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राजस्थान: बाड़मेर में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का आमरण अनशन जारी

18 आंगनवाड़ी कर्मियों के निष्कासन के खिलाफ उनकी पुन:बहाली तथा अन्‍य मांगों को मनमाने को लेकर 11 दिन से कलेक्ट्रेट के आगे धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन।
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राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अब महज़ कुछ ही महीनों का समय बचा है, ऐसे में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अब सत्ताधारी कांग्रेस को उसके जन घोषणा पत्र के वादे याद दिलाने की कोशिश में जुटे हैं। हालांकि इन कार्यकर्ताओं के नियमितीकरण के वादे का तो अब तक गहलोत सरकार पूरा नहीं कर पाई उल्‍टे इसके लिए संघर्ष कर रही कुछ आंगनवाड़ी कर्मियों को उनके मानदेय सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। इन कर्मियों का कहना है कि करीब साढ़े चार साल तक का लंबा इंतज़ार करने के बाद अब जब उन्होंने अपने ह़क़ के लिए आवाज़ उठाई है, तो सरकार और उसके अधिकारी इसे दबाना चाहते हैं।

बता दें कि ये आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बीते 10 जुलाई से कलेक्ट्रेट के आगे टेंट लगाकर धरने और आमरण अनशन पर बैठी है। इस दौरान इन्होंने पैदल मार्च, कैंडल मार्च भी निकाले, जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिए, जिस पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। गुरुवार, 20 जुलाई को इन कर्मियों में से एक की तबीयत लगातार अनशन पर बैठने से खराब हो गई। बावजूद इसके सरकार इस मसले की लगातार अनदेखी कर रही है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक साल 2018 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में अन्य विभागों के साथ ही सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों को भी नियमित करने का लिखित वादा किया था। लेकिन अब जब गहलोत सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है, तो ऐसे में इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने अपने वादे के अनुसार अन्य सभी विभागों पर विचार किया, उन्हें राहत दी लेकिन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की किसी ने कोई सुध नहीं ली, जिसके चलते उन्हें मजबूरन हर जिले में जाकर अपनी बहनों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट करने के लिए 'सम्मान संवाद कार्यक्रम' चलाने की जरूरत पड़ी, जो सरकार को रास नहीं आया।

राजस्थान आंगनवाड़ी परिवार कर्मचारी संगठन की जिलाध्यक्ष बबीता माहेश्वरी न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि वो और उनकी टीम अपने अधिकारियों को पूर्व में सूचना देकर ही अप्रैल में प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में अपने अधिकारों के लिए संवाद करने गईं थी, लेकिन उन्हें बिना सूचना के केंद्र से गायब रहने और अन्य कार्यकर्ताओं को गुमराह करने का आरोप लगाकर मानदेय से पृथक कर दिया गया। ये पहले 7 आंगनवाड़ी महिलाओं के साथ हुआ और फिर सीएम से मिलने पहुंची जनसुनवाई में 11 और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर कुर्सियां तोड़ने और मुख्यमंत्री की खिलाफत करने का आरोप लगाते हुए उन्हें भी निष्कासित कर दिया गया, अभी तक कुल 18 कर्मियों को पृथक की जा चुकी हैं।

निष्कासित कार्यकर्ताओं की पुनः बहाली को लेकर संघर्ष

बबीता आगे आरोप लगाती हैं कि उन्हें महिला एवं बाल विकास परियोजना के उपनिदेशक सोमेश्वर देवड़ा ने सर्किट हाउस जनसुनवाई के दिन धमकाते हुए ये भी कहा था कि 'अभी तो केवल सात को निष्कासित किया था, ये प्रोपेगेंडा नहीं बंद किया तो अब देखो कितनों को हटाता हूं।' आंगनवाड़ी कर्मचारी सोमेश्वर देवड़ा को हटाने और निष्कासित कार्यकर्ताओं की पुनः बहाली को लेकर संघर्ष कर रही हैं।

अनशन पर बैठी कई कर्मचारी ऐसी भी हैं, जिनकी रोजी-रोटी और घर खर्च आंगनबाड़ी मानदेय पर ही चलता था, लेकिन अब सरकार के खिलाफ आवाज उठाना उन्हें भारी पड़ गया है, बावजूद इसके वो अपनी मांगे माने जाने तक अनशन से हटने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार जल्द सुनवाई नहीं करती, तो वे सामूहिक अवकाश पर चली जाएंगी।

ध्यान रहे कि बीते अप्रैल के महीने में भी इन महिला कार्यकर्ताओं ने आंगनवाड़ी परिवार कर्मचारी संगठन के बैनर तले जैसलमेर में एक बड़ी बैठक आयोजित कर सरकार को अपनी पांच सूत्रीय मांगों का ज्ञापन सौंपा था। साथ ही सरकार को ये चेतावनी भी दी थी कि अगर समय रहते उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाता, तो आने वाले समय में वे सरकार को आईना दिखा देंगी। इन कार्यकर्ताओं ने राज्य की कांग्रेस सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप भी लगाए थे।

क्‍या हैं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मांगें?

* आंगनवाड़ी कर्मचारियों की पहली और सबसे जरूरी मांग है कि सभी आंगनवाड़ी सदस्य (आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सहायिका, आंगनवाड़ी ग्राम साथिन, आंगनवाड़ी आशा सहयोगिनी) चारों वर्ग के कर्मचारियों को परमानेंट सरकारी सेवा में नियुक्त किया जाए।

* रिटायरमेंट के बाद इन्हें सम्मानजनक ग्रेजुएटी राशि मिले। साथ ही हर महीने पेंशन की सुविधा भी मिले।

* शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग के कैलेण्डर की छुट्टियों की तरह आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओ के लिए कैलेण्डर जारी हो। उन्हें मेडिकल, भत्ते और प्रमोशन मिले।

* इसके अलावा सरकार इन्हें जब तक स्थायी नहीं करती, इन्हें प्रति महीना उचित मासिक वेतनमान दिया जाए।

गौरतलब है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार की स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम योगदान देती हैं। इन कार्यकर्ताओं के मुताबिक ये सालों से बहुत कम मानदेय पर कार्य कर रही हैं और इनके समानांतर शैक्षणिक योग्यता रखने वाले लोगों को शिक्षा समेत अन्य विभाग में नियमित कर दिया गया है। लेकिन इन्हें मात्र आठ हजार से नौ हज़ार रुपये में गुजारा करना पड़ रहा है। ऐसे में इन लोगों ने सरकार को एक बार फिर चेतावनी दी है कि अगर इनकी मांगे नहीं सुनी जाती, तो ये आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार भी करने को तैयार हैं।

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