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सुप्रीम कोर्ट में पीरियड लीव की याचिका खारिज़

अपने हक़ के लिए महिलाओं को करना होगा और इंतज़ार।
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फ़ोटो साभार: PTI

सुप्रीम कोर्ट में आज शुक्रवार, 24 फरवरी को पेड पीरियड लीव मामले में दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने अब इस मसले पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए कहा कि ये एक नीतिगत मुद्दा है, जो अदालत की सीमा के दायरे में नहीं आता। इसलिए बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करें। यहां सीजेआई ने ये भी कहा कि इस मुद्दे पर किसी भी तरह का न्यायिक आदेश महिलाओं के हितों के विरुद्ध भी साबित हो सकता है यानी ऐसी संभावना है कि छुट्टी की बाध्यता होने पर लोग महिलाओं को नौकरी देने से परहेज करें। अदालत का ये फैसला उन सभी महिलाओं के लिए एक झटका है, जो कोर्ट की ओर कुछ बदलाव की टकटकी लगाए बैठी थीं।

बता दें कि इस साल 11 जनवरी को वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेड पीरियड लीव को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि 1961 के मैटरनिटी बेनिफिट एक्‍ट में महिलाओं को प्रेगनेंसी के वक्‍त तो वैतनिक अवकाश मिलता है, लेकिन पीरियड्स को लेकर इस तरह का कोई नियम नहीं है। कुछ कंपनियां स्वैच्छिक रूप से एक या दो दिन की छुट्टी देती हैं, तो वहीं देश के कुछ राज्यों में भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को दो दिन की पेड लीव मिलती है। लेकिन इसे लेकर कोई एक देशव्यापी नियम नहीं है, जो सभी राज्‍यों और कंपनियों पर समान रूप से लागू होता हो। ऐसे में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वह मेंस्ट्रुअल पेन लीव दिए जाने को लेकर नियम बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दे।

इसे भी पढ़ें: पीरियड लीव की मांग जायज़ और ज़रूरी क्यों है?

क्या है मेंस्ट्रुअल पेन लीव का कॉन्सेप्ट?

मेंस्ट्रुअल लीव को यदि आसान भाषा में समझे तो ये पीरियड्स के दौरान छुट्टी की बात है। क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को मानसिक और शारीरिक परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इस समय उन्हें पेट दर्द, बदन दर्द, उल्टी, तेज़ बुखार जैसी कई परेशानियों से दो चार होना पड़ता है, इसका काम के संबंध में प्रोडक्टिविटी पर भी असर पड़ता है। इसलिए देश-विदेश में पीरियड लीव की मांग समय-समय पर उठती रही है।

2016 में लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रजनन स्वास्थ्य के प्रोफेसर जॉन गिलेबॉड ने बताया था कि पीरियड्स के दौरान कई औरतों को उतनी ही तकलीफ़ होती है जितनी एक हार्ट अटैक के दौरान होती है। डिस्मेनोरिया पर 2012 में किए गए शोध के अनुसार कम से कम 20 फीसदी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान इतनी तकलीफ़ होती है कि उनके लिए चलना भी मुश्किल हो जाता है। एक अध्ययन के अनुसार हर साल महिलाओं के पीरियड्स दर्द की वजह से काम के संबंध में प्रोडक्टिविटी में औसतन 33 फीसदी की कमी पाई गई, जो औसतन 9 दिन की कमी के बराबर है।

पीरियड लीव में बिहार सबसे आगे

भारत की बात करें, तो बिहार पहला ऐसा राज्य है, जहां साल 2 जनवरी 1992 से महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स के लिए छुट्टी दी जा रही है। इसके लिए उन्होंने 32 दिन तक हड़ताल की थी जिसके बाद उन्हें यह हक मिला। इसकी शुरुआत लालू प्रसाद यादव की सरकार ने की थी। इसके बाद 2017 में मुंबई में स्थित कल्चर मशीन ने 1 दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की। साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने पीरियड लीव देने का ऐलान किया। इस समय भारत में 12 कंपनी पीरियड लीव दे रही हैं जिसमें बायजू, स्विगी, मातृभूमि, बैजू, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर जैसी कंपनी शामिल हैं। हाल ही में केरल सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग के तहत आने वाले राज्‍य के सभी विश्वविद्यालयों की छात्राओं को पीरियड लीव देने का ऐलान किया था। इससे पहले कोचीन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीयूएसएटी) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपनी फीमेल स्टूडेंट्स को हर महीने पीरियड लीव दिए जाने की घोषणा की थी।

गौरतलब है कि देश में पहली बार मासिक धर्म से जुड़ा मेन्स्ट्रुएशन बेनिफ़िट बिल, 2017 अरुणाचल प्रदेश से सांसद निनॉन्ग एरिंग ने रखा था। इस प्राइवेट बिल में कहा गया था कि सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाली महिलाओं को दो दिन के लिए 'पेड पीरियड लीव' यानी पीरियड्स के दौरान दो दिन के लिए छुट्टी दी जानी चाहिए। हालांकि ये बिल विरोध के चलते आगे नहीं बढ़ सका। इस संबंध में बीते साल लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने था कहा था कि ‘सेंट्रल सिविल सर्विसेज (लीव) रूल 1972’ में पीरियड लीव का कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने आगे ये भी कहा था कि इस तरह की छुट्टियों को इन नियमों में शामिल करने का भी फिलहाल कोई प्रस्ताव भी नहीं है।

बहरहाल, अभी तो हमारे देश के लिए पीरियड पावर्टी यानी पीरियड प्रोडक्ट्स खरीदना ही महंगा सौदा बना हुआ है, ऐसे में पीरियड्स को लेकर अपने अधिकारों के प्रति महिलाओं को खुद भी जागरूक होना जरूरी है, ताकि पीरियड्स के दौरान स्वच्छता बरती जा सके। कामकाजी महिलाओं के साथ ही घर पर काम करने वाली महिलाओं को भी पीरियड के दौरान अपने आप पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है। इसके अलावा बिना किसी हिचक इस पितृसत्तात्मक समाज में पीरियड से जुड़े मिथकों को भी तोड़ने की जरूरत है।

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