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क्या यूक्रेन मामले में CSTO की एंट्री कराएगा रूस? क्या हैं संभावनाएँ?

अपने सैन्य गठबंधन, सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) के जरिये संभावित हस्तक्षेप से रूस को एक राजनयिक जीत प्राप्त हो सकती है और अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उसके पास एक स्वीकार्य मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
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1991 में सोवियत पतन के फौरन बाद ही रूस की कोशिशें एक बार फिर से पूर्व सोवियत राज्यों के बीच में एक गठबंधन बनाने की शुरू हो गई थीं। इसके चलते सामूहिक सुरक्षा संधि (सीएसटी) पर हस्ताक्षर का रास्ता तैयार हुआ, जो आर्मेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ मिलकर 1994 में प्रभाव में आया। लेकिन सदस्य देशों के बीच में सैन्य नीतियों एवं सामूहिक सुरक्षा के लिए आपसी समन्यव के लिए रुपरेखा को तैयार करने में सीएसटी किसी भी वास्तविक सैन्य एकीकरण को आगे बढाने में विफल रहा, और अज़रबैजान, जॉर्जिया और उज्बेकिस्तान ने संधि के नवीनीकरण के दौरान 1999 में इससे बाहर निकलने का फैसला किया। जब व्लादिमीर पुतिन ने रूस के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने सोवियत-बाद के सैन्य संबंधों के विस्तार के लिए काफी प्रयास किये। 2002 में, सामूहिक सुरक्षा संधि को एक “अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय संगठन” के तौर पर मान्यता दी गई और इसके बाद से इसे सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) के तौर पर जाना जाने लगा।

रुसी-नेतृत्व वाले सीएसटीओ गठबंधन में साझा सैन्य अभ्यास में बढोत्तरी देखने को मिली, और “सीएसटीओ सदस्य देशों को मिलने वाली सुरक्षा चुनौतियों और खतरों से तत्काल निपटने के लिए” एक कलेक्टिव रैपिड रिएक्शन फ़ोर्स को डिजाइन किया गया और एक संयुक्त हवाई सुरक्षा प्रणाली को भी तैयार किया गया। इस बीच रुसी रक्षा उद्योग ने भी सीएसटीओ के सदस्य देशों के साथ हथियारों के निर्यात और रख-रखाव के सौदों में वृद्धि की। इसके बावजूद 2022 तक, सीएसटीओ रूस को यदि छोड़ दें तो अपने किसी भी सदस्य के लिए किसी भी ठोस उपयोग को प्रकट करने में सुस्त बना रहा। जून 2010 में किर्गिस्तान ने देश में जातीय संघर्ष को समाप्त करने के लिए सीएसटीओ से मदद की अपील की, लेकिन संगठन ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसके पास सदस्य देशों के “घरेलू मामलों” में हस्तक्षेप करने के लिए जनादेश का अभाव था (सीएसटीओ के द्वारा जनवरी 2022 में कजाखस्तान के भीतर सेना भेजने का फैसला लेने के बाद से इस सीमा को हटा लिया गया है)। सितंबर 2010 में, सीएसटीओ ने ताजिकिस्तान को देश के भीतर बढ़ते उग्रवाद को कुचलने में मदद करने के लिए हस्तक्षेप करने से भी परहेज किया था। और 2021 में, ताजिकिस्तान के नेतृत्त्व ने सीएसटीओ की मदद की कमी के बारे में शिकायत की थी क्योंकि पड़ोसी देश अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना ने खुद को बाहर कर लिया था। इसके बजाय, ताजिकिस्तान, रूस और गैर-सीएसटीओ सदस्य उज्बेकिस्तान के द्वारा 2021 में अफगानिस्तान के साथ सीमावर्ती ताजिकिस्तान सीमा पर सैन्य अभ्यास आयोजित किया गया था। जिसे सीएसटीओ द्वारा ताजिकिस्तान में अपने खुद के “आतंकवाद विरोधी सैन्य अभ्यास” आयोजित करने के कुछ महीने पहले किया गया था।

आर्मेनिया ने अज़रबैजान के साथ नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र के उपर अपने दीर्घकालिक विवाद के दौरान सीएसटीओ से मदद की लगातार अपील की, विशेषकर उनके बीच 2020 के संघर्ष के दौरान, लेकिन इस सबका कोई फायदा नहीं हुआ।

