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SSR मामले पर प्रतिक्रिया : क्या भारत का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है?

हर किसी के पास सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़ी अपनी एक थ्योरी है। लेकिन यह अवधारणाएं, सुशांत सिंह के डॉक्टरों की बातों से मेल नहीं खातीं।
SSR मामले पर प्रतिक्रिया
Image Courtesy: NDTV

बॉइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ि़त अपने एक दोस्त से मैंने पूछा कि उसे उन्माद के दौरान कैसा महसूस होता है। आमतौर पर इस उन्माद के बाद घोर निराशा या उत्साह में कमी आती है। उन्माद के दौरान शख़्स में ऊर्जा का बहुत तेज संचार होता है और वह काफ़ी चंचल हो जाता है। इस दौरान वह अपने दिमाग पर भी काबू नहीं कर पाता।

मेरे दोस्त ने मुझसे एक ट्रैफिक सिग्नल की कल्पना करने के लिए कहा। सिग्नल पर ड्राइवर रुकते हैं, इंतज़ार करते हैं। वह जानते हैं कि यह सिग्नल, ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए है, एक नियत समय के बाद लाइट्स लाल, हरी और पीली होती हैं।

लेकिन मेरे उस दोस्त के लिए अपने उन्माद के दौर में इस सिग्नल और उसके रंग के मायने बदल जाते हैं। उसके लिए लाल लाइट का मतलब सिग्नल द्वारा रुकने की अपील से कहीं ज़्यादा हो जाता है। उसने बताया, "लाइट के लाल होने के पीछे मुझे साजिश नज़र आती है या फिर कुछ गहरे और रोचक चीज का इशारा मिलता है।" मतलह बायपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति के लिए सामान्य चीजों में साजिश खोजना आम होता है।

जबसे फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को आत्महत्या की है, तबसे मीडिया उनकी मौत से जुड़ी नई-नई कहानियां उधेड़ रहा है।

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को बॉलीवुड के "भीतरी" या ताकतवर परिवारों के वारिशों से जोड़ा गया। कहा गया कि सुशांत को लगता था कि यह भीतरी लोग उनके करियर को बर्बाद कर देंगे। फिर यह कहानी बताई गई कि सुशांत की पार्टनर रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शौविक ने सुशांत का पैसा हड़प लिया था। यह भी कहा गया कि रिया और उसके आसपास के लोगों की मांगों के चलते सुशांत दबाव में आ गए। इन सबसे आगे, रिया के सुशांत पर काला जादू किए जाने की बातें तक की गईं। 

लोकप्रिय कल्पनाओं में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या, अब सिर्फ आत्महत्या नहीं है, बल्कि हत्या है। इसमें शामिल लोगों को सामने लाया जाना चाहिए। कम से कम उनपर आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलाना चाहिए। 

बीजेपी की साझेदारी वाली बिहार सरकार की इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार से भिड़ंत भी हो गई।  बॉलीवुड में भी विभाजन है और ट्विटर पर लोग रिया के पक्ष-विपक्ष में भिड़े पड़े हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट, जिसके पास कश्मीर के लोगों की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं सुनने का वक़्त नहीं है, वह भी पूरी नौटंकी का एक अहम किरदार बन गया है।

प्रवर्तन निदेशालय (ED), CBI और नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो पर सुशांत सिंह राजपूत को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाया गया। यह तीनों एजेंसियां केंद्र सरकार के अधीन हैं। 

अगर रंग बदलते किसी सिग्नल को साजिश बताने के लिए मेरे दोस्त को बॉयपोलर माना जा सकता है, तो सुशांत की आत्महत्या को हत्या या रहस्य बताते मीडिया की ऊलजलूल धारणाओं पर यकीन करने वाले देश की दिमागी हालत के बारे में क्या कहा जाएगा?

