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सुभाष कैंप: 'जहां झुग्गी वहीं मकान' का नारा मलबे में दब गया!

दिल्ली के सुभाष कैंप में 24 अगस्त को डीडीए का बुलडोज़र चला, कार्रवाई को दस दिन हो गए लेकिन कई परिवार आज भी फ्लाईओवर के नीचे रहने को मजबूर हैं।
bulldozer action on slum

बदरपुर गांव के ठीक सामने सुभाष कैंप में 24 अगस्त को डीडीए का बुलडोज़र चला और वहां मौजूद मकान-झुग्गियों को मलबे में तब्दील कर दिया गया। बुलडोज़र चले 10 दिन से ज़्यादा हो गए लेकिन आज भी वहां बुलडोज़र मौजूद था और उस मलबे को ट्रक में भर रहा था जो कभी किसी का घर था। कुछ घर सरकारी दीवार से सट कर बने थे, उन पर नीली, गुलाबी और सफेद रंग की पुताई बता रही थी कि यहां कभी किसी के आशियाने थे। एक तरफ बुलडोज़र चल रहा था और दूसरी तरफ लोग उस मलबे से अपना सामान आज भी निकालने की कोशिश करते दिखाई दे रहे थे। 

आधार कार्ड निकाल कर लोग उसपर लिखे एड्रेस दिखा रहे थे, वही एड्रेस जिसका वजूद अब मिट्टी हो चुका था और वो पिछले 10 दिन से फ्लाईओवर के नीचे पड़े हैं। 

"फ्लैट देने के लिए कहा था"

जहां कुछ लोग हमें अपने घर से जुड़े कागज दिखा रहे थे वहीं टारज़न नाम के शख़्स ने हमें एक तस्वीर दिखाई। इस तस्वीर को दिखाते हुए वे बताते हैं कि "एक बार पहले भी नोटिस आया था, वो बोले चलो हम तुमको फ्लैट दिखाते हैं। वो हमें बसों में भर-भरकर ले गए थे, दो-तीन बस में हमें ले गए थे, बोला देख लो कैसा है, हमने घर देखे थे, तस्वीरें भी खिचवाई थी। उन्होंने बोला जब आपकी झुग्गियां टूटेंगी हम आपको यहां पर शिफ़्ट करेंगे, लेकिन जब घर टूटा तो किसी ने शक्ल ही नहीं दिखाई, कोई नहीं आया, पुलिस भी भगा रही है, मैं अपने पांच बच्चों के साथ फ्लाईओवर के नीचे रह रहा हूं।"

टारज़न का दावा है कि ये तस्वीर उस वक़्त की है जब उन्हें फ्लैट दिखाया गया था

ऐसे ही दावे कुछ और लोगों ने भी किए और साथ ही वो तस्वीरें भी दिखाई जब वो फ्लैट देखने गए थे। आज इन लोगों के पास महज़ तस्वीरें हैं और ये पिछले 10 दिन से फ्लाईओवर के नीचे पड़े हैं। 

फ्लाईओवर के नीचे रह रहे बच्चे का एक्सीडेंट 

वैसे तो बेघर हुए बहुत से लोग इधर-उधर जा चुके हैं लेकिन कुछ परिवार आज भी फ्लाईओवर के नीचे ही रह रहे हैं। इन लोगों ने बताया कि इसी फ्लाईओवर के नीचे रह रहे एक बच्चे का एक्सीडेंट भी हो गया और एक पैर टूट गया जिसे फिलहाल किसी जान पहचान के रिश्तेदार के घर रखा गया है। हम उस बच्चे को देखने पहुंचे, 10-12 साल का बच्चा एक कोठरी में ज़मीन पर लेटा था। उसके अगल-बगल तीन और लोग सो रहे थे, बेहद गर्मी और उमस में भी सब बेसुद सोए थे, एक छोटा सा पंखा तेज़ी से चल रहा था लेकिन उसकी हवा बेअसर जान पड़ रही थी। बच्चा मोबाइल में शायद कोई गेम खेल रहा था। हमने बच्चे की नानी बिमला से बात की तो उन्होंने बताया कि सब लोग फ्लाईओवर के नीचे ही रह रहे थे, खाना नहीं बना था तो कोई पूड़ी बांटने आया था बच्चा वही लेने जा रहा था तभी कोई बाइक सवार टक्कर मारकर चला गया, बच्चे का एक पैर टूट गया।

बच्चे की नानी बिमला ने हमें बच्चे के पैर का एक्स-रे दिखाया जिसमें तीन जगह फैक्चर थे। बच्चा स्कूल जाता था लेकिन 24 अगस्त को घर टूटा तो स्कूल छूट गया, फ्लाईओवर के नीचे रह रहा था, लेकिन 30 अगस्त को एक्सीडेंट हुआ तो अब बिस्तर पर पड़ा है, वो कब स्कूल जाएगा, कैसे जाएगा, कैसे उसका इलाज होगा परिवार को कुछ समझ नहीं आ रहा। परिवार का आरोप है कि "उन्होंने एक्सीडेंट का मामला दर्ज कराने की कोशिश की तो वहां से भी उन्हें भगा दिया गया, कहा गया कि अभी जी-20 तक बहुत बिज़ी हैं।"

