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राजस्थान चुनाव : क्या अशोक गहलोत जीत की उम्मीद कर सकते हैं?

कांग्रेस पार्टी में महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची हैं, लेकिन इसे मतदाताओं की अनसुलझी समस्याओं, ख़ासकर  युवाओं की बढ़ी बेरोज़गारी से जूझना होगा।
Rajasthan
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शनिवार, 18 नवंबर, 2023 को भरतपुर में राज्य विधानसभा चुनाव से पहले एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए। छवि सौजन्य: PTI

मार्च 1990 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से, जब भारत का सबसे बड़ा राज्य में एक साल तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, तब से राज्य में हर पाँच साल में बारी-बारी से कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में रही है। यह दशकों पुराना पैटर्न है जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली अशोक गहलोत सरकार इस साल तोड़ना चाहती है। इसलिए, 2023 के मौजूदा चुनाव में, उसने इस नेरेटिव को बढ़ावा देने की कोशिश की है कि मतदाता कांग्रेस को हटाने के बजाय उसे सत्ता में वापस लाना चाहते हैं।

गहलोत के अभियान का मुख्य केंद्र इस बात को लेकर है कि 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत के बाद उनकी सरकार ने दस कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की थी। उनका दावा है कि ये वादे पूरे हो गए हैं और अब टॉप-अप योजना शुरू कर दी गई हैं, जिसमें राजस्थान के आवाम के लिए सात गारंटी शामिल हैं, जो मतदाताओं को उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी यानि भाजपा को अगले पांच सालों तक सत्ता से बाहर रखने के लिए प्रेरित करेंगी।

योजनाओं और गारंटियों में, गृह लक्ष्मी योजना, जो महिला मुखिया वाले परिवारों को प्रति वर्ष 10,000 रुपये का भुगतान करेगी, एक करोड़ से अधिक परिवारों को 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर देगी, सरकारी कॉलेजों में छात्रों के लिए टैबलेट और लैपटॉप और चिकित्सा बीमा कवरेज शामिल हैं और प्राकृतिक आपदाओं के मामले में प्रति परिवार 15 लाख रुपये तक का बीमा शामिल है।

ज़ाहिर है कुछ लोग कल्याणकारी उपायों की जरूरतों पर सवाल उठाएंगे, लेकिन नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान ने उद्योग-अनुकूल माहौल भी बनाया है, जिससे इसकी आर्थिक विकास दर 11.04 प्रतिशत हो गई है, जो आंध्र प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर आती है।

दरअसल, पूरे राजस्थान में घूमने पर पता चलता है कि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि शहरी केंद्रों और गांवों में लोगों को गहलोत के बारे में कई तरह के शब्द सुनने को मिलते हैं। भरतपुर में एक पेट्रोल पंप अटेंडेंट, राजेश पूनिया, आवाम की प्रचलित मनोदशा के बारे में बताया: "टक्कर कांटे की है। अगर हम काम के आधार पर जाएं, तो गहलोत ने अच्छा काम किया है और उन्हें जीतना चाहिए, लेकिन अगर हम जाति के समीकरण से देखें, तो बीजेपी चुनाव जीतेगी।''

वे शब्द अस्वाभाविक से लग सकते हैं, लेकिन कई अन्य मतदाताओं की तरह उनका मतलब है कि किसी भी पार्टी के पक्ष में कोई स्पष्ट 'लहर' नहीं है। शायद इसीलिए गहलोत और उनकी पार्टी का मानना है कि उन्हें 12 नवंबर को जयपुर से शुरू हुई 12 दिवसीय कांग्रेस गारंटी यात्रा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने की जरूरत पड़ी। इस यात्रा के ज़रिए 200 विधानसभाओं में से 140 को कवर करने की उम्मीद है। मौजूदा राय पार्टी के बारे में अनुकूल बताई जा रही है।

