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दिल्ली हिंसा: मारूफ़ की हत्या- ‘मनगढ़ंत’ बयानों की एक गाथा, विरोधाभासी पुलिस डायरी

जिन लोगों के नाम लेते हुए चश्मदीद गवाहों ने दावे किये थे कि उन्होंने ही मारूफ़ की भजनपुरा में हत्या कर दी थी, उन लोगों के नाम पुलिस ने एफ़आईआर और आरोपपत्र (Chargesheet) में शामिल नहीं किए हैं। सवाल है कि आख़िर पुलिस ने ऐसा क्यों किया ?
दिल्ली हिंसा

नयी दिल्ली: इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार शमशाद और मोहम्मद हारुन, दोनों के लिए सांप्रदायिक हिंसा में टलते जा रहे न्याय की उम्मीद अब भी बनी हुई है, जिस सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोग मारे गये थे और 200 से ज़्यादा घायल हो गये थे। शमशाद (25) और हारुन के छोटे भाई, मोहम्मद मारूफ़ (32) को 25 फ़रवरी की शाम को भजनपुरा के सुभाष मोहल्ला (उत्तर घोंडा) में एक भीड़ ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए गोली मार दी थी।

हालांकि शमशाद, जिसके पेट में गोली लगी थी, वह हमले में बच गया था, मगर उसका पड़ोसी, मारूफ़, जो शमशाद को बचाने गया था, वह उतना सौभाग्यशाली नहीं रहा। सिर पर गोली लगने से लोक नायक अस्पताल में उसकी मौत हो गयी, जहां दोनों को इलाज के लिए ले जाया गया था।

मुख्य पीड़ित और चश्मदीद गवाह होने के नाते, शमशाद और हारुन, जिन्होंने गोली चलाने वालों की पहचान की थी, उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस ने किसी भी हमलावर का नाम ही नहीं लिया। दोनों ने पुलिस पर हमालावरों को बचाने के लिए एक ऐसे खेल खेलने का आरोप लगाया है, जो पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के दाखिल होने के साथ ही शुरू हो गया था। उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने हारुन की शिकायत के आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज तो की थी, लेकिन उनके बयान कथित रूप से तोड़े-मरोड़े गये थे और जिन व्यक्तियों की उन्होंने पहचान की थी, उनके नाम प्राथमिकी में शामिल नहीं थे।

उन्होंने कहा कि बाद में उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, दिल्ली के लेफ़्टिनेंट-गवर्नर (एलजी), केंद्रीय गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को इस कथित गड़बड़ी के बारे में शिकायत की थी, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। बल्कि उल्टा दरियागंज स्थित क्राइम ब्रांच ऑफ़िस में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर दोनों को धमकाया था।

इस ‘मनगढ़ंत’ एफआईआर के आधार पर 8 जून को मामले में जो आरोप पत्र दायर किया गया,उसमें उन लोगों के नाम हैं,जिनके बारे में इन दोनों पीड़ितों को कोई जानकारी ही नहीं है। उनका आरोप है कि उनके इस मामले को जैसे-तैसे तोड़-मरोड़ कर पेश कर दिया गया है।      

घटनाक्रम

शमशाद ने बताया कि वह रात में लगभग नौ बजकर तीस मिनट से लेकर दस बजे के बीच दूध ख़रीदने के लिए जब बाहर निकला था, तब उसने कॉलोनी की गली नंबर दो में एक भारी भीड़ को हिंसक नारे लगाते हुए सुना था। शमशाद ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मैं गली नंबर तीन में घर वापस जाने लगा। जैसे ही मैं गली के कोने पर पहुंचा, मैंने अपने पड़ोसियों-सोनू, बॉबी, राम सिंह और योगी को गली नंबर दो से कोने की तरफ़ आते हुए देखा। जैसे ही मैंने वापस भागने के लिए अपने क़दम पीछे बढ़ाये, बॉबी ने फ़ायर कर दी।” ।

