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राजनीति
एक बरस बाद: लखनऊ का घंटाघर पुलिस छावनी बना, 26 को झंडा फहराने का ऐलान
आज जिस तरह किसान आंदोलन जारी है, उसी तरह एक बरस पूर्व सीएए विरोधी आंदोलन भी ज़ोरों पर था। उसमें भी प्रदर्शनकारियों ने इसी तरह हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में धरने दिए, तक़लीफ़ें सहीं और डटे रहे। आज एक साल बाद लखनऊ के घंटाघर आंदोलन का मूल्यांकन कर रहे हैं असद रिज़वी।
असद रिज़वी
18 Jan 2021
एक बरस बाद: लखनऊ का घंटाघर पुलिस छावनी बना, 26 को झंडा फहराने का ऐलान

लखनऊ के शाहीनबाग़ यानी घंटाघर (हुसैनाबाद) को उत्तर प्रदेश सरकार ने क़िले में तब्दील कर दिया है। यहाँ विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरुद्ध 2020 में महिलाओं ने धरना दिया था, वहाँ अब सिर्फ़ ख़ाकी वर्दी के सिवा कुछ नज़र नहीं आता है।

दिल्ली के शाहीनबाग़ के धरने से प्रेरित हो कर लखनऊ की महिलाओं ने 17 जनवरी 2020 की शाम से घंटाघर पर सीएए के विरुद्ध धरना शुरू कर दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार जो पहले दिन से ही सीएए के विरोधी आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रही थी, उसने इस धरने को ख़त्म कराने हर संभव प्रयास किया।

महिलाओं को क़ानून का ख़ौफ़ दिखाया गया और धरना स्थल पर पुलिस द्वारा बर्बरता भी की गई। लेकिन महिलाओं के हौसले पस्त नहीं हुए और धरना ख़त्म चलता रहा। बल्कि दो दिन बाद 19 जनवरी 2020 से घंटाघर से क़रीब 13 किलोमीटर दूर गोमतीनगर इलाक़े में बसे उजरियांव में भी महिलाओं ने सीएए विरोधी धरना शुरू कर दिया।

धरने की पहली शाम

पुराने लखनऊ के ऐतिहासिक घंटाघर पर महिलाओं के जमा होकर धरना शुरू करने की ख़बर से प्रशासन के होश उड़ गये थे। क्यूँकि दिल्ली में शाहीनबाग़ का धरना मज़बूती से चल रहा था, प्रशासन को डर था कहीं लखनऊ में दूसरा शाहीनबाग़ न बन जाये।

हालाँकि घंटाघर पर पहले दिन केवल 25-30 महिलाएँ ही मौजूद थी, लेकिन प्रशासन धरना ख़त्म कारने के लिए सक्रिय था। महिलाओं ने यह बयान दिया कि, शाहीनबाग़ (दिल्ली) इलाहाबाद के रौशन पार्क और कानपुर के मोहम्मद अली पार्क की तरह अब लखनऊ के घंटाघर का धरना भी सीएए के वापस होने के बाद ही ख़त्म होगा।

इस बयान के बाद पुलिस और सक्रिय हो गई। घंटाघर की बिजली काट दी गई। महिलाओं ने मोमबत्ती जला कर और मोबाइल की रौशनी में रात गुज़ारी। महिलाओं का आरोप था की सर्दी की रात में आग जलाने के लिए लाये गये कोयले पर पुलिस-प्रशासन ने पानी डलवा दिया।

धरने के बाद पहली सुबह

सुबह यानी 18 जनवरी की सुबह होने तक सारे शहर में महिलाओं के धरने की ख़बर जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी। सीएए के विरोधी बड़ी संख्या में घंटाघर पहुँचने लगे। पुलिस ने भी पहरा सख़्त कर दिया और धरनास्थल को चारों तरफ़ से घेर लिया। पीएसी और आरएएफ़ की टुकड़ियाँ हुसैनाबाद की सड़क पर फ़्लैग मार्च करने लगीं।

इसके बावजूद जब लोगों का आना नहीं रुका, तो प्रशासन ने घंटाघर प्रांगण में पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगा दी। प्रदर्शन में शामिल होने वालों की पार्किंग में खड़ी गाड़ियों का भी चलान किया जाने लगा और कई लोगों को मौक़े पर हिरासत में भी लिया गया। लेकिन देखते-देखते महिलाओं की भीड़ सैकड़ों में तब्दील हो गई।