हालाँकि, 5 जनवरी, 2022 को कजाकिस्तान में सीएसटीओ के हस्तक्षेप ने साबित कर दिया कि गठबंधन रूस के अलावा अन्य सदस्य देशों को भी लाभ पहुंचा सकता है। जैसा कि कज़ाख नेतृत्व को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों और दंगों का सामना करना पड़ा, तो उस दौरान कजाखस्तान के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए 2500 सीएसटीओ सैनिकों को भेजा गया था। इसने कजाख सुरक्षा बलों को शांति व्यवस्था बहाल करने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने का समय दे दिया, और रुसी नेतृत्व वाले सीएसटीओ के हस्तक्षेप ने एक हफ्ते बाद ही वहां से अपनी सफलतापूर्वक विदाई कर ली।

मौजूदा रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन में सीएसटीओ का हस्तक्षेप कजाकिस्तान में देखे गए अभियान की तुलना में पूरी तरह से भिन्न अभियान होगा। हालाँकि इस प्रकार के परिदृश्य का संकेत 2014 में देखने को मिला था, जब यूक्रेन के खिलाफ पहले रुसी सैन्य हस्तक्षेप के फौरन बाद, तत्कालीन सीएसटीओ महाध्यक्ष निकोलाय बोर्डुझा द्वारा इसका संकेत दिया गया था। उन्होंने सुझाया था कि सीएसटीओ की शांति सेना “यूक्रेन सहित अपने क्षेत्रों के बाहर किसी भी अभियान के लिए तैयार है, लेकिन शांति मिशन के लिए फैसला संगठन के सदस्यों पर निर्भर करेगा।” 

19 फरवरी को, इस बीच, रूस के द्वारा यूक्रेन से अलग होने वाले दो क्षेत्रों लुहान्स्क और डोनेट्स्क लू स्वतंत्रता को मान्यता दिए जाने से कुछ दिन पहले ही, वर्तमान सीएसटीओ महासचिव स्टानिस्लाव जास ने अपने बयान में कहा था कि यूक्रेन में संघर्ष को कम करने में मदद करने के लिए सीएसटीओ शांति सेना को संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत कीव के आशीर्वाद के साथ डोंबास क्षेत्र में भेजा जा सकता है। इसके कुछ हफ्ते बाद, यूक्रेन के राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा परिषद के सचिव ओलेक्सीय डैनिलोव ने कहा था कि पुतिन का इरादा कुछ क्षमता के साथ रुसी-यूक्रेनी संघर्ष में “सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को शामिल” करने का है।

यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि यूक्रेन में सीएसटीओ अभियान ठीक-ठीक कैसा दिखेगा। अभी फिलहाल देखें तो, सदस्य देश सीएसटीओ क्षेत्र के बाहर एक सक्रिय युद्ध क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं जिसमें यूक्रेनी, रुसी और छद्म शक्तियों की तुलना में उनके पास तुलनात्मक रूप से कम अनुभव है। आरंभ में, रुसी-यूक्रेनियाई संघर्ष में सीएसटीओ की कार्यवाही संभवतः कजाकिस्तान में देखी गई प्लेबुक की तरह ही सीमित रहने की संभावना है और इसमें सिर्फ महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को सुरक्षित रखने और संभवतया शांत क्षेत्रों में गश्त करना शामिल हो सकता है।

क्रेमलिन को भी अन्य सीएसटीओ सदस्यों को यूक्रेन में रुसी आक्रमण बलों का समर्थन करने और संभावित रूप से इसमें शामिल होने के लिए राजी करना होगा। ऐसा करने से उनके खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों की गारंटी के साथ-साथ महत्वपूर्ण राजनयिक नतीजों से भी गुजरने के लिए तैयार रहना होगा।

लेकिन यह भी सच है कि सीएसटीओ में शामिल देश आर्थिक तौर पर रूस के साथ कहीं अधिक संबद्ध हैं। उदाहरण के लिए, सीएसटीओ सदस्य देशों में ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान से संबंधित प्रवासी श्रमिकों के द्वारा अपने घरेलू देशों में रूस से वार्षिक प्रेषित धन 2020 में ताजिकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 26% से अधिक था और इसी साल किर्गिस्तान की जीडीपी का लगभग 31% हिस्सा इसी से आया था। बेलारूस के निर्यात में रूस का 40% से अधिक का योगदान है और बेलारूस को तेल और पारगमन शुल्क के तौर पर (सब्सिडी पर उर्जा नौ वहन के साथ-साथ) अरबों डॉलर का फायदा होता है। और ताजिकिस्तान को छोड़कर सभी सीएसटीओ सदस्य रुसी नेतृत्त्व वाले आर्थिक गुट, यूरेशियाई आर्थिक संघ (ईएईयू) के भी सदस्य हैं।