शमशाद ने कहा कि उसे ऊपरी पेट (पसली के क़रीब) पर चोट लगी थी। शमशाद ने बताया,“मारुफ़ भाई, जो उसी गली में रहते हैं, वे शोर और बंदूक की गोली की आवाज़ सुनकर बाहर निकल आये। वे मेरे बचाव में आये थे, लेकिन सोनू ने उन पर गोली चला दी। उनके बदन से बुरी तरह ख़ून बह रहा था। हम दोनों को पहले एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।” मरने वाला मारूफ़ बिजली के कल-पुर्जे की एक दुकान चलाते थे। उनके पीछे उनकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे हैं।

विडंबना यह है कि जिन लोगों की पीड़ितों ने पहचान की थी, उन सभी को कथित रूप से अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है। कहा जा रहा है कि वे खुलेआम घूम रहे हैं और जब कभी उनका आमना-सामना हो जाता है,तो वे अक्सर पीड़ितों को धमकी भरे निगाहों से घूरते हैं।

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने 8 जून को इस सांप्रदायिक हिंसा के सिलसिले में चार आरोपपत्र दाखिल किये। उनमें से एक इस मौजूदा मामले (एफ़आईआर संख्या 66/2020, पीएस भजनपुरा) से सम्बन्धित है।

इस आरोपपत्र में शोएब सैफ़ी (19), इमरान ख़ान (24), मोहम्मद दिलशाद, मोहम्मद इमरान, नवीन त्यागी (30) और मनोज कुमार (25) नामक छ: लोगों पर अलग-अलग धारायें लगायी गयी हैं। ये धारायें हैं; धारा 144 (घातक हथियार से लैस भीड़),  147 (दंगा करने), 148 (घातक हथियार से लैस होकर दंगा करना), 149 (ग़ैरक़ानूनी भीड़ का हिस्सा होने और सामान्य ऐतराज़ वाले अभियोजन में अपराध करना), 153 A (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 188 (लोक सेवक द्वारा दिये गये विधिवत आदेश की अवज्ञा करना), 201 (अपराध के सबूतों को मिटाना), 307 (हत्या के प्रयास), 302 (हत्या), 505 (सार्वजनिक उपद्रव को भड़काने वाले बयान देना), 34 (आम इरादे को कई लोगों द्वारा दिये गये अंजाम के लिए कार्रवाई करना) भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और धारा 27 (अवैध हथियार या गोला-बारूद का इस्तेमाल करना)।

इस आरोपपत्र में शामिल किये गये बरामद सीसीटीवी फ़ुटेज में नवीन और मनोज आग्नेयास्त्र ले जाते हुए और गोलियां चलाते हुए दिखते हैं, जबकि बाक़ी आरोपी लाठी और पत्थरों से लैस हैं या उन्हें कथित दंगाइयों के साथ खड़े देखे जा सकते हैं।

अंतरिम ज़मानत पाने वाले दिलशाद को छोड़कर बाक़ी सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं। जांचकर्ता का दावा है कि ये सभी गिरफ़्तारियां आरोपियों के सेल फ़ोन के लोकेशन, सीसीटीवी फ़ुटेज और चश्मदीदों के बयान के आधार पर की गयी थीं।

जांचकर्ताओं के मुताबिक़, “एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) और सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के समर्थन में नारे लगाने वाली भीड़ वहां पहुंची (अपराध का दृश्य) थी। भीड़ ने पथराव करना और गोलियां चलाना शुरू कर दिया था।

मारूफ़ के सिर में एक गोली लगी थी, शमशाद के पेट में गोली लगी थी। दोनों को एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती कराया दिया गया था, जहां मारूफ़ की मौत हो गयी थी, जबकि शमशाद को आगे के इलाज के लिए भर्ती करा दिया गया था। इस मामले में छह लोगों (चार मुस्लिम और दो हिंदू) को गिरफ़्तार किया गया है।”

शमशाद और हारुन (मृतक का भाई), दोनों ही पूछ रहे हैं कि आख़िर जिनकी पहचान उन्होंने की थी, पुलिस ने उनकी गिरफ़्तारी क्यों नहीं की और जिनका नाम उन्होंने लिया ही नहीं था, उन्हें क्यों पकड़ लिया गया, हालांकि पुलिस का दावा है कि जांच अभी जारी है।

एफ़आईआर-जोड़-तोड़ की एक व्यथा-कथा

हारुन की शिकायत के आधार पर पुलिस ने 26 फ़रवरी को भजनपुरा पुलिस स्टेशन में दोनों घटनाओं के लिए बिना किसी को नामजद किये एक एफ़आईआर दर्ज कर ली थी।