पुलिस ने कंबल छीने

ठंड की रात में तापमान 7-8 डिग्री था, लेकिन पुलिस ने घंटाघर पर तंबू नहीं लगने दिए। इतना ही नहीं, वहाँ खाने-पीने का सामान भी जाने से रोका जा रहा था। ख़राब मौसम को देखते हुए महिलाओं ने वहाँ कुछ कंबलों का इंतज़ाम किया। लेकिन जैसे ही कंबल घंटाघर पहुँचे पुलिस ने उनको छीनना शुरू कर दिया। पुलिस ने कंबल छीन कर अपनी गाड़ियों में रख लिए।

कंबल छीन कर ले जाती पुलिस के पीछे कंबल के लिए दौड़ती महिलाओं का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जिसके बाद पुलिस-प्रशासन के इस अमानवीय व्यवहार की काफ़ी निंदा हुई। जिसके बाद पुलिस ने एक बयान जारी कर के कहा की कंबल छीने नहीं गए, बल्कि ज़ब्त किये गये हैं।

घंटाघर पर गणतंत्र दिवस

पुलिस-प्रशासन की सख़्ती के बावजूद महिलाओं ने 26 जनवरी को, घंटाघर पर, गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन का फ़ैसला लिया। महिलाओं का कार्यक्रम सफल भी हुआ, गणतंत्र दिवस की सुबह घंटाघर पर प्रदर्शनकारियों का अभूतपूर्व सैलाब देखने को मिला। वहां सुबह प्रदर्शनकारियों द्वारा झंडा रोहण और राष्ट्रगान गाया गया।

लेकिन महिलाओं का आंदोलन रोक पाने में नाकाम प्रशासन ने गणतंत्र दिवस से पहले प्रदर्शनकरियों की गिरफ़्तारियाँ शुरू कर दीं थी। छात्र नेता पूजा शुक्ला समेत कई और प्रदर्शनकारीयों को 25 जनवरी को सुबह 11 बजे के क़रीब हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया।

हालाँकि इस मौक़े पर पुलिस की बर्बरता को नज़रंदाज़ करते हुए महिलाओं ने घंटाघर घर पर मौजूद पुलिसकर्मियों को फ़ूल भेंट किये।

घंटाघर चलो अभियान

गणतंत्र दिवस समारोह के बाद 9 फ़रवरी को आंदोलनकरियों ने ‘घंटाघर चलो अभियान’ का आह्वान किया। इस अभियान में भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और विवादास्पद नागरिकता क़ानून के वापिस लेने की माँग की। इस आह्वान पर पहली बार प्रदेश के दूसरे हिस्सों से और दिल्ली भी लोग सीएए का विरोध करने लखनऊ पहुँचे।

घंटाघर चलो अभियान में शामिल बहुजन मुस्लिम महासभा के उपाध्यक्ष मोहम्मद ताहिर को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसके अलवा ठाकुरगंज थाने में 21 अन्य प्रदर्शनकारियों जिसमें अधिकतर महिलायें थी, पर मुक़दमा दर्ज हुआ।

प्रदर्शनकारी जिन पर मुक़दमे हुए

पुलिस द्वारा जिन 21 प्रदर्शनकरियों पर मुक़दमा दर्ज हुआ, उनमें नासरीन जावेद, उज़्मा परवीन, शबीह फ़ातिमा, अब्दुल्लाह, नहिद अक़ील, रूकसना ज़िया, हजरा, नताशा, इरम, सय्यद ज़रीन, अकरम नक़वी, सना, अल हुदा, दानिश हलीम, राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील, फ़हीम सिद्दीक़ी, मुर्तज़ा अली, मोहम्मद एहतेशाम, मोहम्मद अकरम और सदफ़ जाफ़र के नाम शामिल थे।

प्रदर्शन में शामिल नहीं होने की हिदायत

घंटाघर प्रदर्शन को बढ़ता देख प्रशासन ने समाजसेवियों और धर्मगुरुओं की नोटिस भेज कर प्रदर्शन में नहीं शामिल होने की हिदायत देना शुरू कर दी। पुलिस प्रशासन द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व उप कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा, रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डे, पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी और मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सैफ़ अब्बास व डॉ० क़ल्बे सिब्तैन “नूरी” को प्रदर्शन में शामिल नहीं होने के लिए नोटिस भेजे गये।

बच्चों को धरने में लाने पर आपत्ति

उत्तर प्रदेश सरकार की बाल कल्याण समिति ने 29 जनवरी 2020 को एक नोटिस जारी कर के प्रदर्शन में आ रही महिलाओं से साथ बच्चों के आने पर आपत्ति दर्ज की। समिति ने "किशोर न्याय क़ानून" की धारा (75) का हवाला देते हुए कहा कि, “लखनऊ के घंटाघर पर अपने बच्चों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे परिवार तत्काल प्रभाव से अपने बच्चों को धरना स्थल से घर भेजें।”

अपने नोटिस में समिति ने कहा, ''कई बच्चे अपना विद्यालय छोड़ कर धरना स्थल पर हैं जिसके कारण उनके सही समय से खाना, पढ़ाई तथा खेल आदि की व्यवस्था भी बिगड़ गयी है।”

बाल कल्याण समिति का यह नोटिस उसके अध्यक्ष कुलदीप रंजन के अलावा चार सदस्यों डॉ. संगीता शर्मा, विनय कुमार श्रीवास्तव, सुधा रानी और ऋचा खन्ना के हस्ताक्षर जारी हुआ था। आदेश में यह कहा गया था कि अगर महिलाओं ने बच्चों को नहीं हटाया तो उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

हालाँकि महिलाओं ने कहा की योगी आदित्यनाथ सरकार बच्चों के बहाने प्रदर्शन को कमज़ोर करना चाहती है। धरने पर मौजूद महिलाओं का कहना था हम इन बच्चों के भविष्य के लिए ही लड़ रहे हैं।

मुख्यमंत्री योगी का तंज़

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी विवादास्पद सीएए के विरुद्ध आंदोलन कर रही महिलाओं पर तंज़ किया था। कानपुर में मुख्यमंत्री ने कहा की “पुरुष घरों में रज़ाई में सो रहे हैं और महिलाएँ धरने पर बैठी हैं’। योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा था कि अगर उत्तर प्रदेश में कश्मीर वाली आज़ादी के नारे लगे तो देशद्रोह का मुक़दमा किया जायेगा।

इसके अलवा महिलाओं ने आरोप लगाया था, की कुछ अज्ञात युवकों ने घंटाघर आकर उनको धरना ख़त्म करने के लिए धमकाया।

उज़रियाओं गांव में पुलिस बर्बरता

उज़रियाओं (गोमती नगर) में नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध धरना दे रही महिलाओं ने भी की पुलिस पर अभद्रता और बर्बरता करने का आरोप लगाया। उज़रियाओं में जिस दरगाह में धरना चल रहा था वहाँ पुलिस ने जाकर वहाँ पर रखी कुर्सियों को फेंक दिया और महिलाओं प्रदर्शनकारियों द्वारा जमा खानपान की सामग्री को आवारा पशुओं को खिला दिया।

आंदोलन के दौरान हुए मुक़दमे

ठाकुरगंज पुलिस ने न्यूज़क्लिक को बताया की क़रीब 2 महीने से अधिक घंटाघर पर चले धरने के मामले में 16 मुक़दमे दर्ज हुए हैं। इस धरने के मामले में 300 के क़रीब आंदोलनकरियों के नाम चार्जशीट में हैं। बता दें कि छात्र संगठन ‘आइसा’ के उपाध्यक्ष नितिन राज, घंटाघर के प्रदर्शन को लेकर अब भी जेल में हैं। क्यूँकि धरना शुरू होने के बाद प्रशासन ने शहर में धारा 144 लगा दी थी, तो उसके उल्लंघन के मामले भी आंदोलनकरियों पर अलग चल रहे हैं।

पुलिस ने बताया कि अधिकतर मुक़दमे भारतीय दंड संहिता की 145, 147, 149, 188, 283, 353, 427 और 505 के अंतर्गत दर्ज हुए हैं।

