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PM-SHRI नए पैकेट में पुरानी स्कीम है, जो साल भर बाद भी काग़ज़ से ज़मीन पर नहीं उतरी

अगर इन स्कूलों की घोषणा पहले ही हो चुकी है, तो पीएम इनकी दोबारा सुर्खी क्यों बनवा रहे हैं, और अगर ये कोई नए स्कूल हैं तो बजट वाले पुराने स्कूलों का एक-डेढ़ साल में क्या हुआ।
PM-SHRI

"शिक्षक दिवस के मौक़े पर मुझे एक नई पहल का ऐलान करते हुए खुशी हो रही है। प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (PM-SHRI) योजना के तहत पूरे भारत में 14,500 स्कूलों का विकास और अपग्रेडेशन किया जाएगा। ये मॉडल स्कूल बनेंगे जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भावना को अपने अंदर समेटेंगे।"

ये ट्वीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। पीएम मोदी ने शिक्षक दिवस के अवसर पर सोमवार, 5 सितंबर को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कुल तीन ट्वीट करके देशभर में 14,500 प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया स्कूल विकसित करने की योजना का ऐलान किया। हालांकि प्रधानमंत्री जिसे नई पहल का नाम दे रहे हैं उसकी घोषणा पिछले साल के बजट भाषण में हो चुकी है। फरवरी 2021के बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने खुद15000 ऐसे स्कूलों के बारे में ऐलान किया था जो, स्कूल नई शिक्षा नीति के सभी गुणों से लैस होंगे, जहां मॉडर्न तकनीक, स्मार्ट क्लासरूम, खेल और अन्य सुविधाओं सहित आधुनिक बुनियादी ढांचा पर ज़ोर दिया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इन स्कूलों की घोषणा पहले ही हो चुकी है, तो पीएम इनकी दोबारा सुर्खी क्यों बनवा रहे हैं, और अगर ये कोई नए स्कूल हैं तो बजट वाले पुराने स्कूलों का एक-डेढ़ साल में क्या हुआ।

बता दें कि इसी साल जून 2022 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी देश भर में 15,000 पीएम श्री स्कूल स्थापित करने की बात कही थी। अब 5 सितंबर को पीएम मोदी ने 14,500 स्कूलों का ऐलान किया है। ऐसे में ये समझ के परे है कि आखिर कागज़ों पर स्कूलों की संख्या पहले ही 500 कैसे घट गई और अगर ये कोई नए स्कूल हैं तो जहां शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है, शिक्षकों की भारी कमी के चलते स्कूल बंद हो रहे हैं, वहां महज़ एक से डेढ़ प्रतिशत स्कूलों का विकास करके क्या हासिल होगा। क्या बिना भेदभाव देश के सभी सरकारी स्कूलों को पीएम श्री स्कूल नहीं बनाया जा सकता है। क्या प्राइमरी शिक्षा के लिए भी अब सरकार अपने ही सरकारी स्कूलों में भेदभाव करेगी।

क्या है असल मुद्दा?

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी का बहुमत है और बीजेपी अपने हर काम को अभूतपूर्व और ऐतिहासिक बताने की कोशिश करती रही है। शायद इसी कोशिश के जाल में पीएम श्री योजना भी फंस गई है। जहां स्कूलों का तो पता नहीं लेकिन ऐलान पर ऐलान जरूर हो रहे हैं। फिलहाल देश में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय को सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट माना जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, ये दोनों स्कूल शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं।

मार्च 2022में संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट है कि 116 नवोदय विद्यालयों में प्रिंसिपल ही नहीं हैं। 23 प्रतिशत स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल ही नहीं हैं। 1900 के करीब पीजीटी और टीजीटी टीचर नहीं हैं। इतना ही नहीं पिछले पांच साल में केवल 55 नए जवाहर नवोदय विद्यालय खुले हैं।

इसी साल मानसून सत्र में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि केंद्रीय विद्यालयों में टीचर्स के 12 हजार से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं अगर नवोदय विद्यालय की बात करें, तो यहां 2021 में टीचर्स के कुल 3158 पद खाली हैं। ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि जब इन स्कूलों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी। और जो स्कूल पहले से गुणवत्ता वाले हैं, सरकार उनकी अनदेखी क्यों कर रही है।

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72 हजार सरकारी स्कूलों पर लगा ताला

वैसे ये विडंबना ही है कि एक ओर सरकार देश को विशेव गुरू बनाने के सपने दिखा रही है तो वहीं दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र से शिक्षकों को ही गायब करती जा रही है। बड़े पैमाने पर स्कूलों तो बंद किया जा रहा है, जो शायद मर्जर और डिजिटलाइजेशन की धुंध में किसी को दिखाई नहीं दे रहा।

कई अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक सितंबर 2018 से लेकर सितंबर 2019 के बीच 51 हज़ार सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए। ये गिरावट करीब 5 प्रतिशत की थी। आम आदमी पार्टी के नाता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनिष सिसोदिया ने भी यह दावा किया है कि बीजेपी सरकार ने पूरे देश में 72 हजार सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया है। ये कोई मामूली संख्या नहीं है, ये पीएम श्री और तमाम मॉडल स्कूलों की घोषणा के बीच खतरे की घंटी है।

गौरतलब है कि सरकार जिस नई शिक्षा नीति से इन स्कूलों को लैस करने की बात कर रही है, वो नीति खुद ही विवादों में है। आलोचक इस नीति को आने वाले दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में ब्लंडर बता रहे हैँ। ये नीति 10+2 की जगह 5+3+3+4 की बात करती है। यानी तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास1और 2 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आख़िर के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12. इसका मतलब है कि अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फ़ॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे। अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास मे जाते थे, तो नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फ़ॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे। प्ले-स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे।

इसके अलावा नई शिक्षा नीति में एक और महत्वपूर्ण बात है भाषा के स्तर पर। इसमें 3 लैंग्वेज फ़ॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/ लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है। साथ ही ये भी कहा गया है कि जहाँ संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाए। संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी ज़ोर दिया गया है। इसके आलोचकों का कहना है कि ये भाषा को लेकर बच्चों के बीच एक बड़ी खाई पैदा कर सकता है। लोग ये भी पूछ रहे हैं कि दक्षिण भारत का बच्चा दिल्ली में आएगा तो वो हिंदी में पढ़ेगा, तो वो कैसे पढ़ेगा?

सीयूईटी पर बवाल, छात्रों का भविष्य अधर में

इस नीति में तीसरी बात बोर्ड परीक्षा में बदलाव की है। पिछले 10 सालों में बोर्ड एग्ज़ाम में कई बदलाव किए गए. कभी 10वीं की परीक्षा को वैकल्पिक किया गया, कभी नंबर के बजाए ग्रेड्स की बात की गई। लेकिन अब परीक्षा के तरीक़े को बदलने की बात सामने आई है। दो बार बोर्ड एग्जाम होंगे, जिसमें अब छात्रों की 'क्षमताओं का आकलन' किया जाएगा, ना कि उनके यादाश्त का। केंद्र की दलील है कि नंबरों का दबाव इससे ख़त्म होगा। इसी के साथ अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से परीक्षा कराने की बात कही गई है। साथ ही रीजनल स्तर पर, राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर ओलंपियाड परीक्षाएं कराने के बारे में भी कहा गया है। आईआईटी में प्रवेश के लिए इन परीक्षाओं को आधार बना कर छात्रों को दाख़िला देने की बात की गई है।

इस साल देश में पहली बार कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट यानी विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा करवाई गई। जिसके चलते ये पहली बार है जब देश में अभी तक सेंट्रल यूनिवर्सिटीस में नए छात्रों का दाखिला ही पूरा नहीं हो पाया। जुलाई में जहां कक्षाएं शुरू हो जाती थीं, वहीं अब तक एडमिशन्स ही नहीं हो पाए हैं। छात्रों का जुलाई और अगस्त परीक्षा होने में ही बीत गया। सितंबर के दिन बीतने की शुरुआत भी हो ही चुकी है। इस परीक्षा का रिज़ल्ट कब आएगा, फिलहाल किसी को कोई जानकारी नहीं है, किसी तारीख का ऐलान नहीं हुआ है। छात्रों को अभी तक पता नहीं कि उनका नामांकन किस कॉलेज में होगा, उन्हें एडमिशन मिलेगा भी या नहीं। प्राइवेट कॉलेजों की बात करें तो वहां पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है। दबाव में आकर छात्र प्राइवेट कालेजों में एडमिशन ले रहे हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक भी इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

शिक्षा का फिलहाल देश में जो भी हाल है, आने वाले दिनों में तस्वीर और भयावह ही नज़र आती है। शिक्षाविद शिक्षा में कॉरपोरेटाइजेशन, आरक्षण की अनदेखी और इसके अति-केंद्रीकरण को छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ बता रहे हैं, तो वहीं सरकार इसे न्यू इंडिया की नई शिक्षा नीति का नाम दे रही है। प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया इसी की एक कड़ी है। ऐसे में देखना होगा कि ये नाम सुनने में जितना अच्छा है क्या इन स्कूलों में काम भी उतना ही अच्छा होगा या इसका हाल भी पहले की तरह ही आदर्श स्कूल, प्रतिभा स्कूल, मॉडल स्कूल और स्मार्ट स्कूल वाला होकर रह जाएगा।

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