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प्रेस की आजादी खतरे में है, 2021 में 6 पत्रकार मारे गए: रिपोर्ट 

छह पत्रकारों में से कम से कम चार की कथित तौर पर उनकी पत्रकारिता से संबंधित कार्यों की वजह से हत्या कर दी गई थी। 
journalist bodies

नई दिल्ली: जैसा कि इंडिया प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट 2021 में दिखाया गया है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले किये जा रहे हैं, जिसमें कम से कम छह पत्रकार मारे गए हैं, कई अन्य लोगों पर शारीरिक रूप से हमले किये गए हैं, और मीडिया घरानों को निशाने पर लिया जा रहा है। 

बुधवार को थिंक टैंक राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में देश में महामारी के प्रकोप में घिरे होने के बावजूद 108 पत्रकारों और 13 मीडिया घरानों/समाचार पत्रों लक्षित किये जाने का दस्तावेजीकरण किया गया है।

मारे गए लोगों में से उत्तर प्रदेश और बिहार में से दो-दो मौतें हुईं, जबकि आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में एक-एक मौत हुई थी। कुल छह मौतों में से कम से कम चार को कथित तौर पर उनकी पत्रकारिता से संबंधित कार्यों की वजह से हत्या कर दी गई थी। जहाँ एक पत्रकार के मृत पाए जाने से एक दिन पहले उनके द्वारा शराब माफिया से पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी, वहीँ एक अन्य की हत्या तब कर दी गई, जब वे किसानों के विरोध प्रदर्शन की कवरेज कर रहे थे। 

मीडिया वाचडॉग रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) के द्वारा प्रकाशित 2021 विश्व प्रेस आजादी सूचकांक में भारत की 142वीं रैंकिंग के साथ यह रिपोर्ट काफी अहम हो जाती है। 

राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों की सूची पर नजर डालें तो इसमें जम्मू-कश्मीर का स्थान सबसे शीर्ष पर है, जहाँ पर 25 पत्रकारों और मीडिया घरानों को निशाने पर लिया गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है, जहाँ पर इस प्रकार की 23 घटनाएं हुई हैं। मध्य प्रदेश, त्रिपुरा और दिल्ली का स्थान उन शीर्ष पांच स्थानों में शामिल है जहाँ पत्रकारों और मीडिया संगठनों दोनों को ही इस दौरान उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

बिहार में ऐसे कम से कम छह हमले देखने को मिले हैं, जबकि असम में पांच, हरियाणा और महाराष्ट्र में चार-चार, गोवा और मणिपुर में तीन-तीन हमले हुए, वहीँ कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में दो-दो घटनाएं हुई हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2021 में कम से कम 24 पत्रकारों पर हमलों को अंजाम देने के साथ, आज भी शारीरिक हमला पत्रकारों पर नकेल कसने का प्राथमिक तरीका बना हुआ है। इस प्रकार के सबसे ज्यादा मामले जम्मू-कश्मीर से रिपोर्ट किये गए हैं।  

रिपोर्ट के विश्लेषण में कहा गया है कि, 2021 में कम से कम आठ महिला पत्रकारों को गिरफ्तारी, यौन उत्पीड़न या सम्मन का सामना करना पड़ा था। मुस्लिम महिला पत्रकारों को ऑनलाइन तरीकों से भी लक्षित किया गया। हालाँकि, इस पर सरकार की प्रतिक्रिया नामुनासिब बनी रही।

रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ तक पत्रकारों और मीडिया घरानों के खिलाफ धाराओं को लगाने की बात आती है तो राज्यों के द्वारा आईपीसी की धारा 124ए –- राजद्रोह, धारा 153 – दंगा भड़काने के मकसद से बेतुकी बयानबाजी करने, धारा 153ए - धार्मिक समूहों के बीच में वैमनस्य को बढ़ावा देने, धारा धारा 153बी – लांछन, राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल दावे, मानहानि, कठोर गैरकानूनी अत्याचार (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), धारा 66ए और धारा 66एफ सहित सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम, महामारी रोग अधिनियम, 1897 थोप दी जाती है। 

आरआरएजी के निदेशक सुहास चकमा ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मुख्य चिंता इस बात को लेकर है कि रिपोर्टिंग को एक आपराधिक अपराध बना दिया गया है। राजद्रोह और यूएपीए से संबंधित आपराधिक अपराध का मामला काफी गंभीर है...। इसकी वजह से पत्रकारों के बीच में एक प्रकार की सेल्फ-सेंसरशिप की भावना घर कर जाती है, क्योंकि पत्रकार नहीं चाहते कि अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उनपर मुकदमा चले। इसका लोगों की रिपोर्टिंग करने के तरीकों और सच्चाई का गला घोंटने में महत्वपूर्ण ढंग से प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट में पत्रकारों पर हुए हमलों के स्तर का दस्तावेजीकरण किया गया है।”

उनका मानना है कि केंद्र के सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 मीडिया की स्वतंत्रता के लिए एक और आघात था।

बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां, नजरबंदी और प्राथमिकी की स्थिति 

जम्मू-कश्मीर ने सबसे अधिक संख्या में गिरफ्तारियों और हिरासत में रखे जाने की रिपोर्ट की है, जिसमें राज्य प्रशासन के द्वारा कम से कम पांच पत्रकारों को निशाना बनाया गया था, जिसके बाद दिल्ली का स्थान है। महाराष्ट्र, मणिपुर और त्रिपुरा में जहाँ इस प्रकार के दो-दो मामले देखने को मिले, वहीँ असम, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में इस प्रकार के एक-एक मामले सामने आये हैं। 