हालाँकि, गहलोत भाजपा के स्टार प्रचारक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समाने खड़े हैं, जो मतदाताओं को जीतने का प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान जितना बीजेपी के लिए अहम है उतना ही कांग्रेस के लिए भी अहम है। इसके अलावा, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में, राज्य की सभी 25 संसदीय सीटें भाजपा की झोली में चली गईं थीं। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता एक सर्वविदित कारक है और भाजपा फिर से इस पर सवार है।

उदाहरण के लिए, कांग्रेस नेता सचिन पायलट के गढ़ दौसा में, मोदी ने 1,350 किलोमीटर लंबे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के दिल्ली-दौसा खंड का उद्घाटन किया। इस एक्सप्रेसवे का पहला चरण हरियाणा के सोहना को दौसा से जोड़ता है।

गुज्जर दौसा इलाके में प्रमुख समुदाय हैं और राजस्थान के मतदाताओं में उनका सात प्रतिशत हिस्सा है। दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के कारण यह समुदाय कांग्रेस पार्टी से दूर हो गया है। उस चुनाव में, कांग्रेस ने 12 गुर्जर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से सात जीते थे, जबकि भाजपा ने समुदाय से नौ को मैदान में उतारा था, जिनमें से सभी हार गए थे। लेकिन इस बार गुर्जर मतदाता कमल के निशान के पक्ष में झुक रहे हैं।

इस अंतर्धारा से उबरने के लिए, पायलट टोंक निर्वाचन इलाके में घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं, जिससे उनके भाजपा प्रतिद्वंद्वी अजीत सिंह मेहता काफी खुश हैं, जिन्होंने 2013 में यह सीट जीती थी और वापसी की उम्मीद कर रहे हैं। स्थानीय गुज्जर पायलट की दुर्गमता के बारे में शिकायत करते हैं और इस इलाके में विकास की कमी पर अफसोस जताते हैं। उन्होंने कहा, टोंक में 65,000 मजबूत मुस्लिम वोट कांग्रेस पार्टी के साथ मजबूती से खड़े दिखाई दे रहे हैं।

मोदी भी कई रोड शो कर रहे हैं, साथ ही गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी प्रचार कर रहे हैं। मोदी ने पांच साल के लिए पीडीएस राशन मुफ्त कर दिया है (हालांकि भाजपा अभी भी इसे 'पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना' के रूप में संदर्भित करती है), और भाजपा के संकल्प पत्र [चुनावी प्रतिज्ञा] में उज्ज्वला योजना के 2.5 लाख लाभार्थियों को 450 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा किया गया है। पांच साल में सरकारी नौकरियां और पीएम-किसान योजना के तहत किसानों को वित्तीय सहायता बढ़ाना है।

अपने चुनावी भाषणों में, जिसमें उदयपुर में नवीनतम भाषण भी शामिल है, मोदी अपने दो पसंदीदा विषयों पर लौट आए हैं - कांग्रेस पार्टी पर "आतंकवादियों" के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगाना, उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या का जिक्र करना, और उस पर सनातन धर्म का "अपमान" करने का आरोप लगाना भी शामिल है।

दरअसल, राजस्थान पुलिस ने कन्हैया लाल हत्याकांड के आरोपियों को घटना के चार घंटे के अंदर ही पकड़ लिया था। फिर, केंद्रीय राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया, और यदि कोई घटनाक्रम हुआ तो उस पर चुप्पी साध ली गई। कांग्रेस पार्टी ने दावा किया था कि आरोपी रियाज अटारी दरअसल असम के राज्यपाल और वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया के पोलिंग एजेंट के करीबी है।

