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प्रियंका गांधी कैंप: ''घर भी तोड़ रहे हैं और बेघर लोगों को मार भी रहे हैं ये कैसी कार्रवाई?''

दिल्ली के वसंत विहार में NDRF के हेड ऑफिस के लिए प्रियंका गांधी कैंप पर आज चला बुलडोज़र, 97 परिवारों को कहा गया रैन बसेरों का रुख़ करें। 
bulldozer action

गुलज़ार ने कभी एक गीत लिखा था ''आ जा आ जा ज़िन्दा शामियाने के तले आजा ज़री वाले नीले आसमान के तले'' जिनके पास दुनिया की आराइश नहीं होती उनके लिए खुले आसमान में ही सलमे-सितारे जड़े होते हैं। दिल्ली के बेहद पॉश इलाके वसंत विहार के बीच एक बस्ती है (अब हुआ करती थी) प्रियंका गांधी कैंप, इस कैंप के लोगों की झुग्गियों को आज सुबह तोड़ दिया गया। 

तेज़ धूप से बचने के लिए जिन पेड़ों की छाया में ये लोग बैठे थे उसी के ऊपर अमलतास के झूमर नुमा फूल लटक रहे थे। अमलतास के नीचे फ्रिज रखा था, टीवी रखा था, मिट्टी के पानी का मटका रखा था, फूलों के गमले रखे थे, मनी प्लांट और तुलसी के पौधे भी रखे थे। लेकिन ये किसी का ड्राइंग रूम नहीं बल्कि लोगों के टूटे आशियाने में ज़र्रा-ज़र्रा जोड़कर बुनी गई दुनिया के बिखरे निशान थे। जिसके ऊपर लटक रहे ये कुदरती झूमर बेवजह, बेमतलब मालूम पड़ रहे थे।  

बेघर हुआ परिवार

''पढ़ाई छूट गई, अब क्या होगा?'' 

आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, कोई अपनी चोट दिखा रहा था तो कोई हमीं से पूछ रहा था कि अब कहां जाएंगे? क्या होगा हमारे छोटे-छोटे बच्चों का, क्या होगा हमारी पढ़ाई का? एक लड़की कविता सवाल उठाते हुए कहती हैं कि '' कोई मर्डर करता है, कोई रेप करता है तो उनके केस इतने लंबे-लंबे चलते हैं, हमारी झुग्गी का तो बिल्कुल नहीं चला फटाफट ऑर्डर दे दिया और तुरंत बुलडोज़र पहुंच गया अब हमारी पढ़ाई का क्या होगा? मेरा बीए फाइनल हो गया अब मैं बीएड का फॉर्म भर रही थी, मुझे बीएड करना था, घर चला गया पढ़ाई तो भूल ही जाओ, मेरी तो पढ़ाई छूट गई, अब क्या होगा?'' ये कहते-कहते कविता सुबक-सुबक कर रोने लगीं। 

'मेरी दिल्ली' किताब लिए मधु मिली 

कविता की तरह ही हमें मधु मिली, मधु के हाथ में 'मेरी दिल्ली' नाम की तीसरी कक्षा की किताब थी, हमने पूछा अब आगे की पढ़ाई कैसे होगी? तो उसने सर नीचे करते हुए कहा पता नहीं, हमने मधु की मां से बात की तो वे कहती हैं मधु और राज दो बच्चे हैं एक पांचवी में पढ़ता है और एक तीसरी में, हम यहां सालों से रह रहे हैं, हमारे वोटर कार्ड है, बिजली का बिल है, वोट देते आए हैं आम आदमी पार्टी को वोट दिया था, उनसे (विधायक, प्रमिला टोकस) बहुत विनती की लेकिन वो भी हमारे साथ आकर नहीं खड़ी हुईं, हमारा सारा सामान दब गया पुलिस वालों ने बोला कि बाद में निकाल लेना, हम झांसी के रहने वाले हैं वहां कुछ नहीं था इसलिए दिल्ली आए थे, मजदूरी करके कमाते-खाते थे जब से दिल्ली आए पलट कर कभी वापस नहीं गए लेकिन अब हमारे पास कोई जगह नहीं है ऐसे में हमें वापस लौटना होगा।''  

रोती हुई बेघर लड़कियां और मधु की किताब 'मेरी दिल्ली'

सड़क किनारे अपने सामान के साथ बैठे हर दूसरे शख़्स की आंखें डबडबाई थी, किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अब वे कहां जाएंगे? 