इस एफ़आईआर में लिखा गया है, "मैं और मेरा छोटा भाई मारूफ़ (मृतक), शमशाद (अपने घायल पड़ोसी) के साथ अपनी गली (गली नंबर 03, सुभाष मोहल्ला, उत्तरी घोंडा, भजनपुरा, पूर्वी दिल्ली) के कोने पर 25-02-2020 (25 फ़रवरी, 2020) को रात 11 बजे खड़े थे। ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए और सीएए और एनआरसी का समर्थन करते हुए सैकड़ों लोग वहां पहुंच गये और गोली चलाना और पथराव करना शुरू कर दिया। एक गोली मेरे भाई मारूफ़ के सिर में लगी। मेरे पड़ोसी शमशाद को भी एक गोली लगी। हमें मारने के लिए जानबूझकर गोलियां चलायी गयीं और पथराव किये गये। इसके बाद वे (भीड़) जय श्री राम के नारे लगाते हुए आगे बढ़ गये। मैंने पुलिस को डायल किया और दोनों घायलों को एलएनजेपी अस्पताल ले गया। जिन लोगों ने मेरे भाई और पड़ोसी पर गोलियां चलायी थीं, उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।”

जैसा कि शिकायतकर्ता का दावा है कि हमलावरों की पहचान करने और नाम बताने के  बावजूद किसी को भी हमलावर के तौर पर नामित नहीं किया गया है। हारुन, जिन्होंने न्यूज़क्लिक से फ़ोन पर बात करने से तो इनकार कर दिया, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री के हवाले से कहा,“मैंने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर,वेद पाल के सामने उन घटनाओं का पूरी तरह सिलसिलेवार वर्णन किया था और उन लोगों का नाम भी बताये थे,जिन्होंने गोलियां चलायी थीं। वेद पाल ने मेरी शिकायत दर्ज करने के लिए 26 फ़रवरी को दोपहर 1 बजे हमसे मुलाकात की थी। उन्होंने एक क़ाग़ज़ पर मेरा बयान दर्ज किया था और मुझे इस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा था। उन्होंने कई सादे क़ाग़ज़ों पर मेरे हस्ताक्षर भी लिए।

हारुन ने आरोप लगाया, "वह पुलिस वाला आरोपी का नाम लिखने में हिचकिचा रहा था, लेकिन उसने मेरी ज़िद पर आख़िरकार अपनी डायरी में उन नामों को दर्ज कर लिया।"

लेकिन, शिकायतकर्ता को तब हैरत हुई,जब उसे अपनी शिकायत के तीन दिन बाद मिली एफ़आईआर में वे (हमलावरों के) नाम ही नहीं थे,जिनके नाम उसने एएसआई (असिस्टेंट सब -इंस्पेक्टर) को बताया था। ग़ौरतलब है कि हारुन इस घटना के चश्मदीदों में से एक है।

शुरू में इस मामले की जांच भजनपुरा पुलिस स्टेशन की इंस्पेक्टर, मालती बाना को सौंपी गयी थी, लेकिन बाद में वरिष्ठ अधिकारी के 27 फ़रवरी के आदेश पर इस मामले को उत्तर-पूर्व ज़िला पुलिस से लेकर अपराध शाखा के विशेष जांच दल को सौंप दिया गया। क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर, लोकेंद्र चौहान को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था।

29 फ़रवरी को जांच का जिम्मा संभालने के बाद चौहान ने कहा था कि उन्होंने पीड़ित शिकायतकर्ताओं से मुलाक़ात की थी और अपराध स्थल का दौरा भी किया था। उन्हें उन लोगों के घर भी दिखाये गये थे, जिन्होंने कथित तौर पर शमशाद और मारूफ़ पर गोलियां चलायी थीं। हरुन ने बताया, "यह भरोसा देते हुए कि दोषियों को बख़्शा नहीं दिया जायेगा, इसके बावजूद आईओ ने उन्हें बख़्श दिया,और मेरे भाई के हत्यारे अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं।"

चश्मदीदों के बिल्कुल एक ही तरह के बयान

अपराध शाखा द्वारा अदालत के सामने प्रस्तुत किये जाने से पहले वह अंदरूनी केस डायरी न्यूज़क्लिक के हाथ लगी है। इसमें पीड़ितों और गवाहों के विस्तृत विवरण दर्ज हैं।

