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राजस्थान: कांग्रेस का ‘पॉलिटिकल ड्रामा’ चालू है!

सचिन पायलट के ख़िलाफ़ अशोक गहलोत ने कड़े तेवर अपना लिए हैं। जिसके बाद अब राहुल की भारत जोड़ो यात्रा पर भी गहरा असर पड़ सकता है।
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फाइल फ़ोटो। साभार : पीटीआई

राजस्थान का गिरता तापमान इन दिनों रिकॉर्ड तोड़ने को तैयार है, पत्तों पर ओस की बूंदें बर्फ बनने लगी हैं, और कहा जाने लगा है कि ये पिछले 11 साल का सबसे सर्द नवंबर है।

ठीक दूसरी तरफ राजस्थान का सियासी तापमान इतना ज़्यादा बढ़ गया है, कि दिल्ली से जयपुर तक नेताओं की दौड़ ने कांग्रेस हाईकमान के पसीने छुड़ा दिए हैं। कहने का मतलब ये है कि राजनीति में 50 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का एक नया ही रूप देखने को मिल रहा है, और इस बार उन्होंने अपने धुर विरोधी सचिन पायलट पर खुलकर हमला करते हुए उनपर गद्दार होने का ठप्पा लगा दिया।

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के राजस्थान में एंट्री से महज़ कुछ दिनों पहले पायलट पर ये तीखा वार और 25 सितंबर की बगावत को क्लीन चिट देकर अशोक गहलोत ने खुद की सियासी लाइन को क्लीयर कर दिया है। जिसके बाद हाईकमान के फैसले पर भी सवालिया निशान लग गया है।

इसे अशोक गहलोत की सोची-समझी रणनीति या फिर आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए बड़ा संकट... दोनों ही संज्ञा दी सकती है। या यूं कह ले कि 25 सितंबर वाली बग़ावत के दिन कांग्रेस जहां पर थी, अशोक गहलोत ने वापस वहीं पर लाकर खड़ा कर दिया है।

दरअसल अशोक गहलोत ने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू देते वक्त सचिन पायलट के सवाल पर कहा कि ‘‘जिस आदमी ने गद्दारी की हो, उसे मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता, पायलट ने भाजपा के साथ मिलकर राजस्थान की कांग्रेस सरकार को गिराने की कोशिश की थी’’

पायलट पर गहलोत का बयान बदला तो नहीं?

दरअसल 1 नवंबर को मानगढ़ धाम के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक मंच पर थे। प्रधानमंत्री ने गहलोत को मुख्यमंत्रियों में सबसे सीनियर बताते हुए गहलोत की तारीफ की थी। इसके बाद सचिन पायलट ने 2 नवंबर को जयपुर में मीडिया से बातचीत में कहा था कि मानगढ़ में जिस तरह प्रधानमंत्री तारीफ कर रहे थे, ऐसी ही तारीफ गुलामनबी आजाद की भी की थी। उसके बाद क्या हुआ, गुलाम नबी कहां हैं, यह सब जानते हैं। इस तारीफ को हलके में नहीं लेना चाहिए। गहलोत ने गुलाम नबी आजाद से उनकी तुलना का अब गद्दार कहकर पायलट को जवाब दिया है।

अशोक गहलोत के इस हैरान कर देने वाले बयान पर कांग्रेस भी हैरान दिखाई दी, पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि "इंटरव्यू में कुछ शब्दों का इस्तेमाल अप्रत्याशित था, कई लोगों ने कहा कि उन्हें हैरानी हुई है, मुझे लगता है कि इस पर कांग्रेस नेतृत्व विचार करेगा। हम परिवार हैं, कांग्रेस को गहलोत और पायलट दोनों की जरूरत है, कुछ मतभेद हैं, उन्हें खत्म कर लिया जाएगा।"

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हुई खींचतान के बाद जब न्यूज़क्लिक ने राजस्थान कांग्रेस के नेताओं से बातचीत की कोशिश की तो कईयों ने ये कहकर मना कर दिया कि, ‘वो बड़े लोग… हम उनपर टिप्पणी नहीं कर सकते’ तो कुछ लोग बेहद आक्रोश में दिखाई दिए जिनका कहना था कि ‘दोनों ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, तो हम इसमें कुछ भी नहीं बोल सकते। आप उन्हीं से बात कर लो’

हालांकि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व महासचिव सुरेश चौधरी ने न्यूज़क्लिक से बात की, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गद्दार वाले बयान पर उन्होंने कहा कि ‘’अशोक गहलोत बहुत सीनियर और अनुभवी नेता हैं, उनके मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती हैं। जबकि सचिन पायलट ने अशोक पायलट को जो जवाब दिया है वो पूरी तरह से पार्टी के हित में है। उन्होंने कहा कि गहलोत को सचिन पायलट पर सीधे आरोप न लगाकर पार्टी विधायकों की राय लेनी चाहिए।"

