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बेरोज़गारी के आलम को देखते हुए भर्ती संस्थाओं को चाक-चौबंद रखने की सख़्त ज़रूरत  

पिछले 10-12 सालों से तकरीबन 1,983 शारीरिक शिक्षा के प्रशिक्षक स्थायी तौर पर हरियाणा के स्कूलों में कार्यरत थे, उन्हें बिना उनकी किसी ग़लती के 1 जून 2020 से नौकरियों से बर्ख़ास्त कर दिया गया है।
बेरोज़गारी
प्रतीकात्मक तस्वीर।

केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में अनेक पदों पर भर्ती के लिए की जाने वाली चयन की प्रक्रिया हाल के वर्षों में चरमराने लगी है। समूची व्यवस्था ही कुछ इस प्रकार से चरमरा कर ध्वस्त होने के कगार पर खड़ी है कि वे युवा जो अपनी काबिलियत के बल पर गौरवमयी नौकरी के ख्वाब मन ही मन पाले हुए थे, उनके लिए यह सब बड़ी तेजी से मृगतृष्णा साबित होता जा रहा है। लेकिन व्यवस्था जिस तरह से उनके साथ पेश आ रही है वह लाखों बेरोजगार युवाओं के जख्मों पर नमक छिडकने से कहीं कम नहीं।

अनियमितताओं और प्रक्रियाओं में आपराधिक उल्लंघन से भरे ऐसे अनगिनत उदहारण देश भर में चारों तरफ फैले पड़े हैं, जिसमें नवीनतम योगदान पिछले दिनों हरियाणा में देखने में आया है। इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1,983 पी.टी.आई (शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षकों) को जो हरियाणा के स्कूलों में पिछले 10-12 वर्षों से स्थाई तौर पर अध्यापन के कार्य से जुड़े हुए थे, को दोषपूर्ण करार दिए जाने के बाद से हरियाणा सरकार द्वारा 1 जून 2020 से बर्खास्त कर दिया गया है। और नतीजे के तौर पर आमजन की निगाह में चयन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों की विश्वसनीयता एक बार फिर से संदेह के घेरे में आ चुकी है।

जिस प्रकार से राजनीतिक ताकत का बेरुमव्व्त के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है उसकी भारी कीमत जिस प्रकार से बेगुनाह उम्मीदवारों द्वारा चुकाई जा रही है, वह अपने आप में बेहद शर्मनाक है, जबकि वे किसी भी प्रकार से न्यायालय की तरफ से कुसूरवार नहीं ठहराए गए हैं। सभी बर्खास्त पीटीआई हरियाणा के सभी जिला केन्द्रों पर कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं।

सभी अपदस्थ अध्यापकों में, जिनमें अच्छी खासी तादाद में महिलाएं भी शामिल हैं, वे 45 से 50 वर्ष के बीच में चल रहे हैं। प्रभावित शिक्षकों के पास बच्चों के भरण पोषण और जीवन-यापन की जिम्मेदारियां शेष हैं। ये अध्यापक अब किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने की उम्र को पार कर चुके हैं, या किसी अन्य नौकरी को कर पाने और किसी अन्य साधन से अपना गुजारा चला पाने की अवस्था में नहीं हैं। इनमें से कई लोग अपने समय के नामी गिरामी एथलीट रहे हैं। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होने अपने-अपने स्कूलों में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उनके कौशल को निखारने में जमकर मेहनत कर रखी है।

2018 के ‘खेलो इण्डिया’ कार्यक्रम के दौरान हरियाणा ने 17 वर्ष से कम आयु वर्ग की ट्राफी पर कब्जा जमाया था। इस सबके पीछे इन बर्खास्त्त किये गए पीटीआई शिक्षकों द्वारा की गई मेहनत से प्रतिभा तराशने का अहम् योगदान रहा था। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन खेलों में इन खिलाडियों ने कुल 102 पदक हासिल किये, जिसमें 30 स्वर्ण, 26 रजत एवं 38 कांस्य पदक के साथ राज्य का गौरव बढ़ाया था।

