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Real Hero:'रैट होल माइनिंग' टीम ने बताई आख़िरी घंटों की कहानी

''वो कहने लगे, तुम हमारे लिए ये हो, वो हो, मैंने उनसे कहा कि हम भी तुम्हारे जैसे मज़दूर हैं, जैसे तुम मज़दूर हो, वैसे ही हम भी मज़दूर हैं, हमारा काम था आपको बचाना।''
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''मेरे हीरो, मेरे पापा हैं, 41 लोगों की जान बचाई है उन्होंने, मैं उनका बहुत शुक्रिया अदा करता हूं वो बहुत बड़े हीरो हैं,पापा जब जा रहे थे तो डर लग रहा था'' ये कहना है पांचवी में पढ़ने वाले वकील हसन के बेटे अर्सलान मोहम्मद का। वकील हसन के छोटे बेटे जो पहली में पढ़ते हैं कहते हैं कि ''शाहरुख मुझे बहुत पसंद है लेकिन पापा मेरे हीरो हैं क्योंकि पापा ने 41 लोगों की जान बचाई है, जब वो जा रहे थे तो हमें इतना डर लग रहा था कि वो हारे ना लेकिन वो जीत कर आए।'' इन दोनों बच्चों के साथ ही खेल रहे मुन्ना कुरैशी का बेटा कहता है कि ''सलमान बहुत पसंद है, लेकिन पापा मेरे हीरो हैं, जब पापा जा रहे थे तो डर लग रहा था लेकिन जब वो वापस आए तो मैं बहुत खुश था मैं भी बड़ा होकर पापा की ही तरह बनना चाहता हूं।''

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली की श्री राम कॉलोनी के एक घर में जैसे ईद से पहले ही ईद मनाई जा रही हो, मुबारकबाद देने के लिए आने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था, घर के फर्श पर गेंदे के फूल बिखरे पड़े थे, फूलों की माला से पूरा घर महक रहा था, आने-जाने वाले गले मिलकर ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे थे। तस्वीरें खींची जा रही थी। मीडिया का भी जमावड़ा लगा था। सभी बच्चों के चेहरे खिले थे, इन बच्चों के लिए उत्तरकाशी से लौटे उनके पिता जैसे सुपरहीरो बन गए हों।

उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे मज़दूरों को निकालने के लिए पहुंचे 'रैट होल माइनिंग' टीम ने जैसे करिश्मा कर दिया हो। 12 लोगों की इस टीम में 6 दिल्ली और 6 उत्तर-प्रदेश के श्रमिक थे। ये लोग 30 नवंबर की सुबह दिल्ली लौट आए और पूरा दिन ही रह-रह कर उनके सम्मान में इलाके में जुलूस निकलता रहा।

इस टीम से मिलने हम वकील हसन के घर पहुंचे जहां हमने इस टीम के पांच लोगों से बातचीत की। जिनमें मुन्ना कुरैशी, मोहम्मद इरशाद अंसारी, मोहम्मद राशिद अंसारी, फिरोज़ कुरैशी शामिल थे।

12 नवंबर को जिस वक़्त पूरा देश दिवाली मना रहा था उत्तरकाशी में सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग में मलबा गिरने से 41 मजदूर अंदर ही फंस गए। जिसके बाद उन्हें निकालने की कवायद शुरू हुई। शुरुआत में मेनस्ट्रीम मीडिया से ये ख़बर गायब रही लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया 41 लोगों के परिवारों के साथ ही पूरे देश की बेचैनी बढ़ती गई। उत्तराखंड सरकार के साथ ही दिल्ली में भी हलचल बढ़ गई। विदेशी एक्सपर्ट, सेना के साथ ही देश में जहां से भी जो भी ज़रूरत की मशीन लगी उसे मंगाया गया लेकिन हर दिन बीतने के साथ हाईटेक मशीनें कामयाब होती नहीं दिखी।

एक बार फिर दिल्ली से मदद मांगी गई लेकिन इस बार कुछ ऐसे लोगों की टीम से संपर्क किया गया जो 'रैट होल माइनिंग' टीम का हिस्सा बने। इस टीम में कुल 12 लोग थे जिनमें से 6 दिल्ली के थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 'रैट होल माइनिंग' पर NGT(नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने 2014 में रोक लगा दी थी। ये एक छोटी सुरंग खोदकर कोयला निकालने का प्रोसेस है। लेकिन बचाव कार्य के आख़िरी चरण में इसी का सहारा लिया गया।

