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पंजाब का अजनाला प्रकरण : अब आगे क्या?

“अमृतपाल सिंह का वहां पालकी साहिब के साथ पहुंचना स्वीकार्य नहीं है। अजनाला की घटना में एक विशेष पैटर्न था, जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ख़तरनाक है।”
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पंजाब के अजनाला थाने पर सिख कट्टरपंथियों के कब्ज़े और हमले से एकबार फिर समूचा राज्य थर्रा गया है। देश-विदेश में भी इसकी खूब चर्चा हो रही है। गौरतलब है कि 23 फरवरी को 'वारिस पंजाब दे' के मुखिया अमृतपाल सिंह खालसा और उसके हज़ारों समर्थकों ने अपने एक साथी की रिहाई (उस मामले में अमृतपाल खुद भी नामजद है) के लिए श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ लेकर अजनाला थाने पर कब्ज़ा कर लिया। उस वक्त वहां आला पुलिस अधिकारियों की अगुवाई में छह जिलों की पुलिस तैनात थी। लेकिन अमृतपाल सिंह खालसा के साथियों के हिंसक तेवरों के बाद समूची पुलिस तितर-बितर हो गई और तमाम पुलिसिया बंदोबस्त धरे के धरे रह गए। राज्य सरकार को तत्काल बैकफुट पर आना पड़ा। पुलिस साफ तौर पर अमृतपाल सिंह के आगे बेबस नज़र आई। इसमें पचास से ज़्यादा पुलिसकर्मियों को तलवारों से ज़ख्मी कर दिया गया। घटना के चौबीस घंटों के बाद भी पुलिस ने इस बाबत किसी 'अज्ञात' पर भी मामला दर्ज नहीं किया।

सबसे बड़ा सवाल इस बात को लेकर उठ रहा है कि खुलेआम खालिस्तान की मांग करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री भगवंत मान को ललकारने वाले अमृतपाल सिंह खालसा ने इस तरह पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ क्यों ली? क्या यह 'बेअदबी' नहीं?

श्री अकाल तख्त साहिब के मुख्य जत्थेदार सहित तमाम अन्य तख्त साहिबों के जत्थेदार, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी), खुद को सिखों का तथाकथित अभिभावक और प्रवक्ता कहने वाला शिरोमणि अकाली दल (बादल), सांसद सिमरनजीत सिंह मान सरीखे गरमख्याली पंथक नेता-जिन्होंने अतीत में हो चुकी 'बेअदबी' की घटनाओं पर खूब 'सक्रियता' दिखाई और तीखी से तीखी बयानबाज़ी की लेकिन अजनाला में श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालकी की आड़ में इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने की बाद भी ये सब खामोश क्यों हैं?

पंजाब के ईथोस(मानसिक मौसम) से वाकिफ लोग बखूबी जानते हैं कि अगर भूल से भी अजनाला में पंजाब पुलिस श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालकी वहां से हटाने की कोई कोशिश करती तो आज पूरा पंजाब सुलग उठता। सिख संस्थाएं और कट्टरपंथी इसे बेअदबी बताते। लेकिन जो अमृतपाल सिंह की अगुवाई में हुआ क्या वह श्री गुरुग्रंथ साहब की बेअदबी नहीं है? श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और एसजीपीसी प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी से इस बाबत फोन पर पूछना चाहा तो दोनों के फोन बंद मिले। दोनों के कुछ करीबियों के अनुसार इस घटना के बाद वे भी 'मंथन' में हैं। फिलहाल शिरोमणि अकाली दल प्रधान और सांसद सुखबीर सिंह बादल तथा अमृतसर अकाली दल के प्रधान एवं सांसद सिमरनजीत सिंह मान भी प्रकरण के इस पहलू पर खामोश हैं।

शिरोमणि अकाली दल के एक वरिष्ठ नेता नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहते हैं कि अस्सी के दशक में जैसे अलगाववादी नेता संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने श्री अकाल तख्त साहिब में पनाह लेकर खुद को महफूज़ कर लिया था, ठीक वैसे ही अमृतपाल सिंह खालसा भी श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ लेकर यह सब कुछ कर रहा है।

दुनिया भर में फैले सिख समुदाय की प्रतिक्रियाएं भी इस प्रकरण पर गौरतलब हैं। ज़्यादातर एक बड़ा तबका सोशल मीडिया के ज़रिए अमृतपाल सिंह खालसा की आलोचना कर रहा है कि उसने इस मानिंद श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ ली। धरना-प्रदर्शनो और विरोध के दौरान अगर यह एक रिवायत बन जाती है तो इसके नतीजे बेहद खतरनाक साबित होंगे। लोग एक सदी से भी पहले हुए उस ग़दर आंदोलन को भी याद कर रहेे हैं जब इंग्लैंड की एक जगह पर महान गदरी बाबे अंग्रेज़ी हुकूमत की वहशी गोलियोंं का शिकार हुए थे। जिस जगह उन्हें पुलिस ने अपनी गोलियों का निशाना बनाया, वहां श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश था और गदरी बाबाओं का कहना था कि पहले उन्हें ग्रंथ साहिब को किसी अन्य जगह पहुंचानेेे दिया जाए और फिर उन्हें गोलियां मारीं जाएं! यानी महान स्वतंत्रता सेनानियों ने श्री गुरुग्रंथ साहिब की आड़ में अपनी जान बचाने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं की और मरने केेे लिए बाखुशी तैयार थे। लेकिन इधर अमृतपाल सिंह ने क्या किया?

पंजाब केे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कहते हैं, "अजनाला की घटना गंभीर चिंता का विषय है। अमृतपाल सिंह का वहां पालकी साहिब के साथ पहुंचना स्वीकार्य नहीं है। अजनाला घटना में एक विशेष पैटर्न था, जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद खतरनाक है। केंद्र और राज्य सरकार को इसका विशेष संज्ञान लेना चाहिए।" जबकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के अनुसार, "श्री गुरु ग्रंथ साहिब की आड़ लेकर अजनाला थाने पर कब्ज़ा एक खतरनाक घटना है।"

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान इस ख़बर को लिखे जाने तक अजनाला प्रकरण पर खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। उनका कोई मंत्री भी इतनी संवेदनशील घटना के बाद भी कुछ नहीं बोला है।

अजनाला पुलिस थाने पर अमृतपाल सिंह के कब्ज़े केेे बाद यकीनन पुलिस बल का मनोबल टूटा है। राज्य में यह संदेश भी जा रहा है कि अब अमृतपाल सिंह और उसके साथियों पर 'हाथ' डालना फौरी तौर पर नामुमकिन है। घटना के एक दिन पहले तक जो अमृतपाल सिंह खालसा एक व्यक्ति के अपहरण और उसे जानलेवा यातनाएं देने के मामले में कथित वांछित था; उसकी गिरफ्तारी अब पुलिस को नहीं चाहिए! उसके गिरफ्तार साथी लवप्रीत सिंह तूफान को भी रिहाई दे दी गई है।

आईजी मोहनीश चावला, पुलिस कमिश्नर जसकरण सिंह और एसएसपी सतिंदर सिंह ने खुद (पुलिस थाने पर हमले के बाद) अमृतपाल सिंह खालसा को आश्वस्त किया है। अब इस मामले की जांच एक एसआईटी करेगी। यह घटना पंजाब के मौजूदा अमन-सद्भाव के लिए कतई शुभ संकेत नहीं हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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