इस दौरान सुरेश चौधरी ने 25 सितंबर को राजस्थान कांग्रेस में हुई घटना का भी ज़िक्र किया, उन्होंने कहा कि “25 सितंबर को जो घटना हुई थी, उसमे ग़लत काम करने वालों को सज़ा देना मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।‘’

वैसे तो सुरेश चौधरी बातों से सचिन पायलट के समर्थक मालूम पड़ रहे थे, लेकिन उन्होंने आख़िर में ये भी कहा कि सभी को मिलजुलकर काम करना चाहिए।

इसके बाद कांग्रेस की इस पॉलिटिक्स पर न्यूज़क्लिक ने भाजपा सांसद निहाल चंद मेघवाल से बातचीत की, गहलोत-पायलट के टकराव से भाजपा को क्या फायदा होगा? के सवाल पर उन्होंने उत्तर दिया कि "कांग्रेस डूबती हुई जहाज़ है, और यहां इनका आख़िरी शासन है। इसके बाद ये राजस्थान में कभी नहीं आएंगे। इनकी आंतरिक कलह इन्हें ले डूबी है।‘’

वैसे ये बात सच है कि कांग्रेस की आंतरिक कलह ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है, मल्लिकार्जुन खड़गे जब अध्यक्ष बने, तब उम्मीद जगी कि अब कांग्रेस के भीतर दिल्ली से लेकर राजस्थान तक सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन अशोक गहलोत ने एक बार फिर अपने हमले से हाईकमान के कामकाज और विश्वास पर सवाल खड़े कर दिए। तो दूसरी तरफ भाजपाई खेमा कांग्रेस की इंस अंतर्कलह से बेहद खुश है, लेकिन उसे इसका कितना फायदा मिलेगा ये बताया राजस्थान के पत्रकार जितेंद्र सीकर ने।

जितेंद्र सीकर बताते हैं कि ‘’गहलोत के इस बयान से भाजपा को कोई खास फायदा नहीं होगा, क्योंकि वो ख़ुद आपसी कलह से जूझ रहे हैं, राजस्थान भाजपा के भीतर ही दो गुट बंटे हुए हैं, जो ज़ाहिर हैं, बाकी और भी छोटे-छोटे नेता ख़ुद का गुट बनाए घूम रहे हैं। ऐसे में अगर राजस्थान का सत्ता परिवर्तन होता है तो इसे परंपरा कहा जाएगा, क्योंकि यहां का वोटर हर पांच साल पर सरकार बदल देता है।‘’

पत्रकार जितेंद्र सीकर ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान पर भी अपनी बात रखी उन्होंने कहा कि ‘’जो गांधीवादी और सबको साथ लेकर चलने वाली छवि गहलोत की गढ़ी जा रही थी, सचिन के लिए ऐसे बयान से उसे धक्का लगा है। और नेतृत्व में कलह अब खुलकर बाहर आ गई है। अब कोई कुछ भी कहे, लेकिन पार्टी में अंदरखाने क्या चल रहा है लोगों में जाहिर हो चुका है।‘’

यानी इतना तो साफ है कि राजनीतिक परिपेक्ष में एक ही पार्टी का नुकसान हो रहा है, अगर ये कहें कि कांग्रेस की अंदरूनी कलह से भाजपा को कोई बहुत ज़्यादा फायदा होने वाला है, तो ये ग़लत होगा। लेकिन फिर भी अगर सत्ता परिवर्तन होता है तो मतदाताओं के दिमाग में सियासी परंपरा ही रहेगी। लेकिन इस सियासी खींचतान के बीच जो सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपसी रंज़िश में जनता के कामों को कितना पूरा किया जा रहा है, हर पांच साल पर सरकार तो बदल जाती है, जनता को नई सरकार से आस हो जाती है, लेकिन इन सरकारों की अंदरूनी गुटबाज़ी आमजन के लिए परेशानी बनी रहती है, इसी सवाल को लेकर हमने पूर्व विधायक और ऑल इंडिया किसान सभा राजस्थान के सचिव अमराराम से बातचीत की।

अमराराम ने कहा कि ‘’जिस तरह से कुर्सियों की बंदरबांट और लूट हो रही है, ये राजनीति नहीं है, जिन वादों को करके कांग्रेस सरकार में आई थी, कि भाजपा के कुशासन से हुए नुकसान की भरपाई करेंगे, 10 दिन में कर्जा माफ कर देंगे, स्वच्छ प्रशासन देंगे... ये सब धरा का धरा रह गया। अब बचा है तो महज़ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए झगड़ा। हर पांच साल पर सरकार बदल जाती है, और दोनों ही दल जनता को बारी-बारी से लूटते हैं। क्योंकि ये लोग हमेशा स्वार्थ के लिए लड़ाई करते हैं सिद्धांत के लिए नहीं।"

