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2800 में से महज़ 19 राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बांड के ज़रिये चंदा मिला

2800 से ज्यादा पोलिटिकल पार्टियों में से केवल 19 पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला। इसमें से केवल 3 पार्टियों को तकरीबन 83 प्रतिशत चुनावी चंदा मिला। 
electoral bonds
Image courtesy : The New Indian Express

इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग की दुनिया में अपना धाक जमा चुकी रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने इलेक्टोरल बांड को लेकर बहुत बड़ा खुलासा किया है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव की तरफ से श्रीगरीश जलिहाल, पूनम अग्रवाल और सोमेश झा की इलेक्टोरल बांड की धांधली से जुडी रिपोर्ट आर्टिकल 14 वेबसाइट पर छपी है।

इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में तकरीबन 2800 से ज्यादा पोलिटिकल पार्टियां हैं। पिछले तीन सालों में इसमें से महज 19 पोलिटिकल पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये चंदा मिला है। इलेक्टोरल बांड के जरिए मिली कुल 6201 करोड़ चंदा में से 68 प्रतिशत चुनावी चंदा केवल भारतीय जनता पार्टी को मिला है। तो चलिए रिपोर्टर्स कलेक्टिव की इलेक्टोरल बांड पर की गई छानबीन को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।

भारतीय चुनावी राजनीति की सबसे बड़ी परेशानी चुनावी चंदा की अपारदर्शिता है। इसका पता न चलना है कि राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए चंदा कौन देता है, कहाँ से मिलता है, किस तरह से देता है, कब देता है, क्यों देता है? इस परेशानी से निजात पाने के लिए साल 2017 में दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बांड योजना का एलान किया।

हकीकत में कहा जाए तो चुनावी चंदा की पारदर्शिता के नाम पर पेश की गयी योजना चुनावी चंदा को अपारदर्शी बनाने का सबसे बड़ा औज़ार थी।  इलेक्टोरल बांड योजना के तहत नियम यह है कि एक तय अवधि के भीतर कोई भी कंपनी, व्यक्ति, एनजीओ, ट्रस्ट या किसी भी तरह का प्रतिष्ठान बिना अपना नाम बताए स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया के ब्रांच से इलेक्ट्रोल बांड खरीदकर किसी रजनीतिक पार्टी के खाते में जमा कर सकता है।

जिस दिन इस योजना को बजट के पन्नों में लपेटकर वित्त मंत्री मंत्री अरुण जेटली ने संसद के पटल पर पेश की थी, तब से इलेक्टोरल बांड को चुनावी चंदा में मौजूदा धांधली को कानूनी शक्ल देने का आरोप लगाया जा रहा है। आलोचक कह रहे हैं कि इलेक्टोरल बांड की प्रकृति ही ऐसी है कि इस से पता नहीं चलता कि चुनावी चंदा कहाँ से आ रहा है और कौन दे रहा है?

इस योजना से बड़े शानदार तरीके से उन अमीर और शक्तिशाली लोगों का नाम छिपा लाया जाता है जो राजनीतिक पार्टियों को चंदा देते हैं। अगर चंदा देने वालों के नाम का नहीं पता चलेगा तो पारदर्शिता का मतलब क्या है? अगर यह पता नहीं चलेगा कि चुनावी चंदा देने वाला कारोबारी, व्यक्ति, ट्रस्ट या कोई भी प्रतिष्ठान कौन है? और  लेने वाली राजनीतिक दल कौन हैं? तो राजनीति, प्रशासन और पूंजी के गठजोड़ से पैदा होने वाली परेशानियों को खत्म कैसे किया जा सकेगा?

चुनावी राजनीती के जड़ों को सड़ाने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को खारिज करने के लिए एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफार्म नामक एक नॉन प्रॉफिट ओर्गनइजेशन ने सुप्रीम कोर्ट में सिंतम्बर 2017 में एक याचिका दायर की। तकरीबन दो साल और कई चुनाव बीत जाने के बाद अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि राजनीतिक पार्टियां इलेक्टोरल  बांड के जरिये मिलने वाले चुनावी चंदा का हिसाब-किताब कोर्ट को मुहैया करवाएं। 