29 फ़रवरी को चौहान के सामने दिये गये अपने कथित बयान में हारून कहते हैं, "मैंने किसी को गोलियां चलाते हुए नहीं देखा, और मैं ठाकुर हलवाई की दुकान के पास जमा भीड़ में से किसी को नहीं पहचानता था।"

हैरानी की बात यह है कि फिरोज़ (मारूफ़ के रिश्तेदार), मोहम्मद शाहिद (फिरोज़ का बेटा), अरशद (शाहिद के दोस्त) और शमशाद जैसे अन्य लोगों द्वारा दिये गये विवरणों का अंतिम बयान में अक्षरों और शब्दों तक का कोई हेर-फ़ेर नहीं है।

न्यूजक्लिक को बतायी गयी बातों के ठीक उल्टा शमशाद ने भी अपने कथित तीन पेज के बयान के अंत में इस बात को दोहराया है,"मैंने किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा"।

क्या यह महज़ संयोग है ? अगर यह संयोग ही है, तो यह संयोग से कहीं कुछ ज़्यादा दिखायी देता है।

क्या चश्मदीदों के बयान मनगढ़ंत हैं?

शमशाद ने अपने बयान में शोएब सैफ़ी, मोहम्मद इमरान, दिलशाद और मनोज गुर्जर जैसे उन लोगों के नाम लिए हैं, जो दंगों के दौरान सक्रिय थे। इसका मतलब यह है कि नवीन त्यागी को छोड़कर, शमशाद ने उन सभी की पहचान की थी, जिन्हें आरोप पत्र में नामित किया गया था।

जिस बात से शक पैदा होता है,वह यह है कि शमशाद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उसने उन लोगों में से किसी का नाम नहीं लिया है,जिनके नाम आरोपपत्र में शामिल किये गये हैं। उन्होंने बताया, “मैंने उस दिन उनमें से किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा था। उन्हें मेरे मामले में फ़ंसाया गया है। पुलिस ने उन लोगों को गिरफ़्तार नहीं किया है,जिनके नाम मैंने अपने मूल बयान में लिये थे। मुझे रिकॉर्ड के लिए मेरे मूल बयान की एक हस्ताक्षरित प्रति भी नहीं दी गयी थी।

शमशाद का दावा है कि पुलिस ने उससे सादे क़ाग़ज़ों पर उसके हस्ताक्षर ले लिये थे। उन्होंने कहा, "जब हमने उनसे इस बाबत पूछा, तो उन्होंने (पुलिस ने) हमें बताया कि इसकी उन्हें ज़रूरत है।"

हारुन का यह भी दावा है कि पुलिस के इनर केस डायरी में दर्ज उसके बयान "झूठे" थे। उसने आरोप लगाते हुए कहा, “मुझे जहां भी बुलाया गया, चाहे वह यमुना विहार स्थित एसआईटी दफ़्तर हो या दरियागंज स्थित अपराध शाखा के दफ़्तर हो, मैंने जांचकर्ताओं को उन लोगों के नाम बताये,जिन्होंने गोली चलायी थी। मैंने शूटरों के नाम का उल्लेख एक बार नहीं, बल्कि कई बार जांच अधिकारी के साथ-साथ अपनी मूल शिकायत में भी किया है। लेकिन,जैसा कि मैंने बताया कि  मेरा बयान दर्ज ही नहीं किया गया। मेरे हवाले से जो बयान दिये गये हैं,वे पूरी तरह झूठे हैं।”

पुलिस की तरफ़ से जब उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की गयी, जिन्हें उसने अपनी शिकायत में नामित किया था, तो उसके बाद उसने 20 अप्रैल को अपराध शाखा के पुलिस डिप्टी कमिश्नर (डीसीपी) को उस शाम हुई घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए लिखा। उसने दिल्ली के लेफ़्टिनेंट-गवर्नर (एलजी), केंद्रीय गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को उस पत्र की एक प्रति भी भेज दी।