इसी सवाल के चलते दो मनोचिकित्सकों को सामने आना पड़ा, जिन्होंने बताया कि सुशांत ने उनकी मदद मांगी थी और वे बॉयपोलर डिसऑर्डर के शिकार थे। वह कई बार अपनी दवाओं को लेने से भी चूक जाते थे। 

दो में से एक मनोचिकित्सक ने तो यहां तक कहा कि,"गंभीर एंजॉयटी, गहरे अवसाद या अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे व्यक्ति के लिए आत्महत्या करने की कई वज़हें हो सकती हैं। यह वज़हें आमतौर पर व्यक्ति के नकारात्मक विचारों से पैदा होती हैं।"

ऐसा लगता है कि अपने चिकित्सकीय अनुभव के साथ दो मनोचिकित्सक लोगों का परीक्षण कर रहे हैं। ताकि लोग समझ सकें कि उनका यह अबोध उल्लास का एक महीन बीमारी का संकेत है, जो उनकी वास्तविकता की समझ को तोड़-मरोड़ रही है। या फिर मनोचिकित्सक लोगों को सुशांत की कहानी में खलनायक ना खोजने और नुकसान ना पहुंचाने की चेतावनी दे रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा चोट चक्रवर्ती परिवार को पहुंची है। एक उन्मादी देश ने परिवार को अनगिनत दुख दिए हैं। जब रिया के भाई शौविक चक्रवर्ती को नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने हिरासत में लिया, तो रिया के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) इंद्रजीत चक्रवर्ती ने ट्वीट करते हुए कहा, "बधाई हो भारत, आपने मेरे बेटे को गिरफ्तार कर लिया। मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि अगला नंबर मेरी बेटी का है, मैं नहीं जानता कि उसके बाद किसकी बारी होगी। आपने एक मध्यमवर्गीय परिवार को बर्बाद कर दिया। हां, लेकिन न्याय के लिए सारी चीजें सही है। जय हिंद।"

लेफ्टिनेंट कर्नल ने जो अंदाजा लगाया था, वह सही निकला। "नॉरकोटिक्स ड्रग्स एंड सायकोट्रॉपिक सबस्टांस (NDPS)" ने ड्रग्स लेने और इस्तेमाल करने के आरोप में रिया को 8 सितंबर के दिन गिरफ़्तार कर लिया गया। देश के उन्मादी हिस्से को लग रहा है कि रिया की गिरफ़्तारी सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाने की साजिश के पर्दाफाश होने की श्रंखला का हिस्सा है।

ऐसा लगता है सुशांत की स्थिति गांजा लेने के चलते ज़्यादा खराब हो गई थी। आरोप है कि सुशांत के लिए यह नशीले पदार्थ शौविक और उनके घर के मैनेजर सेमुएल मिरांडा ने लाते थे। शैविक के पास से किसी भी तरह का नशीला पदार्थ बरामद नहीं हुआ है। वहीं दो लोगों से 58 ग्राम गांजा बरामद हुआ है, आरोप है कि इन्हीं दो लोगों से शौविक सुशांत के लिए गांजा लेता था। 

लेकिन सिर्फ़ 58 ग्राम? कौन नहीं जानता कि भारत में चरस और गांजे का उत्पादन, सेवन और एकत्रीकरण प्रतिबंधित है? लेकिन यह भी कौन नहीं जानता कि भारत के ज़्यादातर हिस्सों में गांजा आसानी से उपलब्ध है? अगर कुछ लोगों को लगता हो कि चरस अमीर लोगों का नशीला पदार्थ है, तो भगवान शिव की आराधना करने वाले उन साधुओं को याद करिए जो लगातार चिलम पीते हैं।

किसी उन्मादी के लिए क्रॉसिंग पर आते ही ट्रैफिक की बत्तियां लाल हो जाना अलग से कोई संयोग नहीं होता। इसी तरह उन्माद की चपेट में आया देश का एक हिस्सा अलग-अलग घटनाओं को जोड़कर अपनी सच्चाई बना रहा है, भले ही वह कितनी ही तोड़ी-मरोड़ी गई हो। इस तोड़ी-मरोड़ी गई सच्चाई में रिया चक्रवर्ती एक "डायन", "पैसा ऐंठने वाली महिला" या जैसा बिहार में जेडीयू के नेता माहेश्वरी हजारी ने बताया, वह प्रेम में फंसाकर मारने वाली "एक विषकन्या" हैं।

अगर उन्माद के इस दौर का इलाज़ ना किया जाए, तो इसके बाद गहरे अवसाद की स्थिति आती है। तब इससे पीड़ित शख़्स घनघोर निराशा और दुख में चला जाता है।

शायद देश का एक बड़ा हिस्सा अपने मन में इसी उथलपुथल से गुजर रहा है। जैसे वह लोग जो कोरोना महामारी के दौरान अपने प्रिय लोगों को खो चुके हैं, या फिर वह जो घर पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर भूखे और परेशान होकर पैदल चले हैं। वह लोग भी तो हैं जो डर के साथ अर्थव्यवस्था को सिकुड़ते हुए देख रहे हैं, अपनी आय-वेतन में बड़ी कटौती के साक्षी बन रहे लोग हैं, जिनकी नौकरियां रातों-रात जा सकती हैं। 

