Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सुंदर नर्सरी स्लम: टूट गई झुग्गियां, बेघर परिवार बच्चों समेत खुले आसमान में रात गुज़ारने को मजबूर

''मेरी बेटी पेपर देने नहीं गई, पेपर छूट गया, ये सरकार जगह-जगह इतना ख़र्च करती है और हमें एकदम ही उजाड़ कर रख दिया और रोड पर बैठा दिया।''
Sundar Nursery Slum

सड़क किनारे एक चटाई पर अपनी सात महीने की छोटी बहन को संभालती एक बच्ची किसी तरह उसे बहलाने की कोशिश कर रही थी। मां अपने घर के सामान को कुछ यूं समेट रही थी कि आने-जाने वाले पुलिस-प्रशासन की नज़र में न आए। अपने इन बच्चों के साथ इस मां को बीती रात ही घर खाली करने के लिए कह दिया गया था। वो रात को ही अपने बच्चों के साथ सड़क पर आ गई थी। हमने उनसे पूछा कि अब वो कहां जाएंगी तो वे कहने लगीं ''कुछ पता नहीं इन बच्चों के साथ अब कहां जाऊंगी, घर भी नहीं मिल रहा है।''

आख़िरकार चल गया बुलडोज़र

आख़िरकार निज़ामुद्दीन में डीपीएस मथुरा रोड के पास सुंदर नर्सरी झुग्गियों पर बुलडोज़र चल गया। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद 18 तारीख़ को जिस बस्ती में जगह-जगह नोटिस चस्पा किया गया था वो आज पहचान में नहीं आ रही थी, हर तरफ मलबा नज़र आ रहा था। एक तरफ बुलडोज़र दहाड़ रहा है और दूसरी तरफ पानी की बौछार करने वाली मशीन पानी छिड़क रही थी। 19 तारीख को हमने जिस बस्ती को देखा था वो आज पहचान के बाहर थी, जिन गलियों में कल तक किसी भी तरह अपने घरों को बचाने की जद्दोजहद चल रही थी आज वहां हर तरफ सिर्फ मलबा, धूल और भारी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बल के जवान तैनात दिखाई दे रहे थे।

जेसीबी मशीन की शोर में उन तमाम लोगों के रोने, सुबकने, चीखने और शिकायत करने की आवाज़ गुम हो गई थी जिनका दावा है कि वो पिछले कई सालों से यहां रह रहे थे और उनके पास तमाम डाक्यूमेंट हैं, लेकिन आज इस झुग्गी-बस्ती को अवैध अतिक्रमण बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर तोड़ दिया गया।  

इसे भी पढ़ें : सुंदर नर्सरी झुग्गी: चलेगा बुलडोज़र तो कहां जाएंगे बेघर लोग, क्या होगा बच्चों की पढ़ाई का? 

सरकार तक नहीं पहुंची बात !

सड़क किनारे तीन-चार महिलाएं अपने सामान के साथ बैठी थीं। सर्दी के मौसम में बीती रात इन महिलाओं ने अपने परिवार के साथ यहीं गुज़ारी थी। अब भी सर्दी से बचने के लिए जलाए गए अलाव की राख पड़ी थी। यहां हमें हाजरा ख़ातून मिली। हाजरा हमें 19 नवंबर को भी मिली थी जब हम प्रशासन का नोटिस लगने पर यहां पहुंचे थे। उस वक़्त हाजरा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि ''किसी भी तरह हमारी बात सरकार तक पहुंचा दो ताकि हमारी कुछ मदद हो सके।'' हाजरा बीमार हैं। हमने उनसे पूछा कि कहां जाएंगी तो उन्होंने रोते हुए कहा कि ''कुछ नहीं हुआ, हमने पांच हज़ार का बहुत ही छोटा सा रूम लिया है पता नहीं उसमें मैं कहां रहूंगी, सामान कैसे रखूंगी''?

कोई ई-रिक्शा पर, तो कोई ठेले पर, तो कोई सिर पर सामान ढोता दिखाई दिया। एक बुजुर्ग महिला ने रोते हुए कहा कि ''ग़रीब आदमी कहां जाएगा''? नाराज़ हिना ने कहा कि ''हमारा 12 लोगों का परिवार है, हम लोग रोड पर पड़े हैं, यहीं सामान पड़ा है, हमारा कोई अता-पता नहीं है। हम रोड पर ही बैठे हुए हैं, इन्होंने उजाड़ तो दिया अब क्या...।''

''सड़क पर पड़े हैं''