फ्लाईओवर के नीचे पड़ा बेघर परिवार का सामान

"रात में बहुत डर लगता है"

फ्लाईओवर के नीचे कुछ नौजवान लड़कियां भी दिखीं, इन लड़कियों को इस तरह खुले में रहता देख कुछ बुनियादी सवाल ज़ेहन में घूमने लगे कि ये बच्चियां रात को कैसे खुले में सो रही होंगी, वॉशरूम की क्या व्यवस्था होगी? हमने एक महिला दयावती से बात की तो उन्होंने बताया कि "रात में बहुत डर लगता है, ऐसा लगता है कोई आ न जाए, कहां बाथरूम जाएं, कहां नहाएं, कहां खाना खाएं, गौतमपुरी में एक शौचालय बना है वहां जाते हैं और कहां जाएं, खुले में तो जा नहीं सकते।"

दयावती बताती हैं कि जब से (24 अगस्त) उनका घर टूटा है उनके बच्चे स्कूल नहीं गए, बच्चों की कॉपी-किताब, ड्रेस सब मलबे में दब चुका है।

"जिस दिन से घर टूटा दोनों बच्चे स्कूल नहीं गए"

सपना नाम की ऐसी ही एक और महिला हमें मिलीं। सपना कूड़ा बीनने का काम करती हैं, उनके पति नहीं हैं, दो बच्चे हैं एक बेटी और एक बेटा, बड़ी बेटी छठी क्लास में पढ़ती है लेकिन जिस दिन से घर टूटा है दोनों बच्चे स्कूल नहीं गए। वो भी फ्लाईओवर के नीचे ही रह रही हैं। वो हमें बताती हैं कि "डर लगता है, लेकिन अब कहां जाएं, सरकार बोलती है बेटी बचाओ, अगर सरकार को ऐसा लगता तो घर क्यों तुड़वा दिया? स्कूल न जाने से कितनी बच्चियों की पढ़ाई बर्बाद हुई है, सरकार तो बैठी है आराम से, यहां आकर देखे न कितनी दिक्कत हो रही है। जब से झुग्गी टूटी ना लड़का स्कूल जा रहा है ना लड़की, यहां से भी हटा रहे हैं, नहीं हटे तो पुलिस मारेगी।" वे आगे कहती हैं कि "बेटी से साथ फ्लाईओवर के नीचे रहती हूं, डर लगता है लेकिन अब जाएं तो जाएं कहां? किराया इतना ज़्यादा है कहां से भर पाऊंगी, या तो किराया ही भर दूं या फिर बच्चे ही पाल लूं।"

सपना की बेटी, फ्लाईओवर के नीचे सपना अपनी बेटी और बेटे के साथ रह रही है

सपना का दावा है कि वह भी उन लोगों में शामिल थीं जिन्हें फ्लैट दिखाए गए थे और कहा गया था कि झुग्गी के बदले उन्हें घर मिलेगा। जब इस सिलसिले में हमने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि "पहले तो बोल रहे थे, लेकिन दिए कुछ नहीं, मैं भी मकान देखने गई थी, गोविंदपुरी की साइड ले गए थे, फोटो भी खींचा था।"

परेशान लोगों में से एक बहुत ही नाराज़ शख्स ने हमसे कहा कि "इतने लोग आ रहे हैं तस्वीर खींच रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं लेकिन हमारी परेशानी हल नहीं हो रही है। सरकार ने ये भी नहीं सोचा कि एक कोई अकेला आदमी है तो कहीं भी सो जाएगा, लेकिन छोटे-छोटे बच्चों के साथ लोग कहां जाएंगे? औरतें कहां सोएंगी? कहां बनाएं-खाएं, कैसी-कैसी मुसीबत हम उठा रहे हैं हम ही जानते हैं। इतनी मुश्किल से मकान बनाया था और सरकार ने यूं तोड़ दिया, सारे कार्ड हैं हमारे पास, आधार कार्ड से लेकर तमाम कार्ड।"

आधार कार्ड दिखाता एक बेघर

"पैसे होते तो किराए का घर ले लेती ऐसे खुले में क्यों रहती"

