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तिरछी नज़र: आंख आने के बहाने

आंखों की यह बीमारी बड़ी तेज़ी से फैलती है। लगभग उतनी ही तेज़ी से फैलती है जितनी तेज़ी से नफ़रत फैलती है, या फिर जितनी तेज़ी से अफ़वाह फैलती है।
Modi
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए

उत्तरी भारत में, दिल्ली और आसपास के इलाके में आंखें लाल होने की बीमारी मतलब कंजंक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) चल रही है। पुरुषों-महिलाओं, छोटों-बड़ों सभी को हो रही है। वैसे बच्चों को कुछ ज्यादा हो रही है, पर हो सभी को रही है।

आम बोलचाल की भाषा में इस बीमारी को 'आंख आना' कह देते हैं। वैसे तो आंखें कहीं गई नहीं होती हैं कि कहीं से लौट कर आ गई हों, आंखें तो वहीं की वहीं होती है पर न जाने क्यों लोग इसे 'आंख आना' भी कहते हैं। खैर कोई न कोई वजह होगी ही जो कंजंक्टिवाइटिस को 'आंख आना' कहते हैं। इस मामले में किसी भाषाविद को पकड़ना ठीक रहेगा।

खैर जो भी हो,कंजंक्टिवाइटिस या आंख आने की बीमारी में आंख में दर्द होता है, आंख लाल हो जाती है और आंखों से पानी आने लगता है। ऐसा लगता है जैसे कि आंखों में कुछ रड़क सा रहा है, कुछ पड़ गया हो। सिर में दर्द भी हो जाता है। किसी किसी को तो बुखार भी आ जाता है।
 
आंखों की यह बीमारी बड़ी तेजी से फैलती है। लगभग उतनी ही तेजी से फैलती है जितनी तेजी से नफरत फैलती है, या फिर जितनी तेजी से अफवाह फैलती है। एक में जन्मी नहीं, कि दूसरे को फैल गई। नफरत और अफवाह दूर दूर तक फैल जाती हैं, बिना निकट संपर्क के फैल जाती हैं, फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर सॉरी X से भी फैल जाती हैं। पर एक तो कंजंक्टिवाइटिस के फैलने के लिए निकट का संपर्क, निजी संपर्क होना जरूरी है। दूसरे इसमें दूसरी अच्छाई यह है कि यह नफरत और अफवाह की तरह यह वाट्सएप यूनिवर्सिटी से नहीं फैलती है।
 
कंजंक्टिवाइटिस में आंखें लाल हो जाती हैं। आज कल के जमाने में तो किसी भी की किसी भी बात से आंखें लाल नहीं होती हैं। न तो मणिपुर की वजह से आंखें लाल होती हैं और न ही नूंह की घटना पर। और तो और हम तो ट्रेन में आरपीएफ के जवान द्वारा चार-चार लोगों की मुसलमान समझ कर हत्या कर देने पर भी आंखें लाल नहीं करते हैं।  महंगाई, बेरोजगारी पर तो आंखें लाल करना हम आठ नौ साल से भूल चुके हैं। हां, पिछले नौ वर्ष में सरकार जी ने एक बार आंखें लाल की हैं, वह भी लाल चीन के खिलाफ। उसके बाद तो सरकार जी भी आंखें लाल करना भूल चुके हैं। वे भी अब किसी के खिलाफ आंखें लाल नहीं करते हैं। न तो उपद्रवियों के खिलाफ, न हत्यारों के खिलाफ और न ही बलात्कारियों के खिलाफ। तो अब यह कंजंक्टिवाइटिस ही है जिसकी वजह से लोग आंखें लाल किए बैठे हैं।
 
कंजंक्टिवाइटिस में आंखों से पानी भी बहने लगता है। मतलब रो नहीं रहे होते फिर भी आंसू बह रहे होते हैं। ये आंसू जो अब कब के सूख ही चुके हैं, किसी भी दुर्घटना पर नहीं बहते, कत्ले आम पर नहीं बहते, सामूहिक बलात्कारों पर भी नहीं बहते, और अगर बहते भी हैं तो मगरमच्छी बहते हैं। इन सूखी आंखों से भी आंसू अब कंजंक्टिवाइटिस, या फिर कहें तो 'आंख आने' पर बह रहे हैं।  
 
इस कंजंक्टिवाइटिस के कारण ही सब लोग काला चश्मा लगाये घूम रहे हैं। एक दूसरे से आंखें भी चुराने लगे हैं। एक दूसरे की आंखों में आंख डाल कर नहीं देख रहे हैं। आंखों में आंखें डाल कर बात नहीं कर रहे हैं। बिल्कुल ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे मन में कोई चोर हो। जैसे कोई अपराध किए बैठे हों। डर रहे हैं कि कहीं कोई आंखों में झांक कर चोरी पकड़ न ले। डर रहे हैं कि कहीं कंजंक्टिवाइटिस न हो जाए। 
 
सरकार जी भी हिम्मत नहीं कर रहे हैं कि संसद में जा कर, विपक्षी सांसदों की आंखों में आंख डाल कर मणिपुर पर जवाब दे सकें, कुछ कह सकें। वे इसलिए नहीं डर रहे हैं कि मन में कोई चोर है। न ही इसलिए डर रहे हैं कि उनके पास कोई जवाब नहीं है। वे राजस्थान जा रहे हैं, गुजरात जा रहे हैं, फीते काट रहे हैं, हरी झंडी दिखा रहे हैं। बस संसद नहीं जा रहे हैं। नहीं जा रहे हैं कि कहीं कंजंक्टिवाइटिस न हो जाए। कहीं आंखें न आ जाएं।
 
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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