मुन्ना कुरैशी

इस पूरे मिशन या ऑपरेशन में जिस रैट माइनर का नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में है उनका नाम मुन्ना कुरैशी है, सोशल मीडिया पर भी उनकी ख़ूब वाहवाही हो रही है। मुन्ना कुरैशी ने विस्तार से हमें इस पूरे ऑपरेशन के बारे में बताया '' 18 नवंबर को रात को 11-12 बजे मेरे पास अशोक भइया (कोऑर्डिनेट कर रहे थे) का फोन आया था उन्होंने पूछा ''टीम है क्या'' तो मैंने कहा कि बात करता हूं, हमने बात की और हम तैयार हो गए।''

19 नवंबर को रात 8 बजे दिल्ली से 6 लोगों की टीम निकली जो सुबह पांच बजे उत्तरकाशी पहुंच गई। मुन्ना आगे बताते हैं कि ''पहुंचने के बाद हमारे तुरंत ही कार्ड बने, हम अंदर गए उन्होंने हमें दिखाया, इरशाद भाई गए थे देखने, हमने उनको बोल दिया कि ये काम हो जाएगा, टेंशन मत लो। उसके बाद ऑगर मशीन वालों ने कहा कि हमें दो घंटे दे दो, अगर हमारा काम दो घंटे में होता है तो ठीक है वर्ना हम काम आपके सुपुर्द कर देंगे, दो घंटे से पहले ही वो मशीन उसमें फंस गई उसके बाद काम हो गया तीन दिन बंद, हमने 23 को काम चालू किया।''

मुन्ना कुरैशी से हमने पूछा कि आख़िर का 12 मीटर का काम कितना मुश्किल था और इस दौरान उनके ज़ेहन में क्या चल रहा था? जिसके जवाब में उन्होंने बताया कि ''मैं एक दो बार गया था अंदर, मेरे भाई राशिद और इरशाद भाई थे, फेमस तो इन्हें ही होना चाहिए इन दोनों ने तीन-तीन घंटे में दो पाइप डाले, पहला पाइप मोनू ने डाला था, सरिया आ गया था जिसकी वजह से बहुत अड़चन आई थी जो काम हमारा 10 घंटे में होता वो 26 घंटे में ख़त्म हुआ जिसमें एक पाइप हमारा 12 घंटे में गया उसकी वजह से दिक्कत आई वर्ना हमारा काम बिल्कुल सही जा रहा था।''

जैसे ही सुरंग में रास्ता बन गया और 'रैट होल माइनिंग' टीम अंदर पहुंची तो मुन्ना बताते हैं किमजदूरों के साथ क्या बातचीत हुई, वे कहते हैं कि ''पहले इरशाद भाई, मोनू, फिरोज भाई और दो और लड़कों समेत कुल पांच लोग थे। अंदर जो श्रमिक थे उन्होंने कहा कि मुन्ना भाई कहां है जब उन्होंने पूछा तो मैं पाइप में ही था जा ही रहा था, मुझसे पहले चार-पांच लोग गए थे उन्होंने मुझे बुलाया था कि मुन्ना भाई से मिलवा दो, मैं अंदर जा ही रहा था, मैं अंदर पहुंचा तो उन्होंने बहुत प्यार किया और उन्हें देखकर मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि हमारा मिशन जिसके बारे में लग रहा था नहीं हो पाएगा हमने कर दिखाया। उन्होंने मुझे सीने से लगाया एक चॉकलेट दी और फिर कहने लगे मुन्ना भाई आपको क्या चाहिए, मैंने कहा तुम्हारा प्यार चाहिए बस'' मुन्ना आगे कहते हैं कि ''उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया था, उन्होंने कहा कि तुमने हमें दूसरी जिन्दगी दी है तुम्हें हम जिन्दगी भर नहीं भूल सकते हैं, मैं भी उन्हें नहीं भूल सकता।''