उस समय के चीफ जस्टिस रंजन गोगई ने कहा कि एक सील्ड एनवलप यानि बंद लिफाफे के अंदर पॉलिटिकल पार्टी की फंडिंग से जुडी जानकरियां मुहैया करवाई जाए। यह बंद लिफ़ाफ़े का चलन भी बड़ा दिलचस्प है। रंजन गोगई के काल में शुरू हुआ। जिन जानकारियों की अहमियत सबके लिए है, उसे बंद लिफाफे में माँगा जाने लगा। राफेल मामले भी यही हुआ। अब यह क्यों हुआ? इसके बारे में आप अंदाजा लगा सकते हैं।

चुनाव आयोग भी चाहता था कि इलेक्टोरल बांड योजना को वापस ले लिया जाए। चुनाव आयोग ने मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि इलेक्टोरल बांड चुनावी चंदा की पारदर्शिता की परेशानी के हल को पीछे ले जाना वाला कदम है। चूँकि इलेक्टोरल बांड से देने वाले के नाम का पता नहीं चलता है इसलिए इसके सहारे चुनावी राजनीती में काला धन घुसेगा। शेल कंपनियां बनाकर पैसा लगाया जायेगा। विदेशी कंपनियां भी पैसा लगा सकती हैं। इसका मतलब है कि इलेक्टोरल बांड में यह पूरी संभावना है कि विदेशी कंपनियां अपने फायदे के लिए भारतीय राजनीती को प्रभावित कर सके। 

लेकिन इन सारी आलोचनाओं और आपत्तियों को भाजपा सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। भाजपा इलेक्टोरल बांड को चुनावी राजनीति में साफ सुथरा चंदा लाने के लिए सबसे बड़े कदम के तौर पर मानती रही। कहती रही कि इससे पोलिटिकल पार्टियों को मिलने वाले चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी। 

चुनाव आयोग ने सभी पॉलिटकल पार्टियों को लिखकर कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के सवालों का जवाब दे। चुनाव आयोग के मुताबिक चुनाव आयोग में पंजीकृत 2800 से ज्यादा पोलिटिकल पार्टियों में केवल 105 पार्टियों ने जवाब दिया।

चुनाव आयोग ने बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को जब जवाब सौंप तो उसमें सात राष्ट्रीय पार्टियां, तीन राष्ट्रीय पार्टियों की राज्य इकाइयां , 20 राज्य स्तर पार्टियां की लिस्ट सौंपी गई। इसके साथ इस बंद लिफाफे में 70 ऐसी पार्टियों की भी लिस्ट सौंपी गई, जिन्हें किसी तरह का चुनाव चिन्ह नहीं मिला है, जिनकी कोई पहचान नहीं है, लेकिन जो चुनाव लड़ती हैं और जिनका रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग में हुआ है। इसके अलावा पांच ऐसी इकाइयों की भी लिस्ट सौंपी गई, जिनकी अब तक कोई पहचान नहीं हुई है।

इस बंद लिफाफे को सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अब तक दो साल हो चुके हैं।  याचिका दाखिल करने वालों ने कई बार सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर सुनवाई करने की अपील की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अभी तक सुनवाई नहीं की है। 

तब जाकर रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने बंद लिफाफे में सौपी गई पॉलिटिकल पार्टी की लिस्ट पर छानबीन करनी शुरू की। उन 70 पार्टियों की छानबीन करनी शुरू की, जिन्हें किसी तरह का चुनाव चिन्ह नहीं मिला है, जो चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हैं और जिनसे चुनाव आयोग ने जवाब माँगा था।  इन 70 पार्टियों में से 54 पार्टियों की हेड से बातचीत की। पार्टियों ने चुनाव आयोग को जो लिखित जवाब भेजा था, उसकी बारीकी से छानबीन की। पार्टियों द्वारा चुनावी चंदा को लेकर सौंपे जाने वाले सालाना हिसाब-किताब की रिपोर्ट को सावधानी से खंगाला।

यह सब करने के बाद रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि चुनाव आयोग को जवाब देने वाले 105 पोलिटिकल पार्टियों में केवल 17 पोलिटिकल पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला था। इसके अलावा दो और पार्टियों- द्रविड़ मुनेत्र कंगडम यानी DMK और झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी JMM  को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला।  लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग को लिखित जवाब नहीं दिया था।