इसके अतिरिक्त, चीन के साथ ईएईयू/सीएसटीओ सदस्य देशों के आर्थिक रिश्ते पश्चिमी अर्थव्यवस्था के साथ उनके संबंधों से कहीं आगे निकल जाते हैं, और पश्चिम को चुनौती देने के लिए बीजिंग की रूस के साथ बढ़ती साझेदारी के परिणामस्वरूप चीनी आर्थिक मदद कुछ हद तक उन प्रतिबंधों की भरपाई कर सकती है जो इन देशों को पश्चिम की ओर से झेलनी पड़ सकती है। और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रूस का अन्य सीएसटीओ देशों के ऊपर महत्वपूर्ण सैन्य लाभ वाली स्थिति भी है। उनकी व्यक्तिगत कमजोरियों ने रूस को उनकी सुरक्षा के लिए कहीं न कहीं अपरिहार्य बना दिया है, और क्रेमलिन उन्हें यूक्रेन में उनकी सीएसटीओ प्रतिबद्धता के लिए दबाव डालने का विकल्प भी चुन सकता है।

सीएसटीओ का हस्तक्षेप रूस के लिए सिर्फ सीमित मदद ही मुहैय्या करा सकता है और इससे युद्ध के ज्वार को प्रभावित करने की संभावना नहीं है।लेकिन भले ही यह एक प्रतीकात्मक योगदान हो लेकिन यह रूस के अभियान को वैध ठहराने और रूस-यूक्रेन संघर्ष में इसकी भूमिका पर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बदलने में कारगर साबित होगा। इस प्रकार के अभियान क्रेमलिन की रूस पर सीएसटीओ देशों की निर्भरता का फायदा उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। अज़रबैजान के साथ आर्मेनिया का संघर्ष, और इसके साथ ही तुर्की के साथ इसके तनाव ने इसे रुसी 102वें सैन्य अड्डे और रुसी सीमा सुरक्षा बलों के माध्यम से रुसी गोलाबारी पर काफी हद तक निर्भर बना दिया है। 2019 में आर्मेनियाई सेना भी सीरिया में रुसी सेना के साथ शामिल हो गई थी, ताकि पाटने वाले मिशन में भाग लिया जा सके, हालाँकि यह जरुर है कि आर्मेनिया ने अपने तैनाती की गैर-लड़ाकू प्रवृत्ति पर जोर दिया था।

विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र के आर्मेनियाई-नियंत्रित हिस्से को नियंत्रित करने वाले अर्त्साख गणराज्य ने पहले से ही रूस के द्वारा घोषणा के फौरन बाद डोनेट्स्क और लुहांस्क की स्वतंत्रता को मान्यता देने के अपने इरादे का संकेत दे दिया था। रूस पर कजाखस्तान की निर्भरता 2022 के सीएसटीओ हस्तक्षेप के दौरान स्पष्ट रूप से सामने आ गई थी जिसने इसकी सरकार को चलाने में मदद पहुंचाई थी। इस देश में एक बड़ी रुसी अल्पसंख्यक आबादी भी रहती है, जो कि मुख्यतया रूस के साथ सीमा पर स्थित है, जिसे क्रेमलिन के द्वारा यूक्रेन में सीएसटीओ अभियान को वैध बनाने के लिए कजाखस्तान को बाध्य करने के लिए और अधिक दबाव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

1990 के दशक में अपने गृह-युद्ध के दौरान ताजिकिस्तान को रूस से भारी मदद मिली थी, और रुसी 201वें सैन्य अड्डे की लंबे अवधि तक उपस्थिति ने देश की आंतरिक स्थिरता और अफगानिस्तान के साथ सीमा की गारंटी में मदद पहुंचाई थी। किर्गिस्तान ने भी राष्ट्रीय स्थिरता के लिए रूस पर भरोसा जताया है, और बिना कहे ही डोनेट्स्क और लुहांस्क को मान्यता देने में रुसी फैसले का समर्थन किया है।

सीएसटीओ का इस्तेमाल ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान के बीच सीमा विवाद के प्रबंधन के लिए भी इस्तेमाल में लिया गया है। बहरहाल, वर्तमान में बेलारूस ही सबसे संभावित सीएसटीओ सदस्य है, जो यूक्रेन में संघर्ष में प्रवेश कर सकता है। राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने देश की आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य नीतियों को रूस के साथ अधिकाधिक जोड़ रखा है। क्रेमलिन ने भी 2020 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान लुकाशेन्को को अपना समर्थन दिया था जिसने बेलारूस को उनके फिर से चुने जाने के खिलाफ हिला कर रखा हुआ था। बेलारूस ने 2021 में रूस के क्रीमिया पर कब्जे को भी मान्यता दी थी और यह उन पांच देशों में एक था, जिन्होंने मार्च 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की निंदा में संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था (जबकि अन्य सीएसटीओ सदस्यों ने इसमें भाग नहीं लिया)। लुकाशेन्को के खिलाफ प्रतिबंधों का असर पहले से ही कम है, क्योंकि उनके और बेलारूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का सिलसिला कई वर्षों से चल रहा है- जिसमें यूक्रेन में 2022 के रुसी हस्तक्षेप के बाद से और अधिक प्रतिबन्ध शामिल हैं।

रुसी आक्रमण के पहले और बाद में, बेलारूस ने भी आंशिक रूप से यूक्रेन के साथ लगी अपनी सीमा पर सैन्य ईकाइयों को जुटा रखा है। 27 फरवरी को यूक्रेन ने कहा था कि मिसाइलों को बेलारूस से यूक्रेन पर दागा गया था, और 11 मार्च तक, एक वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने घोषणा कर दी थी कि संघर्ष शुरू होने के बाद से रुसी सेना ने बेलारूस से यूक्रेन पर 80 से अधिक की संख्या में मिसाइलें चलाई हैं। उसी दिन लुकाशेन्को ने अपने बयान में कहा कि “यदि उन पर हमला किया गया तो बेलारूस की सेना रुसी सेना के पीछे खड़ी नजर आएगी।” जबकि यूक्रेनी अधिकारियों ने रूस पर यूक्रेन से बेलारूस पर मिसाइलें दागने का आरोप लगाया। इस घटना ने एक झूठे फ्लैग ऑपरेशन की आशंका को पैदा कर दिया है जो न सिर्फ बेलारूस को युद्ध में धकेल सकता था बल्कि सीएसटीओ के अनुच्छेद 4 को भी ट्रिगर कर सकता था, जो समूचे गठबंधन पर हमले भड़का सकता है।

यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्रेमलिन सीएसटीओ हस्तक्षेप को गंभीरता से आगे बढ़ाने पर विचार कर रहा है या नहीं, और यह कि यह हस्तक्षेप अंततः कैसे होने जा रहा है और कब रूस इस हस्तक्षेप को आजमाने और लागू करने की योजना बना रहा है। लेकिन एक सफल बहुराष्ट्रीय हस्तक्षेप, जिसमें संभवतः सैन्य तालमेल से कहीं अधिक कूटनीतिक एकजुटता का प्रदर्शन होता है, से रूस को यूक्रेन में अपने दावों को वैध साबित करने में मदद मिल सकती है, खासकर जब वास्तव में वार्ता शुरू होती है।

रूस को अभी भी सीएसटीओ देशों की सुरक्षा स्थितियों के बढ़ जाने के प्रति भी सावधान रहना होगा। लेकिन क्रेमिलन के अपने खुद के अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के विकासक्रम को वैश्विक हॉटस्पॉट पर पश्चिमी कूटनीतिक प्रभाव को कम से कम करने के लिए व्यापक प्रयासों के हिस्से के तौर पर लेना चाहिए। रूस पहले ही तुर्की और चीन के साथ यूक्रेन पर वार्ता कर चुका है, और इस मुद्दे पर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के साथ तालमेल से इस संघर्ष में पश्चिमी हस्तक्षेप को रोकने के रूस के लक्ष्य को भी आगे बढ़ाया जा सकता है।

सीएसटीओ को गठबंधन के क्षेत्र से बाहर एक यूरोपीय देश में हस्तक्षेप करने के लिए सक्रिय करने पर पूरे महाद्वीप में तनाव बढ़ सकता है और निश्चित रूप से बाल्टिक क्षेत्र में एक मजबूत नाटो तैनाती और पश्चिमी प्रतिबंधों के और आगे बढ़ने का जोखिम शामिल है। लेकिन अभी तक जिस प्रकार से पश्चिमी सैन्य प्रतिक्रिया मौन है उसने रूस को सीएसटीओ के साथ अपनी किस्मत को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर दिया हो। यूक्रेन में हस्तक्षेप करने के लिए रूस के द्वारा सदस्य देशों को राजी किया जाता है या मजबूर किया जाता है, यह देखना अभी बाकी है।

जॉन पी. रुएहल वाशिंगटन-डीसी में रहने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई-अमेरिकी पत्रकार हैं। आप स्ट्रेटेजिक पालिसी में सहायक संपादक हैं और कई अन्य विदेशी मामलों के प्रकाशनों में योगदानकर्ता हैं।

(इस लेख को मूलतः ग्लोबट्रोटर द्वारा पब्लिश किया गया है।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

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