और यही वजह है कि इन अध्यापकों के समर्थन में समाज के विभिन्न वर्गों से अभूतपूर्व समर्थन की लहर देखने को मिल रही है। कई नामी-गिरामी खेलों से जुडी हस्तियों ने इस बाबत मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखकर इन सभी प्रभावित शिक्षकों की बहाली की अपील की है, जो कि अब तकरीबन सेवानिवृत्त की दहलीज पर खड़े हैं। इनमें से करीब 40 पीटीआई शिक्षकों के अपने कार्यकाल के दौरान गुजर जाने के चलते परिवार के सदस्यों को अनुकंपा के आधार पर भरण पोषण के लिए अभी तक वेतन दिया जा रहा था।

इनमें से तकरीबन 400 अध्यापकों को डीपीई के पद पर पदोन्नति भी मिल चुकी थी। विस्तार से मामले के बारे में जानकारी प्राप्त करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा माननीय न्यायायल को जमीनी हकीकत से पूरी तरह से अवगत नहीं कराया गया है। इस सारे मामले को सरकार मजे की बात यह है कि हरियाणा सरकार विभिन्न श्रेणियों के लगभग 2,000 शिक्षकों को बर्खास्त करने के मामले में बेहद चुस्त दिखी। इसने लॉकडाउन अवधि के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित बर्खास्तगी की प्रक्रिया का इंतजार करने के बजाय 1 जून के दिन ही इन सभी को बाहर का रास्ता दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

आमतौर पर न्यायिक आदेशों के पालन में जिस तरह का ढीलापन इनकी ओर से देखने को मिलता है, के विपरीत जिस प्रकार से राज्य सरकार द्वारा इस मामले में अति-उत्साह दिखाया है, वह अपनेआप में गंभीर प्रश्नों को उपजाने में पर्याप्त है। यहाँ पर तो सर्वोच्च नयायालय के आदेश को लागू करने के नाम पर पीटीआई शिक्षकों की बर्खास्तगी में जरा भी देरी नहीं की गई है।राज्य में बेरोजगारी की स्थिति का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल के दिनों में 18,000 डी श्रेणी की नौकरियों के लिए 23 लाख नौजवानों ने आवेदन किया था। इनमें से कई स्नातक, पोस्ट-ग्रेजुएट और विज्ञान से शोधार्थी थे। इसी प्रकार 1983 पीटीआई शिक्षकों के पदों के लिए 20,860 अभ्यर्थियों ने आवेदन दिया था।

खेती-किसानी पर कुछ समय पूर्व तक निर्भर अर्थव्यवस्था वाले प्रदेश के तौर पर हरियाणा कोई अकेला राज्य नहीं है जहाँ बेरोजगारी ने समूचे परिदृश्य को बदल कर रख दिया है।एक समय था जब 65% आबादी पूरी तरह से कृषि पर निर्भर थी जिसका अर्थव्यवस्था में उस दौरान 64% का योगदान हुआ करता था। आज खेती का अर्थव्यवस्था में योगदान मात्र 16% ही रह गया है, जबकि 65% आबादी जस की तस वहीँ पर बनी हुई है। यह सब इसी का परिणाम है कि यहाँ पर भयानक बेरोजगारी का आलम छाया हुआ है।

सेवा क्षेत्र के अलावा यहाँ पर किसी भी प्रकार के कृषि-आधारित लघु उद्योगों को विकसित नहीं किया जा सका है। यदि ऐसा होता तो बढती रोजगार की जरूरतों को कुछ हद तक पूरा किया जा सकता था। लेकिन देखने में आया है कि जो नए राज्य निर्मित किये गए हैं, वहाँ पर छोटी अर्थव्यवस्था के चलते कहीं ज्यादा मुश्किलें पेश आ रही हैं।

