मोदी जी, कभी तो प्रधानमंत्री की तरह बोलिए!
कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में उनके विरोधियों और आलोचकों यह कहना कतई निराधार है कि वे संसद में बोलने से डरते हैं। हकीकत तो यह है कि कहीं भी बोलने से नहीं डरते हैं बल्कि बोलने के मौके ढूंढते हैं। बोलना उनकी आदतों में शुमार है और संसद तो उनके लिए खेल का पसंदीदा मैदान है। संसद के मंच का उपयोग भी वे अपनी चुनावी रैली के मंच की तरह करते हैं और वहां से भी वे मुद्दों से हट कर चुनावी भाषण देते हैं। हां, यह जरूर है कि वे अपनी सरकार की जवाबदेही वाले मुद्दों पर बोलने से बचने में पूरी सावधानी बरतते हैं। ऐसा करना उनकी रणनीति का हिस्सा होता है। रणनीति के तहत ही वे मणिपुंर पर बोलने से बचते रहे हैं।
अपनी सरकार के खिलाफ लोकसभा में पेश अविश्वास प्रस्ताव पर भी उन्होंने यही रवैया अपनाया। विपक्षी पार्टियां मणिपुर मसले पर प्रधानमंत्री का मुंह खुलवाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाई थीं लेकिन प्रधानमंत्री यहां भी लगभग बच निकले। अविश्वास प्रस्ताव पर तीन दिन चली बहस का जवाब देते हुए मोदी बोले और खूब बोले, मणिपुर के मौजूदा हालात से कोसों दूर रहे। वे पूरे 2 घंटे और 13 मिनट तक बोले। देश के संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव पर किसी प्रधानमंत्री का यह अभी तक का सबसे लंबा भाषण रहा। लेकिन इस रिकॉर्ड तोड लंबे भाषण में वे मणिपुर पर महज दो मिनट बोले और वह भी तब जब पूरे डेढ़ घंटे तक उनके भाषण में मणिपुर का जिक्र नहीं होने पर समूचा विपक्ष सदन से वॉकआउट कर चुका था।
प्रधानमंत्री ने मणिपुर को समर्पित दो मिनट के दौरान भी अतीत के वर्तमान के बजाय वहां के अतीत की घटनाओं की तोड़मरोड़ कर चर्चा की। विपक्ष की ओर अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए कांग्रेस के गौरव गोगोई ने मणिपुर में पिछले तीन महीने जारी भीषण सांप्रदायिक और जातीय हिंसा में सैकड़ों लोगों के मारे जाने, हजारों लोगों के घर जला दिए जाने, लाखों लोगों के बेघर होकर जंगल में पलायन कर जाने और महिलाओं का बलात्कार किए जाने और उन्हें नंगा कर सड़कों पर घुमाए जाने जैसी अमानुषिक घटनाओं का विस्तार से जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री से तीन सवाल पूछे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री से जानना चाहा था कि वे अभी तक मणिपुर क्यों नहीं गए, वहां की घटनाओं पर बोलने से क्यों बच रहे हैं और मणिपुर के मुख्यमंत्री को अभी तक बर्खास्त क्यों नहीं किया गया?
गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव हिंदी में पेश किया था और उनका पूरा भाषण भी हिंदी में था। मोदी भी हिंदी अच्छी तरह समझते हैं लेकिन मणिपुर के हालात को लेकर उनकी निष्ठुरता और बेपरवाही का आलम देखिए! उन्होंने गोगोई और अन्य विपक्षी सदस्यों के सवालों का जवाब देने के बजाय उनके सवालों की खिल्ली उड़ाने के अंदाज में कहा कि विपक्ष के प्रस्ताव में कोई इनोवेशन (नयापन) और क्रिएटिविटी (रचनात्मकता) नहीं है। इसे बेशर्मी और अमानवीयता का चरम ही कहेंगे कि तीन महीने से जल रहे, लुट रहे, पिट रहे और मर रहे मणिपुर पर लाए गए प्रस्ताव में देश का प्रधानमंत्री नवीनता और रचनात्मकता तलाश रहा है।
प्रधानमंत्री के इस निष्ठुरताभरा रवैया देख कर देश को और खास कर मणिपुर के लोगों को बेहद निराश करने वाला रहा। कल्पना ही की जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण सुन कर मणिपुर के लुटे-पिटे और हर तरह से तबाह हो चुके लोगों के दिल पर क्या गुजरी होगी।
और तो और राहुल गांधी के गंभीर आरोप को भी प्रधानमंत्री घोल कर पी गए। राहुल गांधी ने अपने भाषण में अपनी मणिपुर यात्रा के दर्दनाक अनुभवों का जिक्र किया और सीधे प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा, ''मणिपुर में लोगों को मार कर भारत माता की हत्या की गई है...आपने मेरी मां की हत्या की है...आप देशभक्त नहीं, देशद्रोही हो।’’ राहुल का यह बयान भाजपा और उसकी पितृसंस्था आरएसएस पर किया गया अब तक का सबसे तीखा हमला हमला है। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करने और महात्मा गांधी की हत्या के बावजूद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने आरएसएस को कभी देशद्रोही नहीं कहा था लेकिन राहुल गांधी को मोदी को, उनकी सरकार और उनकी पार्टी की देशभक्ति पर सीधे-सीधे सवाल खड़ा कर दिया।
दरअसल मोदी से जब किसी मुद्दे को लेकर वर्तमान के सवालों के जवाब देते नहीं बनता है तो वे अतीत में चले जाते हैं और इधर-उधर की बात करते हुए लोगों को भविष्य के सब्जबाग दिखाने लगते हैं। मणिपुर को लेकर भी उन्होंने यही किया। विपक्ष उनसे सवाल पूछ रहा था मणिपुर पर, हरियाणा की हिंसा पर, महंगाई और बेरोजगारी पर लेकिन उन्होंने बात की असम की, मिजोरम की, स्वर्ण मंदिर परिसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की, भारत के विभाजन की, वंदेमातरम की, कांग्रेस की चुनावी असफलताओं की और विपक्षी गठबंधन की। मणिपुर सहित पूर्वोत्तर की सभी मौजूदा समस्याओं के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया और अपनी पीठ थपथपाते हुए बताया कि पिछले नौ साल में उनकी सरकार के मंत्री 400 बार और वे स्वयं 50 से ज्यादा बार मणिपुर गए हैं।
सवाल है कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों के इतनी बार जाने के बाद भी जब मणिपुर तीन महीने से जल रहा है तो फिर आपके वहां जाने का क्या मतलब? उन्होंने कहा कि हम जल्दी ही मणिपुर की चुनौती का समाधान निकालेंगे, वहां फिर से शांति की स्थापना होगी और वहां के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। लेकिन यह नहीं बताया कि मणिपुर के मौजूदा हालात कैसे बने? मणिपुर के हालात को काबू करने में नाकाम रहे वहां के मुख्यमंत्री का निर्लज्जतापूर्वक बचाव तो गृह मंत्री अमित शाह एक दिन पहले ही कर चुके थे।
मणिपुर की राज्यपाल अनुसूया उइके केंद्र सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में साफ कर चुकी हैं कि मणिपुर में कानून व्यवस्था और प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। यही बात केंद्र सरकार के मंत्री और मणिपुर के कई भाजपा विधायक कह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हालात की गंभीरता समझते हुए मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी विशेष जांच दल और जांच की निगरानी के लिए तीन जजों की कमेटी गठित की है। यह सारी बातें साबित करती हैं कि राज्य सरकार हालात से निबटने में पूरी तरह अक्षम साबित हुई है। इसके बावजूद गृह मंत्री शाह ने संविधान के अनुच्छेद 356 की गलत और मनमानी व्याख्या करते हुए बताया कि किसी मुख्यमंत्री को तभी बर्खास्त किया जाता है जब वह हालात से निबटने में असहयोग कर रहा हो। उन्होंने कहा कि चूंकि मणिपुर के मुख्यमंत्री केंद्र के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं, इसलिए उन्हें बर्खास्त करने का सवाल ही नहीं उठता।
प्रधानमंत्री के लिए शर्मिंदगी वाली दिलचस्प बात यह भी रही कि जब वे अपने भाषण में दावा कर रहे थे कि उन्होंने देश को पहली बार घोटाला और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दी है, उसी समय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और ग्रामीण विकास मंत्रालय के नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम के तहत वृद्धावस्था पेंशन योजना में भारी घोटाला हुआ है। सवाल यही है कि शर्मनिरपेक्षता में गहरी आस्था रखने वाले प्रधानमंत्री या उनकी सरकार को इस पर शर्म कैसे आ सकती है?
