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महाराष्ट्र सियासत: एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा के बड़े प्लान का हिस्सा!

एकनाथ शिंद को भले ही भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया हो, लेकिन इसके पीछे पूरा मास्टर प्लान तैयार है।
eknath

महाराष्ट्र के भीतर 21 जून को शुरु हुए सियासी समारोह का अंत बहुत बड़े बदलाव के साथ हुआ। इसे हम बहुत बड़ा बदलाव इसलिए नहीं कह रहे हैं कि उद्धव सरकार गिर गई और भाजपा की रणनीति कामयाब हो गई, बल्कि इसलिए कि भाजपा ने इतने बड़े प्रदेश में ख़ुद को बड़े भाई के तौर पर पेश कर दिया है, जो कभी बाकी पार्टियों के साथ मिलकर कांग्रेस किया करती थी।

देश जानता है कि भाजपा सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर सकती है, फिर इतनी आसानी से एकनाथ शिंदे को कैसे मुख्यमंत्री बना दिया? इसके पीछे भी असंख्य कारण हो सकते हैं। जिसमें से एक समझने के लिए याद कीजिए उत्तर प्रदेश में हुए साल 2017 के विधानसभा चुनावों को, जिसमें मौजूदा उप मुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी की जीत के लिए जीतोड़ मेहनत की थी, हर तरफ चर्चा थी कि वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे, और भाजपा को शायद केशव प्रसाद की इसी लोकप्रियता से डर लगने लगा था, यही कारण है कि उनके पर कतरने के लिए पार्टी हाईकमान ने गोरखपुर की ओर नज़र दौड़ाई और योगी आदित्यनाथ को ढूंढ निकाला, जिनकी हर बात आज़ भी बिना हाईकमान की तारीफ किए शुरु ही नहीं होती है।

कहने का मतलब साफ है कि भाजपा हाईकमान जैसे ही किसी नेता की प्रसिद्धी आसमान चढ़ते देखता है, तो उसे अपने ओहदे पर ख़तरा दिखने लगता है, फिर महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की बढ़ती लोकप्रियता से तो कौन वाकिफ़ नहीं है।

हां ये ज़रूर कहा जा सकता है कि देवेंद्र फडणवीस को ज़िम्मेदारी देने को लेकर ज़रूर उलझन हुई होगी, पार्टी को लगा होगा कि चुनावों से पहले सरकार की नीतियां लागू करने के लिए एक मजबूत भाजपा नेता का सरकार में होना बेहतर होगा जिसकी नौकरशाही पर पकड़ हो, सरकार का एजेंडा लागू कर सके और स्थायी सरकार दे सके।

अगर फडणवीस सरकार में ना होते तो वो एक अलग शक्ति केंद्र बन जाते जिससे समस्याएं हो सकती थीं, वहीं, उन्हें बाहर रखने से काडर में भी निराशा होती और ग़लत संदेश जा सकता था। शायद यही कारण है कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री तो बना दिया गया लेकिन फैसलों के लिए देवेंद्र फडणवीस को सरकार से जोड़े रखा गया। और उन्हें उपमुख्यमंत्री बना दिया गया।

हालांकि, शिंदे को लेकर पार्टी स्पष्ट थी क्योंकि उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें ज़रूरी शिवसेना विधायकों का समर्थन मिल जाता है तो वो मुख्यमंत्री होंगे।

ध्यान देने की ज़रूरत यह भी है कि बिहार के बाद महाराष्ट्र ऐसा दूसरा राज्य है जहां भाजपा के ज्यादा विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री दूसरी पार्टी का है, ऐसा इसलिए क्योंकि आने वाले लोकसभा चुनावों में राज्य के 30 प्रतिशत मराठाओं के वोट टारगेट पर होंगे, और अगर देवेंद्र फडणवीस राज्य की सत्ता का केंद्र होते तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे तब मराठाओं ने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था।