प्रियंका गांधी कैंप में चला बुलडोज़र 

दिल्ली में क़रीब-क़रीब हर दूसरे दिन बुलडोज़र चलाने और लोगों के बेघर होने की ख़बर आ रही है। कोई कार्रवाई जी-20 के नाम पर हो रही है तो कोई ASI ( Archaeological Survey of India)  की ज़मीन ख़ाली करवाने को लेकर। आज भी ऐसी ही एक कार्रवाई हुई दिल्ली के वसंत विहार इलाके के प्रियंका गांधी कैंप में।  लोगों के मुताबिक़ यहां कोई 20 साल से तो कोई 30 साल से रह रहा था, लेकिन एक दिन पता चला कि यह ज़मीन NDRF ( National Disaster Response Force ) को दे दी गई है, फिर क्या NDRF वाले आए और इनकी झुग्गियों पर ख़ाली करने का नोटिस चस्पा कर चले गए, ये लोग अपनी फरियाद लेकर स्थानीय विधायक से लेकर हर उस शख़्स के पास पहुंचे जिनसे इन्हें उम्मीद थी, जिन्हें इन्होंने वोट दिए थे। मामला कोर्ट पहुंचा लेकिन कोर्ट से भी मायूसी ही हाथ लगी। 

घर खाली करने का आदेश 

इस मामले पर हमने घरेलू कामकाजी महिला यूनियन की जनरल सेक्रेटरी रेखा सिंह से बात की, रेखा कहती हैं कि '' मामला दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है, सुनवाई थी लेकिन उन्होंने भी स्टे नहीं दिया, स्टे क्यों नहीं दिया क्योंकि ये NDRF को हेड ऑफिस बनाने के लिए जगह दे दी गई है, ये DDA की ज़मीन थी लेकिन 2020 में इसे NDRF को दे दिया गया।'' 

वे आगे कहती हैं कि हमने ये नहीं कहा कि हम जगह खाली नहीं करेंगे, हमने कहा कि रहने की जगह दे दो हम जगह खाली करने के तैयार हैं, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जब तक इनका कुछ नहीं होता तब तक इन लोगों के लिए रैन बसेरा और कम्युनिटी सेंटर में इंतज़ाम कर दो, लेकिन अजीब बात है कि लोगों के घर तोड़ तक रैन बसेरों में शिफ्ट किया जा रहा है, लोगों के बड़े-बड़े बच्चे हैं, कैसे वे वहां रह पाएंगे?''

झुग्गी में लगाई गई रैन बसेरों की लिस्ट

लोगों को 'बेघर' करने के लिए सुरक्षा बल की तैनाती 

वे आज सुबह झुग्गी खाली करने की कार्रवाई के बारे में बताती हैं कि ''यहां 97 परिवार थे जिनमें 1200 से 1500  के क़रीब लोग रह रहे थे और इन 1200 लोगों को निकालने के लिए यहां आज सुबह NDRF, दिल्ली पुलिस और CRPF की तैनाती की गई थी वो भी भारी संख्या में, क्या हम आंतकवादी हैं जो इतनी सेना की तैनाती की गई थी? 

''घर भी तोड़ रहे हैं और बेघर लोगों को मार भी रहे हैं ये कैसी कार्रवाई?''   

बेघर हुई एक महिला ने बताया कि ''दो दिन पहले हम लोगों का पानी बंद करवा दिया गया था इतनी गर्मी में पानी के बग़ैर रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो गया था, फिर एक पत्रकार ने किसी तरह पानी का जुगाड़ करवाया, और आज सुबह जब कार्रवाई शुरू हुई तो पुलिस वालों ने महिलाओं को पकड़ कर घसीटा है, पीटा है, बच्चों को पीटा है, ग़रीब लोगों को पकड़ कर थाने ले गए हैं, एक महिला है जिनके बच्चे यहां पड़े हैं उन्हें ले गए हैं उनका सारा सामान बिखरा पड़ा है कोई देखने वाला नहीं है, सरकार घर भी तोड़ रही है और बेघर लोगों को मार भी रही है ये कैसी कार्रवाई है?'' 

अपने सामान के साथ बैठी बेघर महिला

जिस महिला को पुलिस ने हिरासत में लिया था हम उसे देखने के लिए वसंत विहार थाने पहुंचे, हमने पुलिस ने महिला को छोड़ने की गुज़ारिश की तो उनका साफ़ कहना था कि ''नोटिस दे दिया गया था घर क्यों नहीं खाली किया'', हमने उन्हें बताया कि जिस महिला को उन्होंने हिरासत में लिया है उसका एक बच्चा बीमार है लेकिन हमें कह दिया गया कि SHO से जाकर मिलें।''

ये कैसे कार्रवाई थी समझ के परे थी, हमें पता चला कि पत्रकारों के साथ भी मारपीट की गई, जबकि जेएनयू की छात्रा जो अपने कुछ साथियों के साथ वहां पहुंची थीं उनके साथ भी धक्का-मुक्की की गई और उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। 

हम कभी थाने तो कभी प्रियंका गांधी कैंप के चक्कर लगा रहे थे लेकिन पुलिस अपने 'स्टाइल' में ही कार्रवाई कर रही थी, MCD का बुलडोज़र चल रहा था और चारों तरफ धूल ही धूल नज़र आ रही थी। समझना मुश्किल हो रहा था चारों तरफ गर्द ज़्यादा थी या फिर मायूसी का ग़ुबार? 

