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राजस्थान चुनाव: घुमंतू और बंजारा समुदाय का हाल और राजनीतिक दलों की अनदेखी!

इस समुदाय के सामने रहने-खाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की कई समस्याएं हैं, जिस पर कोई राजनीतिक दल या सरकार ध्यान देने को तैयार नहीं है।
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राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही दिनों का समय बचा है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग वर्गों के वोटरों को लुभाने के लिहाज से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के साथ ही तमाम वादे और गारंटियां देती भी नज़र आ रही हैं। हालांकि इन सब के बीच राजस्थान की आबादी में क़रीब 55 लाख घुमंतू और बंजारा समुदाय से आने वाले लोगों के लिए न बीजेपी और न ही कांग्रेस किसी के पिटारे से कुछ भी निकलता नहीं दिखाई देता।
बता दें कि बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में भी इस समुदाय की घोर अनदेखी हुई थी। इन्हें बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने अपने घोषणा पत्रों में महज़ एक लाइन में समेट कर रख दिया गया था। और वास्तविकता देखें, तो वो एक-आधा वादा भी कुछ खास पूरा नहीं किया गया। 


2011की जनगणना के अनुसार अकेले राजस्थान में घुमंतू समाज से जुड़े 52 समुदाय आते हैं। इसमें नट, भाट, भोपा, बंजारा, कालबेलिया, गड़िया, लोहार, गवारिया, बाजीगर, कलंदर, बहरूपिया, जोगी, बावरिया, मारवाड़िया, साठिया ओर रैबारी प्रमुख हैं। कई रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया जाता है कि अनुमान के मुताबिक राजस्थान की आबादी का करीब 8% यानी करीब 55 लाख लोग घुमंतू समुदायों से आते हैं। बावजूद इसके इन लोगों के लिए किसी सरकार की कोई खास नीयत और नीति नहीं नज़र आती।
 
                                                          
पहचान पत्र तक नहीं हैं सभी लोगों के पास

पहचान पत्र तक नहीं हैं सभी लोगों के पास
घुमंतू साझा मंच से जुड़े कई कार्यकर्ताओं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस समुदाय के सभी लोगों के पास अभी भी न तो आधार कार्ड है और न ही कोई अन्य पहचान के दस्तावेज़ हैं जिससे इनको सरकारी मदद मिल सके। वोटर आईडी कार्ड चुनाव आने के दौरान जैसे-तैसे बना दिए जाते हैं, लेकिन वो भी सभी के पास नहीं हैं। इसका एक कारण ये भी है कि ये लोग अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते हैं, जिसके चलते अधिकारी इन्हें दस्तावेज़ों को लेकर और परेशान करते हैं।
इसी समाज के कार्यकर्ता विजेंद्र बंजारा बताते हैं कि किसी सरकार ने इस समुदाय के लिए कुछ खास नहीं किया। वसुंधरा राजे से पहले जब कांग्रेस की सरकार थी तो घुमंतू बोर्ड बनाया था और 50 लाख रुपये का बजट भी पास किया था। लेकिन इस बजट का क्या हुआ इसकी कोई खास जानकारी नहीं है। इसके बाद जैसे सत्ता पलटी वसुंधरा सरकार आई, उसने अपने कार्यकाल में इस बोर्ड के लिए कोई राशि जारी की हो, ऐसी कोई खबर नहीं है। अब बीते चुनाव में फिर गहलोत सरकार तो बनी लेकिन उनकी भी इस ओर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई दी। लॉकडाउन में इन लोगों की बुरी हालात थी, बावजूद इसके सरकारी मदद इन तक नहीं पहुंचाई गई। अब सुनने में आया है कि मुख्यमंत्री ने बंजारा जाति के लिए घुमन्तु अर्ध घुमंतू बोर्ड का गठन किया है, लेकिन इसका बजट और अध्यक्ष कौन है, ये शायद ही किसी को पता हो।