वहीं नजमुल भी अपने परिवार के साथ सड़क पर ही सामान के साथ दिखाई दिए उन्होंने कहा कि ''मैं दो दिन से अपने परिवार के साथ यहां पड़ा हुआ हूं, चार लोगों का परिवार है। मेरी ही गली के कम से कम चार या पांच परिवार यहीं सड़क पर पड़े हैं। बड़ी मुश्किल से कल रात को हमने सामान निकाला। कल रात भी हमने यहीं बसर की है। बरसो रात भी हमने यहीं बसर की है। इन लोगों ने इतनी भगदड़ मचा दी बिना किसी मतलब के, DUSIB (Delhi Urban Shelter Improvement) रजिस्टर हाउसिंग सोसाइटी थी। सर्वे हो रखा है उस पर जो कानून लागू होते हैं उसको इन्होंने दरकिनार कर दिया। बिल्कुल ही नहीं सुना, हमें तो घर किराए तक पर नहीं मिल रहा है। आस-पास के इलाके में, जो तीन-चार हज़ार का घर था आज के दिन में 12 हज़ार का सिंगल रूम है। वो भी कॉमन बाथरूम के साथ। वो भी नहीं मिल रहा है। समझ नहीं आ रहा कहां जाएं।''

सामान निकालते लोग

बेघर हुए लोग प्रशासन और नेताओं से नाराज़ हैं। कई लोगों ने बताया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब कहां जाएं? जिस वक़्त हम नजमुल से बात कर रहे थे लोगों की भीड़ जमा हो गई। हर किसी के पास बताने के लिए अपनी-अपनी परेशानी थी।

महिलाओं ने बताई अपनी परेशानी

ज़ार-ज़ार रोते लोगों को देखकर समझना मुश्किल हो रहा था कि उनके आंसू ज़्यादा हैं या परेशानी। एक महिला ने चिल्लाते हुए कहा, ''मैंने रेहड़ी-पटरी लगा कर अपना घर बनाया था, हमारे कोई बड़े मकान नहीं थे। एक छोटी सी कोठरी थी वो भी छीन ली। कहते हैं कि जहां झुग्गी वहीं मकान लेकिन इन्होंने झुग्गी भी छीन ली। ये सरकार कहती है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लेकिन बेटी को तो सड़क पर ला दिया।'' वहीं एक और नाराज़ महिला अज़रा बेगम ने सवाल किया कि ''कोई जगह नहीं दी, और घर तोड़ दिया। वो नेता कहां गए जो वोट मांगने आते हैं। मेरे आगे पीछे कोई नहीं है, मैं अकेली हूं। मैं कमाती थी यहां रहती थी। मैंने एक-एक पैसा जोड़कर घर बनाया था लेकिन अब टूट गया।'' एक महिला ने रोते हुए कहा, ''मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं उनकी पढ़ाई लिखाई है, उनके पेपर चल रहे हैं, मेरा एक बच्चा पांचवी में है और दूसरा सेकेंड क्लास में। घर तोड़ दिया अब कहां जाएंगे। 10-10 हज़ार किराया है कहां से भरेंगे। एक कमाने वाला है, चार लोगों का परिवार है, कहां से करेंगे। बच्चों का स्कूल छूटा पड़ा है। अब कहां जाएंगे यहीं सड़क पर बैठे हैं, घर भी नहीं मिल रहा है।''  

''मेरी बेटी पेपर देने नहीं गई, पेपर छूट गया''

एक-दूसरे को गले लगाकर रोते हुए पड़ोसी आपस में हौसला देने की कोशिश करते दिखाई दिए। शबनम ने भी रोते हुए बताया कि ''मेरी बेटी डीपीएस में 12वीं में है, चार दिन से परेशान चल रही है। एक बेटी कॉलेज में है मेरी दोनों बेटियां रोड पर खड़ी हैं।'' एक अन्य महिला भी बेतहाशा रोते हुए कहने लगी कि ''मेरी बेटी पेपर देने नहीं गई, पेपर छूट गया, छठी में है। हमारे बच्चे भूखे-प्यासे पड़े हैं, ये सरकार जगह-जगह इतना खर्च करती है और हमें एक दम ही उजाड़ कर रख दिया और रोड पर बैठा दिया।''

एक महिला ललिता ने कहा कि ''अगर ये अवैध कब्जा था तो जब घर बना रहे थे तब क्यों बनने दिए। कर्ज है कैसे चुकाएंगे, तीन-चार बच्चे हैं कैसे पालेंगे।'' वहीं सैयद असगर अली ने कहा कि ''अभी कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करें, अगर तोड़ना ही था तो पहले कहीं बसा देते।''

सड़क किनारे पड़ा लोगों का सामान

''अवैध हैं तो वोटर लिस्ट में हमारे नाम कैसे आते हैं''

