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उत्तर-पूर्वी दिल्ली: जहां गलियों में दरवाज़े लगाए जा रहे हैं

दरवाज़ा केवल लोगों को बाहर से आने से रोकने के लिए नहीं होता है, बल्कि वह उन लोगों को भी पाबंदी में रखता है जो उन्हें खड़ा करते हैं और पूर्व मिश्रित समाज की बस्तियों की उम्मीदों को बर्बाद करते हैं।
North-East Delhi

दिल्ली के बाबू नगर इलाके में स्थित हरि सिंह सोलंकी के घर पर माहौल तनावपूर्ण है। उनके रिश्तेदार हाल ही में हुई हिंसा में मारे गए उनके बेटे राहुल सोलंकी को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां आए थे। सोलंकी ने कहा “वह बाजार से दूध खरीदने के लिए गया था। उसके घर छोड़ने के 15 मिनट के भीतर ही हमें फोन आया कि उसे गोली मार दी गई है।”

उनका घर चौराहे के पास है जहां से एक गली निकलती है जिसे श्रद्धांजलि देने आए लोग "उनकी गली" बताते हैं जिसका मतलब है मुस्लिमों की गली। मुस्तफाबाद के बाबू नगर में मुस्लिम लोगों के साथ साथ हिंदू समाज के भी लोग रहते हैं। इस इलाके से सटे शिव विहार के रहने वाले 60 वर्षीय सूरज भान शोक में शामिल होने वाले रिश्तेदारों में से एक हैं। वे कहते हैं कि उन्हें 24 फरवरी को पत्थरों से मारा गया था। वे मुझे बृजपुरी से होते हुए शिव विहार तक ले जाते हैं। इस दौरान वे हिंसा से प्रभावित इलाके के कई हिस्सों की ओर इशारा करते हुए दिखाते हैं। छोटे मोटे निर्माण कार्य विभिन्न गैलियों के प्रवेश द्वारों पर होते हुए दिखे। उन्होंने कहा कि "हम यहां लोहे के दरवाजे खड़े कर रहे हैं।"

भान कहते हैं कि “हम पड़ौस से पैसा इकट्ठा कर रहे हैं और इन दरवाजों को अपनी गलियों और उनकी गलियों के बीच लगा रहे हैं। हमें अपनी रक्षा करनी होगी।” अधिकांश जगहों पर अब तक गेट के बुनियादी ढांचे को खड़ा कर दिया गया है। वे कहते हैं, “हम सीमेंट के सूखने का इंतजार कर रहे हैं ताकि हम काम पूरा कर सकें। बड़े दरवाजों को मुख्य सड़क के करीब लगाया जाएगा।”

वे आगे कहते हैं, "वे पूरी तरह से सभी तरह के हथियारों के साथ तैयार थे जबकि हम पूरी तरह बिना सुरक्षा के थे। हिंदू परिवार इतने विनम्र हैं कि आप हमारे घरों में एक छड़ी भी नहीं ढूंढ पाएंगे। हम उनसे कैसे लड़ सकते थे?” जैसे ही वह शिव विहार क्षेत्र में फाटकों की ओर इशारा करते हैं वैसे ही वह मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के पैमाने के बारे में सवालों को खारिज करते हैं और जोर देकर कहते हैं कि हमले की योजना शाहीन बाग में बनाई गई थी और यहां अंजाम दी गई थी।" वे मूल रूप से हर कॉलोनी में एक शाहीन बाग बनाना चाहते हैं, यही उनकी योजना है।"

इस हिंसा के बाद हिंदू समुदाय के भीतर उत्पीड़न और भय की भावना है। जबकि सच्चाई यह है कि अधिकांश हिंसा मुस्लिम लोगों के खिलाफ की गई और ऐसा लगता है कि संपत्ति स्थानीय हिंदू निवासियों के नाम रजिस्टर्ड नहीं है। नाम न छापने की शर्त पर 54 वर्षीय सरकारी कर्मचारी और बृजपुरी के निवासी कहते हैं, "अधिक हिंदू मारे गए हैं, मुसलमान केवल संख्या बढ़ा रहे हैं क्योंकि वे सरकार से मुआवजा चाहते हैं।" वे कहते हैं, ''हम अपने क्षेत्रों और उनके 'पाकिस्तान' के बीच दरवाजा खड़ा करेंगे।