फ्लाईओवर के नीचे रह रहे परिवारों में से एक परिवार शकीला का भी है। उन्होंने हमें बताया कि "जब घर टूट गया तो हर चीज़ की परेशानी हो गई, काम की, छत की, अब जी-20 आ रहा है तो यहां से भी भगाएंगे, तो जाएं कहां? बेटियां हैं, नहाने की दिक्कत है, मलबे पर ही एक जगह घेरी थी नहाने के लिए उसे भी कल तोड़ दिया, हाथ जोड़कर बहुत गुज़ारिश की फिर भी नहीं माने, यहां से कहां जाऊं यही सोच रही हूं, इतने पैसे नहीं हैं, अगर पैसे होते तो किराए का घर ले लेती ऐसे खुले में क्यों रहती।"

"जहां झुग्गी, वहीं मकान होगा लेकिन कुछ भी नहीं दिया"

घर टूट गया, पानी की सप्लाई रुक गई जिसकी वजह से बेघर हुए लोग पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं। तेज़ धूप में अपने घर के मलबे में से साबुत ईट और सामान तलाश करती दो महिलाएं मिलीं, इनमें से एक तो बुरी तरह से धूल में सनी थीं, बहुत ही नाराज़गी के साथ कहने लगी, "बच्चे सुबह से भूखे प्यासे हैं मैं पत्थर तोड़ने में लगी हूं, पिछले दस दिन से यूं ही खुले में पड़े हैं, पानी तक नहीं मिल रहा कि पानी पी कर काम कर लें। हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं कहां लेकर जाएं, बोलते थे कि जहां झुग्गी है वहीं मकान होगा लेकिन कुछ भी नहीं दिया। हमें फ्लैट दिखाया था, अब सबको भगा दिया।" बहुत नाउम्मीद नज़र आ रही एक महिला ने कहा कि "बच्चे स्कूल जाते थे लेकिन अब कोई स्कूल नहीं जा पा रहा है, पानी नहीं आ रहा है, बहुत से बच्चों का कॉपी-किताब सब मलबे में दब गया, कहां से लाएं खरीद कर बार-बार।"

"हमें यहां मलबे में दफना रहे हैं"

फ्लाईओवर के नीचे ही रह रहे पप्पू कहते हैं कि "हमारे देश में इतने बड़े-बड़े लोग आ रहे हैं उनका बहुत ही भव्य स्वागत हो रहा है, और हमें यहां मलबे में दफना रहे हैं। हमें बोला था कि हमें आशियाना मिलेगा, कहां है हमारा आशियाना, हम तो बेघर हो रहे हैं। पुलिस हमें यहां से भी भगा रही है, गांव में हमारा कुछ बचा नहीं, दस दिन से काम पर भी कोई नहीं जा पा रहा है, खाने-पीने की कोई सुध नहीं है।" 

स्थानीय का दावा "125 घर तोड़ गए हैं"

पप्पू बताते हैं कि सुभाष कैंप में 24 अगस्त को हुई बुलडोज़र कार्रवाई में "क़रीब 125 घर तोड़ गए हैं, एक दिन नोटिस लगाया फिर एक-दो दिन बाद आकर घर तोड़ दिए गए। हम लोग फ्लाईओवर के नीचे पड़े हैं, सड़क पर हैं, हमारे पास सारे कागज हैं, बिजली के बिल हैं, राशन कार्ड, आधार कार्ड, पहचान पत्र सब है। सरकार ने कहा था 'जहां झुग्गी वहां मकान' लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है, न बीजेपी सुन रही है, न कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी। मैं पूछना चाहता हूं इन तीनों से कि अब हम जाएं तो जाएं कहां, अब बच्चे इस धूप में परेशान हो रहे हैं, पानी बंद है, शौचालय नहीं है, बच्चे भी स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।"

आज कल दिल्ली की बदली-संवरी सूरत की तस्वीर की हर जगह चर्चा हो रही है, लेकिन दिल्ली में बेघर हुए इन लोगों से क्या कहा जाए? पिछले छह महीने में हमने तुगलकाबाद, प्रियंका गांधी कैंप, महरौली, प्रगति मैदान समेत कई जगह पर लोगों के घरों के टूटने की ख़बर रिपोर्ट की और अब 10 दिन से फ्लाईओवर के नीचे रह रहे सुभाष कैंप के बेघर हुए लोगों के घरों को मलबे में तब्दील हुआ देखकर यही लगता है कि आख़िर वो नारा क्यों और किसके लिए था - 'जहां झुग्गी वहां मकान'

'जहां झुग्गी वहां मकान' की बात हुई थी लेकिन अब तो जहां झुग्गी वहां मलबा दिख रहा है। ऐसे में एक बड़ा सवाल पुनर्वास का भी है। भले ही डीडीए सरकारी ज़मीन का हवाला देकर लोगों को बेघर कर सकती है, लेकिन वो बेघर लोग कहां जाएंगे ये कौन बताएगा? जिन बच्चों की पढ़ाई छूट गई उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? खुले में सो रही बच्चियों को कौन आश्वासन देगा कि वे सुरक्षित हैं? 

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