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राज्यसभा के लिए मनोनीत चारों हस्तियां दक्षिण भारत से ही क्यों? क्या है भाजपा का प्लान

देश में भाजपा के लिए सबसे कमजोर कड़ी दक्षिण भारत के राज्य हैं, शायद यही कारण है कि इन्ही इलाकों से चार हस्तियां राज्यसभा के लिए मनोनीत की गई हैं।
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पिछले दिनों हुए राज्यसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने जिस समीकरण के साथ उम्मीदवारों को उतारा था, साफ पता चल रहा था कि आने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी है। राजस्थान हो या उत्तर प्रदेश या झारखंड या फिर हरियाणा, सभी राजनीतिक दलों ने अपने सधे हुए नेताओं को मैदान में उतारा, भारतीय जनता पार्टी ने तो पत्रकारिता जगत के कई बड़े चेहरों को आज़माया।

इसी राजनीतिक समीकरण को और ज्यादा ठोस करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने इस बार राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाने वाले राज्यसभा सांसदों के लिए दक्षिण भारत की ओर नज़र दौड़ाई, और वहां से ऐसे नामों को निकाला जिन्होंने अपनी कला से देश के साथ विश्व में भी अपना खूब नाम बनाया है। जिसमें सबसे बड़ा नाम स्पोर्ट्स आइकन पीटी ऊषा का है। इसके अलावा संगीतकार इलैयाराज, लेखक वी विजयेंद्र प्रसाद और आध्यात्मिक नेता वीरेंद्र हेगड़े को राज्यसभा भेजा जा रहा है।

आपको मालूम होगा कि पीटी ऊषा केरल से आती हैं, इसी तरह इलैयाराजा तमिलनाडु, विजयेंद्र प्रसाद तेलंगाना और वीरेंद्र हेगड़े कर्नाटक से आते हैं। कहने का अर्थ ये है कि अगर आंध्र प्रदेश छोड़ दें तो इन सभी कलाकारों के ज़रिए पूरा दक्षिण भारत कवर करने की कोशिश की गई है।

सबसे पहले आपको बता देते हैं कि राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों के सात पद रिक्त थे, सरकार आने वाले दिनों में रिक्त पदों को भर सकती है। राज्य सभा के 245 सदस्यों में से 12 को राष्ट्रपति द्वारा सरकार की सिफारिश पर मनोनीत किया जाता है। इन्हें संविधान के आर्टिकल 80(3) के तहत नामित किया जाता है, जिसके अनुसार साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे मामलों में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।

अब राष्ट्रपति के इस विशेषाधिकार का फायदा उठाकर भारतीय जनता पार्टी अपना हित कैसे साध रही है ये समझिए... दक्षिण भारत में तीन केंद्र शासित प्रदेशों समेत पांच राज्य आते हैं। जिनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना। वहीं केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह और पुडुचेरी शामिल है।

अभी केंद्र शासित प्रदेशों की बात न करें तो अगर पांच राज्यों को ही मिला लें, आंध्र प्रदेश में 175, कर्नाटक में 225, केरल में 140, तमिलनाडु में 234, तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें शामिल हैं। अगर इनका जोड़ करें तो कुल 893 विधानसभा सीटें हो जाती हैं।

‘अगर विधानसभा में प्रदर्शन की बात करें तो कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण भारत का ऐसा कोई राज्य नहीं है, जहां भारतीय जनता पार्टी खुद के दम पर सरकार बना सकी हो, या मौजूदा वक्त में सरकार में हो।

इसके अलावा नरेंद्र मोदी के विजय रथ पर सवार भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटों पर जीत दर्ज करने में भले ही कामयाब रही, लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों में मोदी का जादू पूरी तरह से फीका रहा था। बीजेपी केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी जबकि तेलंगाना में चार सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। यही वजह है कि भाजपा की पूरी कोशिश दक्षिण भारत के राज्यों में है।

कहने का अर्थ ये है कि भाजपा ने मिशन 2024 की तैयारी शुरू कर दी है और तेलंगाना में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसकी रूपरेखा भी बन गई। भाजपा की नजर दक्षिण भारत के राज्यों में कमल खिलाना का है। इन पांच राज्यों में लोकसभा सीटों की बात करें तो आंध्र प्रदेश में 25, कर्नाटक में 28, केरल में 20, तमिलनाडु में 39, तेलंगाना में 17 यानी इन पांच राज्यों की लोकसभा का जोड़ 129 होता है। जो कुल लोकसभा सीटों का 25 फीसदी है। ऐसे में सियासी तौर पर दक्षिण का काफी महत्व है। ऐसे में भाजपा 2024 के चुनाव में कुछ सीटें दक्षिण भारत से झटकना चाहती है जिससे लोकसभा में उसकी संख्या बढ़े और वो सिर्फ उत्तर भारत की पार्टी ना कहलाए।

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि बीते दिनों भाजपा की नीतियों और फैसलों के कारण देश में जो आप-धापी मची है, उसकी आंच ने दक्षिण भारतीयों को भी खूब जलाया है, और ये बात भी सच है कि दक्षिण भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियां भी बेहद मजबूत स्थिति में रहती हैं, ऐसे में दक्षिण भारत का किला भेदना भाजपा के लिए आसान होने वाला नहीं है।

यही कारण है कि राष्ट्रपति के अधिकारों के ज़रिए आने वाले चुनावों को सीधे तौर पर साधा जा रहा है।

