसे का हिसाब भी छिपाये। इलेक्शन बॉन्ड के जरिए राजनैतिक दलों को मिले दान का हिस्सा छिपाये और कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा भी छिपाये। और जो सच जानने की, सच की तह में पहुंचने की कोशिश करे, उस पर इनकम टैक्स और ईडी के छापे पड़वाये। सचमुच इतनी आज़ादी, सरकार को जनता से इतना सबकुछ छिपाने की आज़ादी 2014 से पहले कहां थी।
सरकार को तो इस नई असली आज़ादी में, मतलब 2014 के बाद मिली आज़ादी में, झूठ बोलने की भी पूरी की पूरी आज़ादी है। सरकार जी और उनकी सरकार में शामिल सभी मंत्री, संतरी और चमचे, जब चाहे, जितना चाहे और जहां चाहे झूठ बोल सकते हैं। झूठ बोलने की इतनी आज़ादी भी कभी भी किसी भी सरकार को नहीं मिली थी जितनी अब प्राप्त हुई इस नई आज़ादी में सरकार जी को और उनकी सरकार को मिली है। सरकार जी की सरकार तो को कोविड की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से मरे लोगों की संख्या झुठला कर संसद तक में झूठ बोलने की आज़ादी है। 2014 में मिली आज़ादी के बाद बनी सरकार जी की सरकार और स्वयं सरकार जी इतिहास पर झूठ बोल सकते हैं, विज्ञान और तकनीक पर झूठ बोल सकते हैं, भूगोल पर झूठ बोल सकते हैं, अरुणाचल प्रदेश मैं चीन के अंदर घुस आने पर झूठ बोल सकते हैं, और कोरोना में मरे लोगों पर झूठ बोल सकते हैं। यही वह पूर्ण आज़ादी है जो हमने 2014 में पाई है।
2014 के बाद सरकार को मिली आज़ादी के तो कहने ही क्या! अब सरकार इतनी आजाद है कि उसने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव और पेट्रोल डीजल और रसोई गैस के घरेलू दामों में मौजूद संबंध तक को रहने नहीं दिया है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम धड़ाम से गिर रहे होते हैं तब देश के बाजार में पेट्रोल और डीजल के दाम, यह नई और पूरी आज़ादी मिली सरकार के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहे होते हैं। इस पूरी आज़ादी में सरकार को महंगाई बढ़ाने की भी पूरी आज़ादी मिल गई है।
इतनी आजाद सरकार भी 2014 के बाद ही मिली है कि वह दिल्ली की तरफ कूच कर रहे किसान आंदोलनकारियों पर पानी की बौछारें करवा दे, सड़कें खुदवा दे, बोल्डर लगाकर रास्ते बंद करा दे। और जब वे किसान दिल्ली के बाहर बार्डर पर पहुंच जाएं तो वे दिल्ली में ना घुस सकें, इसलिए सड़क पर कीलें ठुकवा दे, कंटीले तार लगवा दे और बैरिकेडिंग करवा दे। ठीक है आज सालभर के आंदोलन के बाद और लगभग 700 आंदोलनकारियों की मृत्यु के बाद सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए हैं। पर इस असली आज़ादी के बाद बनी सरकार के सरकार जी को किसानों ने भरोसे के इतना काबिल भी नहीं समझा है कि वे उनकी बात पर यकीन कर अपने घरों को वापस चले जायें।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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