रोते हुए मलबे को दिखाते हुए एक महिला ने कहा, ''वो जो खंभा दिख रहा है वहां मेरा घर था, मेरे सास-ससुर यहां रहते थे। उनके मां-बाप भी यहीं रहते थे और अब हम यहां रह रहे हैं। किराए का घर भी नहीं मिल पा रहा है। बहुत ज़्यादा किराया बोल रहे हैं। बच्चों को लेकर कहां जाएं, रात से ही यहीं बैठे हैं। अब कहां जाएंगे कुछ पता नहीं, यहीं रोड पर बैठेंगे। आज तीसरा दिन है बच्चे स्कूल नहीं गए, एग्ज़ाम स्टार्ट हो गए हैं। कोई कहता है 'जहां झुग्गी वहीं मकान' कोई कहता है फ्लैट मिलेगा, हमें बेघर कर दिया, रोड पर रख दिया अब कहां जाएं। क्यों झूठे वादे करते हैं, पब्लिक को बेवकूफ क्यों बनाते हैं, सारे सबूत (कागज) होने के बावजूद हमारे घर नहीं हैं, हमें बेवकूफ़ बनाया हुआ है। इन्होंने एक नोटिस लगाया था लेकिन वो नीचे के घरों के लिए था हमारे घरों के लिए नहीं था। हमारे घर लीगल थे, हम भी कह रहे हैं जो अवैध हैं उन्हें तोड़ें लेकिन इन्होंने हमारे घर क्यों तोड़े? हमारे पास सारे काग़ज़ात हैं, हम टोकन वाले लोग हैं। अगर हम अवैध हैं तो वोटर लिस्ट में हमारे नाम कैसे आते हैं।''

''अब खाएं या किराया दें''

एक बुजुर्ग महिला के साथ खड़ी बेहद नाराज़ तबस्सुम ने कहा कि ''हमारा परिवार क़रीब 50 साल से यहां रह रहा था। अगर सरकार घर तोड़ रही है तो सरकार जवाब दे हम कहां जाएं? हमारे पास सारे प्रूफ हैं, वोटर आईडी है, टोकन हैं। सरकार सिर्फ नाम की नहीं होनी चाहिए काम भी तो करे। पब्लिक कहां जाएगी, रोड पर रहेगी? सरकार तो रोड पर भी नहीं रहने देगी, तो कहां है सरकार। क्यों कहा था 'जहां झुग्गी वहां मकान', कहां हैं मकान। ये तो ग़लत है, छोटे-छोटे से बच्चे लेकर कहां जाएं। मेरे बेटा बीमार है कहां लेकर जाऊं, सिर पर छत चाहिए न। बच्चे का आज टेस्ट था, एक पांचवी में पढ़ता है और एक पहली में। कोई बच्चा स्कूल नहीं गया, बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है, एग्जाम आ रहे हैं, ट्यूशन भी नहीं जा रहे हैं। नोटिस लगा है तो इतनी जल्दी कहां बना लेंगे हम घर। और इतने अमीर तो नहीं है कि 20 हज़ार का घर ले लें। अब खाएं कि किराया दें? अब पता नहीं कहां जाएंगे। यहीं पड़ा है सामान, रात को लकड़ी जला कर रात काटी, कुछ रिश्तेदार खाना दे गए। बच्चों को इधर-उधर से चिप्स या दूसरी चीज़ लेकर खिला रहे हैं। ऐसे हालात हैं हमारे, सरकार बताए हमारे बच्चों का क्या होगा?''

सड़क किनारे सामान के साथ बैठी बेघर महिला

जितने लोगों से बात की उससे कहीं ज्यादा अपनी बात कहने से रह गए। कहीं बच्चों की किताबें बिखरी पड़ी थीं तो कहीं ड्रेस और कहीं बस्ते और खिलौने। किसी के किचन का सामान सड़क की नुमाइश बन गया था। लोगों की जिंदगी सड़क का हिस्सा बनी हुई थी, कई लोगों से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने गुस्से में बात करने से इनकार कर दिया। लोगों को ये तक समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी नाराज़गी दिखाएं भी तो किसको?

कोई रोते-रोते चुप हो चुका था तो कोई फोन पर किसी अपने को रोते-रोते बेघर होने की ख़बर बता रहा था। कोई सामान समेट कर किसी ठिकाने की तलाश में निकल रहा था तो कोई मलबे में अब भी घर का बचा सामान तलाश रहा था।

''तत्काल सरकार बेदखल परिवारों को आश्रय दे''

'मज़दूर आवास संघर्ष समिति' के कन्वेनर निर्मल गोराना अग्नि प्रशासन की इस कार्रवाई पर कहते हैं कि ''इस बेदखली से बहुत बड़ा विनाश हुआ है। न केवल स्लम के लोगों को व्यक्तिगत हानि बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी भारी नुकसान हुआ है। न्यायालय से गरीब एवं अंतिम व्यक्ति के लिए संवेदनशीलता और राहत की अपेक्षा की जाती है किंतु बेदखली के कई मामलों में मौजूदा सरकार में ऐसा नहीं देखा जा रहा है। इसका अभिप्राय है कि न्यायाधीश की ओर से भी मानवाधिकारों को अनदेखा किया जा रहा है जो एक कड़वा सच है। तत्काल सरकार बेदखल परिवारों को आश्रय दे एवं उनके पुनर्वास का इंतजाम करे नहीं तो अंतिम व्यक्ति के साथ अन्याय होगा।''

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest