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'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के पुरज़ोर समर्थक दो पत्रकारों को 'नोबेल शांति पुरस्कार'

सत्ता और विरोधियों से टकराने के चलते पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े पत्रकारों ने अपनी जानें गंवाई हैं। इस बीच विश्व के दो पत्रकारों को मिला नोबेल शांति पुरस्कार उन पत्रकारों की आवाज़ को और शक्ति देगा जो 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
Nobel Peace Prize

एक तरफ जहां दुनिया भर के ज्यादातर देश 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' जैसे मौलिक अधिकार को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ते वहीं दूसरी तरफ निडरता के साथ इस आवाज को बुलंद करने के लिए विश्व के दो अग्रणी पत्रकारों को साल 2021 का नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ये पुरस्कार पाने वालों में फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेस्सा और रूस के पत्रकार दिमित्रि मुरातोव शामिल हैं। इनके नाम की घोषणा शुक्रवार को नॉर्वेजियन नोबेल समिति के अध्यक्ष बेरिट रीस-एंडरसन ने की। इन विजेताओं को गोल्ड मेडल के साथ दस मिलियन स्वीडिश क्रोनर (1.14 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) की राशि दी जाएगी।

यह पुरस्कार राशि पुरस्कार के निर्माता, स्वीडिश आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल द्वारा छोड़ी गई वसीयत से दी जाती है जिनकी मृत्यु 1895 में हुई थी। बता दें कि सत्ता और विरोधियों से टकराने के चलते पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े पत्रकारों ने अपनी जानें गंवाई हैं।

पत्रकारों के प्रतिनिधि

नोबेल समिति ने कहा कि ये दोनों पत्रकार उन सभी पत्रकारों के प्रतिनिधि हैं "जो इस आदर्श के लिए एक ऐसी दुनिया में खड़े होते हैं जिसमें लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता तेजी से प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रही है। समिति ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना की स्वतंत्रता जनता को जानकारी पहुंचाने में मदद करती है। ये अधिकार लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं और युद्ध और संघर्ष से रक्षा करते हैं। मारिया रेस्सा और दिमित्री मुरातोव को नोबेल शांति पुरस्कार देने का उद्देश्य इन मौलिक अधिकारों की रक्षा और बचाव के महत्व को बल देना है।

विजेताओं का चयन करने वाली नॉर्वे की समिति ने कहा कि इन दोनों पत्रकारों ने फिलिपींस और रूस में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा' के लिए पूरे बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी। समिति ने इनके नाम की घोषणा करते हुए कहा कि सत्ता के दुरुपयोग, झूठ और युद्ध से बचाने के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और तथ्य-आधारित पत्रकारिता आवश्यक है। प्रेस की स्वतंत्रता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना व राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना मुश्किल होगा।

नार्वे की नोबेल समिति ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष को लेकर कहा कि शांति को बढ़ावा देने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। इस समिति की अध्यक्ष बेरिट रीस-एंडरसन ने कहा, स्वतंत्र व तथ्य आधारित पत्रकारिता सत्ता के दुरुपयोग, झूठ और युद्ध के दुष्प्रचार से बचाने का काम करती है।

ड्रग्स विरोधी अभियान पर रेस्सा की आलोचनात्मक दृष्टि

बेरिट रीस-एंडरसन ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा प्रेस की स्वतंत्रता के बिना राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना मुश्किल होगा साथ ही इसके बिना निरस्त्रीकरण तथा सफल होने के लिए बेहतर विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना भी मुश्किल होगा। नार्वे की नोबेल समिति ने कहा कि साल 2012 में रेस्सा द्वारा स्थापित वेबसाइट रैपलर ने (राष्ट्रपति) दुटेर्टे सरकार के विवादास्पद तथा घातक ड्रग्स विरोधी अभियान पर आलोचनात्मक दृष्टि के साथ काम किया है। रेस्सा और उनकी वेबसाइट रैपलर ने इस बात को भी साबित किया है कि किस तरह फेक न्यूज फैलाने के साथ साथ विरोधियों को परेशान करने तथा सार्वजनिक संवाद में हेरफेर करने के लिए इंटरनेट मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। रेस्सा ने कहा कि तथ्यों के बिना कुछ भी संभव नहीं। तथ्यों के बिना दुनिया बिल्कुल वैसी ही है जैसे वह सच और विश्वास के बिना होगी।

फिलीपींस में जन्मी रेस्सा के जीवन का शुरुआती हिस्सा यूएस में बीता और उनकी पढ़ाई लिखाई प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में हुई। इसके बाद वे दक्षिण पूर्व एशिया लौटीं। रैपर शुरू करने से पहले सीएनएन के लिए काम करते हुए उन्होंने दो दशक से अधिक समय बिताया। अन्य विषयों के साथ उन्होंने आतंकवादी नेटवर्क की पड़ताल की और बाद में उन्होंने द वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए भी लिखा।

उन्होंने कई अहम किताबें भी लिखीं जिसमें सीड्स ऑफ टेरर: एन आईविटनेस अकाउंट ऑफ अल-कायदा न्यूएस्ट सेंटर शामिल है।

सत्ता के प्रति मुरातोव का आलोचनात्मक रूख

वहीं मुरातोव वर्ष 1993 में स्वतंत्र रूसी समाचार पत्र नोवाया गजेटा के सह-संस्थापक थे। नोवाया गजेटा की चर्चा करते हुए नोबेल समिति ने कहा कि सत्ता के प्रति आलोचनात्मक रूख के साथ नोवाया गजेटा आज रूस में सबसे स्वतंत्र समाचार पत्र है। समिति ने कहा कि इस समाचार पत्र की तथ्य आधारित पत्रकारिता और पेशेवर निष्ठा ने इस समाचार पत्र को रूसी समाज के आलोचनात्मक पहलुओं पर जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत बना दिया है जिसका उल्लेख शायद ही दूसरे मीडिया संस्थानों द्वारा कभी पूरा किया जाता है। समिति ने इसका भी जिक्र किया कि नोवाया गजेटा शुरू होने के बाद से इसके छह पत्रकार मारे जा चुके हैं। पत्रकारों की हत्या और धमकी के बावजूद मुख्य संपादक मुरातोव ने अपने समाचार पत्र की स्वतंत्र नीतियों को त्यागने से इंकार कर दिया।

मुरातोव के लोकप्रिय दैनिक कोम्सोमोल्स्काया प्रवदा को छोड़ने के पांच साल बाद उन्होंने करीब 50 सहयोगियों के साथ साल 1993 में नोवाया गजेटा की शुरुआत की। उन्होंने 1995 से अखबार के प्रधान संपादक के रूप में कार्य किया है।

वर्ल्ड प्रेस इंडेक्स 2021

ज्ञात हो कि आरएसएफ के वर्ल्ड प्रेस इंडेक्स की 180 देशों की सूची में 45.64 अंकों के साथ फिलीपींस का 138वां स्थान है जबकि 48.71 अंकों के साथ रूस का 150वां स्थान है। वहीं भारत 46.56 अंकों के साथ 142वें स्थान पर है। इस इंडेक्स में भारत से बेहतर स्थिति इसके पड़ोसी देश नेपाल की है जो 34.62 अंकों के साथ 106वें स्थान पर है। वहीं 28.86 अंकों के साथ भूटान 65वें स्थान पर है जबकि 40.19 अंकों के साथ अफगानिस्तान 122वें स्थान पर है और 42.20 अंकों के साथ श्रीलंका 127वें स्थान पर है। इस इंडेक्स में 6.72 अंकों के साथ नॉर्वे पहले स्थान पर है। वहीं 81.45 अंकों के साथ इरिट्रिया सबसे निचले पायदान पर है।

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