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पटनाः साई बाबा की रिहाई रद्द होने के ख़िलाफ़ ‘नागरिक प्रतिवाद’, राजनितिक बंदियों की रिहाई की उठी मांग

सीपीआईएमएल समेत अन्य संगठनों ने 'नागरिक प्रतिवाद' कार्यक्रम में मांग की कि प्रो. जीएन साई बाबा समेत जेलों में बंद सभी राजनीतिक बंदियों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए अन्यथा इंसाफ़ की लोकतांत्रिक आवाज़ को व्यापक बनाया जाएगा।
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लंबे समय से मुंबई की जेल में बंद एक्टिविस्ट व शिक्षाविद प्रोफेसर जीएन साई बाबा को गत शुक्रवार सुनवाई के दौरान जब मुंबई हाई कोर्ट ने उन्हें व अन्य पांच एक्टिविस्टों को बाइज़्ज़त रिहा करने का आदेश दिया था तो सबको लगा कि सचमुच में “न्याय की जीत हुई” है और सोशल मीडिया में रिहाई के स्वागत भरे पोस्टों की बाढ़ आ गई। लेकिन आनन् फानन में महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर विशेष सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुंबई हाई कोर्ट के रिहाई के फ़ैसले पर रोक लगाने के आदेश ने सभी को चौंका दिया। इस अप्रत्याशित परिघटना से देश की न्यायपालिका पर भरोसा रखने वालों को मानो बड़ा झटका लगा।

मिल रही ख़़बरों के अनुसार देश से लेकर विदेश तक इस पर प्रतिक्रिया दी जा रही है। प्रो. साई बाबा 90% विकलांगता के कारण केवल व्हील चेयर पर चल सकते हैं। उन्हें हृदय, पैन्क्रिया संबंधी परेशानी, गॉलब्लॉडर में स्टोन समेत कई गंभीर बीमारियां हैं जिनके कारण तत्काल इलाज की ज़रूरत है। लेकिन अदालत ने जेल से बाहर उन्हें हाउस अरेस्ट की अपील को भी ठुकरा दिया है।

सीपीआईएमएल ने बयान जारी कर कहा कि प्रो साई बाबा को जेल में सात साल से भी अधिक समय हो गया है और इस दौरान उनके साथ जेल में बंद पांडू नारोतने की मौत भी हो चुकी है। जिस तरह से वर्तमान केंद्र की सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ बोलने वालों को यूएपीए जैसे अन्यायी क़ानूनों के तहत जेलों में बंद किया जा रहा है, उससे स्पष्ट है कि जस्टिस सिस्टम का भी इस्तेमाल देश के नागरिकों के ख़िलाफ़ दमन के हथियार के रूप में किया जा रहा है।

ज्ञात हो कि 17 अक्तूबर को बिहार की राजधानी पटना में देश के न्याय तंत्र पर सवाल उठाते हुए ‘नागरिक प्रतिवाद’ निकाला गया। ऑल इंडिया पीपल्स फोरम (एआईपीएफ़), जन संस्कृति मंच, आइसा व इनौस समेत नागरिक अधिकार संगठन के प्रतिनिधियों ने पोस्टर-बैनर के साथ प्रतिवाद प्रदर्शित किया।

साई बाबा व अन्य पांच एक्टिविस्टों की रिहाई रद्द किये जाने के विरोध तथा तमाम राजनीतिक बंदियों की बिना शर्त रिहाई व यूएपीए जैसे अमानवीय क़ानूनों को रद्द किये जाने की मांग को लेकर ये मार्च निकाला गया।

पटना स्थित बुद्ध स्मृति पार्क परिसर के नज़दीक आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षाविद, बुद्धिजीवी, नागरिक अधिकार आंदोलन कार्यकर्ताओं के अलावा कई छात्र युवा संगठनों के प्रतिनिधियों ने उक्त मामले को देश में अघोषित आपातकाल थोपे जाने के विरोध के रूप में नाराज़गी व्यक्त की।

नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रो. संतोष कुमार ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि सदा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए मुखर रहनेवाले प्रो साई बाबा जैसे शिक्षाविद जो दिव्यांग होने के साथ साथ कई जानलेवा बीमारियों से पीड़ित हैं उनकी रिहाई रद्द करके सुप्रीम कोर्ट ने ‘न्याय पाने की रही सही उम्मीद’ को धूल धूसरित कर दिया है। साथ ही यह भी साबित कर दिया है कि अब वह देश की जनता के लिए कोई निष्पक्ष “पंच परमेश्वर” नहीं बल्कि सरकार के इशारों पर ही अमल करने वाली बन चुकी है। ऐसे में अब इंसाफ़ पसंद लोगों को अपने न्याय पाने के अधिकार के लिए ‘ज़़मीनी प्रतिवाद’ में खड़ा होना वक़्त की ज़रूरत बन गयी है।

पटना विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के शिक्षाविद प्रो. संतोष जो दिव्यांग होने के कारण व्हीलचेयर से इस प्रतिवाद में शामिल होने आए थे, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया दी। अपने संबोधन में उन्होंने सवाल उठाया कि क्या देश का न्याय तंत्र इस अवस्था में जा पहुंचा है कि जनविरोधी सरकारों की मर्ज़ी से ही उसे काम करना है? क्या वह एक अति दिव्यांग शिक्षाविद को पढ़ाने और बोलने मात्र से डरनेवली सरकार के कहे पर उन्हें जेल में बंद रखना चाहती है।

1974 के आपातकाल विरोधी छात्र आंदोलन के अगुआ रहे वरिष्ठ आंदोलनकारी व भाकपा माले नेता कृष्णदेव यादव ने कहा कि उस दौर का आपातकाल तो घोषित तौर पर कुछ समय के लिए थोपा गया था। लेकिन आज उसके विरोध का नाटक करने वाला राजनीतिक दल पूरे देश में हमेशा के लिए अघोषित आपातकाल थोप रहा है। इसे भी देश की लोकतंत्र पसंद जनता कत्तई बर्दास्त नहीं करेगी और उसे उखाड़ फेंकेगी।

भाकपा माले विधायक गोपाल रविदास ने आरोप लगाया कि मौजूदा केंद्र की सरकार जो ख़ुद को तो लोकतांत्रिक होने का शोर मचाती है लेकिन उसे लोकतंत्र पसंद शिक्षाविद, बुद्धिजीवी और एक्टिविस्टों से ही डर लगता है। प्रो. साईँ बाबा जैसे लोकतांत्रिक आवाज़ों को जेलों में बंद रखकर लोकतंत्र को ख़त्म नहीं कर सकती। इसकी एक फितरत बन गयी है कि जब चाहती है वो किसी को भी “देशद्रोही” क़रार देकर जेलों में बंद कर देती है। ऐसे में जनता के सभी वर्गों में इसके ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढता जा रहा है जो यक़ीनन आने वाले देश के आम चुनाव में अपना हिसाब लेगा। इसकी एक शुरुआत बिहार में नए राजनीतिक महागठबंधन के ज़रिए हो चुकी है।

इस प्रतिवाद कार्यक्रम को अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की शशि यादव तथा आइसा बिहार के राज्य सचिव समेत कई वामपंथी एक्टिविस्टों ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन पटना विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता व एआईपीएफ़ के कमलेश शर्मा ने किया।

वक्ताओं ने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार को लोकतांत्रिक सवालों से इस क़दर डर लगने लगा है कि अब वह ‘न पेशी न सुनवाई’ बल्कि जेलों में बंद करके मार डालने का फासीवादी फार्मूला अपना रही है। फादर स्टैन स्वामी की “संस्थागत हत्या” इसी का प्रमाण है। नागरिक प्रतिवाद कार्यक्रम के ज़रिए मांग की गयी कि सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र व इंसाफ़ के स्वविवेक से काम ले व देश की न्याय-मर्यादा का पालन करे। प्रो. जीएन साई बाबा समेत जेलों में बंद सभी राजनीतिक बंदियों को जल्द से जल्द रिहा करे अन्यथा इंसाफ की लोकतांत्रिक आवाज़ को व्यापक बनाया जाएगा।

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