2002 से यहां रह रहे और बेलदारी कर रहे एक शख़्स ने बताया कि '' घर टूटा, अब कुछ नहीं बचा, सब सामान दब गया, रात से ही ये(NDRF और दिल्ली पुलिस) बार-बार अनाउंसमेंट कर रहे थे कि घर खाली कर दो, फिर सुबह आए और बिजली काट कर बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया आटा-चावल सब दब गया।'' 

''पुलिस वालों ने महिलाओं पर हाथ उठाया''

क्रांति नाम की महिला ने हमसे बात करना शुरू ही किया था कि बहुत सारी महिलाएं जमा हो गई, बहुत सी लड़कियां भी आ गई उन्होंने हमें बताया कि ''हम यहां 20 साल से रह रहे थे पहले तो हम पन्नी में रह रहे थे फिर हमें बोला गया कि पक्के घर बना लो और बिजली के मीटर लगवा लो, राशन कार्ड बने वोटर कार्ड सब हैं हमारे पास।  जब वोट लेना था तो सब आ रहे थे लेकिन आज सुबह हमें पीट-पीट कर बाहर निकाला गया तो कोई बचाने नहीं आया, लड़कियों को पीटा है, जो ज़्यादा बोल रहा था उसे थाने ले जाने की धमकी दे रहे थे, बच्चों तक को पीटा गया, मेरे बच्चों को घसीट रहे थे मैंने बड़ी मुश्किल से छुड़ाया, मुझे ऐसा मारा की मेरे मुंह से ख़ून आने लगा, पुरुष सेना के जवानों और दिल्ली पुलिस ने महिलाओं पर हाथ उठाया है। अब यहां भी नहीं बैठने दे रहे कह रहे हैं कि खाली करो सड़क, हम यहां मेहनत मजदूरी कर रहे थे, हम चाहे खाएं या न खाएं लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा रहे थे, अब किराए के घर में हम किराया देंगे या बच्चे पढ़ाएंगे, या खाना खिलाएंगे? जो किराया चार-चार हज़ार था अब वो सीधा आठ-आठ हज़ार कर दिया गया है, हमें सीधा बोल दिया गया रैन बसेरा जाओ।'' 

घर का सामान एक बोरी में भरकर सर पर उठा रही राम प्यारी मिलीं, हमने पूछा कहां जा रही हो तो कहने लगीं ''फिलहाल तो किसी छाया में जा रही हूं आख़िर कब तक धूप मैं बैठूंगी'', वे पिछले 30 साल से यहां रह रही थी, लेकिन एक दिन उन्हें पता चला कि उन्होंने ज़मीन पर अतिक्रमण कर रखा है।  

''बेघर कर दिया तो खाना देकर क्या तसल्ली दे रहे हैं''

हम लोगों से बात कर रहे थे तो देखा NDRF की तरफ से बेघर हुए लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया गया उनके लिए पूड़ी और सब्ज़ी लाई गई, लेकिन किसी ने उस तरफ देखा तक नहीं एक महिला ने हमसे कहा कि '' उन्होंने हमें बेघर कर दिया, हम भले ही भूखे-प्यासे मर जाएं लेकिन उनका खाना नहीं खाएंगे'' जबकि एक और महिला ने कहा कि ''इस खाने से ज़हर बेहतर होगा'' जबकि एक बच्ची ने बिलखते हुए कहा कि '' इस खाने का फायदा ही क्या है, हमें बेघर कर दिया तो खाना देकर क्या तसल्ली दे रहे हैं'' 

रोते-बिलखते हुए बच्चों को देखकर कलेजा मुंह को आ रहा था, छोटे-छोटे बच्चे सड़क किनारे पड़े थे, सोते हुए बच्चों के मुंह पर मक्खियों ने जैसे हमला बोल दिया हो, मां कभी हाथ से चलाने वाले पंखे से मक्खियां उड़ा रही थी तो कभी अपने दपट्टे से बच्चों के मुंह ढक रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि इनसे इनका हाल पूछें भी तो कैसे? एक महिला दिखी उन्होंने अपने अंगूठे में एक चाबी का छल्ला फंसा रखा था हमने पूछा चाबी कहां की है तो जवाब मिला ''जो घर टूट गया ये उसी घर की चाबी थी।'' 