हमने मुन्ना कुरैशी से पूछा कि इस बचाव अभियान में राज्य और केंद्र सरकार की कई एजेंसियों के साथ ही विदेशी एक्सपर्ट्स भी लगे थे लेकिन जब वो पहुंचे तो उन्हें क्या लगा था? मुन्ना जवाब देते हैं कि ''हमें कभी लगा ही नहीं कि नहीं होगा, हमारे पास पहले फोटो(सुरंग की) भेजा था और वकील भाई ने भी पूछा कि ''मुन्ना तू बता होगा कि नहीं होगा?'' तो मैंने कहा भइया होगा, तुम टेंशन मत लो हम यहां से पहुंचे तो हमने देखा फिर हमने कहा, साहब हमें 36 घंटे दे दो, 36 घंटे मांगे थे लेकिन 26 घंटे में क्लीयर कर दिया, मैंने टनल के बाहर ही कह दिया था कि हम इसे 24 से 26 घंटे में क्लीयर कर देंगे।''

हमने मुन्ना कुरैशी से 'रैट होल माइनिंग' के खतरों के बारे में भी सवाल किया जिसके बारे में उन्होंने बताया कि ''ये खतरनाक तो बहुत है, हम अंदर जाते हैं तो कोहनियां छिल जाती है, घुटनों पर बहुत बल पड़ता है, इसमें ज़्यादा सेफ्टी का सामान इस्तेमाल नहीं होता, बस हेलमेट लेते हैं, वर्दी लेते हैं और जूते लेते हैं लेकिन जो पाइप के अंदर जाता है वो हेलमेट भी नहीं लगाता क्योंकि वो ऊपर अड़ता है, तो खाली वो वर्दी और जूते पहन कर जाता है और जो गड्ढे में रहता है वो वर्दी, जूते और हेलमेट पहनता है ताकि ऊपर से कुछ गिरे तो सुरक्षा मिले। इसमें मुसीबत तो उठानी पड़ती है, हम तो पढ़े लिखे नहीं हैं। हमें तो ये नहीं पता था कि हम मुसीबत उठा रहे हैं या नहीं क्योंकि मिशन ही ऐसा था अपने 41 लोगों की जान बचानी थी। हमें तो बस ऐसा लग रहा था जैसे फोर्स सरहद पर लड़ती है ऐसे हम यहां लड़ रहे हैं।''

हमने मुन्ना से पूछा कि उन्हें और 'रैट होल माइनिंग' की पूरी टीम को हीरो बुलाया जा रहा है उन्हें इस वक़्त कैसा महसूस हो रहा है इस पर मुन्ना कुरैशी ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा कि ''मुझे बहुत ख़ुशी है, मेरे बेटा भी बहुत ख़ुश है, मुझे पूरे देश से बहुत प्यार मिल रहा है।''

सम्मान करने आए पड़ोसी

देश के सबसे मुश्किल बचाव अभियान में से एक सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग अभियान आते ज़माने तक याद रखा जाने वाला है इसी बचाव अभियान में 'रैट होल माइनिंग' टीम के एक और मेंबर हैं मोहम्मद इरशाद अंसारी और उन्होंने भी इस रेस्क्यू ऑपरेशन की अहम बारीकियां बताई।