हरियाणा में बेरोजगारी का मौजूदा स्तर 29% तक पहुँच चुका है, जोकि अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना काफी अधिक है। समुचित रोजगार के अवसरों और गरिमापूर्ण जीवन जी पाने में आ रही मुश्किलों के चलते भारी संख्या में नौजवान नशे और अपराध की दुनिया में जाने के लिए बाध्य हैं।कानून और व्यस्था की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है। ऐसे में खेलकूद के माध्यम से युवाओं के जीवन में इन शिक्षकों की ओर से किये जा रहे प्रयास उन्हें इस दलदल में जाने से रोक पाने में बेहद असरकारक रहे हैं। तत्कालीन सरकारों ने कभी भी योजना आयोग के साथ इस विषय में बातचीत कर एक वैज्ञानिक नजरिये को विकसित करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है।

आज जब 50% आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है तो ऐसे में एक नौजवान देश को अपने लिए एक नए पाठ्यक्रम के शुभारंभ को अमल में लाना चाहिए।

मतदाताओं ने अपने नेताओं पर हर बार अपना विश्वास जताया है और उन्हें सत्ता में लाने का काम किया है, लेकिन बदले में हर बार उन्हें चुनाव के दौरान किये गए वायदों से मुकरने के बाद जनता के ऐसे नेताओं से विमुख होने के बाद उन्हें हार का मुहँ देखना पड़ा है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और उनके बेटे आज जेल की सलाखों के पीछे हैं क्योंकि नौकरियों में भर्ती की प्रक्रिया में जरुरी पारदर्शिता को वे कायम न रख सके थे।

यदि भर्ती की प्रक्रिया से सम्बन्धित जांच को पूरी तरह से पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाए तो कई अन्य पूर्व मुख्य मंत्रियों और यहाँ तक कि वर्तमान राजनीतिक गलियारों से भी कई और गड़े मुर्दे बाहर निकाले जा सकते हैं। इसका एक नमूना देखें: वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान उच्च शिक्षा परिषद के चेयरमैन के खिलाफ गम्भीर आरोपों के तहत एक एफआईआर दर्ज हुई थी। आम लोगों द्वारा उन्हें पद से बर्खास्त किये जाने की मांग को लेकर भारी तमाशा किये जाने के बावजूद वर्तमान शासन ने इस अभियुक्त को कदम-कदम पर बचाने की पुरजोर कोशिश की है।

इसी तरह 1 जुलाई को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की ओर से हरियाणा सरकार और हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के खिलाफ 1624 जूनियर इंजिनियर की भर्ती में हुए भ्रष्टाचार को लेकर नोटिस जारी किया है।पिछले 30 से 35 वर्षों के दौरान हालत यह है कि सरकार की ओर से नौकरी के लिए विज्ञापन जारी किये जाते हैं, इसके बाद फॉर्म भरने की प्रक्रिया के दौरान नौजवानों से धन संग्रह किया जाता है, लेकिन एक भी परीक्षा पेशेवर तरीके से सम्पन्न कर पाने में हम विफल रहे हैं। परीक्षा के दौरान पेपर लीक हो जाने के मामले स्थिति की भयावहता को बताने के लिए पर्याप्त हैं।

यदि किसी प्रकार से चयनित सूची जारी भी हो जाती है तो इसे न्यायालय में तत्काल चुनौती दे दी जाती है। नौकरी के लिए ज्वाइन करने के लिए लैटर हासिल करने की कष्टप्रद यात्रा में यहाँ बरसों बीत जाते हैं।मौजूदा व्यवस्था में सताए अन्य लोगो में अब ये बर्खास्त पीटीआई शिक्षक भी जुड़ चुके हैं और राज्य भर के सभी जिलों में अपनी जायज भूख हड़ताल के साथ अड़े हुए हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी जांच में सेवा चयन आयोग को दोषी पाया है तो उनके अपराध की सजा पीटीआई शिक्षकों को क्यों दी जा रही है, जिन्होंने अपनी जिन्दगी के 10 साल सेवा में गुजार दिए हैं?