अब जो सबसे महत्वपूर्ण कारण है शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का, शायद ये भी आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र ही है। क्योंकि पिछले कुछ वक्त में विपक्ष की ओर से हिंदुत्व बनाम हिंदू की राजनीति छेड़ने की ख़ूब कोशिश की गई, जिसपर काफी चर्चा भी हुई। क्योंकि अगर राज्य में उद्धव की सरकार कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर बनी रहती तो ज़ाहिर है कि कट्टर हिंदुत्व और सेक्युलर वोटों की कुछ गिनती भाजपा के खेमें में ज़रूर कम होती, लेकिन अब जब सरकार गिर गई है, और शिंदे के पास पूरे ढाई साल है, तब भाजपा का पूरा ध्यान शिवसेना का खत्म करने की ओर ही होगा, और ऐसी शिवसेना बनाने का होगा जिसमें उद्धव की ख़िलाफत हो और एकनाथ शिंदे का पक्ष मज़बूत हो। बाला साहब का सबसे बड़ा सिपाही दिखाने के लिए एकनाथ शिंदे ने पहली चाल चल भी दी है, उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने ट्विटर अकाउंट पर अपनी प्रोफाइल फोटो बदल दी है, और इस बार उन्होंने ऐसी फोटो लगाई है जिसमें वो बाला साहेब के चरणों में बैठे हुए हैं।

जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने बग़ावत की है और हिंदुत्व वाली विचारधारा को ढाल बनाकर मुख्यमंत्री बने हैं, साफ है कि वो शिवसेना के मालिकाना हक को हड़पने का पूरा मन बना चुके हैं, और अगर ऐसा हो गया तो भाजपा के लिए सत्ता में अबतक की शायद सबसे जीत होगी। जिसका सीधा फायदा उसे आने वाले लोकसभा चुनावों में और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में होगा।

 

इसमें एक बात जान लेना बेहद ज़रूरी है कि भाजपा ख़ुद को सबसे बड़ी हिंदुत्व वाली पार्टी बनाने के लिए लगी हुई है, लेकिन बिना शिवसेना को ख़त्म किए ऐसा हो नहीं सकता, यही कारण है कि एकनाथ शिंदे का भाजपा इसलिए भी उपयोग कर सकती है ताकि शिवसेना भी खत्म हो जाए और ब्लेम भी उसपर न आए।

 

क्योंकि महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे की विरासत भाजपा की राह का बड़ा रोड़ा थी। इसकी पहरेदारी फिलहाल उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। शिंदे को सुप्रीम पावर देने से शिवेसना के संगठन में टूट पड़ने के आसार हैं। संगठन के लोग मुख्यमंत्री के खेमे में जाना चाहेंगे। इस तरह उद्धव ठाकरे की ताकत और कमजोर पड़ जाएगी।

 

भाजपा  के एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के दांव की एक और वजह सबसे अमीर नगर निगम बृहनमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, यानी बीएमसी  पर कब्जे की लड़ाई है। भाजपा  का प्रमुख एजेंडा शिवसेना से बीएमसी को छीनना है। इस साल सितंबर में बीएमसी के चुनाव होने हैं और इनमें भाजपा की नजरें शिवसेना के वोट बैंक को कमजोर करने की है।

 

एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को समर्थन देते हुए सरकार बनवाकर भाजपा  ने शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। इससे शिवसेना कमजोर होगी, जिसका फायदा भाजपा  को बीएसमी चुनावों में हो सकता है।

 

दरअसल, मुंबई में शिवसेना की ताकत बीएमसी में उसकी मजबूत पकड़ से ही आती है। शिवसेना 1985 में बीएमसी में सत्ता में आई थी और तब से इसपर पर उसका कब्जा बरकरार है। 2017 के चुनावों में बीएमसी पर कब्जे के लिए शिवसेना और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई हुई थी और 227 सीटों में से शिवसेना को 84 और भाजपा को 82 सीटें मिली थीं।

 

वहीं एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है कि शायद भाजपा इस भ्रम को तोड़ना चाहती है कि उसे मुख्यमंत्री पद का कोई लालच नहीं है, मतलब वो ज्यादा विधायकों के बावजूद भी किसी और को सबसे बड़े पद पर बिठाने से पीछे नहीं हटती।

 

ख़ैर, आने वाला वक्त बताएगा कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की लड़ाई कहां तक जाएगी। इसके अलावा एकनाथ शिंदे बालासाहेब की शिवसेना को उद्धव से छीनने के लिए कौन-कौन से दांव चलते हैं।  

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