न्यूज़क्लिक को हाथ लगे इस पत्र में लिखा है: “मेरा भाई मारूफ़, जो बिजली के कल-पुर्जे की एक दुकान का मालिक था, वह दुकान के कुछ सामान को पास के घर में रख रहा था। जब उसे पता चला कि शाम को फ़ैमिली बाज़ार (बाज़ार) लूट लिया गया है, तो उसने हमसे दुकान पर जाने के लिए कहा ताकि इत्मिनान कर सके। लेकिन,जैसे ही हम दुकान से लौटते समय गली नंबर तीन के पास पहुंचे, हमने सोनू कुमार, बॉबी, लाला, राम सिंह, मोहित, अभिषेक, योगी और अन्य लोगों को देखा, जिन्हें हमने शायद गली नंबर एक और दो में देखा था और गली नंबर दो में इकट्ठे हुए उन लोगों को अगर मेरे सामने परेड कराया जाये,तो मैं उन्हें पहचान सकता हूं। उनके हाथों में बंदूकें, तलवारें, लाठी, लोहे की छड़ें आदि थीं। इस बीच, शमशाद गली नंबर तीन से बाहर निकल आया। बॉबी ने उस पर गोली चला दी। जैसा कि हमने देखा कि शमशाद गोली से मारा जा रहा है, मैं और मेरा भाई मारूफ़ शमशाद की ओर भागे। राम सिंह चिल्लाया, 'उन्हें भी मार डालो' । सोनू, जिसके हाथों में बंदूक थी, उसने एक गोली चलाई, जो मेरे भाई मारूफ़ की आंख में लगी। "

घायल हो चुके शमशाद ने भी 20 अप्रैल को भजनपुरा पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफ़िसर को एक पत्र लिखा। कथित हमलावरों के नाम का ज़िक़्र करते हुए उसने उस पत्र में पूरे घटनाक्रमों का वर्णन किया। उसने आरोप लगाया कि एसआईटी असली दोषियों को बचाने की कोशिश कर रही है।

उसकी चिट्ठी में लिखा है, “27 फ़रवरी को अस्पताल से छुट्टी मिलने के दो दिन बाद (जांच अधिकारी) लोकेंद्र अन्य अधिकारियों के साथ आये और मुझे बताया कि वे मेरे मामले की जांच कर रहे हैं। मैंने उन्हें सब कुछ बताया और उन लोगों के नाम और पते भी बताये, जिन्होंने मुझ पर गोली चलायी थी। उन्होंने मुझसे उस जैकेट को देने के लिए कहा, जिसे मैंने घटना वाली शाम को पहना हुआ था। मैंने वह जैकेट उन्हें  दे दिया। उन्होंने के आठ-दस सादे क़ाग़ज़ों पर मेरे और मेरे पिता के हस्ताक्षर लिये। उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने इन सादे क़ग़ज़ों पर हमारे हस्ताक्षर इसलिए लियें हैं, क्योंकि उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस जैकेट के सिलसिले में एक रिपोर्ट भेजनी है।” 

रिपोर्ट के मुताबिक़, हारुन का कहना है कि उसे 16 मई को एक नोटिस मिला,जिसमें शमशाद के साथ 18 मई को दरियागंज स्थित अपराध शाखा के दफ़्तर आने के लिए कहा गया था।

उसे यह कहते हुए उद्धृत किया गया है, “हमने व्हाट्सएप के ज़रिये एक अधिकारी को मैसेज भेजा कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चलते हम वहां नहीं आ सकते। इसके बाद व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पहने हुए अपराध शाखा के कुछ अधिकारी 19 मई को हमारे घर आये और हमसे कहा कि हमें उनके साथ जाना होगा। उनके निर्देश के बाद हम अपराध शाखा कार्यालय गये। जब हम वहां पहुंचे, तो हमें वेटिंग रूम में बैठने के लिए कहा गया। हमें हैरत हुई, क्योंकि मैंने देखा कि वहां हमलावर (शमशाद और मारूफ़ पर हमले करने वाले) भी वहां बैठे थे। वे हमें घूर रहे थे।”

शमशाद ने बताया, “सोनू और योगी वेटिंग रूम में बैठे हुए हैं। उन्होंने (कथित हमलावरों ने) कहा, “शिकायत करके तू ज़्यादा होशियार बन रहा है। बेटे, यहां पर भी हमारी चलती है।'' फिर सोनू ने मुझे गाली देना शुरू कर दिया। उसने कहा, “तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। हालांकि सोनू ने मारूफ़ पर गोली चलायी थी। कुछ समय बाद एक पुलिस वाला हमें एक अलग कमरे में ले गया।"