मोहम्मद इरशाद अंसारी

''भूमिका सबकी बराबर रही, हमारे लिए टाइम बहुत अहम था, हमें 36 घंटे मिले थे लेकिन हमारा टारगेट था कि कम से कम समय में निपटा दें, शोर हो रहा था कि मशीन से हो रहा है, मशीन से हो रहा है लेकिन हमने कहा कि सर ये हाथ से मैन्युअली( Manually) हो सकता है तो बड़ी मुश्किल से उन्होंने चांस दिया जिस पर हम खरे उतरे, कठिनाइयां बहुत थीं। सरिया, गाटर वगैरा का जो खाका टनल के अंदर बनाया था जब टनल पर मलबा गिरा तो सब नीचे झुक गया था और जब वो मशीन चला रहे थे तो वो मशीन सरियों में लग रही थी तो मशीन आगे नहीं जा पा रही थी वहां मशीन फेल हो गई थी, जिस वक़्त हमारी मिटिंग हुई साहब लोगों से तो उन्होंने कहा था एक बार आप अंदर जाकर देखकर आओ हालात, हम हालात देखकर आए हमें ऐसा लगा कि हम कर लेंगे। क्योंकि हमें ऐसा लग रहा था कि पाइप के क़रीब दो-ढाई मीटर जाने के बाद पहाड़ का मलबा ही मिलेगा फिर सरिया नहीं होगा तो हमने दो-ढ़ाई-तीन मीटर का एक पाइप 8 से 10 घंटे के अंदर लगाया वो पाइप चला गया तो उसके बाद हमारे लिए लोकेशन बन गई। हम दोनों भाइयों (मोहम्मद राशिद अंसारी) ने दो पाइप डाले। हमारा उद्देश्य था उन्हें बचाना, कुछ अपनी भी बात थी, जुनून था, जज़्बा था, हमारे मजदूर भाई के साथ ऐसा हो गया। हम भी मज़दूर आदमी हैं कल को हमारे साथ भी कोई हादसा हो सकता है। क्योंकि हम भी यही काम करते हैं। दिल्ली जल बोर्ड के अंदर, आज किसी के साथ हुआ कल को हमारे साथ भी हो सकता है हम सब मजदूर हैं। फिर हमने ये नहीं देखा क्या टाइम हो रहा है। खाना खाना है या नहीं हम दोनों भाइयों ने टारगेट बनाया 6 बजे से पहले निकलना नहीं है। हमने टीम बना रखी थी दो-दो लोगों की तो मेरी और मोहम्मद राशिद भाई की टीम थी। हमने जुनून में काम किया और खरे उतरे, जब हम दूसरी तरफ गए तो हमारे जो मजदूर भाई थे वो हमें देखकर बहुत खुश हो गए (बताते हुए भावुक हो गए) हमने मुन्ना भाई को बुलाया। जब सुराख़ फूट गया तो हमारे अंदर उमंग सी फूटी अंदर के मज़दूरों को देखने की। हमारी मेहनत सफल हो गई थी तो भागे चले गए सारे के सारे। उन लोगों ने हमें बहुत प्यार दिया। वो बेचारे कहने लगे, तुम हमारे लिए ये हो, वो हो, मैंने उनसे कहा कि हम तुम्हारे लिए कुछ नहीं हैं हम भी तुम्हारे जैसे मजदूर हैं। तुम मजदूर, हम मजदूर हमारा काम था आपको बचाना।''

मोहम्मद राशिद अंसारी

मजदूरों को बचाने पहुंचे इन मजदूरों ने जब पहली बार अंदर फंसे 41 मज़दूरों को देखा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी हमने मोहम्मद राशिद से पूछा तो उनका जवाब था ''हमें बहुत खुशी हुई, बहुत अच्छा लग रहा था। वहां जितने भी मजदूरों के परिवार वाले आए थे उन्हें हम पर यकीन था। हमने उनसे कहा कि इतने दिन आपने इंतज़ार किया दो-चार दिन और इंतजार कर लो। 24 घंटे में तुम्हारे बच्चों को निकाल कर देंगे एक-एक को निकाल कर लाएंगे।''

फिरोज़ कुरैशी

फिरोज़ कुरैशी से हमने पूछा कि जब वो इस बचाव अभियान के लिए घर से जा रहे थे तो क्या उनके परिवार वाले डर रहे थे तो उनका जवाब था, ''हमारे परिवार को डर नहीं लगता उन्हें पता है कि ये लोग एक्सपर्ट है। ये लोग यही काम करते हैं।'' वो आगे कहते हैं कि ''इस ऑपरेशन के दौरान हमें हमेशा यही लगा कि ये काम हो जाएगा और इस दौरान अगर कोई भी अड़चन आएगी तो उससे लड़ते हुए चलेंगे। रास्ता बनाते वक़्त सरिया, पाइप वगैरा काफी चीजें आई लेकिन काटते हुए आगे चले गए हम।''

फिरोज़ कुरैशी बताते हैं कि जिस पाइप के माध्यम से उन्होंने काम किया वो 800 mm का था जिसका मतलब उसमें सिर्फ इंसान के बैठने भर की जगह होती है। मुन्ना कुरैशी ने बताया कि किस तरह छोटी सी जगह में तीन-तीन घंटे एक ही स्थिति में बैठकर खुदाई को अंजाम दिया जाता है और अगर इस दौरान कोई बड़ा पत्थर सामने आता है तो मुश्किल पेश आती है।

जिस वक़्त 12 'रैट होल माइनिंग' टीम ने अपने काम को पूरा किया तो मुन्ना इमोशनल हो गए थे और ये बात एक बार फिर याद करते हुए वो इमोशनल हो गए और कहने लगे ''वो खुशी के आंसू थे।'' जिस वक़्त मुन्ना ये बात बता रहे थे सभी बताने लगे कि क्यों उस वक़्त मुन्ना ही नहीं सभी इमोशनल हो गए थे। इरशाद कहने लगे '' हमें लगा वो भी हमारी तरह ही मज़दूर हैं।'' वहीं फिरोज़ कुरैशी बताने लगे कि '' इसको (मुन्ना) ऐसा लगा कि मैंने मिशन कामयाब कर लिया है। वो लोग बाहर निकल आए मुझे इससे बड़ी कोई ख़ुशी नहीं मिल सकती।''

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हमने मुन्ना कुरैशी से पूछा कि मज़दूरों के बाहर निकलने पर पूरे देश ने राहत की सांस ली लेकिन ये मौक़ा इस पर भी बात करने का है कि मज़दूरों की बात हो, मुन्ना कहते हैं कि '' मैं अपने लिए तो नहीं कहूंगा लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि पूरे भारत में जितने भी मेरे मज़दूर भाई हैं उनकी मदद होनी चाहिए। क्योंकि वो परेशान रहते हैं। उनके बच्चे कभी खाते हैं कभी नहीं। इतनी सैलरी में कुछ नहीं चल पाता बहुत परेशान हो जाते हैं। शाम को आते हैं और जब बच्चा 10 रुपये मांगता है तो उस टाइम होते नहीं है। उनके मालिक कहते हैं कि कल ही तो 500 रुपये दिए थे। उनका काम कभी चलता है कभी नहीं। महीने में अगर 3 दिन काम चलता है तो 6 दिन बंद रहता है। ऐसी बहुत सी परेशान होती है।''

वकील हसन

इस घटना के बाद लाखों-करोड़ों की परियोजनाओं में मज़दूरों की सेफ्टी एक बड़ा सवाल बनकर उभरा है हमने इसी से जुड़ा सवाल वकील हसन से पूछा तो उनका जवाब था ''एक मजदूर का भी परिवार है और वो भी अपनी फैमिली से उतना ही प्यार करता है जितना कोई करोड़पति। हर इंसान की जान कीमती होती है उसी तरह मजदूरों की जिन्दगी भी कीमती होती है। मैं अपील करना चाहता हूं कि मजदूरों की तरफ भी ध्यान दिया जाए।''

'रैट होल माइनिंग' टीम के दिल्ली में रहने वाले इन लोगों को ख़ुशी है कि ये 41 मज़दूरों की जान बचाने की कोशिशों का हिस्सा बने उनकी इस कामयाबी पर परिवार ही नहीं दोस्त यार भी गर्व महसूस कर रहे हैं। वकील हसन के घर इकट्ठा हुई दिल्ली की इस टीम को बधाई देने आए अब्दुल सत्तार कहते हैं कि ''मैं इनको मुबारकबाद देने आया हूं। हम साथ में पढ़े हैं। इन्होंने बेहतरीन काम किया है। 41 परिवार थे उन्हें एक बार फिर आबाद किया है उनके घर में जो दिवाली नहीं मन सकी इन्होंने दोबारा दिवाली मनाने का मौका दिया। मेरे दोस्तों ने जात-पात से ऊपर उठकर बहुत बड़ा काम किया है जो एक हिन्दुस्तानी का फर्ज बनता है। इनकी सोच को मैं सलाम करता हूं।''

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मीडिया और मिलने वालों के जमावड़े के बीच वकील हसन की पत्नी घर में खुशी के इस मौक़े पर बहुत ही व्यस्त दिखीं। हमने उनसे भी बात की उन्होंने बताया कि जिस दिन टीम दिल्ली से निकली उनके घरों में दुआओं का दौर शुरू हो गया था। वे बताती हैं कि हम सब लगातार यही दुआ कर रहे थे कि ये टीम कामयाब हो और 41 भाई अपने परिवारों के बीच दोबारा पहुंच जाएं।

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