30 वर्षीय रमेश जिनका बृजपुरी के गली नंबर एक में लोहे के काम का एक छोटा दुकान है जिन्हें पड़ोस में लोहे के दरवाजे लगाने का काम सौंपा गया है। वे कहते हैं, “मुझे बृजपुरी में ही कम से कम 10 दरवाजे लगाने के ऑर्डर मिले हैं। हम सिर्फ यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हमारी गलियां सुरक्षित हों।" दो कारीगर जल्दी से काम करवाने के लिए लोहे की रॉड को वेल्डिंग करने में व्यस्त थे।

लगता है कि भूमि और भाषा की रेखाएं खींच दी गई हैं। लगता है "हमारी" और "उनकी" जैसे शब्द के कटु प्रयोग किए गए हैं, यह इतना कि सांस्कृतिक मतभेद अब राष्ट्र के विचार के आक्रामक अस्वीकृति के रूप में प्रकट होते हैं। सूरजभान के रिश्तेदार 49 वर्षीय डोरी लाल कहते हैं, “उन लोगों को मदरसों में क्यों पढ़ना पड़ता है, वे हमारे जैसे स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ सकते हैं? वे भारतीय नहीं हैं।”

इस कल्पित विभाजन की दूसरी ओर मुस्लिम पड़ोसी भी दरवाजा खड़ा कर रहे हैं। पुराने मुस्तफाबाद की मुख्य सड़क से शुरू होने वाली गली नं 7 के द्वार पर लोहे का दरवाजा लगाने का काम जारी है। यहां के एक वृद्ध निवासी हसन कहते हैं, "इस गली में एक मस्जिद है और हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह सुरक्षित रहे। यही वजह है कि हम इस गेट को लगा रहे हैं।”

इस शोर शराबे के बीच हिंसा का एक केंद्रीय तत्व यह था कि घायल और पीड़ित परिवारों को सुरक्षा के लिए भागना पड़ा। हिंसाग्रस्त इलाकों में से एक इलाके के कुछ युवक लोहे का एक बड़ा दरवाजा लगाने में व्यस्त हैं। इस दौरान मैं हसन से पूछता हूं कि क्या ये दरवाजे समुदायों के बीच संबंधों को प्रभावित करेंगे तो बताते हैं “हम इस दरवाजे को हर समय खुला रखेंगे। यह लोगों को अंदर जाने से रोकने के लिए नहीं है। यह केवल उन आपात स्थितियों के लिए है, जब हम पर हमला होता है।''

चूंकि दोनों समुदाय अपने पड़ोस में प्रवेश को अलग-अलग कारणों से प्रतिबंधित करने का प्रयास करते हैं ऐसे में अलगाव और असंतोष की प्रक्रिया एक ऐसे क्षेत्र में शुरू हुई है जो घेट्टो नहीं है।

दरवाजे केवल लोगों को बाहर रखने के लिए नहीं होते है बल्कि वे आपको भी एक घेरे में रखते हैं।

दिल्ली के दंगों के दौरान एक-दूसरे की मदद करने वाले हिंदू और मुसलमानों की अधिकांश कहानियां मिली जुली समाज वाले पड़ोसियों के इलाके से आई हैं। जब आप अपने पड़ोसियों को जानते हैं तो उन्हें "दूसरे" लोगों के रूप में सोचना बहुत मुश्किल होता है। जब आपकी "दूसरी" की एकमात्र समझ मीडिया, अफवाह और प्रोपगैंडा द्वारा फैलाई जाती है न कि व्यक्तिगत बातचीत पर आधारित होती है तो ऐसे में नफरत फैलाना बहुत आसान हो जाता है। ये दरवाजे कल्पना और वास्तविक सताए जाने वाले समुदायों के बीच जाहिरा ऐलान की शुरूआत है जिसे एक विशेष रूप से वैचारिक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।

इस बीच अपने बेटे के खोने के बाद हरि सिंह सोलंकी के लिए उनका घर अब घर नहीं है। “हम अब बाबू नगर में रहना नहीं चाहते हैं। हम यहां सुरक्षित महसूस नहीं करते।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये विचार निजी है।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

North-East Delhi: Where Galis Now Lead to Gates

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