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पीएम मोदी की 15 अगस्त पर सैनिक स्कूल की घोषणा महिला सशक्तिकरण के लिए काफ़ी है?

प्रधानमंत्री ने अपने एक घंटे और अट्ठाइस मिनट के लंबे भाषण में सैनिक स्कूल के अलावा आधी आबाधी के लिए कोई खास बात नहीं की। उन्होंने देश को नहीं बताया कि उनकी सरकार के ‘अच्छे दिनों’ में महिलाएं बेख़ौफ़ घर से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहीं?
पीएम मोदी

75वें स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल क़िले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए लड़कियों के लिए एक अहम और जरूरी घोषणा की। पीएम मोदी ने कहा कि देश के सभी सैनिक स्कूलों में अब लड़कियां पढ़ सकेंगी। इससे पहले सैनिक स्कूलों में केवल लड़कों को ही प्रवेश दिया जाता था।

सैनिक स्कूल के दरवाज़े लड़कियों के लिए खोलकर पीएम मोदी ने निश्चित तौर पर एक अच्छी पहल की है। इससे लड़कियों की बेहतर और अच्छी शिक्षा तक पहुंच और आसान हो पाएगी और समाज में लैंगिक समानता को लेकर एक मैसेज भी कायम होगा।

हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने एक घंटे और अट्ठाइस मिनट के लंबे भाषण में सैनिक स्कूल के अलावा आधी आबाधी के लिए कोई खास बात नहीं की। उन्होंने देश को नहीं बताया कि उनकी सरकार के ‘अच्छे दिनों’ में महिलाएं बेख़ौफ़ घर से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहीं या उन पर नज़र क्यों रखी जा रही है? वे आज़ादी से अपनी ज़िन्दगी के फ़ैसले क्यों नहीं ले पा रहीं या उनके पहनावे, रिश्तों की पसंद और प्यार की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण अभी भी क्यों जारी है? खुद उन्हीं की पार्टी जो कभी राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए महिला आरक्षण बिल की समर्थक हुआ करती थी, वो आज पूर्ण बहुमत होने के बाद भी उसे पास क्यों नहीं करवा पा रही? पिछली सरकारों पर नाकामी का ठपा लगाने वाली मोदी सरकार आखिर अपने कार्यकाल में महिलाओं की जिंदगी क्यों नहीं बदल पा रही है।

निर्भया कांड के नौ साल बाद भी यौन हिंसा के मामले कम नहीं हुए

महिला सुरक्षा की बात करें तो, निर्भया कांड के नौ साल बीतने के बाद भी भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के मामले कम नहीं हुए हैं, महिलाएं अब भी असुरक्षित ही हैं। केंद्र की मोदी सरकार ने खुद 5 अगस्त को राज्यसभा के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि देश में साल 2015 से 2019 के बीच बलात्कार के 1.71 लाख मामले दर्ज किए गए। इस जघन्य अपराध के सर्वाधिक मामले मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए हैं।

आपको बता दें कि आज भी देशभर में रेप क्राइसिस इंटरवेन्शन सेंटर की संख्या बहुत कम है। इसे बढ़ाने की बातें तो सरकार ने खूब की लेकिन जमीन पर कुछ खास काम नहीं हुआ। यहां तक की निर्भया फंड के पैसों के इस्तेमाल की भी कोई सही योजना अब तक सरकार के पास नहीं है। मीडिया खबरों में अक्सर इस फंड से जुड़ी नाकारात्मक खबरें सामने आती रहती हैं। ऊपर से सरकार की ओर से आने वाले भड़काऊ बयानों से माहौल और बिगड़ा है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के सिद्धांत से उलट, खुद सत्ता पक्ष के कई नेताओं पर महिला उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगे हैं।

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सत्ता में भारी बहुमत के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक पर पीएम मोदी की चुप्पी

महिला आरक्षण विधेयक को देखें तो, ये साल 2010 में राज्यसभा से पारित होने के बाद लोकसभा में सालों से लंबित पड़ा है। जब यूपीए सरकार ने इसे राज्यसभा से पास करवाया था, उस वक्त अरुण जेटली सदन में नेता प्रतिपक्ष थे और उन्होंने महिला आरक्षण बिल के पास होने को गर्व और सम्मान का ऐतिहासिक पल बताया था। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उस समय लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, वे इस बिल की सबसे प्रमुख पैरोकारों में एक थीं। लेकिन आज 2021 में ये विडंबना ही है कि उनकी पार्टी बीजेपी दूसरी बार सत्ता में भारी बहुमत से काबिज़ है लेकिन प्रधानमंत्री महिला सशक्तिकरण के नाम पीएम मोदी चुप्पी साधे हुए हैं।

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गौरतलब है कि मोदी सरकार में महिलाओँ के मान-सम्मान की बातें तो होती हैं लेकिन शाहीन बाग से लेकर किसान आंदोलन तक नारे लगाती औरतें सत्ता की आंखों में खटक रही हैं। पुलिस से भिड़ती कॉलेज की लड़कियाँ, हाड़ कंपाने वाली सर्दी में बैठी शाहीन बाग़ की दादियां, कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ गाँव-गाँव से राष्ट्रीय राजधानी का सफ़र तय करने वालीं महिलाएं पुलिस की लाठियां झेलती नजर आईं। तरह-तरह के फ़ेक फ़ोटो और झूठे दावों के साथ इन महिलाओं का चरित्र-हनन किया गया। कई मुख्यमंत्रियों और बड़े नेताओं ने खुलेआम महिलाओं को अपशब्द कहे, बावजूद इसके खुद को देश का प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमंत्री मोदी शांत रहे, उनका खून नहीं खौला न लड़कियों के लिए और ना बूढ़ी दादियों के लिए।

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