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फरीदाबाद की संजय नगर बस्ती पर रेलवे ने चलाया बुलडोज़र, उजड़ गए बरसों से रह रहे दलित मज़दूर परिवार

मज़दूर आवास संघर्ष समिति का कहना है कि हरियाणा सरकार ने संजय नगर मजदूर बस्ती के परिवारों को बिना पुनर्वास किए विस्थापित किया है जो सरासर मानवाधिकारों का उल्लंघन है और यह हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना है।
Faridabad

न्यू टाउन फरीदाबाद रेलवे स्टेशन के समीप बसी संजयनगर मजदूर बस्ती को रेलवे ने बुलडोजर लेकर धराशाई कर दिया। इस बस्ती में दलित समुदाय के 500 से ज्यादा मजदूर परिवार पिछले 50 वर्ष से रह रहे थे। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह बस्ती इस तरह मलबे के ढेर में तब्दील हो जाएगी। संजय नगर में पहली तोड़फोड़ 29 सितंबर 2021 को की गई थी।

मजदूर आवास संघर्ष समिति संजय नगर की ओर से एक मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया किंतु सुप्रीम कोर्ट ने केवल याचिकाकर्ताओं को स्टे देने का आर्डर जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट में कुल 18 लोगों ने याचिका दाखिल की थी जिन्हें कोर्ट ने राहत देते हुए उनके मकानों को नहीं तोड़ने का आदेश दिया। हालाँकि प्रशासन पहले ही 18 में से दस मकानों को तोड़ चुका था।

इसके पश्चात मजदूर आवाज संघर्ष समिति संजय नगर ने फिर से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एक एप्लीकेशन फाइल की जिसकी सुनवाई सोमवार यानी 4 अक्टूबर सुबह 10:00 बजे हुई इस सुनवाई में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्टेट को नोटिस जारी किया किंतु मजदूर बस्ती को राहत नहीं मिली यह देखकर रेलवे प्रशासन ने पूरी ताकत के साथ 300 घरों को धराशाई कर दिया।

समिति ने प्रशासन पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए कहा कि तोड़फोड़ के दौरान रेलवे प्रशासन ने मानवाधिकारों को ताक में रखकर विकलांग, गर्भवती महिलाएं एवं बच्चों को भी नहीं बख्शा।

मजदूर आवास संघर्ष समिति राष्ट्रीय कन्वीनर निर्मल गोराना ने बताया कि हरियाणा सरकार ने संजय नगर मजदूर बस्ती के परिवारों को बिना पुनर्वास किए विस्थापित किया है जो सरासर मानवाधिकारों का उल्लंघन है और यह हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना है। दिल्ली हाईकोर्ट के द्वारा दिए गए अजय माकन के फैसले में पुनर्वास को आवश्यक बताया गया है विस्थापन से पहले पुनर्वास की बात की गई है किंतु इस आदेश की भी घोर अवमानना रेलवे प्रशासन ने संजय नगर बस्ती में की है। कल यानी सोमवार को फिर से मजदूर आवास संघर्ष समिति संजय नगर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एप्लीकेशन मूव करते हुए अर्जेंट मेंशनिंग की गई है ताकि सुप्रीम कोर्ट पूरी बस्ती पर संज्ञान ले सके। हरियाणा सरकार द्वारा लगातार बस्तियों की तोड़फोड़ का अभियान चलाया जा रहा है जिसकी मजदूर आवाज संघर्ष समिति कड़ी निंदा करता है।

दलित राइट्स नेता दीनदयाल गौतम ने बताया कि दलितों की बस्ती को टारगेट किया गया और दलित होने की वजह से प्रशासन पुनर्वास भी नहीं दे रहा है यह दलित परिवारों के साथ भेदभाव है जिसकी भीम आर्मी कड़ी निंदा करता है कि आज भी फरीदाबाद जैसे शहर में पुनर्वास को लेकर एवं आश्रय को लेकर प्रशासन द्वारा भेदभाव किया जा रहा है।

कचरा कामदार कामगार सीता देवी बताती हैं कि पिछले 60 वर्ष पूर्व उसका जन्म इन्हीं झुग्गियों में हुआ था और उसने अपना बचपन, जवानी और बुढ़ापा यहां बिता दिया किंतु बुढ़ापे में वह अपने पूरे परिवार को लेकर कहां जाएं जबकि सरकार पुनर्वास के मुद्दे पर कुंभकरण की नींद सो रही है।

संजय नगर की रहने वाली सीमा देवी ने बताया कि मेरा घर सरकार ने तोड़ दिया है किंतु मेरा हौसला नहीं तोड़ा है मैं अपने नट समुदाय के साथ सरकार से आवास की मांग करूंगी और अगर सरकार मुझे आवास प्रदान नहीं करेगी तो मैं आगामी चुनाव में मौजूदा सरकार की पार्टी के खिलाफ प्रचार प्रचार करूंगी।

सतीश कुमार ने बताया कि जिला अधिकारी फ़रीदाबाद को तत्काल ही बेदखल हुए परिवारों को अस्थाई आश्रय प्रदान करना चाहिए।

हालाँकि हिंदुस्तान अख़बार की ख़बर के मुताबिक़ रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि अभी तक अवैध कब्जे हटाने पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है।

इस पूरे इलाके में काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओ ने बताया की प्रशासन ने लोगो को उजाड़ दिया लेकिन उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की है।

ये कोई पहला मौका नहीं है जब सरकारों की शह पर इस तरह के अभियान चलाएं जा रहे हों। इससे पहले इसी साल जुलाई - अगस्त को फ़रीदाबाद में खोरी गांव के दस हज़ार से अधिक परिवारों के घर अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया था। इसी तरह 2020 में हरियाणा के गुरुग्राम में 600 परिवारों को नगरपालिका ने बेघर कर दिया था। ये सभी परिवार लगभग 25-30 वर्षों से गुरुग्राम के सिकंदरपुर इलाक़े के आरावली क्षेत्र में रहते थे। इसी तरह इस महामारी काल में दक्षिण दिल्ली में कालका स्टोन, दक्षिणी दिल्ली में तुगलकाबाद रेलवे बस्ती और पूर्वी दिल्ली में चिल्ला खादर में बड़ी बेदखली के साथ दिल्ली में लगभग 300 परिवार बेघर किए गए। इसी तरह मुंबई में इसी वर्ष अप्रैल में अतिक्रमण के नाम पर झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया गया, जिससे लगभग 600 परिवार बेघर हो गए और कई लोग कोरोना वायरस की चपेट में भी आ गए थे ।

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