पटना जल जमाव : न लोगों की चिंता, न अदालत का डर !
ये हमारे दौर की लोकतान्त्रिक कहे जाने वाले सत्ता - शासन की विसंगतियों की ही पराकाष्ठा है, जिसमें सरकार और उसका समूचा तंत्र इतना बेलगाम हो जाय कि हाई कोर्ट की फटकार का भी कोई असर न दिखे। 18 अक्टूबर को पटना हाई-कोर्ट ने पिछले दिनों राजधानी में जल जमाव से उत्पन्न भयावह जन +आपदा से निपटने में फेल राज्य सरकार को बुरी तरह फटकारा। जज ने यह स्पष्ट आदेश दिया कि राजधानी को दीपावली से पहले साफ–सुधरा और जल जमाव से मुक्त बनाने के लिए युद्ध स्तर पर सभी आवश्यक कार्रवाई पूरी कर 25 अक्टूबर को अदालत के समक्ष हलफनामा प्रस्तुत किया जाय। यह फैसला जल जमाव आपदा से तबाहो–बर्बाद हुए राजधानी वासियों की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जज महोदय ने सुनाया।
25 अक्टूबर को ही इस मामले की अगली सुनवाई होनी है। इस दौरान कोर्ट रूम में उपस्थित सारे लोग उस समय सन्न रह गए जब सुनवाई कर रहे जज महोदय ने जल आपदा के भुक्तभोगी के रूप में अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने बताया कि आपदा के समय जब उन्होंने आशियाना स्थित अपने निवास स्थान के पास टूटे हुए नाले की शिकायत के लिए नगर आयुक्त को फोन किया तो उन्होने रिसिव नहीं किया और जब काफी मशक्कत के बाद उन्हें सूचना दी गयी तो उस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
मीडिया की खबरों के अनुसार अदालती फटकार सरकार–नेता व आला अफसरों के लिए कोई नयी बात नहीं है। 1991 से ही राजधानी में होनेवाले जल जमाव से त्रस्त नागरिकों द्वारा याचिकाएँ दी जाती रही है । जिन पर संज्ञान लेते हुए दर्जनों बार अदालती फटकार लगाई जा चुकी है । कोर्ट के सामने राज्य के मुख्य सचिव तक को हाज़िरी लगानी पड़ी लेकिन समस्या यथावत बनी रही । इसी साल 27 जुलाई को तो ऐसी स्थिति हुई कि राज्य के 24 बड़े प्रशासनिक और पुलिस के आला अधिकारियों को जज के सामने एकसाथ हाज़िरी लगानी पड़ी फिर भी नतीजा सिफ़र निकला।
विशेषज्ञों के अनुसार शुरू से ही राजधानी के बसावट को लेकर उसकी अर्बन प्लानिंग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मंत्री – नेता – नौकरशाह / अफसरों और ठेकेदारों को नगर विकास की राशि के बंदर बाँट और चुनाव में लोगों के सिर्फ वोट से मतलब रहा। मनमाने तरीके से ऐसी बड़ी बड़ी कोलनियाँ और मुहल्ले बसते गए जहां से पानी निकास और आवागमन इत्यादि की प्लानिंग से किसी को मतलब नहीं रहा। नगर निगम को मतलब रहा सिर्फ मकान का नंबर देने और होल्डिंग टैक्स वसूलने से । वहीं रियल स्टेट निर्माता ठेकेदारों और निजी मकान मालिकों ने भी विधिवत नक्शा बनाए और निगम से पास कराये बगैर ही ‘ खिला–पिला कर ‘ निर्माण कार्य कर लिया। बाद में रस्म अदायगी के लिए नगरवासियों व नगर की मूलभूत सुविधाओं को लेकर हर स्तर पर विमर्श और कागजी योजनाएं बनाकर कर फंड का महागठबंधनी लूट की गयी।
फिर से सनद के लिए कि पिछले कई चुनावों से राजधानी की दोनों संसदीय और सभी विधान सभा सीटों पर भाजपा के ही नेता जीतते रहें हैं। लेकिन राजधानी की बुनियादी नागरिक समस्या - संकट समाधान न उनकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहा और न ही उन्हें वोट देनेवाले जागरूक मतदाताओं ने उनपर इसके लिए कोई दबाव डाल। बात बात पर नगर - समाज हलकान करनेवाले हुड़दंगी राष्ट्रभक्तों ने भी कभी ऐसे सवालों पर कोई हुड़दंग नहीं मचाई और न ही कोई आवाज़ उठाने का राष्ट्रीय कर्तव्य निभाया जैसा उन्होने अभी मोदी जी द्वारा पाकिस्तान को खरी खोटी सुनाने के स्वागत में किया।