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति और जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद पर उतारने की भाजपा की पसंद (और इसमें सफलता) को भी आदिवासी और जाट आबादी के बीच प्रभावशाली कदम के रूप में देखा जा रहा है। जनजातीय समूह आबादी का लगभग 12 प्रतिशत है,  जबकि जाट समुदाय 14 प्रतिशत है और कहा जाता है कि वे राजस्थान के 200 विधानसभा इलाकाओं में से 40 को 'प्रभावित' करते हैं। लेकिन जाट समुदाय परंपरागत रूप से कांग्रेस पार्टी का समर्थन करता रहा है, केवल इसलिए नहीं कि इसने राम निवास मिर्धा, सीसराम ओला और परसराम मदेरणा जैसे समुदाय के दिग्गजों को जगह दी है। गहलोत ने जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया है, लेकिन गहलोत के साथ समुदाय के समीकरणों में सब कुछ ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री ने, धनखड़ की बार-बार राजस्थान की यात्रा के खिलाफ शिकायत की थी, इसे "अप्रत्यक्ष राजनीतिक प्रचार" [भाजपा का] कहा था। राजस्थान लोक सेवा आयोग में नियुक्त कर्नल (सेवानिवृत्त) केसरी सिंह राठौड़ द्वारा उनके समुदाय के बारे में की गई पूर्वाग्रहपूर्ण टिप्पणियों से भी जाट नाराज थे।

इसका मतलब ये नहीं कि जाट बीजेपी से खुश हैं। भाजपा ने उन्हें अपने पाले में लाने के लिए प्रमुख जाट परिवार से कांग्रेस की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा को शामिल किया है। लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नहीं देखा जा सकता है, जबकि जिस नेता की वे सराहना करते हैं - पूर्व मुख्यमंत्री और प्रमुख भाजपा नेता वसुंधरा राजे हैं, जिन्हें जाट 'बहू' मानते हैं, और उन्हे भाजपा ने दरकिनार किया हुआ है।

बूंदी जिले के झालरापाटन में राजे को जबरदस्त समर्थन हासिल है। लेकिन यहां भी, जनता जानती है कि भाजपा में कई लोग मुख्यमंत्री बनने की होड़ में हैं, और उनकी बहू को शायद तीसरा कार्यकाल नहीं मिल सकता है। चाय बेचने वाले और राजे का जोरदार समर्थन करने वाले राजेश कुमार कहते हैं, ''वह मोदी के सामने खड़ी रहीं और उनके खिलाफ जाने वाले अन्य नेता जो मोदी के सामने झुकते जाते थे, वे झुकी नहीं।'' ऐसा सिर्फ उनका ही मानना नहीं है, बल्कि राज्य में कई लोगों का मानना है कि राजे ने इस इलाके में कई विकास परियोजनाएं शुरू कीं थीं।

भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व की रणनीति अपनाई है, उसे उम्मीद है कि जिस भी इलाके से संभावित मुख्यमंत्री चुनाव लड़ेगा, उसे भारी वोट मिलेंगे। यह रणनीति उल्टी पड़ सकती है क्योंकि केवल कुछ ही नेताओं की राज्यव्यापी अपील है। भाजपा प्रवक्ता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पार्टी का संसदीय बोर्ड तय करेगा कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन होगा।

गहलोत ने इन विरोधाभासों को भुनाया है। कई रैलियों में उन्होंने जनता से पूछा, "अगर आपको पुल या स्कूल की ज़रूरत है, तो क्या आप इसे अपने मुख्यमंत्री से मागेंगे या मोदी से मांगेंगे?"

लेकिन चुनाव प्रचार ख़त्म होने के बाद भी, गहलोत को जटिल मुद्दों से जूझना होगा। बार-बार परीक्षा के पेपर लीक होने से युवाओं का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो गया है। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध भी बढ़े हैं और बीजेपी ने इस मुद्दे को भुनाया है।  जवाब में, कांग्रेस ने पुलिस स्टेशनों को अधिक सार्वजनिक-अनुकूल और सुलभ बनाने की दिशा में अपने कदमों की वकालत की है और यह सुनिश्चित करने के उपाय किए हैं कि किसी भी शिकायतकर्ता को वपास न लौटाया जाए। जयपुर स्थित कार्यकर्ता निशा सिद्धू के अनुसार, महिला सुरक्षा-सह-परामर्श केंद्र राज्य पुलिस के सहयोग से चलाए जा रहे हैं। वे कहती हैं कि, ''राज्य भर में 247 से अधिक ऐसे केंद्र चलाए जा रहे हैं और किसी भी पीड़ित को उनमें शिकायत करने से मना नहीं किया जा सकता है।''