बॉयपोलर देश का एक हिस्सा यही निराशावादी मनोभाव बनाता है। जबकि दूसरे हिस्से पर बेहद उत्साह में रहने वाले लोग हैं। 

मनोचिकित्सक बताएंगे कि जो लोग रिया या हिंदी फिल्मों से जुड़े दूसरे लोगों को घेर रहे हैं, वे केवल अपने नकारात्मक विचारों और गुस्से का 'विस्थापन और हस्तांतरण' ऐसे लोगों के खिलाफ़ कर रहे हैं, जो उन्हें पलटकर जवाब नहीं दे सकते। 

इसकी बेहद सीधी सी थ्योरी है। आप आसानी से अपने वरिष्ठ अधिकारी से झिड़की ले लेते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि जवाब देने की बड़ी कीमत हो सकती है। इसलिए आप अपना गुस्सा घर, अपनी पत्नी या बच्चों पर निकालते हैं। यह एक अवचेतन मन की प्रक्रिया होती है। इसके ज़रिए दिमाग अपनी दबी हुई भावनाएं निकालता है और उन्हें ऐसी चीज के खिलाफ़ ढकेलता है, जो आपके लिए ख़तरा नहीं बन सकतीं। 

जैसे-जैसे कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है, भविष्य के प्रति चिंता में डूबे लोग सीधे राज्य के खिलाफ़ गुस्सा नहीं निकाल पा रहे हैं। राज्य उनकी ज़्यादातर दिक्कतों के लिए राज्य ही ज़िम्मेदार है। इतना ही नहीं, राज्य आगे उनकी मुसीबतें और भी ज़्यादा बढ़ा सकता है। अपने गुस्से और कुंठा में यह लोग रिया और उनके परिवार को बलि का बकरा बना रहे हैं। 

लेकिन राज्य की कहानी अलग है। लोकप्रिय मानसिकता पर नियंत्रण में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद, अब राज्य जनता की भावनाओं के हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। ऐसा कैसे किया जा रहा है?

उदाहरण के लिए, सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को बिहार में एक चुनावी मुद्दा बना दिया गया। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। भारतीय जनता पार्टी की कला-संस्कृति शाखा ने हाल में 30,000 पर्चे और नकाब छपवाए। इन पर लिखा था- "ना भूले हैं, ना भूलने देंगे।"

ऐसा लगता है कि बिहार के लोगों को ध्यान दिलाया जा रहा है कि बॉलीवुड में शत्रुध्न सिन्हा के बाद जगह बनाने वाले अकेले बिहारी सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के पीछे उनका अवसाद या बॉयपोलेरिटी ज़िम्मेदार नहीं थी, बल्कि उनके खिलाफ़ साजिश करने वाले लोग ज़िम्मेदार थे।

बीजेपी और जेडीयू बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ कर रही हैं। उनका कहना है कि नीतीश कुमार ने यह तय करवाया है कि सुशांत सिंह राजपूत के मामले की जांच CBI करे। कुछ जिलों में बॉलीवुड के "भीतरी" सलमान खान और करण जौहर के पोस्टर जलाए गए हैं। जनअधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव ने सुशांत सिंह को "बिहार का गर्व" बताया है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि सुशांत की मदद से जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को राजपूतों का वोट बड़े स्तर पर हासिल होगा। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 43 सीटों पर राजपूत प्रभाव रखते हैं। 

इन सभी को हमारे सामूहिक मस्तिष्क की सेहत के बारे में सोचना चाहिए। कुछ वक़्त से वहां बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। जैसे, 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में 12 मानवाधिकार और नागरिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का मामला। मामले में प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है। इस वर्ग में वह प्रदर्शनकारी भी शामिल हैं, जिन्होंने नई नागरिकता नीति का विरोध किया था। इन लोगों पर फरवरी के महीने में दिल्ली में हिंसा भड़काने का आरोप है।

यह कहना मुश्किल है कि किस इलाज से इन भारतीयों को महसूस होगा कि सुशांत की आत्महत्या के पर उनकी प्रतिक्रिया है बहुत मायनों में अभिनेता के दिमाग द्वारा तोड़-मरोड़कर बनाई गई अपनी वास्तविकता की तरह ही है।

मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Reactions to SSR Case: Is India Losing It, Literally?

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