खबरों की मानें तो अभी भी कई इलाकों में जमा काला पानी से डायरिया , वायरल फीवर और चरम रोग जैसी बीमारियां हर दिन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है । प्रदेश के कई इलाकों में डेंगू फैलने की सूचनाएँ बढ़ती जा रही है वहीं , राजधानी स्थित पीएमसीएच – एनएमसीएच समेत कई अस्पतालों में भी डेंगू पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रिय रस्म के तहत केंद्र की एक जांच टीम फिर से दौरा कर रही है । राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता एवं स्वास्थ्य मंत्री इन गंभीर स्थितियों का जायजा खुद लेने जाने की बजाय राजधानी स्थित होटल मौर्या में डाक्टरों की कार्यशाला में उन्हें स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने और बिहार स्वस्थ बनेगा का नारा लगा रहें हैं।
अबकी बार जल जमाव की भीषण आफत ने राजधानीवासियों के हर तबके के नागरिकों के होश ठिकाने लगा दिये हैं । तभी तो ऐसा पहली बार हुआ जब भाजपा को ‘ यही है च्वाइश ’ कहकर हमेशा वोट देनेवाले पॉश नागरिकों को अपने ही चहेते नेता व प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जी का राजेन्द्र नगर स्थित पैतृक निवास के साथ साथ निगम कार्यालय का घंटों घेराव कर धरना - प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा। जल आपदा पीड़ित नागरिक संघर्ष मोर्चा बनाकर सरकार से मांग की गयी है कि --- जल जमाव से हुई व्यग्तिगत क्षति का मुआवजा दिया जाय , दोषी अधिकारियों – कर्मचारियों को चिन्हित कर उनपर तत्काल कारवाई हो , जल जमाव आपदा की पुनरावृति रोकने के लिए फौरन कारगर उपाय अमल में लाये जाएँ, नालों की सफाई के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की त्वरित जांच व इसके सरकारी बजट पर श्वेतपत्र जारी हो, पानी में डूबी–क्षतिग्रस्त गाड़ियों की इंश्योरेंस कंपनियों से क्षतिपूर्ति कराई जाय ........ ! अनुमान है कि इस जल – जंजाल ने 100 करोड़ से भी अधिक की नागरिक संपत्ति का नुकसान किया है।
15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के आदेश से नगर विकास के प्रधान सचिव और वुडको ( बिहार अर्बन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ) के एमडी को उनके तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। 8 आईएस का तबादला समेत जल जमाव आपदा के दौरान अपनी जवाबदेही नहीं निभानेवाले 4 दर्जन से अधिक अधिकारियों व इंजीनियरों को भी नोटिश जारी हुआ है । जबकि राजधानी के नागरिक समाज द्वारा हाई कोर्ट में दायर कई जनहित याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने इसे एक गंभीर नागरिक समस्या माना है।
ये सही है कि राजधानी पटना में जल जमाव का संकट कोई आज पैदा हुई समस्या नहीं है लेकिन अबकी बार यह समस्या कर गई लोगों का बंटाधार । चिंताजनक यह भी है जनहित के लिए राजनीति का दावा करनेवाले गठबंधन सरकार के सत्ताधारी दल भाजपा और जदयू के स्थापित नेता – कार्यकर्त्ता जगह जगह जमा हुए काला पानी में उतरकर लोगों की मदद करते हुए की एक भी सेलफ़ी वायरल करने तक की जहमत नहीं उठाई । मुख्य प्रतिपक्ष राजद के आलवे अन्य विपक्षी दलों के नेता–कार्यकर्ता भी बहुत नहीं दीखे । वहीं सांसद पप्पू यादव और भाकपा माले व उसके छात्र – युवा संगठनों के उत्साही सदस्यों के आलवे अनगिनत स्थानीय और सामाजिक संगठनों–संस्थाओं के लोग और युवाओं ने बढ़ चढ़कर पीड़ितों को राहत–मदद पहुंचाई । सवाल फिर भी रह जाता है कि – ऐसा क्या है कि जिन सरकार व नेताओं को लोग वोट देकर तो सत्ता में स्थापित कर देते हैं , लेकिन उसके बेलगाम हो जाने पर कोई लगाम लगाने और उसके काम काज का हिसाब–जवाब लेने पर उतारू नहीं होते …….. ?
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