मानवाधिकारों के पक्षपोषक एवं अनुभवी पत्रकार जॉन दयाल ने न्यूज़क्लिक को बताया है कि मौजूदा हालात एक प्रकार से ‘अघोषित आपातकाल’ ही है।

दयाल ने कहा, “स्वतंत्र मीडिया अभी भी छोटा, नाजुक है और उसके सामने गिरफ्तारी, वित्तीय घेरेबंदी, या शारीरिक हिंसा का खतरा निरंतर बना रहता है। कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में, पत्रकारों की गिरफ्तारी, इंटरनेट पर नियंत्रण सहित सेना की मौजूदगी हर समय मीडिया पर शारीरिक एवं मानसिक तनाव में अभिवृद्धि करने का काम करती रहती है।”

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत एवं एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने जम्मू-कश्मीर में सिकुड़ती प्रेस की आजादी और पत्रकारों के अधिकारों पर चिंता व्यक्त की है। बुधवार की रिपोर्ट उन चिंताओं की पुष्टि करती है, जो इस बात को दर्शाती है कि घाटी में मीडिया की आजादी से इंकार की बात एक मानक बन गया है, जिसमें आये दिन पत्रकारों को पुलिस थानों में सम्मन किया जाता है, प्रथिमिकी में नामजद करने से लेकर सुरक्षा बलों के द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। 

शेष भारत भी स्थिति निराशाजनक बनी हुई है, पत्रकारों और मीडिया घरानों के खिलाफ प्रथिमिकी दर्ज करने की परंपरा प्रेस की आजादी का गला घोंटने का एक मारक हथियार बना हुआ है। देश भर में कम से कम 44 पत्रकारों और दो मीडिया संगठनों को इस प्रकार की कार्यवाइयों का सामना करना पड़ा। कई राज्यों में राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, ज़फर आगा, परेश नाथ, विनोद के जोस और अनंत नाथ सहित कई मामलों में पत्रकारों के खिलाफ कई प्राथमिकियां दर्ज की गईं। 

भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या में पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसके बाद दिल्ली और जम्मू-कश्मीर का स्थान आता है।

मीडिया के खिलाफ सुनियोजित हमलों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर (आईटी) विभाग के द्वारा मीडिया प्रकाशनों के कार्यालयों और उन पत्रकारों के घरों तक में छापे मारे गये, जो केंद्र की नीतियों के प्रति आलोचनात्मक रुख रखते थे; ऐसे मीडिया घरानों में न्यूज़क्लिक, दैनिक भास्कर, भारत समाचार एवं न्यूज़लांड्री शामिल हैं।

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की महासचिव, कविता कृष्णन ने न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में बताया कि घाटी सहित शेष भारत में पत्रकारों को जेल में डालने, निगरानी रखने और धमकाने के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार का रिकॉर्ड ‘अद्वितीय’ रहा है।

कृष्णन ने दावा किया “द न्यू यॉर्क टाइम्स के खुलासे ने साबित कर दिया है कि मोदी सरकार ने सार्वजनिक धन का इस्तेमाल गुप्त रूप से पेगासस सॉफ्टवेर हासिल करने में किया और फिर इसे उन मौजूदा न्यायाधीशों, विपक्षी राजनीतिज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित पत्रकारों की जासूसी करने में तैनात कर दिया जो सरकार के कार्यकलापों की जांच करने के काम में लगे हुए हैं। यह भारत के इतिहास में प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा आघात है।” उनका आगे कहना था, “हम पत्रकार गौरी लंकेश की हिन्दू वर्चस्ववादियों के द्वारा की गई हत्या को नहीं भूल सकते, जिन्हें सत्ता से पूर्ण संरक्षण मिला हुआ है।”

पेगासस के खुलासों के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीयों पर ख़ुफ़िया उपकरणों से कथित इस्तेमाल की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था। हाल ही में, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने भी इन दावों की जांच के लिए पैनल को पत्र लिखा है।

बेरोकटोक ऑनलाइन ट्रोलिंग  

जहाँ एक तरफ पत्रकारों को हिरासत, गिरफ्तारी, प्रथिमिकी और सम्मन से जूझना पड़ रहा है, वहीँ दूसरी ओर उन्हें पिछले साल राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं, माफिया और ऑनलाइन ट्रोल के साथ-साथ गैर-राजकीय किरदारों के हमलों का भी सामना करना पड़ा। कम से कम 34 पत्रकारों और मीडिया घरानों पर भीड़, अज्ञात शरारती तत्वों, राजनीतिक दलों के सदस्यों या समर्थकों द्वार्रा हमले किये गए या ऑनलाइन तरीकों से परेशान किया गया।

इससे पहले, आरसीएफ की रिपोर्ट में बताया गया था कि जिन पत्रकारों ने मोदी सरकार की आलोचना की थी उनके खिलाफ सोशल नेटवर्क पर समन्वित तरीके से नफरती अभियान संचालित किये गए थे।

इसमें कहा गया है कि, “जबसे 2019 के वसंत में आम चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की है, उसके बाद से ही मीडिया पर हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार के दिशानिर्देशों पर चलने के लिए दबाव बढ़ गया है। जिस विचारधारा ने कट्टर दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवाद के फलने-फूलने में योगदान दिया है, उस हिंदुत्व की विचारधारा का समर्थन करने वाले भारतीयों की मंशा सार्वजनिक बहस से “राष्ट्र-विरोधी” विचारों की सभी अभिव्यक्तियों को पूरी तरह से खत्म कर देने की है…। ये अभियान विशेस तौर पर तब हिंसक स्वरुप ले लेते हैं, जब इनके निशाने पर महिलाएं हों।”

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Press Freedom Under Attack, 6 Journalists Killed in 2021: Report

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