बेघर परिवार

यहां रहने वाले ज़्यादातर लोगों ने बताया कि वे बेलदारी-मज़दूरी और आस-पास के घरों में काम करते हैं। इन लोगों में कोई झांसी का था तो कोई उन्नाव का, कोई छत्तीसगढ़ से कमाने आया है। लेकिन अब ज़्यादातर लोगों का यही कहना था कि ''किराए के घर में रहना तो मुश्किल है हो सकता है गांव वापस जाना पड़े।''  

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निर्माण मज़दूरों को बेघर कर दिया गया

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र धनंजय भी कार्रवाई के दौरान मौजूद थे '' जैसे ही हमें पता चला कि आज प्रियंका गांधी कैंप टूट रहा है तो हम वहां पहुंचे, हम बहुत समय से इनके बीच जा रहे हैं, कोर्ट का भी हमने रुख़ किया, ये लोग ज़्यादातर निर्माण मज़दूर हैं, घर बनाते हैं, दिहाड़ी मज़दूर के तौर पर काम करते हैं, ये लोग यहां तीस-चालीस साल से रह रहे थे, सभी के घरों में सरकारी मीटर लगा हुआ है, वहां बिजली पहुंची हुई है, इसके बावजूद उसे अवैध घोषित कर दिया गया, उस जगह पर रहने वाले लोगों का आधार कार्ड बना है, सारे कागज बने हैं उसके बावजूद ये (NDRF) आते हैं और नोटिस चिपका देते हैं, और जब हम कोर्ट जाते हैं तो कहा जाता है कि 15 जून तक आपको झुग्गी खाली करनी है, साथ ही इनका सही पुनर्वास किया जाएगा, रैन बसेरों में, लेकिन जब हम रैन बसेरे देखने जाते हैं तो उनकी हालत इतने ख़राब है वे इतने भरे हुए हैं, और रैन बसेरे एक रात, दो रात के लिए हो सकता है, और ये परिवार हैं, छह-छह लोगों का परिवार है, जिनके बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं उनके स्कूल छूट जाएंगे, तो अब वे कहां जाएंगे? 

वे आगे कहते हैं कि ''आज सुबह जब हम वहां पहुंचे दिल्ली पुलिस के सैंकड़ों लोग वर्दी पहन कर बुलेट प्रूफ जैकेट पहन कर, बंदूकें लेकर, लाठी लेकर उन्हें देखकर समझ नहीं आ रहा था कि ये किससे जंग लड़ने जा रहे हैं, जबकि वे ग़रीबों के घर वे तोड़ने जा रहे थे।''  

धनंजय की ये बात बहुत ख़ास थी क्योंकि इससे पहले हमने ख़ुद दिल्ली में अब तक क़रीब पांच से सात जगह पर बुलडोज़र चलने की कार्रवाई देखी और हर जगह पुलिस और सुरक्षा बल की ये तैनाती हैरान करने वाली लगती है, किसी बेबस को बेघर करते वक़्त इस तरह के प्रोटोकॉल दहशत से भर देते हैं। 

कोर्ट लगातार पुनर्वास की बात कह रहा है, लेकिन वे पुनर्वास कैसा है कम से कम एक बार इसका भी जायजा लेना ज़रूरी है।

दिल्ली में लगातार चल रही इस तरह की कार्रवाई से बेघर लोगों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है, ऐसे में रातों रात सड़क पर आए लोगों के लिए क्या सिर्फ रैन बसेरों की राह दिखा देना ही काफी होगा? बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल पर भी क्या गौर किया जा रहा है? 

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इस कार्रवाई में एक ख़ास बात थी NDRF की मौजूदगी क्योंकि इससे पहले हमने NDRF को आपदा में फंसे लोगों के मददगार के तौर पर देखा था लेकिन यहां उन्होंने इलाक़े को घेर कर जिस तरह से कार्रवाई की वो कई सवाल खड़े करता है। 

हम अपना काम ख़त्म कर लौट रहे थे कि अचानक मौसम ने करवट ली और कुछ देर पहले तक तेज़ धूप की जगह बारिश ने ले ली। और हमें ख़्याल आया उन बच्चों का जिन्हें कुछ देर पहले तक मां धूप से बचा रही थी, जाने अब वे बारिश में बच्चों और सड़क पर पड़े सामान को कैसे संभाल पा रही होगी? 

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