जयपुर स्थित निर्माण श्रमिक संघ के प्रमुख हुरकेश बुगालिया कहते हैं, “बेरोज़गारी बढ़ रही है लेकिन युवाओं में बेरोजगारी अधिक है। उदासी का माहौल है। लोगों को चुप-चाप सहने की आदत पड़ गई है-जनता उदास है लेकिन बिना शिकायत किए सब कुछ सहने की आदी हो गई है।''

गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री पायलट के बीच विवादों ने भी जनता की राय पर असर डाला है, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कम से कम अभी के लिए शांत कर दिया है।

दोनों पार्टियों को परेशान करने वाला एक और मुद्दा यह है कि स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले बागियों को कितनी सीटें या वोट मिलेंगे। बागी उम्मीदवार और अन्य निर्दलीय उम्मीदवार जितना बेहतर प्रदर्शन करेंगे, उनके लिए जीत की राह उतनी ही कठिन होगी। इसीलिए किसी को यकीन नहीं है कि केंद्र से लाए गए कैबिनेट मंत्री और सांसद भाजपा के लिए कैसा प्रदर्शन करेंगे।

झोटवाड़ा से केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को टिकट दिया गया है, जिसे 2008 और 2013 में इस सीट से जीतने वाले राजपाल सिंह ने चुनौती दी है। बीजेपी के एक और दावेदार आशु सिंह सुरपुरा भी इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।

या सांगानेर से मौजूदा एमएलए अशोक लाहोटी को लें। भाजपा ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया था, हालांकि उन्होंने 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था। इस सीट से भाजपा का टिकट एक राजनीतिक नौसिखिए भजन लाल शर्मा को गया है। चर्चा यह है कि लाहोटी ने कुछ स्थानीय आरएसएस के 'नेताओं' को शामिल करके गलती की। विद्यासागर नगर सीट से लोकसभा सांसद दीया कुमारी के उम्मीदवार के रूप में चयन ने मौजूदा विधायक नरपत सिंह राजवी को नाराज कर दिया है, जिन्हें चित्तौड़गढ़ सीट की पेशकश की गई थी। यह स्थानीय भाजपा के कद्दावर नेता चंद्रभान सिंह आक्या को पसंद नहीं आया, जो अब स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस ने भी 21 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं।

चुनाव प्रचार के आखिरी कुछ दिनों में राजस्थान की लड़ाई और तेज हो जाएगी।  रेगिस्तानी राज्य आम तौर पर सत्ता में मौजूद सरकार को वोट नहीं करता है, लेकिन गहलोत अपनी राजनीतिक विरासत या उस जगह को छोड़ने के मूड में नहीं हैं जो उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने लिए बनाई है। वे मिशन 156 पर निकल पड़े हैं, जो उन कुछ सीटों का संदर्भ है जिन पर वे भाजपा को शिकस्त देना चाहते हैं।

भाजपा उनके दावों का मजाक उड़ा रही है, लेकिन गहलोत का 'राजस्थान मॉडल', जिसमें महिलाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन और संपूर्ण वयस्क आबादी के लिए न्यूनतम गारंटीकृत आय शामिल है, एक प्रबल दावेदार है। जैसा कि दौसा में एक बुजुर्ग विधवा कहती है, "मेरा बेटा मुझे बीड़ी और दूध के लिए पैसे नहीं देता है - अब मेरे पास ऐसी आय है जिससे मैं अपने लिए दोनों खरीद सकती हूं।"

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

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