यदि सरकार वाकई में तत्परता के साथ काम करना चाहती है तो उसे बजाय कड़ी मेहनत से काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों को निकाल बाहर करने के, इन आयोगों के कामकाज में ही आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है, जो गैर-लोकतांत्रिक चरित्र के साथ काम कर रहे हैं। यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि किस प्रकार से आयोगों में उच्च-भुगतान वाली नौकरियों में अपने गुर्गो को फिट किया गया है, ताकि ऐसे लोगों के राजनीतिक आका अपनी इच्छानुसार जब-तब इनका अपने हिसाब से शोषण कर सकें।

यदि पड़ताल के लिहाज से हम विचाराधीन मामले को ही हाथ में लें तो यह साफ़ हो जायेगा कि जो लोग कुर्सियों पर विराजमान हैं वे इस बात को लेकर जरा भी चिंतित नहीं हैं कि कैसे सिस्टम को ज्यादा जवाबदेह और पारदर्शी बनाया जाये। उनका पूरा फोकस इसी बात पर लगा रहता है कि नियम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए किसी भी तरीके से ‘अपने आदमी’ को समायोजित किया जा सके। जिस प्रकार का सिस्टम प्रभाव में है ऐसे में इस मामले में जो फैसला आया है वह किसी भी तरह से तार्किक नहीं है। जहाँ एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने भर्ती की प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाने के प्रश्न पर इसके लिए पूरी तरह से सेवा चयन आयोग को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन सजा की घोषणा उनके नाम कर डाली जिनका इस पूरी प्रक्रिया में कोई दोष नहीं है।

इस बात को स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं कि इन अभ्यर्थियों में से अवश्य ही कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिन्होंने ‘प्रभाव’ का इस्तेमाल करते हुए अपने लिए जगह बनाई होगी, लेकिन सच बात तो यह है कि इनमें से अधिकांश अपनी प्रतिभा के बल पर ही चुने गए थे। न्याय का सिद्धांत तो यह कहता है कि भले ही दो दोषियों को छोड़ दिया जाये, किन्तु एक भी निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए।सरकार को चाहिए कि वह तत्काल उन तरीकों को तलाशे जिससे कि मानवीय आधार पर इन पीटीआई नौकरियों को बचाया जा सके और साथ ही साथ रिक्त पदों पर तत्काल अन्य डिग्रीधारी नौकरी के इच्छुक लोगों भर्ती किया जाए।

भर्ती बोर्ड की प्रतिष्ठा पर जो आंच आ चुकी है उसे ध्यान में रखते हुए इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि राज्य में भर्ती आयोगों के गठन और कार्यप्रणाली में व्यापक पैमाने पर ररद्दोबदल को अंजाम दिया जाए। आयोग में बैठे लोगों द्वारा की जा रही भर्ती की प्रक्रिया पर जनता का भरोसा उठ चुका है, जो इस बात को लेकर हैरत में है कि न जाने कब तक राज्य को इन निहित स्वार्थों से हो रहे नुकसान को भुगतना पड़ेगा।

बेरोजगारी के भयानक दौर में इस बात की सख्त आवश्यकता है कि इन संस्थाओं को पूरी तरह से किलेबंदी की जाए।भर्ती आयोगों की प्रक्रिया को पारदर्शी और उनके कार्य संचालन में आवश्यक सुधार के लिए उठाये गए आवश्यक कदमों के जरिये ही इन संवैधानिक संस्थाओं की खो चुकी विश्वसनीयता को एक बार फिर से बहाल किया जा सकता है।सिर्फ इन्हीं उपायों के जरिये नौजवानों को बार-बार बलि का बकरा बनने से बचाया जा सकता है।

(जगमती सांगवान सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इस आलेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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