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण का पूरा फोकस कांग्रेस, नेहरू, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और विपक्षी गठबंधन पर रखा, जिससे जाहिर हुआ कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती दिखने लगी है। उन्होंने अपने पूरे भाषण में 50 से ज्यादा बार कांग्रेस का, चार बार नेहरू का और 6 बार इंदिरा गांधी का जिक्र किया। हालांकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी का उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन परोक्ष रूप से दोनों पर खूब निशाना साधा। नए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया’ इन दिनों मोदी के राजनीतिक विमर्श का सबसे प्रिय मुद्दा बना हुआ है। जब से यह गठबंधन अस्तित्व में आया है तब से अब तक वे इसे कई तरह की हास्यास्पद और आपत्तिजनक उपमाओं से नवाज चुके हैं। वे इंडिया की तुलना भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी और आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से भी कर चुके हैं। अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह इंडिया नहीं घमंडिया है।
वैसे भी मोदी की ख्याति एक कामयाब मजमा जुटाऊ भाषणबाज की रही है। उन पर यह आरोप कोई नहीं लगा सकता कि वे एक गंभीर और शालीन वक्ता हैं। संसद हो या चुनावी रैली, सरकारी कार्यक्रम हो या पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक, लालकिले का प्राचीर हो या फिर विदेशी धरती, मोदी की भाषणशैली एक जैसी रहती है- वही भाषा, वही अहंकारयुक्त देहभाषा, राजनीतिक विरोधियों पर वही छिछले कटाक्ष और स्तरहीन मुहावरे, भौंडे और अश्लील इशारे, आधी-अधूरी या हास्यास्पद जानकारी के आधार पर गलतबयानी, तथ्यों की मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़, सांप्रदायिक तल्खी, नफरत भरे जुमलों और आत्म प्रशंसा का भरा होता है उनका भाषण। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर उनके भाषण में भी यह सब तो देखने को मिला ही, इसके अलावा राजनीतिक बौखलाहट और घबराहट भी उनके भाषण में छायी रही। वे बोले और खूब बोले लेकिन प्रधानमंत्री की तरह बिल्कुल नहीं बोले। उनका पूरा भाषण एक औसत भाजपा नेता की तरह व्हाट्सऐप के फूहड़ चुटकुलों और स्तरहीन मुहावरों से भरपूर रहा।
प्रधानमंत्री के अलावा उनके मंत्रियों और उनकी पार्टी के सांसदों के भाषणों पर भी पूरी तरह मोदी-प्रभाव छाया हुआ था। सबमें होड़ लगी थी कि कौन कितनी ज्यादा स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल कर सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस मामले में इस बार केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सबसे आगे रहीं, कुछ हद तक प्रधानमंत्री से भी आगे। उन्होंने सदन में राहुल गांधी के खिलाफ 'फ्लाइंग किस’ का एक किस्सा गढ़ा और आरोप लगाया कि राहुल ने भाजपा की महिला सांसदों की ओर देख कर फ्लाइंग किस उछाला है। यह आरोप लगाने के साथ ही उन्होंने कहा कि राहुल ने ऐसा करके अपने खानदानी संस्कारों और अपनी परवरिश का परिचय दिया है। उन्होंने इस सिलसिले में भाजपा की 22 महिला सांसदों के हस्ताक्षर से राहुल के खिलाफ एक शिकायत भी स्पीकर को दिलवाई। लेकिन उनका यह पूरा ड्रामा पूरी तरह फ्लॉप रहा। चूंकि सदन की गतिविधियों की पल-पल की रिकॉर्डिंग होती है और अलग-अलग कोणों से होती है, इसलिए किसी भी सदस्य की कोई भी गतिविधि छुप नहीं सकती। लोकसभा सचिवालय ने सभी वीडियो फुटेज देखने के पाया कि स्मृति ईरानी ने जैसा किस्सा गढ़ा था वैसा कुछ हुआ ही नहीं था।
कुल मिला कर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री सहित उनके किसी भी मंत्री या सांसद के भाषण मणिपुर के हालात को लेकर रत्तीभर भी अफसोस या गंभीरता नहीं दिखी। इसके अलावा हरियाणा की हिंसा, महंगाई और बेरोजगारी जैसे सवालों से भी सत्तापक्ष पूरी तरह मुंह चुराता और अगले चुनाव की चिंता में डूबा नजर आया।
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