रेनके कमीशन की रिपोर्ट पर अब तक नहीं हुआ अमल

ध्यान रहे कि साल 2008 में आई रेनके कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 98% घुमंतू बिना जमीन के रहते हैं, 57% झोंपड़ियों में और 72% लोगों के पास अपनी पहचान के दस्तावेज तक नहीं हैं। 94% घुमंतू बीपीएल श्रेणी में शामिल नहीं हैं। हालांकि एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं किया गया है, जो इस समुदाय और उनके अधिकारों के लिए बेहद जरूरी थी।
रायका समुदाय से जुड़े कई बंजारा कार्यकर्ता कहते हैं कि राजस्थान सरकार की मानें, तो पूरे राज्य में कुल 32 घुमंतू जातियां हैं और ये आबादी का करीब 8% हैं। लेकिन इस पूरे वर्ग को कहीं राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हैं न ही इस समुदाय की खोज खबर लेने कोई नेता ही आता है। इसलिए बहुत समय से इस समुदाय के लोगों की मांग कि हमारे यहां से कोई नेता बने जो हमारे मुद्दों को गंभीरता से उठाए।

ज्ञात हो कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में ही लाखों की संख्या में बेघर घुमंतू रह रहे हैं, शहर में घुमंतुओं की ऐसी करीब 17 बस्तियां हैं जहां 3,300 से ज्यादा परिवार रहते हैं। इसके अलावा जैसलमेर, बीकानेर, मारवाड़, पुष्कर आदि में भी इस समुदाय के बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। ये अपने साथ अपने मवेशियों को भी रखते हैं। पहले के चुनावी घोषणा पत्रों में कई बार इन्हें रियायती दर पर ज़मीन के पट्टे देने और बीपीएल में शामिल करने जैसे कई दावे होते रहे हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि इस समुदाय के पास रियायती दरों पर भी जमीन खरीदने के पैसे नहीं हैं। घुमंतुओं के पास श्मशान की भूमि तक नहीं है। इसके अलावा पशुबाड़े के लिए भी कोई ज़मीन नहीं है। बीपीएल की श्रेणी में कुछ लोग शामिल जरूर हुए हैं लेकिन इनके शिक्षा, स्वास्थ्य का कोई ठिकाना नहीं है।

 

इस समुदाय के सामने सुरक्षा की भी बड़ी समस्या है

घुमंतू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ऊंट पालक गजेंद्र के अनुसार ज्यादातर घुमंतू लोगों के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं होता। सरकार कई सालों से वादे के बाद भी अब तक कोई ज़मीन का पट्टा नहीं दे पाई है। ज्यादातर घुमंतू लोग गर्मियों मे यहां से अपने मवेशियों को लेकर हरियाणा, पंजाब, मध्य-प्रदेश और कुछ आस-पास के राज्यों की ओर निकल जाते हैं, क्योंकि ये इलाका पूरी तरह सूख जाता है। और वहां कुछ चारा और गुजारे के लिए कुछ काम भी मिल जाता है। इसके बाद जब यहां अगस्त के आखिर या सितंबर की शुरुआत में मौसम थोड़ा ठीक-ठाक हो जाता है, तो लोग वापस अपने मवेशियों के साथ अपने टोलों में वापस आ आते हैं। लेकिन इस समुदाय के साथ सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा की है। कई बार टोलों में आग लगा दी जाती है, मार-पीट लूट-पाट भी हो जाती है। महिलाओं की भी अलग समस्याएं हैं। पुलिस-प्रशासन भी कोई खास अच्छा व्यवहार नहीं करता।
गौरतलब है कि घुमंतू बंजारा समुदाय के लोग लगातार राजनीतिक पार्टियों की अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। इनके रहने-खाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के भी कई मुद्दे हैं, जिस पर कोई सरकार ध्यान देने को तैयार नहीं है। ऐसे में इस समुदाय के लोगों का भी साफ कहना है कि इनका वोट उसी नेता और दल को जाएगा जो इनके उत्थान के लिए दृढ़ संकल्प दिखाएगा। हालांकि इनका ये भी मानना है कि किसी राजनीतिक दल को इनसे कोई खास मतलब नहीं है, इसलिए इन्हें कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती।

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