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दिल्ली: इंदिरा कैंप में चला बुलडोज़र, लोग बोले ‘सरकार की ग़लत नीतियों ने हमें बेघर किया’

कांति देवी नाम की एक महिला ने बताया कि वह पिछले 40 सालों से इंदिरा कैंप में रह रही हैं लेकिन उन्हें आज तक पुनर्वास नहीं मिला। उनका आरोप है कि दस्तावेज़ों में कमी निकाल कर उन्हें घर के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।
Bulldozer

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के श्रीनिवासपुरी इलाके में स्थित इंदिरा कैंप-1 में कल यानी 8 जून 2023 को शाम के वक़्त बेदखली के नोटिस चस्पा कर दिए गए। आज यानी 9 जून 2023 को दो बुलडोज़र के साथ लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस के कर्मचारी, इंदिरा कैंप के घरों को तोड़ने के लिए निकल पड़े और लगभग 92 घरों को धराशाई कर दिया।

मज़दूर आवास संघर्ष समिति के कन्वीनर निर्मल गोराना ने बताया कि "श्रीनिवासपुरी जेजे बस्ती, इंदिरा कैंप-1 क्षेत्र में सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट क्रियान्वित कर रही है जो कि सीधा पीएमओ ऑफिस, केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है। इस कार्य के लिए सीपीडब्ल्यूडी, लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस कार्यात्मक रूप से सक्रिय हैं। साल 2022 में लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस द्वारा इंदिरा कैंप के लोगों को घर खाली करने के आदेश दिए गए तो बस्ती के लोग मिलकर साकेत कोर्ट पहुंचे।"

6-7 अप्रैल, 2023 को DUSIB और लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस के संयुक्त तत्वाधान में सर्वे किया गया और 86 झुग्गियों की बेदखली की पहचान कर ली गई। 28 मार्च 2023 को साकेत कोर्ट के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज ट्विंकल वाधवा ने स्टे हटाते हुए संबंधित एजेंसी को रिप्रेजेंटेशन प्रस्तुत करने को कहा।

इधर पैसों के अभाव में मज़दूर हाई कोर्ट तक नहीं पहुंच पाए। आरोप है कि इसका लाभ उठाते हुए लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने मौका देखकर आज 92 परिवारों को घर से बेदखल कर दिया। लगभग 32 परिवारों को नरेला में घर के लिए पात्र घोषित किया गया है लेकिन चाबी अभी केवल 6 परिवारों को ही मिली है जबकि 60 परिवार पुनर्वास से वंचित किंतु जबरन विस्थापन के शिकार हो गए।

घर से बेदखल हुई अनीता देवी बताती हैं कि उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और उनके चार बच्चे हैं। वह एक छोटी-सी दुकान चलाती हैं जिससे परिवार का पालन-पोषण करती हैं। साल 2015 से पति की मृत्यु के बाद वह अकेले परिवार चला रही हैं। अनीता देवी का आरोप है कि उनके पास सारे कागजात होने के बाद भी उन्हें आज तक घर आवंटित नहीं हुआ और न ही कोई पुनर्वास मिला।

सफाई कर्मचारी रानी देवी जिनकी उम्र 48 साल है, उन्होंने बताया कि सरकार ने उनको नरेला में घर आवंटित किया है लेकिन काम छूट जाने की वजह से वह नरेला नहीं जा सकती हैं।

कांति देवी नाम की एक महिला ने बताया कि वह कचरा कामगार हैं और पिछले 40 सालों से इंदिरा कैंप में रह रही हैं लेकिन उन्हें आज तक पुनर्वास नहीं मिला। उनका आरोप है कि दस्तावेजों में कमी निकाल कर उन्हें घर के लिए अपात्र घोषित कर दिया गया। ऐसे में उनका सवाल है कि आज घर टूटने के बाद उनके पास सिर छुपाने के लिए कोई आशियाना नहीं है, खाने को एक पैसा नहीं, भला वह हाई कोर्ट कैसे जाएं।

दीपक नाम के इलेक्ट्रिशियन कामगार ने बताया कि उनका जन्म इसी इंदिरा कैंप में हुआ है और उनके घर को बिना पुनर्वास के तोड़ दिया गया। उनका कहना है कि "नोटिस 1 दिन पहले ही लगाया गया था, भला 1 दिन में किराए के लिए घर कैसे ढूंढा जा सकता है।"

दर्जी का काम करने वाले कल्लू ने बताया कि वह पिछले 42 सालों से इंदिरा कैंप में रह रहे हैं लेकिन उन्हें नरेला जाना स्वीकार नहीं है क्योंकि उनके मुताबिक़ वह वनवास से कम नहीं है। इसे लेकर उनका कहना है कि जहां उनकी आजीविका खत्म हो जाएगी तो वह परिवार कैसे चलाएंगे।

ऑटो ड्राइवर संजय कुमार बताते हैं कि वह पिछले 30 साल से झुग्गियों में रह रहे हैं लेकिन उन्हें आज के दिन तक किसी ने बेदखल नहीं किया। उनका आरोप है कि "वर्तमान सरकार की ग़लत नीतियों ने उन्हें बेघर कर दिया और वे खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर हैं।"

निर्मल गोराना अग्नि ने बताया कि मानवाधिकार अधिवक्ताओं के सहयोग से इस मामले में पुनर्वास की मांग को लेकर जल्द ही हाई कोर्ट जाया जाएगा।

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