ख़ैर... एक ओर जहां अशोक गहलोत ने पुख्ता सबूत का हवाला देते हुए सचिन पायलट को गद्दार कह डाला और ये कहा कि सचिन के पास 10 विधायकों से ज्यादा का समर्थन नहीं है, ऐसे में एक ख़बर ये भी सामने आ रही है कि सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान से मांग कर दी है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री का फैसला गुप्त मतदान के जरिए ही हो। सचिन पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व से कहा कि अशोक गहलोत द्वारा कभी 10 तो कभी 20 विधायकों के समर्थन की बात, ये ध्यान भटकाने की कोशिश है। कांग्रेस नेतृत्व से बातचीत में सचिन ने गहलोत को खुली चुनौती दी है और कहा है कि मुख्यमंत्री पद के लिए विधायकों की गुप्त राय ली जाए, उसमें गहलोत को समर्थन नहीं मिलेगा।

सचिन पायलट ने कहा कि अगर बहुमत अशोक गहलोत के पक्ष में हुआ तो वे दोबारा नेतृत्व परिवर्तन की मांग नहीं करेंगे और गहलोत के नेतृत्व में चुनाव में जी जान से लग जाएंगे।

फिलहाल अगर गहलोत के बयान की टाइमिंग पर ग़ौर करें तो इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि राजस्थान में जिन क्षेत्रों से होकर राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकलनी है उन क्षेत्रों में सचिन पायलट का ही दबदबा है, शायद यही वजह थी कि कुछ समय पहले तक यात्रा का रूट तय करते समय ही विवाद हुआ था। मगर आखिरकार अब यात्रा इसी रूट से निकल रही है।

लेकिन राजस्थान के सियासी माहौल ने राहुल की यात्रा पर संकट के बादल घिरने के संकेत दे दिए हैं। क्योंकि मौजूदा परिस्थिति कह रही है कि यात्रा में सचिन पायलट के वर्चस्व को क्षीण करने के लिए गहलोत हर संभव प्रयास करेंगे।

इन सबके बीच राजस्थान में लंबे समय से चल रहे सियासी संकट का निपटारा भी जल्द ही हो सकता है। ये भी पता चल सकता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पायलट की ताजपोशी होगी या गहलोत ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे, यानी इस पॉलिटिकल ड्रामे की तस्वीर थोड़ी बहुत ही सही लेकिन 29 नवंबर तक साफ हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जयपुर आ रहे हैं।

अब हाईकमान के पास क्या विकल्प?

फिलहाल पूरे सियासी संकट के बीच विश्लेषण करें कि कांग्रेस हाईकमान के पास चारा क्या है, तो शायद सबसे

पहला यही कि 2023 तक अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया जाए, और उन्हें इस बात के लिए मनाया जाए कि 2023 का विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के नाम पर लड़ा जाएगा। हालांकि इसके लिए अशोक गहलोत तैयार होंगे इसके बहुत कम चांस हैं, दूसरा कि पायलट खेमा इसपर कैसे रिएक्ट करेगा ये कहना मुश्किल है, क्योंकि राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदल जाती है।

दूसरा ये कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाए, लेकिन अशोक गहलोत तैयार तो इस बात के लिए भी नहीं होंगे, क्योंकि गुजरात चुनाव जैसे ही खत्म होंगे पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण भारत जोड़ो यात्रा ही रह जाएगी। ऐसे में पार्टी हाईकमान नहीं चाहेगा कि अशोक गहलोत या सचिन पायलट में से कोई भी गुट इस यात्रा की मुखालफत करे। क्योंकि अभी राहुल की यात्रा को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। यानी इस फैसले के लिए हाईकमान को बहुत ज्यादा कठोर होना पड़ेगा, जिसके परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।

तीसरा ये कि जस की तस परिस्थिति बनी रहे, अभी तक जैसे असमंजस की स्थिति है, कांग्रेस वैसी ही बना कर रखे, और दोनों ही नेताओं के साथ कुछ बड़ी डील कर संपर्क बनाए रखे। समय आने पर अपना वादा पूरा करे। हालांकि इस फैसले से पार्टी के निर्णय लेने की क्षमता पर बड़े सवाल खड़े होंगे।

इन हो सकने वाले फैसलों के बीच एक बात जान लेना बहुत ज़रूरी है कि अशोक गहलोत ये कह चुके हैं कि उनके समर्थित विधायकों का इस्तीफा स्पीकर के पास ही है, यानी ये एक तरह से हाईकमान को धमकी ही है कि अगर कोई बड़ा कदम उठाया गया तो सभी अपने इस्तीफे की स्वीकार्यता के लिए अपील कर सकते हैं।

यानी कुल मिलाकर कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष तो बदल गया है, लेकिन हालात वैसे ही हैं। या यूं कहें कि पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अपने अनुभव को झोंकने का या परीक्षा देने का सबसे बड़ा वक्त है।

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