वित्त वर्ष 2017-18 से लेकर 2019-20 के दौरन इन 17 पोलिटिकल पार्टियों में सबसे अधिक चुनावी चंदा भारतीय जनता पार्टी को तकरीबन 67.9 प्रतिशत  यानि 4,212 करोड़ मिला था। अगर भाजपा की जमीन पर खड़ा होकर देखा जाए तो इससे बहुत पीछे कांग्रेस खड़ी है। इसका चुनावी चंदा महज 706 करोड़ बनता है, जो कुल चुनावी चंदे का महज 11 फीसदी के करीब है। तीसरे नंबर पर बीजू जनता दल का मिला इलेक्टोरल बांड आता है। बीजू जनता दल  को इलेक्टोरल बांड के जरिये करीब 264 करोड़ रूपये मिले है। यह कुल चुनावी चंदा का महज 4.2 प्रतिशत बनता है। इन तीनों पार्टियों के चुनावी चंदे को मिला  लिया जाए तो यह कुल चुनावी चंदे का तकरीबन 83.4 प्रतिशत बनता है।  यानि 2800 से ज्यादा पोलिटिकल पार्टियों में से केवल 19 पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला।  इसमें से केवल 3 पार्टियों को तकरीबन 83 प्रतिशत चुनावी चंदा मिला। 

साल 2017 में वित्त मंत्रालय ने इलेक्टोरल बांड को लेकर सभी से राय मांगी। केवल भाजपा को छोड़कर कई लोगों ने इस योजना को चुनावी पारदर्शिता के खिलाफ बताया। साल 2019 में रिपोर्टर कलेक्टिव की टीम ने खुलासा किया था कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी इलेक्टोरल बांड पर आपत्ति जाहिर की थी, जिसे केंद्र सरकार ने नजरंदाज कर दिया था। राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के तहत जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से इलेक्टोरल बांड को लेकर के सूचना मांगी गई तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहकर सूचना देने से इंकार कर दिया कि उसे सूचना देने का हक नहीं है। जबकि कानूनन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक स्वतंत्र संस्था है। राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के तहत बिना किसी दूसरी सरकारी संस्था के दबाव में आए सूचना देने के लिए स्वतंत्र है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव के छानबीन से यह खुलासा हुआ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बांड से जुड़े हर डाटा को वित्त मंत्रालय के साथ साझा कर रही थी। वित्त मंत्रालय के इशारों पर ही राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के तहत मांगी गई सूचना देने से मना कर दिया था।

हाल ही में कोमोडोर लोकेश बत्रा के जरिए दाखिल किए गए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन से यह पता चला है कि चुनाव आयोग ने  इलेक्टोरल बांड के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को जिन 105 पार्टियों की लिस्ट सौंपी है, उसमें से केवल 23 पार्टियां इलेक्टोरल बांड के जरिए चुनावी चंदा लेने की कानूनन हकदार हैं। जब इन 23 पार्टियों के संबंध में जानकारी मांगने की कोशिश की गई तब फिर से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जानकारी देने से मना कर दिया।

इलेक्टोरल बांड को लेकर रिपोर्टर्स कलेक्टिव के खुलासे में कुछ और चौंकाने वाली जानकारियां निकल कर सामने आई हैं। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को इलेक्टोरल बांड के जरिए चुनावी चंदा बनाने के नाम पर जिन 105 पॉलिटिकल पार्टियों की लिस्ट दी है उसमें से अधिकतर पार्टियां गांव में मौजूद हैं। जिनका कोई बड़ा संगठन नहीं है। कभी कोई प्रेस कवरेज नहीं हुई है। आप और हम पार्टी, सबसे बड़ी पार्टी जैसा नाम है। लेबर समाज पार्टी के संस्थापक वकील बाबूराम से जब रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने इलेक्टोरल बांड के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें पता ही नहीं है कि इलेक्टोरल बांड क्या होता है? उन्होंने कहा कि उन्हें किसी भी तरह का चुनावी चंदा नहीं मिला है? अपनी पार्टी का बैंक अकाउंट दिखाते हुए बताया कि देखिए इसमें महज ₹700 का बैलेंस है। इस तरह का जवाब कई पार्टियां ने दिया है।

अब आप इस पूरे खुलासे से समझ सकते हैं कि चुनावी चंदा में पारदर्शिता लाने के नाम पर लाए गए इलेक्टोरल बांड योजना के जरिए कितनी बड़ी धांधली की जा रही है और क्यों पिछले दो साल से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका हुआ है इस पर भी प्रश्न उठना लाज़मी है।

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