इस बात की पुष्टि ऐसे होती है कि जैसे ही पीटी ऊषा के राज्यसभा जाने का ऐलान हुआ, प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘’पीटी उषा को खेलों में उनकी उपलब्धियों को व्यापक रूप से जाना जाता है, लेकिन पिछले कई वर्षों में नवोदित एथलीटों का मार्गदर्शन करने के लिए उनका काम उतना ही सराहनीय है. उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने पर बधाई’’

इसमें एक बात और खास है कि चारों के नामों की घोषणा ऐसे वक्त में हुई जब हैदराबाद में भाजपा की कार्यकारिणी बैठक चल रही थी। इसके अलावा जिस दिन भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी और जेडीयू के आरसीपी सिंह की राज्यसभा की अवधि समाप्त हुई और दोनों ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया उसी दिन चारों का नामांकन हुआ।

फिलहाल इन चारों के बारे में थोड़ा-थोड़ा जान लेना भी बहुत ज़रूरी है

पीटी ऊषा: सबसे पहले बात पीटी ऊषा की... ये भारत की स्टार एथलीट और उड़न परी के नाम से मशहूर हैं। 1980 में केवल 16 साल की उम्र में उन्होंने मास्को में हुए ओलंपिक में हिस्सा लिया था। 1984 के ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनी थीं। एक मामूली से फासले से वह मेडल जीतने से चूक गई थीं। 1986 के सिओल एशियाई खेलों में उन्होंने चार गोल्ड मेडल जीते थे।

400 मीटर की बाधा दौड़, 400 मीटर की रेस, 200 मीटर और 4 गुणा 400 की रेस में उषा ने स्वर्ण पदक जीते। 100 मीटर की रेस में वो दूसरे नंबर पर रहीं। 1983 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिया गया था। 1985 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

इलैयाराजा: संगीत ज्ञानी के नाम से भी मशहूर हैं, इलैयाराजा ने सात हजार से ज्यादा गीतों की रचना की है। इसके साथ ही 20 हजार से ज्यादा म्यूजिक कॉन्सर्ट का वो हिस्सा रह चुके हैं। इलैयाराजा संगीत ज्ञानी के नाम से भी मशहूर हैं। उन्होंने भारतीय लोक संगीत और पारंपरिक वाद्ययंत्रों को वेस्टर्न कल्चरल म्यूजिक टेक्नीक के साथ-साथ जोड़ने के लिए जाना जाता है। 1986 में आई तमिल फिल्म विक्रम में कंप्यूटर के जरिए फिल्मी गाने रिकॉर्ड करने वाले वह पहले भारतीय संगीतकार थे। इलैयाराजा ने तमिल फिल्म संगीत में वेस्टर्न कल्चरल म्यूजिक का अनूठा प्रयोग किया। वे 2010 में पद्म भूषण और 2018 में पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

वी. विजयेंद्र गारु: दक्षिण सिनेमा से लेकर बॉलीवुड तक वी. विजयेंद्र गारु ने कई फिल्मों का पटकथा लेखन किया है। उन्होंने बाहुबली, RRR, बजरंगी भाईजान, राउडी राठौड़, मणिकर्णिका- द क्वीन ऑफ झांसी और मार्शल जैसी फिल्मों की कहानी लिखी है। 2016 में बजरंगी भाईजान के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्होंने अर्धांगिनी, रांझणा और श्रीवल्ली जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है।

वी विजयेंद्र का जन्म आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के कोवूर में हुआ। वह फिल्म निर्देशक बनना चाहते थे। इसके लिए वह चेन्नई चले गए, लेकिन वहां उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया। इस दौरान उनकी मुलाकात अपने एक पुराने दोस्त से हुई, जो उनके भाई शिव शक्ति दत्ता को राइटर-डायरेक्टर राघवेंद्र राव के पास ले गए। राघवेंद्र राव ने उन्हें 'जानकी रामुडु' (1988) की कहानी साझा रूप से लिखने के लिए कहा। इस तरह तेलुगु सिनेमा में उनका करियर शुरु हुआ। विजयेंद्र की बतौर लेखक पहली फिल्म 'बंगारू कुटुंबम' (1994) है।

डी वीरेंद्र हेगड़े: डी वीरेंद्र हेगड़े कर्नाटक के धर्मस्थल मंदिर के धर्माधिकारी हैं। उन्हें अपने सामाजिक कार्यों के लिए जाता है। उन्होंने जैन समुदाय की करीब छ सौ साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाया है। वह नेचुरोपैथी, योग और नैतिक शिक्षा के प्रसार के लिए धर्म स्थल से जुड़े 400 हाईस्कूल और प्राइमरी टीचर हर साल इन विषयों में 30,000 छात्रों को शिक्षा देते हैं। 1972 से लेकर अब तक उनके धर्मस्थल में हर साल सामूहिक विवाह कार्यक्रम कराया जाता है। इन कार्यक्रमों के जरिए हजारों जोड़ों की शादी होती है।

अपने-अपने क्षेत्र में माहिर ये चारों कलाकार भले ही राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए हैं, लेकिन असल में ये बहुत छोटी सी कड़ी हैं, जबकि इनके जरिए भाजपा दक्षिण भारत में खुद को और ज्यादा व्यापक रूप देने के मकसद वाला प्लान तैयार कर रही है। 

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