प्रदर्शन कैसे ख़त्म हुआ

हुसैनाबाद इलाक़े के घंटाघर पर दो महीने से अधिक चल रहे प्रदर्शन को हटाने के लिए 19 मार्च को दोपहर करीब 2 बजे अचानक पुलिस आ गई थी। महिला पुलिसकर्मियों ने, प्रदर्शनकारी महिलाओं से उनका सामान छीना और वहाँ महिलाओं द्वारा लगाए गए अस्थायी तम्बू को भी पुलिस ने उखाड़ फेंका।

लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शन जारी रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित जनता कर्फ़्यू 22 मार्च को भी बड़ी संख्या में महिलाएँ घंटाघर पर धरने में मौजूद थीं।

जनता कर्फ़्यू के बाद जब सख़्ती से काम नहीं चला तो प्रशासन ने अपना रवैया कुछ नरम किया। लखनऊ समेत प्रदेश के 15 ज़िलों में 23 मार्च से कोविड-19 महामारी को लेकर लॉकडाउन भी शुरू हो गया था। इसी सबको देखते हुए धरने पर बैठी महिलाओं ने आपस में बातचीत प्रदर्शन को स्थगित करने पर विचार शुरू किया।

प्रशासन के आला अधिकारियों ने महिलाओं से बातचीत की और नरमी के साथ प्रदर्शन ख़त्म करने के लिए आग्रह किया। जिसके बाद महिलाओं ने स्वयं प्रदर्शन स्थल घंटाघर ख़ाली करने का फ़ैसला लिया। महिलाओं ने वहाँ से जाते समय कहा की धरना ख़त्म नहीं हो रहा है बल्कि कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से कुछ समय के लिए स्थगित किया जा रहा है।

प्रशासन व महिलाओं का समझौता-उल्लंघन

घंटाघर से जाते समय प्रदर्शनकारी महिलाएँ वहाँ की सीढ़ियों पर अपने द्वारा बनाया मंच छोड़ गई। घंटाघर पर अपने दुपट्टे रख दिए ताकि आंदोलन को ख़त्म नहीं माना जाए। प्रशासन ने समझौता किया कि आंदोलनकरी महिलाओं का मंच और दुपट्टे नहीं हटाए जाएँगे। लेकिन लॉकडाउन शुरू होते ही प्रशासन ने कोविड-19 के स्वच्छीकरण के नाम से महिलाओं द्वारा छोड़ा गया मंच और दुपट्टे वहाँ से हटा दिए।

इसके अलवा पुलिस ने वहाँ से थोड़ी दूर पर अपने शिवर लगा लिए। लेकिन अब घंटाघर पर ही पुलिस के शिवर लगे हैं और अब हर समय वहाँ भारी पुलिस बल तैनात रहता है। पर्यटन आकर्षण का केंद्र होने के बावजूद घंटाघर पर आम नागरिकों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है।

लॉकडाउन के बाद...

कोविड-19 अनलॉक होते ही पुलिस-प्रशासन एक बार फिर सक्रिय हो गया है। पुलिस ने आंदोलन में सक्रिय रही महिला प्रदर्शनकरियों को जून 2020 में थाने पर तलब करना शुरू कर दिया। जब महिलाएँ थाने पहुँची तो उनको धारा 41 (क) के नोटिस दिए गये। जिन सीएए विरोधियों को यह नोटिस मिले उन में सुमैया राना, सदफ़ जाफ़र, उज़्मा परवीन आदि के नाम शामिल हैं।

अब क्या कहते हैं आंदोलनकारी

घंटाघर में प्रदर्शन को एक साल पूरा हो गया है। घंटाघर को पुलिस ने चारों तरफ़ से घेर लिया रखा है। लेकिन विवादास्पद संशोधित क़ानून के विरोधियों के हौसले अब भी बुलंद हैं। उज़्मा परवीन, जिनको आंदोलन के दौरान “झाँसी की रानी” कहा जाता है, कहती हैं कि वह इस वर्ष भी गणतंत्र दिवस पर झण्डा रोहण करेंगी। वह कहती हैं कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह ने यह कहा कि सीएए की प्रक्रिया शुरू हो रही है, उसी दिन से घंटाघर पर दोबारा आंदोलन शुरू हो जायेगा।

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