उसने आगे बताते हुए कहा,“हमें कुछ वीडियो फ़ुटेज दिखाये गये, जिन्हें हम समझ नहीं पाये। फिर, हमें कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के पास ले जाया गया, जिन्होंने हमसे पूछा कि हम अब शिकायत क्यों दर्ज करा रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं उस समय डर गया था। इसके जवाब में उन्होंने मुझसे कहा, ‘अब तम्हें डर नहीं लग रहा है ? ’ मैंने उनसे कहा कि मैं अब ठीक हूं और मुझे अपनी शिकायत दर्ज कराने में कोई परेशानी नहीं है। इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं तुम्हारी शिकायत नहीं मानता हूं।’’

चार-पांच दिनों बाद हारून ने एक बार फिर डीसीपी (स्पेशल सेल) को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें 19 मई की घटना का विवरण था। उसने लिखा, “अपराध शाखा के एक अधिकारी ने मेरी शिकायत पर विचार करने से इंकार कर दिया। उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम जानते हो कि आईपीसी की धारा 302 का मुकदमा क्या होता। अगर किसी हरे पेड़ पर लिखकर टांग दो, तो वह भी सूख जाता है। मैं अपने लड़कों की ज़िंदगी तुम्हारी शिकायत पर ख़राब नहीं होने दूंगा।'

हारुन ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को भी पत्र की एक प्रति भेजी थी, जिसमें कहा गया था, "एसआईटी के दफ़्तर में लगे कैमरों में रिकॉर्ड किये गये उस दिन के वीडियो फ़ुटेज को सहेजे रखा जाये और उसकी जांच की जाये ताकि सच्चाई सामने आये।"

अपने जीवन के लिए ख़तरा पैदा हो जाने का दावा करते हुए उन्होंने सुरक्षा के लिए आग्रह किया। उन्होंने अपनी चिट्ठी में अनुरोध करते हुए लिखा, “जब से हम चश्मदीद गवाह हैं, वे हमें ख़त्म कर देना चाहते हैं। इसलिए, हमारे जान-माल की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाय।”

कई दूसरे गवाहों ने भी पुलिस की तरफ़ से दर्ज इन बयानों का खंडन किया है।

जांच अधिकारी (IO) चौहान और अपराध शाखा के वरिष्ठ अधिकारी इस पर टिप्पणी को लेकर उपलब्ध नहीं हो सके।

घटनाक्रम

अन्य आरोपपत्रों की तरह, इस मामले में भी जांचकर्ताओं ने हिंसा के एक काल अनुक्रम (Chronology) का उल्लेख किया है, जिसमें 13 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया में शुरू हुई हिंसा ले लेकर फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के साथ समाप्त होने तक का ज़िक़्र है।

जो बात इस आरोपपत्र को बाक़ी से अलग करती है, वह है भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता कपिल मिश्रा का ज़िक्र किया जाना। लेकिन, जांचकर्ताओं ने कपिल मिश्रा के नफ़रत पैदा करने वाले उस कथित भाषण के उल्लेख किये जाने की आसानी से अनदेखी कर दी है,जिससे इस क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी थी।

किसी भी तरह की साज़िश के नज़रिये को खारिज करते हुए इस चार्जशीट में सिर्फ़ इतना ही कहा गया है, “23-02-2020 (23 फ़रवरी, 2020) को एक स्थानीय बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के नेतृत्व में सीएए समर्थक नागरिकों के एक समूह ने इस बात को लेकर विरोध प्रदर्शन किया कि उत्तर-पूर्व ज़िले की मुख्य सड़कों के ग़ैर-क़ानूनी नाकेबंदी के चलते परेशानी हो रही है।”

इस आरोपपत्र के मुताबिक़, सीएए विरोधी प्रदर्शन और उसके बाद सड़क की नाकेबंदी असल में हिंसा भड़काने की एक "सोची-समझी" और "सुनियोजित" चाल थी।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Delhi Violence: Maruf’s Murder — A Saga of ‘Concocted’ Statements, Contradictory Police Diary

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